ज्वालामुखी पर अनुच्छेद | Paragraph on Volcanoes in Hindi language!
भूपटल से निकलने वाले लावे के मुख पर एक भू-आकृति को ज्वालामुखी कहते हैं । मैग्मा जो पृथ्वी के अंदर उत्पन्न होता है उसका उदगार एक ज्वालामुखी का रूप धारण कर लेता है । भूआकृति विज्ञान के विशेषज्ञ प्रो. होम महोदय के अनुसार ज्वालामुखी एक नालिका अथवा बिदर को कहते हैं जिसके द्वारा पृथ्वी के अंदर से लावा भूपटल पर आता है (1978) । सामान्यतः ज्वालामुखी के मुख पर एक शंक्वाआकार की भूआकृति बन जाती है, परंतु बहुत से ज्वालामुखियों में लावा पानी की भाँति उबलता रहता है ।
ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा वास्तव में पिघली हुई चट्टानें होती हैं । किसी ज्वालामुखी से लावा के अतिरिक्त राख, भाप, वाष्प, चट्टानों के टुकड़े, झाँवे तथा भूल इत्यादि बाहर निकलते हैं । वर्तमान समय में लगभग 1300 ज्वालामुखी हैं जिनमें से लगभग 600 ज्वालामुखी सक्रिय हैं ।
ज्वलामुखी उदगार का संबंध प्लेट टेक्टोनिक एवं प्लेटों के विस्थापन से है ।
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ज्वालामुखी उदगारों के मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं:
1. भू-पटल की गहराई में जाते हुए प्रत्येक 32 मीटर के पश्चात तापमान में 1०C की वृद्धि होती रहती है । इस तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण विघटनाभिक का विघटन होना है । परिणामस्वरूप एक विशेष गहराई पर तापमान में अधिक वृद्धि के कारण पिघलकर मैग्मा का रूप धारण कर लेता है ।
2. पृथ्वी की गहराई में जाते हुए शैलों का भार बढ़ता जाता है, इसके कारण ग्लांक बिंदु कम होता जाता है, जिससे चट्टानें मैग्मा में परिवर्तित हो जाती हैं ।
3. भू-पटल की परतों से जल रिसाव नीचे की परतों की ओर होता रहता है, गहराई में तापमान अधिक होने के कारण जल वाष्प में बदल जाता है, यह जलवाष्प ज्वालामुखी के साथ बाहर निकलती है ।
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4. मैग्मा अथवा पिघली हुई चट्टानें जब भारी बल के साथ विदर के द्वारा ऊपर आता है तो बहुत-से जलवाष्प, धूल, गैस और चट्टानों के टुकड़ों को बाहर फेंकता है ।
5. भू-पटल की बड़ी तथा छोटी प्लेटों का स्थान परिवर्तन करना तथा उनका खिसकना भी मैग्मा उत्पन्न करने में सहायक होता है और मैग्मा उदगार से ज्वालामुखी आते हैं ।