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नैनो ट्यूब का अर्थ:

नैनो प्रौद्योगिकी को एक नई औद्योगिक क्रांति के जनक के रूप में देखा जा रहा है । इस नई क्रांति में यकीनन कार्बन नैनो ट्‌यूबों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है इस लिहाज से नैनो ट्‌यूबों को नैनो प्रौद्योगिकी का आधार भी हम कह सकते हैं ।

लेकिन इसके लिये हमें उनके गुणधर्मों का अध्ययन कर उनका सही ढंग से इस्तेमाल करना सीखना होगा । नैनो ट्‌यूब कार्बन परमाणुओं से बनी खोखली नलिकाओं के आकार की होती हैं जिनका व्यास लगभग 1 नैनोमीटर होता है । जापान की निप्पो इलेक्ट्रिक कंपनी (एनईसी) की फंडामेंटल रिसर्च लेबोरेटरी से संबद्ध सुमियो ईजीमा ने ही सबसे पहले 1991 में कार्बन की इन खोखली नलिकाओं की खोज की थी ।

लेकिन ईजीमा द्वारा खोजे गए नैनो ट्‌यूब बहु-सतही (मल्टी-वाल्ड) किस्म के थे । इनमें एक के अंदर एक खोखली नलिकाओं का समावेश था ठीक उसी तरह जिस तरह कि रूसी खिलौने में एक के अंदर एक गुडियाओं के रूप में देखने को मिलता है ।

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इसके बाद 1993 में ईजीमा तथा आईबीएम एल्मेडीन रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डोनाल्ड बेथुन को स्वतंत्र रूप से एक-सतही (सिंगल-वाल्ड) नैनो ट्‌यूबो के विकास में भी सफलता मिली । ऐसे नैनो ट्‌यूबों का व्यास करीब 14 नैनोमीटर पाया गया । उल्लेखनीय है कि कार्बन रेशों (फाइबर्स) के मुकाबले एक-सतही नैनो ट्‌यूब करीब दस हजार गुना पतले होते हैं लेकिन इनमें कार्बन रेशों की तुलना में कहीं अधिक तनन सामर्थ्य (टेंसाइल स्ट्रैंथ) मौजूद होता है ।

नैनो ट्यूब के उत्पादन विधियां:

हालांकि सुमियो ईजीमा ने ही पहले-पहल प्रयोगशाला में नैनो ट्‌यूबों को बनते देखा था, लेकिन नैनो ट्यूबों का निर्माण करने वाले ईजीमा यकीनन पहले व्यक्ति नहीं थे । निएंडर थल मानवों द्वारा ही बेशक अनजाने में ही अपनी गुफाओं को गरम रखने के लिये आग जलाने के दौरान सबसे पहले अति सूक्ष्म मात्रा में इन नैनो ट्यूबों का निर्माण हुआ होगा ।

लेकिन अब प्रयोगशाला में इन नैनो ट्यूबों को बनाने की तीन विधियाँ खोज ली गई हैं । पहली विधि एनईसी लेबोरेटरी से संबद्ध थॉमस डबल्यू एबसन तथा पलिकेल एम. अजयान द्वारा विकसित की गई थी । इस विधि में ग्रेफाइट की दो छडों के बीच 10 एम्पियर की धारा प्रवाहित कर उनके बीच एक स्फुलिंग (स्पार्क) उत्पन्न किया जाता है ।

यह स्फुलिंग ग्रेफाइट में मौजूद कार्बन को वाष्पित कर उसे एक तत्प प्लाज्मा के रूप में परिवर्तित कर देता है । इस तरह से वाष्पित कार्बन के कुछ परमाणु आपस में मिलकर नैनो ट्‌यूबों का सृजन करते हैं । इस विधि से एक-सतही तथा बहु-सतही दोनों ही किस्म के नैनो ट्यूबों को बनाया जा सकता है ।

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फुल्लरीन अणु की खोज करने वाले राइस यूनिवर्सिटी के रिचर्ड स्मॉली तथा उनके साथी वैज्ञानिकों को भी नैनो ट्‌यूबों का सृजन करने में सफलता मिली थी । इसके लिए उन्होंने लेजर ब्लास्ट तकनीक का इस्तेमाल किया था । इस तकनीक द्वारा मुख्यतया एक-सतही नैनो ट्‌यूबों को ही बनाया जा सकता है ।

उत्पादित नैनो ट्‌यूबों के व्यास को अभिक्रिया तापमान में फेरबदल करके नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन लेजर के इस्तेमाल के कारण यह विधि बहुत महंगी पडती है रासायनिक वाष्प निक्षेपण (केमिकल वेपर डिपॉजिशन) विधि के प्रयोग द्वारा जापान के शिशु विश्वविद्यालय से जुडे मॉरीन्यूबो एन्डो को भी नैनो ट्‌यूबों को बनाने में सफलता मिली ।

इस विधि में कार्बन के परमाणु युक्त किसी गैस, जैसे कि मिथेन को एक अवस्तर (सब्स्ट्रेट), जिसे ऑवन में 600 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पहले ही तप्त कर लिया गया है, से होकर धीरे-धीरे गुजारा जाता है इस प्रक्रिया में जब गैस विघटन को प्राप्त होती है तो उससे कार्बन के परमाणु मुक्त होते हैं ये परमाणु परस्पर संयोजन द्वारा नैनो ट्‌यूबो का सृजन करते है ।

उल्लेखनीय है कि तीसरी विधि पहली दो विधियों की तुलना में अधिक सरल तथा कम लागत वाली है । लेकिन इस विधि से बनने वाले नैनो ट्‌यूब अधिकतर बहु-सतही होते हैं तथा वे दोषयुक्त भी होते हैं । इस विधि से तैयार नैनो ट्यूबों का तनन सामर्थ्य भी अपेक्षाकृत कम होता है ।

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नैना ट्‌यूबों के विविध महत्वपूर्ण अनुप्रयागा को देखते हुए अमेरिका और जापान के अलावा चीन ने भी इनके उत्पादन में रूचि दिखाई है । इसके अलावा भारत में भी नैनो ट्‌यूबों को सफलतापूर्वक विकसित किया गया है । नैनो ट्‌यूबों को विकसित करने की और सरल एवं दक्ष विधियों की खोज अभी बाकी है ।

सन् 2002 में अमेरिका और चीन के वैज्ञानिकों के एक संयुक्त दल को बीजिंग की एक प्रयोगशाला में एक-सतही कार्बन नैनो ट्‌यूबों के निर्माण की एक सरल विधि को ढूंढने में सफलता मिली । रासायनिक वाष्प निक्षेपण तकनीक द्वारा इस वैज्ञानिक दल ने ऐसे नैनो ट्‌यूब तैयार किए जिनकी लंबाई 20 सेंटीमीटर तथा व्यास 0.3-0.5 नैनोमीटर था ।

जापान की मेजो यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं को भी कर्पूर, जो एक हरित पादप उत्पाद है, की मदद से एक-सतही एवं बहु-सतही कार्बन नैनो ट्‌यूबों के विकास में सफलता मिली उल्लेखनीय है कि नैनो ट्‌यूबों के निर्माण के परंपरागत तरीके, जिसमें मीथेन और बखान जैसे पेट्रोहाइड्रो कार्बनों का इस्तेमाल होता है, से जापानी अनुसंधानकर्ताओं द्वारा अपनाया गया तरीका एकदम भिन्न था ।

भारत में नैनो ट्यूब के अनुसंधान:

भारत में भी नैनो ट्‌यूबों को बनाने में उल्लेखनीय सफलता हाथ लगी है । बंगलौर स्थित जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साईंटिफिक रिसर्च के वेज्ञानिकों को प्रो. सी. एन. आर. राव के नेतृत्व में नैनो ट्‌यूबों को बनाने में सफलता मिली है ।

ईजीमा द्वारा नैनो ट्यूबों को बनाए जाने की खबर आने के कुछ ही महीनों के अंदर इस केन्द्र ने एक-सतही एवं बहु-सतही दोनों ही किस्म के नैनो ट्‌यूबों का विकास कर डाला । यही नहीं बल्कि 1998 में प्रो. राव को अपने साथी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर नैनो ट्‌यूबों को बनाने की एक सरल एवं कम लागत वाली विधि विकसित करने में भी सफलता मिली । इस विधि द्वारा बहु-सतही नैनो ट्‌यूबों का विकास कर पाना संभव था बाद में इसी केन्द्र को 15 नैनोमीटर व्यास वाले नैनो टयूबों को बनाने में कामयाबी मिली ।

मुबई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ टेक्नोलॉजी – आईआईटी) के वैज्ञानिकों को तारपीन, अलसी, कपास, सरसों जैसे वानस्पतिक तेलों की मदद से कार्बन नैनो ट्‌यूबों को विकसित करने में सफलता मिली । इसे विश्व स्तर पर एक उल्लेखनीय सफलता के रूप में देखा जा रहा है ।

दावा किया जा रहा है कि इस तरह से विकसित नैनो ट्‌यूबों में हाइड्रोजन को भंडारित करने की अपार क्षमता मौजूद होती है । उल्लेखनीय है कि नैनो ट्‌यूबों को बनाने की पादप तेल आधारित विधियाँ पेट्रोहाइड्रोकार्बन आधारित विधियों की तुलना में कहीं अधिक कम लागत वाली एवं प्रभावी साबित होती हैं ।

हालांकि नैनो ट्‌यूबों का विकास कार्बन द्वारा ही किया जाता रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इनका निर्माण सिलिकन, गैलियम आर्सिनाइड, गैलियम नाइट्राइड तथा कैडमियम सैलेनाइड द्वारा भी किया जा सकना संभव हे । इस दिशा में फिलहाल अनुसंधान परीक्षण चल रहे हैं ।

लेकिन यहां इसका उल्लेख प्रासंगिक होगा कि जहां कार्बन नैनो ट्यूब धातु या अर्धचालक जैसा व्यवहार कर सकते है वहीं गैलियम नाइट्राइड से बने नैनो ट्‌यूब सैद्धांतिक रूप से केवल अर्धचालक जैसा ही व्यवहार कर सकते हैं । इस तरह से बने नैनो ट्‌यूबों के अनुप्रयोगों की असीम संभावनाएं हैं ।

नैनो ट्यूबों के अनुप्रयोगों के दायरे, को देखते हुए भविष्य में इनकी माँग के और भी बढने की संभावना है । ऐसी ही बढती मांग प्लास्टिक की बढती लोकप्रियता के साथ हमें देखने को मिली थी । नैनो ट्यूबों के बहुलकों (पॉलिमर्स) के साथ रासायनिक आबंधन द्वारा और भी चमत्कारी गुणधर्मों वाले पदार्थों का विकास कर पाना संभव है । फिलहाल वैज्ञानिक इस दिशा में अनुसंधानरत हैं । इसके साथ ही बडे पैमाने पर नैनो ट्‌यूबों के निर्माण के प्रयास भी चल रहे हैं ।

लेकिन वांछित आकार और आमाप (साइज) वाले नैनो ट्‌यूबों का उत्पादन अब भी एक विकट समस्या है । वैज्ञानिक इस दिशा में निरंतर अनुसंधानरत हैं । स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को यह प्रदर्शित करने में सफलता मिली है कि सूक्ष्म बिंदुओं के रूप में निकेल, आयरन या इसी किस्म के किसी अन्य उत्प्रेरक को लेकर उसे किसी सब्स्ट्रेट पर स्थापित करके वांछित अभिलक्षणों वाले नैनो ट्‌यूबों का विकास किया जा सकता है ।

नैनो ट्‌यूबों के गुणधर्म एवं अनुप्रयोग:

नैनो ट्‌यूबों में बहुपयोगी यांत्रिक गुणों के अलावा विलक्षण इलेक्ट्रॉनिक गुणधर्म भी पाए जाते हैं इनके विभिन्न गुणधर्मों को और अच्छी तरह से समझने के लिये सुपर कम्प्यूटरों की मदद ली जा रही है । एक-सतही कार्बन नैनो ट्‌यूबें बेहद मजबूत एवं सुदृढ होती हैं । वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि ये स्टील से भी सौ गुना मजबूत होती हैं ।

तेज एसिडों तथा उच्च तापमान का भी नैनो ट्‌यूबों पर असर नहीं पडता है । निर्वात में करीब 2800 डिग्री सेल्सियस जबकि वायु में करीब 750 डिग्री सेल्सियस तापमान तक नैनो ट्‌यूबें सामान्य रूप लिए रहती हैं । इनमें उच्च विद्युत एवं ऊष्मा चालकता भी मौजूद होती है ।

नैनो ट्‌यूबों का एक और विशिष्ट गुणधर्म है उनका तनन सामर्थ्य । वाशिंग्टन यूनिवर्सिटी से संबद्ध रॉडने रूऑफ और उनके साथी वैज्ञानिकों ने परीक्षण द्वारा यह पाया कि नैनो ट्‌यूबों में अभूतपूर्व तनन सामर्थ्य पाया जाता है । इस गुण के चलते इन्हें काफी लंबा खींचा जा सकता है और ये सहज में टूटती भी नहीं है ।

उन्होंने एक बहु-सतही कार्बन नैनो ट्‌यूब के दोनों सिरों को एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप की नोंक के एक जोडे के बीच फसाकर नैनो ट्‌यूब को तब तक खींचा जब तक कि वह टूट नहीं गई । इस प्रयोग द्वारा रूऑफ और उनके साथियों ने पाया कि नैनो ट्‌यूबों का तनन सामर्थ्य 200 गीगा पास्कल होता है । कार्बन रेशों की तुलना में यह करीब 80 गुना जबकि स्टील की तुलना में करीब 5000 गुना अधिक होता है ।

नैनो ट्‌यूबो मे गजब की प्रत्यास्थता भी पाई जाती है । ट्रांसमिशन इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप द्वारा माइकेल ट्रेसी एंड कंपनी द्वारा 1996 में किए गए परीक्षणों से यह पता चला कि नैनो ट्‌यूबों का यंग प्रत्यास्थता गुणांक करीब 1000 गीगा पास्कल होता है जो स्टील की तुलना में करीब 5 गुना अधिक होता है कार्बन रेशों का यंग प्रत्यास्थता गुणांक करीब 230 गीगा पास्कल होता है ।

नैनो ट्‌यूबों में मोडे जाने की भी अभूतपूर्व क्षमता पाई जाती है । इन्हें काफी बडे कोणों तक मोडा जा सकता है इनकी एक और खासियत होती है इनका कम घनत्व इनका घनत्व करीब 2 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होता है जो कार्बन रेशों के घनत्व के बराबर लेकिन एल्युमिनियम के घनत्व (2.7 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर से भी कम होता है ।

नैनो ट्‌यूबों के उल्लिखित यांत्रिक गुणों का इस्तेमाल सूक्ष्म रोबोटों, डेंटरोधी कारों (जिन पर खरोंच आदि के निशान नहीं पडते हैं) तथा भूकंपरोधी भवनों आदि के निर्माण में किया जा सकता है इसके इलावा हल्के मगर मजबूत पदार्थों के निर्माण में भी नैनो ट्‌यूबों की अहम भूमिका हो सकती है ।

उल्लेखनीय है कि समान वजन के गोल्ड की तुलना में नैनो ट्‌यूब की कीमत करीब 150-200 गुना अधिक होती है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इनके अनुप्रयोगों की व्यापकता को देखते हुए यह मूल्य भी कम ही है ।

नैनो ट्यूबों का प्रयोग टेनिस के रैकेटों को और अधिक हल्का तथा मजबूत बनाने के लिये किया जा रहा है परीक्षण द्वारा पाया गया है कि बुलेट प्रूफ जैकेटों पर नैनो ट्‌यूब की परत चढा देने पर गोली की ऊर्जा को अवशोषित करने की उनकी क्षमता में दोगुनी वृद्धि हो जाती है ।

नैनो ट्‌यूबों की उच्च ताप सहयता के गुण का इस्तेमाल अमेरिका की एक कंपनी प्लास्टिक को अग्निरोधी बनाने के लिये कर रही है । इसके लिये यह कंपनी खासतौर पर नैनो ट्‌यूबों का निर्माण कर रही है । बहुपयोगी यांत्रिक गुणों के अलावा नैनो ट्यूबों में विलक्षण इलेक्ट्रॉनिक गुणधर्म भी पाए जाते हैं जिनका इस्तेमाल अनेक प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक एवं नैनो युक्तियों के विकास में किया जा सकता है ।

कार्बन नैनो ट्‌यूबों से विशिष्ट किस्म के तार बनाए जा सकते हैं जिनमें कॉपर आदि से बने धातुई तार की तुलना में विद्युत धारा को वहन करने और उसे संचालित करने की कहीं अधिक क्षमता मौजूद होती है । राइस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक नैनो ट्‌यूबों से इस किस्म के तारों को बनाने के प्रयासों में जुटे हैं ।

वर्तमान में माइक्रोचिप परिपथों में जो धातुई तार इस्तेमाल किए जाते हैं उनकी मोटाई 250 नैनोमीटर के करीब होती है । इनको और पतला करने पर उनके जल जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता हे । उदाहरण के लिए, 10 लाख एम्पियर की धारा एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाले कॉपर के तार से होकर गुजारे जाने पर उसे तुरंत जला सकती है इसके विपरीत कई नैनो ट्‌यूबों को लेकर बनने वाली एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाली संरचना से होकर 1 अरब एम्पियर की धारा भी मजे से प्रवाहित की जा सकती है ।

नैनो ट्यूबों के इलेक्ट्रॉनिक गुणधर्मों पर अभी विश्व भर में प्रयोग चल ही रहे है इन प्रयोगों के आधार पर ही वैज्ञानिकों ने नैनो ट्यूबों के इलेक्ट्रॉनिक व्यवहार पर कुछ जानकारी इकट्‌ठा की है । दरअसल, कार्बन नैनो ट्‌यूबें ग्रेफाइट चादरों (शीट्‌स) का ही बेलनाकार रूप है इन ग्रेफाइट चादरों को जिस तरह से लपेटकर बेलनाकार रूप दिया जाता है उसी पर ही बनने वाले नैनो ट्‌यूबों के गुणधर्म निर्भर करते हैं ।

बहु-सतही नैनो ट्‌यूबों में पास-पास स्थित सतहों के बीच होने वाली अन्योन्य क्रियाएं इनके व्यवहार को और भी जटिल बना सकती हैं । इसलिए बहु-सतही नैनो ट्‌यूबों की तुलना में एक-सतही नैनो ट्‌यूबों के व्यवहार एवं गुणधर्मों का अध्ययन कहीं सरल है ।

वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक-सतही नैनो ट्यूब धातु या अर्धचालक की तरह व्यवहार कर सकते हैं । यह व्यवहार किस ढंग से उन्हें मोड कर या लपेट कर बेलनाकार रूप दिया गया है इस पर निर्भर करता है इसे समझने के लिए ग्रेफाइट के गुणधर्मों को समझाना आवश्यक होगा क्योंकि कार्बन ट्यूब ग्रेफाइट चादरों को घुमावदार मोड देकर ही बनते हैं ।

ग्रेफाइट एक सुचालक पदार्थ की तरह कार्य करता है क्योंकि इससे होकर इलेक्ट्रॉनों का आसानी से प्रवाह संभव है । इसके विपरीत पॉलिमर पदार्थों, जो मुख्यतया कुचालक होते हैं, को गहन रूप से डोपित कर ही उनमें विद्युत सुचालकता का गुण लाया जा सकता है लेकिन ग्रेफाइट पूर्ण सुचालकता प्रदर्शित न कर अर्धधात्विक (सेमीमैटेलिक) पदार्थों जैसा ही व्यवहार करते है ।

चूंकि नैनो स्तर पर पदार्थों के गुण बदल जाते हैं, इसलिए जब ग्रेफाइट से नैनो ट्यूब बनते हैं तो गुणों में भी परिवर्तन दिखाई देता है क्योंकि नैनो स्तर पर क्वांटम यांत्रिकी के नियम लागू होते हैं । क्वांटम भौतिकी के अनुसार इलेक्ट्रॉन कभी तरंगों तो कभी कणों की तरह व्यवहार करते हैं । इन इलेक्ट्रॉन तरंगों का आपस में अध्यारोपण हो सकता है तथा ये एक-दूसरे को निरस्त भी कर सकती हैं ।

इलेक्ट्रॉन तरंगों का परस्पर अध्यारोपण होगा या ये ट्रक-दूसरे को निरस्त करेंगी यह इलेक्ट्रॉनों के तरंगदैर्ध्य या उनकी क्वांटम अवस्था पर ही निर्भर करता है असल में होता यह है कि नैनो ट्‌यूबों की परिधि के चारों ओर चक्कर काटते इलेक्ट्रॉनों में से काफी संख्या में इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं ।

केवल सही क्वांटम अवस्था वाले इलेक्ट्रॉन ही निरस्त होने से बच जाते हैं । ऐसे इलेक्ट्रॉनों की संख्या नैनो टयूबों की परिधि और उनके घुमाव (ट्विस्ट) के मान पर निर्भर करती है । अब इन अनुमत क्वांटम अवस्थाओं में ग्रेफाइट शीट में मौजूद एक विशिष्ट इलेक्ट्रॉन अवस्था (जिसे फर्मी बिंदु कहते है) शामिल हो सकती है अथवा नहीं भी हो सकती है । गौरतलब है कि यह विशिष्ट फर्मी बिंदु ही ग्रेफाइट की लगभग संपूर्ण चालकता के लिये जिम्मेदार होती है ।

अगर अनुमत क्वांटम अवस्थाओं में फर्मी बिंदु शामिल है तो नैनो ट्‌यूब चालक जैसा गुण प्रदर्शित करते हैं, फर्मी बिंदु के क्वांटम अवस्था में शामिल न होने की स्थिति में नैनो ट्यूब अर्धचालक की तरह व्यवहार करते हैं । अर्धचालक नैनो ट्‌यूब सिलिकॉन जैसा ही गुणधर्म रखते है लेकिन नैनो स्तर पर जहां सिलिकॉन तथा अन्य परंपरागत अर्धचालक उपयोग के ही योग्य नहीं रहते वहां नैनो ट्‌यूबों का बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है ।

नैनो ट्‌यूबों की एक और विशिष्टता होती है । सिलिकॉन की तरह स्थिर पट्‌टिका अंतराल (बैंड गैप) न होकर नैनो ट्यूबों का बैंड गैप उनके व्यास पर निर्भर करता है । गौरतलब है कि अर्धचालकों में चालन (कंडक्शन) एवं संयोजक (बैलेंस) पट्‌टियों के बीच एक वर्जित ऊर्जा अंतराल (फॉरबिडन एनर्जी गैप) होता है जिसे पट्‌टिका अंतराल (बैंड-गैप) कहते हैं ।

विभिन्न नैनो ट्‌यूबों में यह बैंड गैप शून्य (जैसा कि धातु में होता है) अथवा सिलिकॉन के बैंड-गैप के बराबर हो सकता है शून्य तथा सिलिकन के बैंड गेप के बीच का कोई भी मान नैनो ट्यूबों के बैंड गैप का हो सकता हैं ।

किसी और पदार्थ में इस तरह का परिवर्ती बैंड गैप नहीं पाया जाता । केवल नैनो ट्यूबों का ही विशिष्ट अभिलक्षण होता है । नैनो ट्‌यूबों से विकसित चैनल, जिनसे होकर इलेक्ट्रॉनों की आवाजाही हो सकती है, का इस्तेमाल धात्विक इलेक्ट्रोडों के बीच किया जा सकता है ।

इस सिद्धांत का प्रयोग कर नीदरलैंड्‌स स्थित डेल्फ्थ यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉंजी जुडे सीज डेकर तथा उनके साथी वैज्ञानिकों को क्षेत्र प्रभाव (फील्ड इफेक्टे) ट्रांजिस्टर के विकास में सफलता मिली है । यही नहीं बल्कि चालक एवं अर्धचालक नैनो ट्यूबों को जोडकर पॉल एल मैक यूआन के दल समेत अन्य वैज्ञानिक भी डायोडों को विकसित करने में कामयाब हुए हैं । विभिन्न बैंड गैप वाले नैनो ट्यूबों के संयोजन से प्रकाश उत्सर्जक (लाइट इमिटिंग) डायोड यहां तक कि नैनो स्तरीय लेंसर का विकास कर पाना भी सैद्धांतिक रूप से संभव दिखता है ।

नैनो ट्यूबों का इस्तेमाल ट्रांजिस्टरों तथा इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में लगने वाले तारों को बनाने में भी किया जा सकता है । ऐसे नैनो परिपथों का निर्माण करना भी संभव हुआ है जिनमें तार, स्विच तथा स्मृति अवयव (मेमोरी एलिमेंट) आदि सभी का काम नैनो ट्यूबों एवं अन्य परमाणुओं द्वारा ही लिया जाता है । नैनो ट्‌यूबों का एक और गुणधर्म यह होता है कि इनसे होकर इलेक्ट्रॉन बिना किसी बाधा के प्रवाहित होते हैं । नतीजतन ये इलेक्ट्रॉन अपनी क्वांटम यानी प्रचक्रण (स्पिन) अवस्था को बरकरार रखने में सक्षम होते हैं ।

इलेक्ट्रॉनों के इस विचित्र गुणधर्म का इस्तेमाल करके कुछ वैज्ञानिक ‘स्पिनट्रॉनिक’ युक्तियों के निर्माण की संभावना को लेकर अनुसंधान कर रहे हैं । यहां यह तथ्य विशेष उल्लेखनीय है कि जहां परंपरागत इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों की कार्यविधि इलेक्ट्रॉनों के आवेश पर आश्रित होती है, वहीं स्पिनट्रॉनिक युक्तियों की कार्यविधि इलेक्ट्रॉनों के स्पिन पर आश्रित होती है ।

इलेक्ट्रॉन स्पिन पर आधारित इलेक्ट्रॉनिकी को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है । द्वारा कुछ विशेष इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों, जैसे स्पिन क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर (फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर), स्पिन प्रकाश उत्सर्जक डायोड (लाइट इमिटिंग डायोड) आदि के विनिर्माण में वैज्ञानिकों को सफलता मिली है ।

हार्ड डिस्क में भंडारित सूचनाओं को पढ़ने के लिये उन्नत युक्तियों तथा एमआरएएम (मैग्नेटिक रेंडम एक्सेस मेमोरी) सदृश चुंबकीय कार्यकारी समृति (मैग्नेटिक वर्किंग मेमोरी) के विकास में भी स्पिनट्रॉनिकी के महत्वपूर्ण उपयोग है ।

दरअसल, स्पिनट्रॉनिकी का विकास पहले-पहल विशाल चुंबकीय प्रतिरोध (पाइंट मैग्नेटोरेजिस्टेंस) नामक परिघटना के आधार पर ही हुआ जिसके लिए चुबंकीय गुणधर्म का प्रदर्शन करने वाली धातुओं जैसे आयरन, कोबाल्ट, निकेल या उनके मिश्र धातु की दो परतों के बीच किसी अचुंबकीय धातु (जैसे कॉपर) की महज कुछ नैनोमीटर मोटी परत को रखा जाता है ।

लेकिन अब वैज्ञानिक स्पिनट्रॉनिकी युक्तियों को बनाने के लिये नैनो ट्‌यूबों के उल्लिखित गुणधर्म को इस्तेमाल करने की सोच रहे है । उन्हें आशा है कि नैनोट्‌यूब आधारित स्पिनट्रॉनिकी नैनो इलेक्ट्रॉनिकी के क्षेत्र में क्रांति ही ले आएगी ।

नैनो ट्‌यूबों के अत्यंत सूक्ष्म आकार के कारण उनसे होकर इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह को परिशुद्धतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है । वैज्ञानिकों ने नैनो ट्‌यूबों में बलम ब्लॉकेड नामक एक विलक्षपण परिघटना की खोज भी की है जिसमें नैनो ट्‌यूब एक बार में केवल एक इलेक्ट्रॉन की आवाजाही की ही अनुमति देती है । इस परिघटना का इस्तेमाल करके एकल-इलेक्ट्रॉन ट्रांजिस्टरों के विकास में सफलता मिली है ।

इलेक्ट्रॉन अभिगमन (ट्रांसपोर्ट) परिघटना के एक-विमीय अध्ययन के लिए नैनो ट्‌यूबें उपयोगी एवं महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं । एक ही दिशा में होने वाले इलेक्ट्रॉनिक अभिगमन को व्याख्यायित करने में वे मददगार हो सकती है । इलेक्ट्रॉन तरंग-पथकों (वेवगाइड्‌स) जैसे एक-विमीय युक्तियों, जिनमें इलेक्ट्रॉनों की आवाजाही पदार्थ के एक संकरे चैनल से होकर होती है, का विकास करने में भी वेज्ञानिक जुटे है ।

हांगकांग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 0.4 नैनोमीटर व्यास वाले नैनो ट्‌यूबों को लेकर जब प्रयोग-परीक्षण किए तो उन्हें पता चला कि 15 केल्विन तापमान से नीचे नैनो ट्‌यूबें अतिचालकता (सुपर कंडक्टिविटी) का गुण प्रदर्शित करती है । इस पर आगे और भी अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है ।

उल्लेखनीय है कि मूर के नियम के साथ संगतता बनाए रखने के लिए चिप पर लगने वाले ट्रांजिस्टरों की संख्या में भी समय के साथ वृद्धि हो रही है । इसी के साथ ही चिप का आकार भी सिमटता जा रहा है नतीजतन चिप के कम स्थान के अंदर अधिक ट्रांजिस्टरों को समाहित करना पडता है । इससे अत्यधिक ऊष्मा की उत्पत्ति होती है ।

चिप के घटते आकार के साथ अंत:संबंधों (इंटर कनेक्ट्स) की समस्या भी आडे आती है । वर्तमान में ट्रांजिस्टरों रो को आपस में जोडने के लिये धातु के तारों का इस्तेमाल किया जाता है चिप के घटते आकार के साथ इन तारों के आकार के घटने से उनसे होकर अधिक धारा प्रवाहित होने लगती है जिससे उनके जल जाने का खतरा रहता है ।

इन समस्याओं का समाधान नैनो ट्‌यूबों के इस्तेमाल से हो सकता है । वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा पता चला है कि नैनो ट्‌यूबों की ऊष्मा चालकता हीरे से भी अधिक होती है । अतः नैनो ट्‌यूबों के प्रेषण से उत्पन्न ऊष्मा बहि:स्ररण कहीं अधिक तेजी से होता है ।

इसके अलावा कार्बन परमाणुओं के बीच शक्तिशाली आबंधो के मौजूद होने के कारण कार्बन नैनो ट्‌यूबों की धारावाहक क्षमता काफी अधिक होती है । उदाहरण के लिये, नैनो ट्‌यूबों का एक बंडल, जिसका अनुप्रस्थ काट एक वर्ग सेंटीमीटर के बराबर हो, करीब 1 अरब एम्पियर की धारा का वहन कर सकता है । यह धारा कॉपर या गोल्ड परे बने तारो को वाष्पित कर देने के लिये काफी हैं ।

नैनो ट्‌यूबों के एक और रोचक गुणधर्म के बारे में राइस यूनिवर्सिटी के डी हीट, आंद्रे चैटलेन तथा डेनियल अरगेट ने 1995 में पहले-पहल पता लगाया था । इन वैज्ञानिकों ने पाया कि किसी कार्बन नैनो ट्‌यूब के दोनों सिरों के बीच विद्युत वोल्टेज को लगाने पर उससे होकर बडी तादाद में इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होने लगता है इस परिघटना को ‘फील्ड एमिशन’ कहते हैं ।

उल्लेखनीय है कि किसी धातु के इलेक्ट्रोड पर एक स्थिर-विद्युत क्षेत्र (इलेक्ट्रोस्टैटिक फील्ड) लगाने पर उसकी सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होने लगता है । लेकिन नैनो ट्‌यूबों के साथ फायदा यह है कि धातु के बने इलेक्ट्रोडों से होने वाले फील्ड एमिशन की तुलना में नैनो ट्‌यूबों से होने वाला फील्ड एमिशन अपेक्षाकृत कम वोल्टेज पर संभव हो पाता है । इसके साथ-साथ यह उत्सर्जन कहीं अधिक लंबे समय तक पदार्थ को कोई क्षति पहुंचाए बिना होता रहता है ।

वैज्ञानिकों द्वारा नैनो ट्‌यूबों के इस गुण का इस्तेमाल फ्लैट-पेनल टेलीविजन पर्दों, ट्रेंफिक सिग्नलों तथा प्रदर्श बोर्डों में किया जा सकता है । भविष्य में नैनो ट्‌यूब संभवतया कैथोड-रे ट्यूबों तथा द्रव क्रिस्टल पेनलों को प्रतिस्थापित कर देंगे ।

क्षेत्र उत्सर्जक के रूप में कार्बन नैनो ट्‌यूबों को निर्वात नलिका (वैक्यूम ट्‌यूब) में तप्त कैथोड के स्थान पर इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों को रंगीन वैक्यूम ट्‌यूब लैंपों को बनाने में सफलता मिली है । जापान की प्रसिद्ध ईसे इलेक्ट्रॉनिक्स नामक कंपनी ने नैनो ट्‌यूब सम्मिश्रों का इस्तेमाल छह रंगों के वैक्यूम-ट्‌यूब लैंपों को बनाने में किया है ।

परंपरागत बिजली के बल्बों की तुलना में ये लैंप दोगुनी अधिक चमक वाले तथा करीब दस गुना अधिक ऊर्जा दक्ष पाए गए हैं । इन लैंपों का पहला आदिप्रारूप (प्रोटोटाइप) लगातार करीब 10,000 घटी से भी अधिक समय तक प्रकाश देता रहा ।

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के भौतिकी के प्रोफेसर डेविड टॉमनिक ने प्रकाश उत्पन्न करने वाले नैनो ट्‌यूब की तुलना ऑन-ऑफ किए जा सकने वाले नैनो आकार के एक फ्लेश लाइट के साथ करते हुए कहा कि भविष्य में ऐसे नैनो ट्‌यूबों का इस्तेमाल माइक्रोप्रोसेसर और मेमोरी चिप के बीच तेजी से होने वाली अधिकाधिक सूचनाओं के विनिमय हेतु किया जा सकेगा ।

टॉमनिक का कहना है कि इससे उच्च गति से कार्य करने वाले बेहद सूक्ष्म आकार के उन्नत नैनो कंप्यूटरों के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा । नैनो ट्यूबों से सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव्स) को उत्पन्न करने की दिशा में भी फिलहाल अनुसंधान चल रहे है अगर इसमें सफलता मिली तो सेलफोन उद्योग में तो क्रांति ही आ जाएगी । वर्तमान में सेलफोनों के क्षीण संकेतों को बेस स्टेशनों की मदद से आवर्धित करना पडता है जो अपने आप में बड़ा खर्चीला सौदा है ।

आजकल ईधन रोल टेक्नोलॉंजी पर भी बडा काम हो रहा है ईंधन सेलों से न केवल कारों के लिए ऊर्जा दक्ष एवं पर्यावरण सम्मत ईंधन मुहैया हो सकेगा बल्कि अंतरिक्ष अनुप्रयोगों में भी इन्हें काम में लाया जा सकेगा । वर्तमान में इन ईंधन खेलों में प्रयुक्त होने वाले हाइड्रोजन के भडा२ण की समस्या सबसे विकट है जिसके चलते इस टेक्नोलॉंजी पर लागत भी अधिक आती है । लेकिन वैजानिक अनुसंधानों से पता चला है कि नैनो ट्यूबों में हाइड्रोजन को भंडारित करने की अभूतपूर्व क्षमता पाई जाती है ।

इसके अलावा लिथियम आयन बैटरियों की ऊर्जा दक्षता बढाने के लिए नैनो ट्यूबों का इस्तेमाल किया जा सकता है । यही नहीं बल्कि नैनो ट्‌यूबों के इस्तेमाल से सौर सेलों की दक्षता एवं कार्यक्षमता को बढ़ना के प्रयास भी विश्वभर में चल रहे हैं ।

आम लिफ्टों से हम सब अच्छी तरह से परिचित है । लेकिन अंतरिक्ष में लिफ्ट यानी स्पेस एलिवेटर की बात कोई करें तो यह महज विज्ञान गल्प की कोरी कल्पना ही लगेगी । प्रसिद्ध लेखक आर्थर सी. क्लार्क ने ही सबसे पहले यह कल्पना करते हुए कहा था कि भविष्य में स्पेस एलिवेटर के कारण रॉकेटों की भी आवश्यकता नहीं रह जाएगी ।

वाकई ऐसे एलिवेटर के लिये केबल को किसी बहुत ही मजबूत पदार्थ से बनाना होगा । वैज्ञानिकों ने कार्बन नैनो ट्‌यूबों की कल्पना स्पेस एलिवेटर्स में लगने वाले संभावित पदार्थ के रूप में की है । नैनो ट्यूबों का इस्तेमाल अति संवेदी रासायनिक संवेदकों को बनाने में भी किया जा सकता है ऐसे संवेदकों को बनाने के लिये अर्धचालक नैनो ट्यूबों का इस्तेमाल करना पडता है । ये संवेदक नैनो ट्यूबों के इस गुणधर्म के आधार पर कार्य करते हैं कि क्षार, हैलोजेन या अन्य गैसों के संपर्क में आने पर उनके गुणों में नाटकीय परिवर्तन उत्पन्न होता है ।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी नैनो ट्यूबों के अनेक अनुप्रयोग हैं । बीमारियों खासकर कैंसर के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं बीमार (कैंसरयुक्त) कोशिकाओं के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाओं को भी क्षति पहुंचाती हैं । इसके अलावा प्रतिकैंसर दवाएं आदि भी अधिक मात्रा में देनी पडती हैं क्योंकि रूधिर धारा से ये दवाएं तेजी से हटा दी जाती हैं ।

अत: दवा को नियंत्रित और सही परिमाण में लक्षित स्थान या कोशिकाओं तक अगर पहुंचा पाना संभव हो तो इससे चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है । नैनो ड्रग डिलीवरी सिस्टम इसी संभावना को साकार बनाने के काम में लगा है । इस तरह रोग पर काबू भी पा लिया जाएगा और दवा का शरीर पर कोई प्रतिकूल या पार्श्व प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी नहीं होगा ।

लेकिन दवा को लक्षित स्थान या कोशिकाओं तक पहुंचाना कोई सरल कार्य नहीं है । इसके लिये रक्त परिसंचरण तंत्र को माध्यम बनाया जा सकता है । नैनो ट्‌यूब जैसी युक्तियों को रक्त में तैराकर उनकी मदद से शरीर के बीमार अंगों तक दवाई पहुंचाई जा सकती है । इस दिशा में हाल ही में किए गए एक प्रयोग का उल्लेख प्रासांगिक होगा ।

स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने प्रयोग के दौरान पाया कि औसतन 100 नैनोमीटर लंबाई तथा कुछ नैनोमीटर व्यास वाली नैनो ट्‌यूबें अर्बुदों (ट्‌यूमर्स) की रूधिर वाहिकाओं की रिसती दीवारों से अंदर प्रवेश कर सकती है लेकिन स्वस्थ रूधिर वाहिकाओं के अंदर वे प्रवेश नहीं करती हैं । अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार नैनो ट्‌यूबों के जरिए दवा को अर्बुदों तक पहुंचाया जा सकना सम्भव है ।

अनुसंधानकर्ताओं ने नैनो ट्‌यूबों के जरिए अर्बुदों तक दवा पहुंचाने के लिए उन पर पॉली-इथाइलीन ग्लाइकॉल नामक एक विशिष्ट अणु का लेप चढाया । इस अणु के एक सिरे पर तीन शाखाएँ होती हैं । अनुसंधानकर्ताओं ने पेक्लिटेक्सल नामक प्रतिकैंसर दवा के अणुओं को हर शाखा के साथ संबद्ध कर दिया । इस तरह हर नैनो ट्‌यूब के साथ दवा के 150 अणुओं को संबद्ध किया गया ।

चूहों पर किए गए अपने प्रयोग में हर छह दिन बाद दवायुक्त नैनो ट्‌यूबों को चूहों के एक दल के शरीर के अंदर वैज्ञानिकों ने भेजा । इन चूहों के अंदर स्तन कैंसर कोशिकाएँ इंजेक्शन द्वारा पहले ही पहुंचा दी गई थीं । चूहों के एक अन्य दल, जिसके अंदर भी इन कैंसर कोशिकाओं को प्रविष्ट कराया गया था, को अनुसंधानकर्ताओं ने टेकसॉल नामक एक भिन्न प्रतिकैंसर दवा की उतनी ही खुराक दी ।

बाइस दिनों बाद उन्होंने पाया कि नैनो ट्‌यूबों के जरिए जिन चूहों को प्रतिकैंसर दवा पहुचाई गई थी उनके अर्बुदों का आकार टेक्सॉल की खुराक प्राप्त करने वाले दूसरे दल के चूहों की तुलना में आधे से भी कम था नैनो ट्‌यूबों द्वारा पेक्लिटेक्सल की खुराक पाने वाले चूहों की अर्बुद कोशिकाओं में कोशिका मृत्यु का प्रतिशत अधिक पाया गया जबकि इसकी तुलना में अनियंत्रित रूप से फैलती कोशिकाओं का प्रतिशत कहीं कम था ।

अनुसंधानकर्ताओं के आकलन के अनुसार नैनो ट्यूबों के जरिए प्रतिकैंसर दवा की खुराक पाने वाले चूहों में दवा का अवशोषण टेक्सॉल प्राप्त करने वाले चूहों की तुलना में करीब 10 गुना अधिक था । अपने प्रयोग के नतीजों के आधार पर अनुसंधानकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि दवा की अपेक्षाकृत कम खुराक देकर भी उतना ही प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है बशर्ते दवा को लक्षित स्थान पर पहुंचाया जाए । इस तरह सही परिणाम में लक्षित स्थान पर दवा को पहुंचा कर प्रतिकूल या पार्श्व प्रभावों को भी कम किया जा सकता है ।

हालांकि यह प्रयोग चूहों पर ही किया गया था, लेकिन भविष्य में इंसानों पर भी इसके आजमाए जाने की संभावना है । उल्लेखनीय है कि मानव शरीर पर नैनो ट्‌यूबों के पडने वाले संभावित प्रभावों को लेकर अभी अध्ययन चल रहे हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन नैनो ट्‌यूब यकृत और प्लीहा मे जाकर इकट्‌ठा हो जाते है तथा कुछ महीनों बाद ही मल द्वारा शरीर से ये बाहर निकलते हैं ।

लेकिन शरीर के अंदर रहते हुए नैनो ट्‌यूब अंगों को क्षति पहुंचाते हैं या नहीं इस पर निश्चित रूप से अभी कुछ कह पाना संभव नहीं हालांकि कुछ वैज्ञानिकों ने इस संबंध में अपने संदेह जरूर व्यक्त किए हैं । अतः चिकित्सीय अनुप्रयोगों में नेनो ट्यूबों का इस्तेमाल किए जाने हेतु शरीर के लिए इनके पूर्णतया सुरक्षित घोषित होने तक हमें प्रतीक्षा करनी पड सकती है ।

गौरतलब है कि आनुवंशिक इंजीनियरी में जीन चिकित्सा द्वारा खराब जीनों को बदला जाता है । खराब जीनों का प्रतिस्थापन करने के लिये वांछित जीनों को कोशिकाओं तक पहुंचाना पडता है । डीएनए, जिसमें वांछित जीन मौजूद होता है, द्वारा ही उस जीन को कोशिकाओं तक पहुंचाया जा सकता है ।

जर्मनी स्थित मैक्स प्लांक इंस्प्टीट्‌यूट के वैज्ञानिकों को कंप्यूटर अनुकरण के आधार पर यह प्रदर्शित करने में सफलता मिली कि डीएनए को कार्बन नैनो ट्‌यूबों में प्रविष्ट कराया जा सकता है । अमेरिका स्थित ओक रिज लेबोरेटरी तथा तेनेसी विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं को डीएनए को नैनो ट्यूबों के माध्यम से कोशिकाओं तक पहुंचाने में सफलता मिली ।

भारतीय वैज्ञानिकों को भी इस दिशा में सफलता मिली है । हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने संश्लेषित पेप्टाइड आधारित नैनो ट्‌यूबों का विकास किया है । इनका इस्तेमाल जीन चिकित्सा के लिए वांछित जीन को धारण करने वाले डीएनए को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए किया जा सकता है ।

नैनो ट्‌यूबों की मदद से जैव संवेदकों का विकास किया जाना भी संभव है । रक्त शर्करा के परिमाण को ज्ञात करने के लिये विशिष्ट प्रकार के जैव संवेदकों का विकास अब अपने अंतिम चरण में है । वैज्ञानिकों का दावा है कि शीघ्र ही इस प्रकार के जैव संवेदक तैयार कर लिए जाएंगे । वेज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर ज्ञात हुआ है कि एक अकेली कार्बन नैनो ट्‌यूब रक्त में शर्करा के परिमाण का पता लगा सकती है ।

अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन ‘नासा’ द्वारा 30-35 नैनोमीटर व्यास की बहु-सतही नैनो ट्‌यूबों से निर्मित एक डीएनए संवेदक का विकास किया गया है । इस संवेदक में इस्तेमाल होने वाले हर ट्‌यूब का आकार लाल रक्त कोशिका से भी कम है । यह संवेदक प्रोटीन, रसायन तथा रोगकारकों का भी पता लगा सकता है ।

इसके अलावा एक-सतही तथा बहु-सतही दोनों ही किस्म के नैनो ट्‌यूबों का इस्तेमाल क्रमवीक्षण इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (स्केनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप) के टिपों के रूप में किया गया है । नैनो ट्यूबों की उच्च चालकता जैव प्रतिदर्शों से सूक्ष्मदर्शी के अंदर इलेक्ट्रॉनों के अविरल प्रवाह को बनाए रखकर प्रतिदर्श के प्रतिबिंबन को संभव बनाती है ।

परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी (एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप) की नोंक के रूप में भी नैनो ट्‌यूबों का इस्तेमाल किया जा रहा है । इस तरह इन सूक्ष्मदर्शियों की विभेदन क्षमता को बढ़ाकर प्रोटीनों तथा अन्यान्य जैव अणुओं को और भी स्पष्ट रूप से प्रेक्षित कर पाना संभव हुआ है ।

अब तक नैनो ट्यूबों का निर्माण कार्बन द्वारा ही किया जाता रहा है । लेकिन वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इनका विकास सिलिकॉन, गैलियम आर्सेनाइड तथा कैडमियम सैलेनाइड द्वारा भी किया जा सकना संभव है ।

इस तरह देखा जाए तो नैनो ट्‌यूब अपने आप में अपार गुण संजोए हुए है । अब तक जहां भी इनकी उपयोगिता स्पष्ट हुई है वह निस्संदेह उल्लेखनीय एवं बहुविध है लेकिन इनके अनुप्रयोगों का भविष्य भी खासा उज्जवल दिखता है इनके इस्तेमाल से ऐसे करिश्मे संभव होगे जिनके बारे में अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती है । अतः नैनो ट्‌यूबों को हम सचमुच नैनो टेक्नोलॉजी का आधार कह सकते हैं ।

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