मृदा क्षरण पर अनुच्छेद | Paragraph on Soil Erosion in Hindi!
प्राकृतिक ढंग से मृदा के कटाव को मृदा अपरदन कहते हैं । मृदा अपरदन की प्रक्रिया में मानव की भूमिका भी बड़ी महत्वपूर्ण है । सामान्यतः विश्व में मृदा अपरदन उन क्षेत्रों एवं प्रदेशों में अधिक है जहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है । इस प्रकार मानसूनी जलवायु, भूमध्यसागरीय जलवायु तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय में प्रदेशों मृदा अपरदन अधिक होता है ।
किसी क्षेत्र के मृदा अपरदन पर निम्न कारकों का प्रभाव पड़ता है:
(i) वर्षा की अपरदन क्षमता,
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(ii) जल की मात्रा,
(iii) वायु शक्ति,
(iv) वायु का प्रभावित क्षेत्र,
(v) भू-आकृति,
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(vi) ढलान,
(vii) ढलान में चबूतरे तथा
(viii) वायु से वृक्षों की रक्षा पेटी ।
इनके अतिरिक्त मृदा अपरदन पर जनसंख्या घनत्व, भूमि उपयोग, कृषि भूमि प्रबंधन, फसलों के प्रतिरूप, फसल-चक्र रासायनिक खादों के उपयोग, अग्नि का तथा वर्तमान में मृदा अपरदन पर कृषि की सघनता, नगरीकरण, दरिद्रता, आर्गन खनन, युद्ध तथा पर्यटन का भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है ।
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विश्व में मृदा अपरदन के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की मानचित्र 6.7 में दिखाया गया है ।
इन प्रभावित क्षेत्रों में:
1. संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेंसी घास के मैदान,
2. मध्य मैक्सिको,
3. उत्तरी पूर्वी ब्राजील,
4. उत्तरी अफ्रीका के देश (मिस्र, लीबिया, अल्जीरिया, टुनिसिया तथा मोरक्को),
5. साहेल प्रदेश जो सोमालिया, इथोपिया, द॰ सूडान, चाड, नाइजर, माली, मारिटानिया तथा प॰ सहारा पर फैला हुआ है,
6. बोतस्वाना तथा नामीबिया,
7. मध्य पूर्व के देश,
8. मध्य एशिया (कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान इत्यादि),
9. मंगोलिया,
10. चीन के ह्वांग हो तथा यांगटिकियांग बेसिन,
11. हिमालय पर्वत,
12. बिलोचिस्तान,
13. भारत में थार का मरुस्थल तथा
14. आस्ट्रेलिया का मरुस्थल तथा आर्द्र मरुस्थलीय भाग सम्मिलित हैं ।
मृदा अपरदन के विशेषज्ञों के अनुसार मृदा है मृदा अपरदन को निम्न तीन वर्गों में विभाजीत किया जा सकता है:
(i) चहरी अपरदन (Sheet Erosion)
(ii) नदी का/रिल अपरदन (Rill-Erosion) तथा
(iii) गली अपरदन (Gully-Erosion) ।
(i) चहरी अपरदन (Sheet Erosion):
जब किसी क्षेत्र की ऊपरी परत पर समान रूप से अपरदन हो तो उसको शीट अपरदन कहते हैं । धीरे-धीरे शीट अपरदन रिल अपरदन का रूप धारण कर लेता है । उत्तरी भारत के मैदान तथा विश्व के सभी वर्षा वाले मैदानों एवं ढलानों पर इस प्रकार का मृदा अपरदन देखा जा सकता है ।
(ii) नदी कारिल अपरदन (Rill-Erosion):
वर्षा जल के द्वारा निर्मित छोटी-छोटी तथा कम गहरी नालियों को रिल कहते हैं । सामान्यतः इस प्रकार की नालियाँ ढलान वाली कृषि भूमि पर विकसित होती है । शीट अपरदन की तुलना में नालीदार अथवा रिल अपरदन विदित होता है । इस प्रकार के मृदा अपरदन से कृषि भूमि को अधिक हानि होती है । रिल अपरदन अंततः बीहड भूमि का रूप धारण कर लेता है ।
(iii) गली/बीहड़ अपरदन (Gully-Erosion):
गली/गहरी नालियाँ होती है, जिनकी गहराई कुछ क्षेत्रों में कई मीटर तक पाई गई है । इस प्रकार का अपरदन प्रायः नदियों के बेसिन के ऐसे क्षेत्रों में होता है । चंबल नदी का गली (बीहड भूमि) विश्व प्रसिद्ध है । संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोरेडो नदी बेसिन में भी गली मृदा अपरदन देखा जा सकता । इस प्रकार का अपरदन नील नदी, रियो ग्रांडी, मिकांग तथा द॰अमेरिका की पराना नदियों के बेसिन में देखा जा सकता है ।
एक अनुमान के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 75,000 मिलयन टन मृदा अपरदन होता है । भारत वर्ष में प्रति वर्ष लगभग 6000 मिलियन टन मृदा का अपरदन होता है । भारत तथा चीन लगभग 60 प्रतिशत कृषि भूमि मृदा अपरदन से प्रभावित है ।
मृदा अपरदन से केवल वही क्षेत्र प्रभावित नहीं होते जहाँ से मृदा अपरदन का कटाव हो रहा है, बल्कि इसका प्रभाव उन भागों पर भी पड़ता है जहाँ पर जाकर यह मृदा एकत्रित होती है । बहुत-सी झीलो पोखर, तालाबो इत्यादि के पारितंत्र बुरी तरह से प्रभावित होकर नष्ट हो रहे हैं । मृदा अपरदन चूंकि अनुत्क्रमणीय है इसलिये इसकी रोकथाम के लिये उचित कार्य करना अनिवार्य है ।