Read this article in Hindi to learn about the risks involved in nanotechnology.

संभावनाओं भरी नैनो प्रौद्योगिकी के कुछ नकारात्मक पहलुओं यानी संभावित खतरों के बारे में भी वैज्ञानिकों ने ध्यान आकर्षित किया है । आज इस पर सवाल खडे किए जा रहे हैं कि क्या नैनो प्रौद्योगिकी मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है । कुछ वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि नैनोकण, फुल्लरीन एवं नैनो ट्‌यूब स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकते हैं ।

वैज्ञानिकों का कहना है कि आकार में नैनो पेमाने पर ले जाने पर न केवल पदार्थों के गुणधर्म बल्कि उनकी रासायनिक संरचना भी काफी प्रभावित होती है । अतः पूरी तरह से हानिरहित पदार्थ भी नैनो पैमाने पर नुकसानदायक साबित हो सकते हैं ।

नैनो प्रौद्योगिकी के संभावित खतरों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान जारी है । ह्यूस्टन स्थित नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर में चूहों पर अंजाम दिए गए एक अनुसंधान में वैज्ञानिकों ने पाया कि जो चूहे नैनो रेशों के संपर्क में आए थे उनके फेफडों और ऊतकों में घाव पाए गए ।

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फुल्लरीन या बकीबॉल, जिसकी खोज हैरी क्रोटो और रिचर्ड स्मॉली ने 1985 में की थी, को पानी में घोले जाने पर यह अपना विषैलापन या विषालुता छोड सकता है । एनाहाइम, कैलीफोर्निया में संपन्न अमेरिकन कैमिकल सोसाइटी की एक बैठक में प्रस्तुत किए गए अनुसंधान के नतीजों के अनुसार फुल्लरीन मछलियों के मस्तिष्क को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर सकता है ।

डल्लास स्थित सदर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी से संबद्ध ईवा ओवरडीर्रटर ने फुल्लरीन को पानी में 0.5 भागा प्रति दस लाख भाग (पीपीएम) के परिमाप में घोलकर उसे लार्जमाउथ बैस नामक समुद्री मछली को पीने के लिए दिया । ईवा ने पाया कि 48 घंटों के बाद इन मछलियों के मस्तिष्क ऊतकों में कोशिकीय क्षति में 17 गुना अधिक वृद्धि हो गई थी । उनके यकृत के जीनों के व्यवहार में भी ईवा को बदलाव देखने को मिला ।

दिसंबर 2005 में बायोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार जीवित प्राणियों के डीएनए को फुल्लरीन क्षति पहुंचा सकता है । नतीजतन, शरीर के जैविक कार्यों में बाधा पहुंचने के साथ-साथ दीर्घकालीन प्रतिकूल पार्श्व प्रभावों से भी दो-चार होना पड सकता है ।

हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार अति सूक्ष्म नैनो कण त्वचा के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश कर जिगर एवं अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं । यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के चर्मरोग विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर अदनान नासिर, जिन्होंने यह अध्ययन अंजाम दिया, का कहना है कि जितना सूक्ष्म यह कण होगा शरीर के ऊतकों, श्वास नली या रक्त धमनियों में प्रवेश करने की उसकी उतनी ही अधिक संभावना होगी ।

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अदनान ने आगाह करते हुए कहा कि अगर नैनो कण नष्ट होने वाले न हों और वे निरंतर जमा होते चले गए एवं शरीर के अंदर उनका उपापचय न हो तो ऐसी हालत में ये अंगों में जमा हो सकते हैं । नतीजतन, अंग काम करना बंद कर सकते हैं ।

न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में अददान ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी (एन आई एस टी) के हवाले से बताया कि स्टोव और टोस्टर ऑवन से 2-30 नैनोमीटर आकार के अति सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन होता है ।

इस तरह के उपकरणों के दीर्घकालीन संपर्क में आने से शरीर बडे पैमाने पर बहुत ही बारीक नैनो कणों के संपर्क में आता है जो शरीर के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं । नैनों कण पनि या जल प्रवाह में जाकर भी मिल सकते हैं । इस तरह वे शरीर के अंदर तथा कोशिकाओं में समाहित हो सकते हैं ।

कार्बन नैनो ट्‌यूबों, जो नलिका के आकार के कुछ ही नैनो मीटर व्यास वाले कार्बन के अणु होते हैं, का इस्तेमाल भी असुरक्षित हो सकता है । एक हालिया अध्ययन के अनुसार, कार्बन नैना ट्‌यूबों के व्यावसायिक नमूने एस्बेस्टॉस के रेशों की तरह व्यवहार करते हैं, जो शोध एवं क्षत उत्पन्न करते हैं । जापानी अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन द्वारा भी यह बात सामने आई है कि कार्बन नैनो ट्यूबों को जब चूहों ने खाया तो उनमें कैंसरमय अर्बुद दिखाई दिए ।

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इस बात की भी आशंका है कि कहीं नैनो प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल आतंकियों द्वारा बडी संख्या में विध्वंसात्मक हथियार बनाने में न किया जाने लगे । इसकी मदद से सूक्ष्म कैमरे, सेलफोन आदि भी बनाए जा सकते हैं । नैनो टेक्नोलॉजी के प्रयोग से ऐसे हथियारों का विकास भी किया जा सकता है जो मौजूदा रासायनिक एवं जैव हथियारों की विध्वंसक् या संहारक क्षमता को कई गुना बढा सकते हैं ।

शरीर के अंगों की शल्यक्रिया के लिये अति सूक्ष्म रोबोट विकसित किए जा रहे हैं जिन्हें नैनोरोबोट या नेनोबोट कहते हैं यह आशंका जताई जा रही है कि ये नैनोबोट अपनी जैसी लाखों-करोडों प्रतिकृतियां बनाकर मनुष्यों पर हावी भी हो सकते है ।

माइकेल क्रिशटन, जो जुरेसिक पार्क के लेखक हैं ने प्रे (Prey) नामक एक और रहस्य-रोमांच से भरपूर उपन्यास लिखा था । इस उपन्यास में उन्होंने ऐसे ही सुपर स्मार्ट नैनो रोबोटों की कल्पना की थी जिन्होंने अफरा-तफरी मचाकर आतंक की सृष्टि कर दी थी ।

लेकिन, इसका एक अन्य पक्ष भी है । प्रौद्योगिकी ने जिस ढंग व तेजी से उन्नति की है, उसे देखते हुए मशीनों द्वारा संचालित मानव समाज, जिसमें मानव श्रम का कम से कम इस्तेमाल हो, की संभावना कथा के दायरे से बाहर निकलकर अगर हकीकत बन जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए । तभी लोगों में सरोकार इस बात को लेकर है कि कहीं मशीन मनुष्यों पर हावी तो नहीं हो जाएगी ।

इस परिप्रेक्ष्य में बिल जय जो सन माइक्रो सिस्टम्स के सह-संस्थापक तथा मुख्य वैज्ञानिक हैं, के विचारों को जानना रोचक एवं प्रासंगिक होगा । ‘व्हाय द फ्यूचर इज नॉट नीड अस’ शीर्षक के अपने विचारोत्तेजक लेख में बिल जय ने यह चेतावनी दी कि रोबोटिकी, आनुवंशिक इंजीनियरी तथा नैनो प्रौद्योगिकी मनुष्यों के अस्तित्व को घोर संकट में डाल देगी ।

वायर्ड नामक पत्रिका में प्रकाशित अपने इस लेख में बिल जय ने एक ऐसे संसार की कल्पना की जिसमें मनुष्यों के अधिकांश क्रियाकलापों पर इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों का नियंत्रण हो जाएगा ।

बिल जॉय की चिंता यह है कि अति बुद्धिमत्तापूर्ण रोबोट अगर अनियंत्रित ढंग से अपनी प्रतिकृति बनाने लगें तो इससे बडी मुश्किल खडी हो सकती है । असामाजिक एवं आतंकी तत्वों के हाथ में पडकर ये रोबोट मानव जाति पर कहर बरपा सकते हैं ।

बिल का तो यहां तक मानना है कि ऐसे रोबोट हमारे जैवमंडल का संपूर्ण विनाश भी कर सकते हैं । बिल ने इस खतरे को ‘ग्रे गू’ का नाम दिया है । असल में अति सूक्ष्म, विध्वंसक नैनो रोबोटों; जो स्व-प्रतिकरण (सेल्फ-रेप्लिकेशन) द्वारा अपनी फौज बढाकर जैवमंडल पर समस्त जीवन का विनाश कर सकते है, को ही बिल ने ‘ग्रे गू’ का नाम दिया है ।

लेकिन, नैनो जैव प्रौद्योगिकी (नैनो बायोटेक) के अभ्युदय से ‘ग्रीन गू’ नामक एक भिन्न परिदृश्य की संभावना उभर कर सामने आई है । इस परिदृश्य में सेल्फ-रेप्लिकेटिंग रोबोटों का स्थान सेल्फ-रेप्लिकेटिंग आर्गेनिज्य लेते हैं जिनकी उत्पत्ति नैनो आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा हो सकती है ।

बिल जॉय की तरह आर्थर सी. क्लार्क ने भी अपने बहुचर्चित उपन्यास ”2001: स्पेस ओाडिसी” में HAL 9000 नामक एक अति बुद्धिमान कंप्यूटर की कल्पना की है जो स्वतंत्र रूप से ही समस्त निर्णय लेकर अपने कार्यों को अंजाम देने में सक्षम है ।

लोकिन, क्या रोबोट सचमुच मानव को अपने नियंत्रण में ले सकते हैं? इस बारे में तंत्रिका विज्ञानियों की राय जानना महत्वपूर्ण होगा । उनका कहना है कि मनुष्यों में जो 40,000 के करीब जीन होते हैं वे मस्तिष्क के करीब दस हजार खरब (1015) सूत्रयुग्मनों (सिनेप्सेज) को निर्दिष्ट करने के लिये पर्याप्त नहीं है ।

इसका मतलब यह है कि संपूर्ण मानव व्यवहार का नियंत्रण आनुवंशिक रूप से कर पाना संभव नहीं, यानी समूचे मानव को प्रोग्रामित नहीं किया जा सकता । अतः काल्पनिक रूप से अगर रोबोट मनुष्यों पर नियंत्रण पा भी ले तो भी कोई विशेष चिता करने की बात नहीं । यह सबके लिये एक अच्छी खबर है ।

प्रो. रिचार्ड रमॉली, जिन्होंने हैरी क्रोटो के साथ मिलकर फुल्लरीन की खोज की थी, का मानना था कि नैनोबोट हमारे लिये खतरा साबित नहीं हो सकते क्योंकि स्व-प्रतिकारण की प्रक्रिया द्वारा यांत्रिक रोबोटों का निर्माण सम्भव ही नहीं है ।

लेकिन, स्मॉली के अनुसार नैनो कणों तथा नैनो ट्‌यूबों से मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर पडने वाले संभावित प्रभावों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है ।

नैनो टेक्नोलॉजी से जुडे संभावित खतरों की ओर अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (एन्वायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी-ईपीए) और खाद्य एवं औषध प्रशासन (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन-एफडीए) तथा यूरोपीय आयोग के स्वास्थ्य एवं उपभोक्ता संरक्षण निदेशालय (हेल्थ एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन डाइरेक्टरेट) का ध्यान भी गया है ।

लेकिन, इन निकायों का मानना है कि किसी किस्म के विनियमों को लागू करने से पहले इन खतरों के बारे में व्यापक अनुसंधान एवं विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है ।

विश्व भर के कुछ संस्थानों एवं केन्द्रों ने मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर नैनो कणों के संभावित प्रभावों पर अनुसंधान करना शुरू किया है । कनाडा के विनिपेग स्थित एक्शन ग्रुप ऑन इरोज, टेक्नोलॉजी एंड कंसेंट्रेशन (ईटीसी) के अनुसार संश्लेषित नैनो कणों में विषैलापन या आविषालुता मौजूद हो सकती है ।

इंग्लैंड स्थित पर्यावरण समूह ग्रीनपीस ने अपने द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि नैनो टेक्नोलॉजी नुकसानदायक नहीं भी हो सकती है । लेकिन, साथ-साथ नैनो कणों संबंधी विनियमों को लेकर ग्रीनपीस ने अपना सरोकार भी जताया है । ग्रीनपीस का तो यहां तक मानना है कि नैनो प्रौद्योगिकी से जुड़े किसी भी संभावित खतरे से लोगों को आगाह करना अति आवश्यक है ।

अमेरिकी कांग्रेस ने नैनो टेक्नोलॉजी के सामाजिक, नैतिक एवं पर्यावरणीय अधिप्रभाव को सामने लाने के लिये अनुसंधान एवं विकास मद में अधिक कोष डाले जाने की पेशकश की है । अमेरिकन कैमिकल सोसाइटी ने नैनो कणों के इस्तेमाल में सावधानी बरते जाने पर बल दिया है ।

नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान एवं विकास पर रोक लगाने का कोई औचित्य नजर नहीं आता है क्योंकि इस प्रौद्योगिकी के मानव हित में अनेक अनुप्रयोग हैं । लेकिन, साथ ही साथ नैनो प्रौद्योगिकी से जुड़े संभावित खतरों का अनुसंधान द्वारा पता लगाना तथा उनका प्रभावी रूप से प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है ।

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