भूकंप पर निबंध | Essay on Earthquake in Hindi. Read this article in Hindi to learn about:- 1. भूकंप की परिभाषा (Definition of Earthquakes) 2. मरसेली महोदय का भूकंप प्रबलता मापक (Earthquake Intensity Scale of Mercalli Scale) 3. उत्पत्ति के कारण (Causes) 4. भौगोलिक वितरण (Geographical Distribution) 5. भारत में भूकंप (Earthquakes in India).

भूकंप की परिभाषा (Definition of Earthquakes):

भूकंप की अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अलग-अलग परिभाषा दी है । सामान्य तौर पर भूपटल की चट्टानों के कंपन्न उत्पन्न होने को भूकंप कहते हैं । ‘भूकंप’ भूपटल में कंपन्न और थरथराहट को भूकंप की संज्ञा दी जाती है । भूकंप की पृथ्वी के अंदर से जिस बिंदु से उत्पत्ति होती है उसका फोक्स कहते हैं और पृथ्वी धरातल पर फोक्स के लंबवत बिंदु को अधिकेंद्र/एपिसेंटर कहते हैं । भूकंप की तीव्रता को सीसमोग्राफ पर मापा जाता है ।

भूकंप की तीव्रता को रिक्टर मापक पर रिकॉर्ड किया जाता है भूकंप मापक का आविष्कार 1935 में चार्ल्स ए. रिक्टर महोदय ने किया था । इस मापक द्वारा अभी तक सबसे भीषण भूकंप 11 मार्च, 2011 में जापान के टोहोकू भूकंप में 9.1 रिकार्ड किया गया था । मानव कम-से-कम 2.0 तीव्रता को ही महसूस कर सकता है ।

एक अनुमान के अनुसार भूकंप प्रतिवर्ष 1018 से 1019 जूल ऊर्जा निष्कासित करते हैं । इसमें अधिकतर ऊर्जा चंद बड़े भूकंपों से उत्पन्न होती है । सामान्यतः जिन भूकंपों की तीव्रता रिक्टर मापक पर 7 अंक से अधिक होती है उनसे अधिकतर ऊर्जा उत्पन्न होती है ।

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रिक्टर महोदय के मापक की तीव्रता तालिका 8.4 में दी गई है । प्रतिवर्ष 98 प्रतिशत भूकंपों की साधारण तीव्रता 8 से कम होती है, जबकि केवल एक भूकंप की प्रतिवर्ष 8 अंक तीव्रता से अधिक होती है ।

मरसेली महोदय का भूकंप प्रबलता मापक (Earthquake Intensity Scale of Mercalli Scale):

किसी भूकंप से होने वाली हानि, भूकंप की तीव्रता के अतिरिक्त अन्य बहुत-से कारकों पर भी निर्भर करती है । उदाहरण के लिये अधिकेंद्र से निकटता, इमारतों का डिजाइन तथा उनमें इस्तेमाल होने वाला सामान तथा प्रभावित क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व ।

इस संबंध में मरसेली महोदय ने भूकंप प्रबलता मापक तैयार किया जिसका विवरण निम्न प्रकार है-

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मरसेली मापक का आविष्कार वर्ष 1902 में किया गया था तथा 1956 में इसमें संशोधन किया गया । इस परिवर्तित मापक के द्वारा भूकंप प्रबलता को बारह वर्गों में विभाजित किया जाता है । इन बारह प्रकारों को रोमन संख्या में दिखाया जाता है । प्रत्येक अंक संख्या मानव द्वारा महसूस किये अनुभव को दिखाता है । यह मानव-अनुभव I से XII द्वारा प्रदर्शित किये जाते हैं । (तालिका 8.4 में)

मरसली मापक के रोमन अंक संख्या तथा प्रबलता निम्न तालिका में दिखाई गई है:

भूकंपों की उत्पत्ति के कारण (Causes of Earthquake):

भूकंपों की उत्पत्ति के मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं:

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1. ज्वालामुखियों का उदगार (Volcanic Eruption):

भूकंप उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण ज्वालामुखियों का उदगार है । अंतर्जात बल के कारण भूपटल की पर्ते एवं चट्‌टानें ऊपर की ओर उठती हैं, उनमें वलन एवं भ्रंश पड़ते हैं जो भूकंपों की उत्पत्ति का कारण बनते हैं ।

2. भ्रंश तथा परतों का टूटना (Faulting):

अंतर्जात बल यदि विपरीत दिशा में तनाव पैदा करते हैं तो एक सीमा के पश्चात उनमें भ्रंश पड जाते हैं, चट्टानें टूट जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप भूपटल में कंपन उत्पन्न होता है जो भूकंप का कारण बनते हैं । कैलिफोर्निया का सेन-एण्डरियास भ्रंश इस प्रकार का एक उत्तम उदाहरण है । भारत के गुजरात राज्य में भुज-भ्रंश जिसको अल्लाह-बंध कहते हैं, भूकंप ही का परिणाम है ।

3. प्लेट टेक्टोनिक (Plate Tectonic):

पृथ्वी का भूपटल बहुत-सी बड़ी एवं छोटी प्लेटों का बना हुआ है । यह लेटे या तो एक-दूसरे के निकट आती है या एक-दूसरे से दूर जाती हैं अर्थात् प्लेटों में विस्थापन होता रहता है । जब भी इन प्लेटों में विस्थापन होता है तो भूकंप आते हैं ।

4. मानवीय कारक (Anthropogenic Factors):

मानव द्वारा प्रकृति, भूआकृतियों से अधिक छेड़-छाड़ करने से भी भूकंप उत्पन्न होते हैं । मानव ने बहुत-से स्थानों पर नदियों पर भारी बहुदेशीय बाँध बनाए हैं । इन बाँधों के जलाशय बहुत बडे तथा गहरे हैं जिनमें जल की भारी मात्रा का संचय है ।

भारी मात्रा के जल के भार से भूपटल के समस्थिति पर प्रभाव पडता है जिसके कारण भूकंप आते हैं । भारत में वर्ष 1967 में कोयना भूकंप तथा 1993 में लातूर (उस्मानाबाद, महाराष्ट्र) के भूकंप मानव द्वारा निर्मित बाँधों का परिणाम माने जाते हैं ।

भूकंपों का भौगोलिक वितरण (Geographical Distribution of Earthquakes):

अधिकतर ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के अग्नि वृत्त में रिकार्ड किये जाते हैं । इस अग्नि-वृत्त में ज्वालामुखियों के उदगार भी अधिक हैं ।

महासागरों के कटकों पर भी भूकंपों की बारंबारता अधिक पाई जाती है । इनके अतिरिक्त विश्व के वलनदार पर्वतों में भी भूकंपों की बारंबारता अधिक है । वलनदार पर्वत एल्पस, एटलस, टारस, काक्शस पर्वत, के वलनदार पर्वतों तथा सेंट्रल एशिया के पर्वतों में फैली हुई है ।

जापान का टोहोछू-फुकुशिमा भूकंप (The Tohoku Fukushima Earthquake of Japan):

जापान का टोहोकू महाआपदा के रूप में 11 मार्च 2011 को आया था । रिक्टर मापक पर इस भूकंप की तीव्रता 9 मापी गई थी ।

टोहोकू भूकंप के फलस्वरूप भारी सुनामी उत्पन्न हुई थी जिसकी लहरे पाँच मीटर से अधिक ऊँची थी । सरकारी आँकड़ों के अनुसार 20,000 व्यक्तियों की मृत्यु हुई तथा 320,000 को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया । फूकिशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट को भारी क्षति पहुँची तथा विकिरण से बहुत-से बड़े प्रभावित क्षेत्र की जनसंख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा ।

जापान का यह सबसे बडा रिकार्ड भूकंप माना जाता है । सोवियत संघ की चरनोबिल दुर्घटना के पश्चात फुकुशिमा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी नाभिकीय दुर्घटना मानी जाती है ।

भारत में भूकंप (Earthquakes in India):

भारत में अधिकतर भूकंप हिमालय पर्वत श्रेणी, गुजरात, उत्तरी भारत के मैदान तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में आते हैं । भारत के उत्तरी भागों में फैले हिमालय पर्वत माला में भारी भूकंपीय हलचल होती रहती है । वर्ष 1819 में सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) तथा 1934 के बिहार के भूकंप का फोक्स उत्तरी भारत के मैदान में था ।

भारत के प्रायद्वीप के बारे में अवधारणा थी कि इसमें भूकंप नहीं आते अथवा यह भूकंपमुक्त प्रदेश है, परंतु वर्ष 1967 में कोयना भूकंप तथा वर्ष 1993 के लातूर भूकंप ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय प्रायद्वीप में कई छोटी प्लेटें हैं और यह प्लेटें जब अपने स्थान से खिसकती हैं तो भूकंप प्रायद्वीप में भी आते हैं ।

15 गुजरात के कच्छ क्षेत्र में 26 जनवरी, 2001 को भारी तीव्रता का भूकंप आया था जिसका अधिकेंद्र भुज के पास था । इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर मापक पर 8.1 थी । इस भूकंप के कारण तीस हजार लोगों की जान गई थी और 20 लाख जनसंख्या प्रभावित हुई थी ।

भूकंप विशेषज्ञों के अनुसार 2001 का भूकंप 1819 के भूकंप के अनुकेंद्र पर आया था जो अल्लाह-बंध भ्रंश के खिसकने के कारण उत्पन्न हुआ था । अल्लाह बंध भ्रंश की उत्पत्ति 1819 के भूकंप के कारण हुई थी । भारतीय प्रायद्वीप लगभग 5 से॰ मी॰ प्रति वर्ष के दर से हिमालय की ओर खिसक रहा है ।

भारत के भूकंपीय प्रदेश (Seismic Zones of India):

सामान्यतः भारत का अधिकतर क्षेत्र भूकंप प्रभावित क्षेत्र में आता है ।

भूकंप प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है:

1. जोन I, कम हानि होने वाला प्रदेश (Least or No Damage Zone):

भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, प॰ मध्य प्रदेश तथा अरावली क्षेत्र में भूकंप या तो आते नहीं या उनकी तीव्रता बहुत कम होती है, जिससे जान-माल की हानि होती है ।

2. जोन II, कम अथवा मामूली हानि के प्रदेश (Low or Light Damage Zone):

इस क्षेत्र में छोटा नागपुर का पठार, पूर्वी मध्य प्रदेश, पूर्वी आन्ध्र प्रदेश, द॰ पश्चिमी राजस्थान तथा दक्कन लावा पठार सम्मिलित हैं । उपरोक्त प्रदेशों में कमजोर तीव्रता के भूकंप आते हैं ।

3. जोन III, औसत तीव्रता कम हानि वाले भूकंपीय प्रदेश (Moderate Damage Zone):

भूकंपों से औसत दर्जे की हानि वाले प्रदेशों में भारतीय प्रायद्वीप के प्रदेश सम्मिलित हैं । महाराष्ट्र का कोयना (1967), लातूर (1993) तथा जबलपुर (1997) के भूकंप इसी जोन में आये थे ।

4. जोन IV, भारी हानि के प्रदेश (Heavy Damage Zone):

हिमालय पर्वत श्रेणी के दक्षिण में स्थित भारी नुकसान वाली भूकंपीय पेटी फैली हुई है । इस अधिक सघन जनसंख्या वाले प्रदेश में भूकंप आने पर जान-माल की भारी हानि होती है ।

5. जोन V, बरबादी का प्रदेश (Destruction Zone):

अत्यधिक बरबादी वाले प्रदेश हिमालय पर्वतों में स्थित जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरी पूर्वी राज्य (अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम तथा प॰ बंगाल का उत्तरी भाग एवं उत्तरी पूर्वी बिहार) सम्मिलित हैं ।

गुजरात में रन-कच्छ तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह इसी वर्ग में सम्मिलित हैं । वास्तव में जब भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसकती है तो इस पेटी में भारी तीव्रता के भूकंप आते हैं ।

21वीं शताब्दी के पहले दशक में ही भारत में बहुत-से भयानक भूकंप तथा प्राकृतिक आपदाएँ रिकार्ड की हैं । भुज का भूकंप 2001, हिंद-महासागर की सुनामी 2004, कश्मीर का भूकंप 2005, कोसी नदी की बाढ़ 2008, आन्ध्र प्रदेश की बाढ़ 2009, लेह-लद्दाख का मेघ विस्फोट 2010 तथा सिक्किम भूकंप 2011 बड़ी आपदाओं के प्रमाण हैं । इन महा आपदाओं से लगभग 80,000 करोड़ की हानि हुई ।