रेगिस्तान पर अनुच्छेद | Paragraph on Desertification in Hindi language!
मरुस्थलीकरण शब्दावली का सबसे पहले उपयोग फ्रांस के विद्वान अबेविली ने किया था । मरुस्थलीकरण की यूँ तो बहुत-सी परिभाषाएँ दी जा चुकी हैं, परंतु सबसे मान्य परिभाषा 1994 में थामस एवं मिडिल्टन ने प्रस्तुत की थी ।
मरुस्थलीकरण के संबंध में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित 1995 के विश्व सम्मेलन में मरुस्थलीकरण की निम्न परिभाषा पर सहमति हुई थी:
मरुस्थल आर्द्र मरुस्थल तथा अन्य शुष्क प्रदेशों में जो भूमि जलवायु तथा मानवीय कारणों से प्रभावित हुई हो, मरुस्थलीकरण कहलाती है । वास्तव में वर्तमान समय में मरुस्थलीकरण का मुख्य कारण मानव के द्वारा भूमि, मृदा एवं जंगलों का दुरुपयोग माना जाता है ।
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मरुस्थलीकरण के अधिकतर भाग ऊष्ण तथा आर्द्र ऊष्ण कटिबंध में फैले हुये हैं जिनके क्षेत्रफल में वृद्धि हो रही है । संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार अफ्रीका का 40 प्रतिशत, एशिया का 33 प्रतिशत तथा लैटिन अमेरिका का 20 प्रतिशत भाग मरुस्थलीकरण की लपेट में है ।
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 के अनुसार भारत का मरुस्थलीय पारिस्थतिकी (शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्र) भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 38.8 प्रतिशत है, जो भारत के 10 राज्यों तक विस्तृत है । विश्व के जिन देशों में मरुस्थलीकरण की समस्या बहुत गंभीर है, उनमें जार्डन, लेबनान सुमालिया, इथोपिया, द॰ सूडान चाड, मार्ला, मारिटानिया तथा प॰ सहारा के नाम उल्लेखनीय हैं ।
अफ्रीका महाद्वीप के साहेल प्रदेश में प्राय: सूखा पड़ता रहता है । वर्ष 1990 के दशक में अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में विस्तृत रूप से भारी सूखा पड़ा था जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी । कृषि उत्पादन कम होने के कारण बहुत-से लोग कुपोषण का शिकार हो गये थे । एक अनुमान के अनुसार विश्व में माली पहला देश होगा, जिसमें पर्यावरण ह्रास के कारण लगभग पूरी जनसंख्या लुप्त हो जाएगी ।