सतत कृषि पर अनुच्छेद | Paragraph on Sustainable Agriculture in Hindi language!
टिकाऊ अथवा धारणीय कृषि की बहुत-सी परिभाषाएँ दी जा चुकी हैं । एक परिभाषा के अनुसार धारणीय कृषि वर्तमान की आवश्यकताओं की आपूर्ति इस प्रकार करती है कि भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए मृदा संसाधन स्वस्थ रहे । कुछ विद्वानों के अनुसार सतत कृषि में रासायनिक खाद एवं कीटाणुनाशक दवाइयों के स्थान पर गोबर एवं हरी खाद का इस्तेमाल किया जाता है ।
धारणीय कृषि में नवीकरण संसाधनों; जैसे-मृदा, प्राकृतिक वनस्पति, वन्य प्राणी, मछलियों फसलों तथा पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ अवस्था में रखने का प्रयास होता है । धारणीय कृषि आर्थिक दृष्टि से मौजूद जनसंख्या तथा भविष्य की जनसंख्या के लिए उपयोगी होती है ।
धारणीय कृषि के मुख्य लाभ निम्न प्रकार हैं:
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(i) पारिस्थितिकी संतुलन स्थापित रहता है,
(ii) फसलों के उगाने में लागत खर्च कम आता है ।
(iii) पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता या कम प्रदूषित होता है ।
(iv) पौष्टिक भोजन जिसमें कीटाणुनाशक दवाइयों के अंश नहीं होते । आधुनिक कृषि को धारणीय कृषि में बदलने के लिए तीन से छ: वर्ष लगते हैं ।
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उपरोक्त लाभों के बावजूद कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि धारणीय कृषि से अनाज एवं कृषि आधारित उद्योगों के कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो सकती ।
वनों से खाद्य सामग्री, कच्चा माल, ईंधन तथा टिंबर प्राप्त किया जाता है । वन, जो औद्योगिक क्रांति से पहले विश्व के 60 प्रतिशत थल पर फैले हुए थे, दिन-प्रतिदिन उनका क्षेत्रफल कम होता जा रहा है । इस समय पृथ्वी के केवल 25 प्रतिशत क्षेत्रफल पर वन पाए जाते हैं ।
विश्व के वनों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
(i) ऊष्ण कटिबंधीय कठोर लकड़ी के वन,
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(ii) शीतोष्ण कटिबंध के मुलायम लकड़ी के कोणधारी वन ।
विश्व में जंगलों को बढ़ती हुई माँग के कारण तेजी से काटा जा रहा है ।
वनों के सुरक्षण के लिए निम्न उपाय करना उपयोगी हो सकता है:
(i) वृक्षारोपण करना,
(ii) लकड़ी काटने की विधि को आधुनिक बनाना,
(iii) वन संरक्षण,
(iv) लकड़ी के दुरुपयोग को कम करना,
(v) लकड़ी का विकल्प तलाश करना तथा
(vi) उपलब्ध संसाधनों को पुर्नउपयोग करना ।