Read this article in Hindi to learn about the important provisions related to panchayati raj in Rajasthan.

1. जिला प्रमुख को ग्रामीण विकास अभिकरण का पदेन अध्यक्ष भी बना दिया गया है ।

2. मिनी सचिवालय अवधारणा:

ग्राम स्तर पर ”मिनी सचिवालय” की अवधारणा लागू करने हेतु प्रत्येक पंचायत समिति में कम से कम एक ग्राम पंचायत का माडल (आदर्श) ग्राम पंचायत बनाने हेतु दिशा निर्देश जारी किये गये हैं ।

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3. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 में आवश्यक संशोधन करके 27.11.1995 के पश्चात यदि व्यक्ति के तीसरी संतान का जन्म हुआ है, तो वह पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया गया । इस प्रावधान को 2007 में समाप्त कर दिया गया ।

4. आयोजना प्रकोष्ठ:

जिला आयोजना समितियों द्वारा जिले की विकास योजना का प्रारूप तैयार करवाने हेतु पंचायती राज विभाग मुख्यालय में आयोजना प्रकोष्ठ का गठन किया गया है ।

5. पंचायत संदर्भ केंद्र:

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पंचायती राज जन प्रतिनिधियों को विभिन्न विकास कार्यों, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों व पंचायती राज अधिनियमों-नियमों की विधि, तकनीकी एवं क्रियान्वियन जानकारी उपलब्ध करवाये जाने की दृष्टि से ”पंचायत संदर्भ केंद्रों” की स्थापना की गयी । प्रारंभ में राज्य की 100 पंचायत समितियों में ”पंचायत संदर्भ केंद्र” स्थापित किये जाने का लक्ष्य था ।

6. पंचायती राज संस्थाओं के जन प्रतिनिधियों एवं कार्मिकों की क्षमता अभिवृद्धि के लिए ग्राम सैट प्रोजेक्ट के माध्यम से Two way & One way Video के उपयोग से प्रशिक्षण आदि प्रदान करने हेतु विभाग द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं ।

प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन हेतु इंदिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान, जयपुर को नोडल एजेन्सी बनाया गया है । ग्राम सैट के अंतर्गत सैटकाम स्टूडियो एवं अर्थ स्टेशन की स्थापना इसी संस्थान में की जायेगी ।

7. ग्रामीण विकास योजनाओं के निर्माण व उनके क्रियान्वयन में ग्रामीण समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वार्ड/ग्राम सभा का गठन किया गया है । ग्राम पंचायतों द्वारा कराये गये निर्माण कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण भी वार्ड/ग्राम सभा की बैठक में किया जाता है ।

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राजस्व विभाग द्वारा राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 183 बी में अनुसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की जमीनों पर अतिक्रमी का कब्जा हटाये जाने की व्यवस्था की गयी है । वार्ड/ग्राम सभा की बैठक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा महिलाओं की 1/10 उपस्थिति उनकी जनसंख्या के अनुपात में अनिवार्य की गई है ।

8. पंचायती राज संस्थाओं द्वारा लिये जाने वाले निर्णयों में अध्यक्षों के साथ-साथ सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु तीनों स्तरों पर स्थाई समितियों के गठन का प्रावधान किया गया है ।

अब ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषदों में समान रूप से निम्न 6 स्थाई समितियां हैं:

a. प्रशासन और स्थापन समिति,

b. वित्त और कराधान समिति,

c. विकास और उत्पादन कार्यक्रम समिति (जिनमें कृषि, पशुपालन, लघु सिंचाई, सहकारिता, कुटीर उद्योग और विषयों में संबंधित कार्यक्रम सम्मिलित है),

d. शिक्षा समिति,

e. सामाजिक सेवाएं एवं सामाजिक न्याय समिति (ग्रामीण जल प्रदाय, स्वास्थ्य और स्वच्छत, ग्रामदान, सूचना कमजोर वर्गों का कल्याण),

f. ग्रामीण विकास समिति (जिला परिषद स्तर पर कार्यकारी समिति का कार्य भी संपादित करेगी) ।

9. राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के नियम 350 यह प्रावधान किया गया है कि राजस्थान पंचायती राज अधिनियम की धारा 121 में यथा परिकल्पित जिला आयोजना समिति में कुल 25 सदस्य होंगे, उनमें से 20 सदस्य जिले के ग्रामीण क्षेत्रों और नगरीय क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में जिला परिषद/नगर पालिका निकायों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में से उनके द्वारा निर्वाचित किये जायेंगे ।

जिला आयोजना समिति में निम्नलिखित पांच नाम निर्देशित सदस्य होंगे- जिला कलेक्टर, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद, अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद, संसद सदस्यों/विधान सभा सदस्यों या राज्य सरकार द्वारा नाम निर्देशित अभिकरणों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों में से दो व्यक्ति ।

10. पंचायती राज संस्थाओं के जन प्रतिनिधियों/अधिकारियों/कर्मचारियों को उनके कार्य की कार्यप्रणाली एवं पंचायती राज अधिनियम व नियमों की जानकारी दिये जाने के लिए निम्न 3 प्रशिक्षण केंद्र संचालित हैं- ग्राम सेविका प्रशिक्षण केंद्र, मण्डौर (जोधपुर) 15 अगस्त, 1960 से, पंचायत प्रशिक्षण केंद्र डूंगरपुर 03 फरवरी, 1994 से, पंचायत प्रशिक्षण केंद्र, अजमेर 18 मई, 1996 से ।

11. योजना आयोग द्वारा 10वीं पंचवर्षीय योजना में विकास एवं सुधार सुविधाओं के अंतर्गत जिला बांसवाडा, डूंगरपुर एवं झालावाड में ”राष्ट्रीय सम विकास योजना” प्रारंभ की गई । इन क्षेत्रों में आधारभूत कर्मियों का चिन्हीकरण कर एवं उन्हें पूरा करने के साथ-साथ समृद्धि एवं विकास प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये कार्यक्रम/नीति बनाकर क्रियान्वित की जा रही है ।

योजनांतर्गत मुख्यत: जल संग्रह, पशुपालन तथा रोजगार संबंधी कार्यों को चिन्हित किया गया है । पंचायती राज संस्थाओं में डाटाबेस सृजन एवं लेखा संधारण हेतु उपयुक्त व्यवस्था स्थापित करने की दृष्टि से 11वें वित्त आयोग द्वारा कुल राशि रुपये 26.38 करोड़ उपलब्ध करवायी गई थी ।

इस राशि के उपयोग से विभाग द्वारा सभी 32 जिला परिषदों, सभी 237 पंचायत समितियों तथा 1100 ग्राम पंचायतों को कम्प्यूटरीकृत करने, रेडियो फ्रिक्वेंसी के माध्यम से विभाग मुख्यालय और उक्त पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय प्रबंधन, सूचना प्रबंधन व्यवस्था आदि के लिए एक वृहद सॉफ्टवेयर तैयार कराने हेतु ”करिश्मा” नामक एक परियोजना तैयार की गई है ।

इस परियोजना का शुभारंभ 9 दिसंबर, 2005 को किया जा चुका है । तदनुसार ही परियोजना का क्रियान्वयन राज्य की पंचायती राज संस्थाओं में प्रारंभ हो चुका है । इस परियोजना के पूर्ण होने पर जहां राज्य की पंचायती राज संस्थाओं में इंटरनेक्टिविटी स्थापित हो सकेगी वहीं कम्प्यूटरीकरण और सॉफ्टवेयर के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान सूचना प्रबंधन व्यवस्था और लेखा संधारण को सुदृढ़ बनाया जा सकेगा ।

12. जिला पंचायत का पंचायत समिति पर तथा पंचायत समिति का ग्राम पंचायत पर सामान्य नियंत्रण होता है ।

पंचायत राज व्यवस्था की कमियां या समस्याएं:

1. वित्तीय स्वायत्तता का अभाव ।

2. राज्य का हस्तक्षेप रूपी नियंत्रण ।

3. जातिवादी और गुटीय राजनीति का शिकार ।

4. तीनों संस्थाओं के अंतर्सबंधों की समस्या ।

5. भ्रष्टाचार, शक्तियों का दुरुपयोग ।

6. आरक्षण का गुड़-गोबर, जैसे- महिला की आड़ में संबंधित पुरुषों का हस्तक्षेप ।

7. शिक्षा और जागरूकता की कमी ।

8. प्रतिक्षण का अभाव ।

9. नौकरशाही का प्रभाव और असहयोग पूर्ण रवैया ।

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