संगठन के चार मुख्य प्रकार: रेखा, कार्यात्मक, रेखा और कर्मचारी संगठन | 4 Main Types of Organisation: the types are:- 1. लाइन या स्केलर संगठन (Line or Scalar Organisation) 2. क्रियाशील संगठन (Functional Organisation) 3. लाइन एवं स्टाफ संगठन (Line and Staff Organisation) 4. लाइन, स्टाफ व क्रियाशील संगठन (Line, Staff & Functional Organisation).

एंडूकॉर्ने के अनुसार संगठन किसी भी उद्योग अथवा प्रतिष्ठान के लिये बहुत अधिक महत्वपूर्ण है । किसी भी उद्योग या प्रतिष्ठान की सफलता व विफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके लिये किस प्रकार का संगठन काम में लाया गया है ।

प्रत्येक उद्योग में एक ही प्रकार का संगठन उपयोगी नहीं रहता वरन् उद्योग अथवा प्रतिष्ठान के आकार को व उत्पादन प्रक्रिया को देखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार का संगठन प्रयुक्त करना उचित रहता है । संगठन की संरचना को समझने के लिये इन्हें चार्ट द्वारा प्रदर्शित किया जाता है ।

किसी भी उद्योग के उचित संचालन के लिये निम्न चार प्रकार के संगठनों में से किसी एक को प्रयुक्त किया जाता है:

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1. लाइन या स्केलर संगठन

2. क्रियाशील संगठन

3. लाइन एवं स्टाफ संगठन

4. लाइन, स्टाफ व क्रियाशील संगठन

प्रकार # 1. लाइन या स्केलर संगठन (Line or Scalar Organisation):

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इस संगठन को विभागीय संगठन भी कहा जाता है । इसे मिलीटरी संगठन की संज्ञा भी दी जा सकती है क्योंकि इस प्रकार के संगठन में प्रबन्धक के आदेश मिलिटरी के आदेशों के समान बगैर किसी व्यवधान के माने जाने चाहिए । इस संगठन में प्राधिकार ऊपर से नीचे चलता है, इस कारण इसे लाइन या स्केलर संगठन कहा जाता है ।

लाइन संगठन के गुण:

i. प्राधिकार स्पष्ट रूप से बंटे होने से दायित्व एक दूसरे पर नहीं थोपा जा सकता है ।

ii. अनुशासन कठोर होता है ।

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iii. निर्णय तुरन्त होते हैं ।

iv. व्यक्तिगत दायित्व निश्चित रहने से दोष आसानी व शीघ्रता से ज्ञात हो जाता है ।

v. ऊपर से नीचे तक प्रत्येक व्यक्ति मशीन की तरह व्यस्त रहता है । अतः उत्पादन लागत कम होती है ।

vi. समझने में सरल है ।

vii. लचीला होने के कारण ठेका लेने तथा विस्तार करने में सक्षम है ।

लाइन संगठन के दोष:

i. विशेष योग्यता की कमी रहती है ।

ii. विभागीय मुखियाओं के ऊपर कार्य मार अधिक रहने के कारण वे विस्तार व आयोजना के बारे में नहीं सोच पाने ।

iii. कुछ व्यक्तियों के महत्वपूर्ण होने से उन पर कार्यभार बढता है ।

iv. दुर्घटना तथा सामग्री व श्रमिक के अपव्यय के अवसर अधिक होते हैं ।

v. प्रबन्धक के आदेश श्रमिक तक पहुंचने में समय लगता है ।

vi. फोरमैन के ऊपर कार्यभार अधिक रहने के कारण एक ही आदेश दो बार हो जाने में अपव्यय होता है ।

vii. इसमें अच्छे व कुशल श्रमिकों को पारितोषिक प्रोत्साहन के रूप में नहीं दिया जा सकता है ।

उपयोग:

i. लघु व मध्यम आकार के उद्योग अथवा फैक्ट्री के लिये उचित रहता है ।

ii. शक्कर, पेपर, तेल शोधन, कताई व बुनाई जैसे लगातार प्रकार वाले उद्योगों के लिये अच्छा होता है ।

iii. इसे वहां पर प्रयुक्त करना उत्तम है जहां श्रमिक समस्याएं न ही ।

iv. जिन उद्योगों में स्वचालित संयंत्र लगे ही वहां इसे प्रयुक्त करना उचित होता है ।

प्रकार # 2. क्रियाशील संगठन (Functional Organisation):

लाइन संगठन में ऐसे फोरमैन की आवश्यकता होती है जो सभी कार्यों में निपुण हो । इस प्रकार का फोरमैन मिल पाना प्रायः असंभव होता है । क्रियाशील संगठन में यह कमी काफी हद तक दूर हो जाती है क्योंकि फोरमैन का कार्य विभिन्न योग्यता के क्रियाशील व्यक्तियों में बंट जाता है ।

यह संगठन इस कारण लाभप्रद है कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति अलग क्षेत्र में योग्यता रखता है तथा वह श्रमिकों पर पूरा नियंत्रण रखता है ।

क्रियाशील संगठन के गुण:

i. विशेष योग्यता के कारण कार्य की गुणवत्ता अच्छी होती है ।

ii. विशेषज्ञों के द्वारा कर्मचारियों को निर्देश देने के कारण इस प्रकार के संगठन में ज्ञान बढता है ।

iii. यह मानकीकरण तथा विशेषज्ञता से वृहद पैमाने पर उत्पादन में सहायक होता है ।

iv. यदि किसी संक्रिया में सुधार की आवश्यकता हो तो उसे उन्तिम समय तक सुधारा जा सकता है ।

v. फैक्टरी का विस्तार करना संभव होता है ।

vi. अपव्यय कम होने से उत्पाद की मूल लागत कम हो जाती है ।

vii. कार्य भार की अधिकता नहीं होती है ।

viii. क्योंकि श्रमिक एक ही फोरमैन के अधीन कार्य नहीं करता, अतः वह स्वतंत्र महसूस करता है ।

ix. श्रमिक को किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि सभी निर्देश विशेषज्ञों द्वारा ड्राइंग के साथ दिये जाते हैं ।

क्रियाशील संगठन के दोष:

i. नियंत्रण में जटिलता होती है, क्योंकि श्रमिक कारीगर सभी के नियंत्रण में रहता है । इस कारण अनुशासन की समस्या बढ़ जाती है ।

ii. अधिक वेतन पर विशेषज्ञ रखने से कार्य की लागत बढ जाती है ।

iii. कारीगरों की पूरी योग्यता एवं दक्षता का उपयोग नहीं हो पाता है ।

iv. दायित्व को टालना संभव है ।

v. किसी विशेषज्ञ के अपने कार्य में असफल रहने पर उत्पादन पर असर पडता है तथा सामग्री अपव्यय अधिक होती है ।

vi. कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिये सभी विभागों का समन्वित होना आवश्यक है अन्यथा उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है ।

उपयोग:

एक शुद्ध क्रियाशील संगठन तंत्र मुश्किल से ही मिल पाता है । जहां पर क्रियाशीलता के आधार पर दायित्व बांटे जाते है, वहाँ पर रेखीय संबंध भी होता है । इस प्रकार का संगठन बड़े उद्योगों में, जहां भविष्य में विस्तार की संभावना होती है उचित रहता है ।

प्रकार # 3. लाइन एवं स्टाफ संगठन (Line and Staff Organisation):

एक बड़े आकार के उद्योग में प्रबन्धक के लिये यह संभव नहीं है कि प्रबन्ध के हर भाग की ओर सावधानीपूर्वक ध्यान दिया जा सके । वह उत्पादन तथा विक्रय के कार्य में इतना व्यस्त हो जाता है कि उन्हें सही ढंग से आयोजना के कार्य को करने का समय नहीं मिल पाता । इस कारण से कुछ ‘स्टाफ’ को शोध व अनुसन्धान के कार्य के लिये लगाया जाता है ।

इस प्रकार से स्टाफ लाइन के अधिकारियों की सहायता करता हुआ विशेषज्ञता लाता है । लाइन अनुशासन व स्थिरता प्रदान करती है जबकि विशेषज्ञ निर्देश एवं सूचनाएं देते हुए दक्षता में सुधार करने में योगदान देता है ।

इस प्रकार से स्टाफ ”अध्ययन करने वाला” तथा लाइन उसे ”कार्यरूप में परिणित करने वाला” होता है । स्टाफ केवल उसी भाग के क्रियाकलापों को नियंत्रित करता है जिसमें वह विशेष योग्यता रखता है । वह अपने अधिकारियों को इस क्षेत्र से संबंधित विशेष ज्ञान देता है ।

लाइन एवं स्टाफ संगठन के गुण:

i. यह सुनियोजित विशेषज्ञता पूर्ण होता है ।

ii. उत्पाद की गुणवता अच्छी रहती है ।

iii. विशेषज्ञ ज्ञान उपलब्ध रहता है ।

iv. अपव्यय कम होता है ।

v. महाप्रबन्धक के पास आयोजना व विस्तार जैसे कार्यों के लिये समय उपलब्ध रहता है ।

vi. अनुशासन की समस्या लाइन संबंध के कारण सुलझ जाती है ।

लाइन एवं स्टाफ संगठन के दोष:

i. क्रियाशील संगठन की भांति इसमें विशेषज्ञ ज्ञान तथा मार्गदर्शन नहीं होता ।

ii. उच्च वर्ग में दायित्व की कमी रहने से अनुशासन अच्छा नहीं रह पाता ।

iii. उच्च वेतन पर स्टाफ रखने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है ।

iv. किसी भी विभाग में होने वाली डील कार्य को प्रभावित करती है ।

उपयोग:

इस प्रकार का संगठन आजकल मध्यम व बड़े आकार के उद्योगों में अधिक पसन्द किया जाता है । यह संगठन ऑटोमोबाइल उद्योगों तथा दूसरे इसी प्रकार के उद्योगों में भी प्रयुक्त किया जाता है ।

प्रकार # 4. लाइन, स्टाफ व क्रियाशील संगठन (Line, Staff & Functional Organisation):

वैज्ञानिक विधियों, बाजार स्पर्द्धा तथा अन्य व्यापारिक जटिलताओं को देखते हुए एक अच्छे तंत्र हेतु लाइन, स्टाफ व क्रियाशील प्रकार के मिले-जुले रूप के संगठन की आवश्यकता होती है ।  इस तंत्र में अनुशासन तथा उत्पादन के नियंत्रण के लिये श्रमिक, फोरमैन के सीधे नियंत्रण में रहते है ।

गुणवता का दायित्व निरीक्षक का होता है तथा वह इस कार्य के लिये क्रियाशील संगठन की तरह श्रमिक को सीधा आदेश दे सकता है । स्टाफ के अन्तर्गत अनुसंधान विभाग, कच्ची सामग्री, तैयार सामग्री, अर्द्ध तैयार सामग्री के विश्लेषण कार्य को रखा जा सकता है । इस प्रकार से इसमें तीनों संगठन मिल जाते है तथा यह संगठन अधिक जटिल हो जाता है ।

लाइन स्टाफ व क्रियाशील संगठन के गुण:

i. यह सुनियोजित होता है ।

ii. विशेषज्ञता उपलब्ध रहती है ।

iii. श्रमिकों के सीधे फौरमेन के नियंत्रण में रहने से अनुशासन तथा उत्पादन पर नियंत्रण बना रहता ।

iv. गुणवता का दायित्व निरीक्षक का होने के कारण वह सीधा श्रमिक को आदेश दे सकता है जिससे गुणवत्ता अच्छी रहती है ।

v. अपव्यय कम होता है ।

लाइन स्टाफ व क्रियाशील संगठन के दोष:

i. विशेषज्ञ, स्टाफ रखने के कारण उत्पादन लागत बढ जाती है ।

ii. तीनों संगठनों के मिल जाने से संगठन अधिक जटिल हो जाता है ।

उपयोग:

आजकल इस प्रकार का संगठन उन सभी राजकीय तथा निजी उद्योगों में प्रयुक्त होता है जहां पर अधिक जटिल प्रक्रम तथा संक्रियाएं होती हैं । जैसे रासायनिक उद्योग, राज्य विद्यूत मण्डल, इस्पात संयंत्र तथा अन्य बडे उद्योग आदि ।

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