अंतर्राष्ट्रीय संबंध और विकास पर अनुच्छेद | Paragraph on International Relationship and Development in Hindi!
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का महत्व:
विभिन्न राष्ट्र एक-दूसरे के साथ आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में आदान-प्रदान करते है । इस लेन-देन को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कहते हैं । इस आदान-प्रदान का उद्देश्य एक-दूसरे को सहयोग देते हुए अपना विकास करना है । विकास करना सभी राष्ट्रों का समान उद्देश्य होता है ।
परिणाम स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय सहयोग देने के लिए सभी देश आगे आते हैं । अंतर्राष्ट्रीय सहयोग द्वारा निर्धन एवं संपन्न राष्ट्रों के बीच की खाई को कम करना संभव होता है । वैश्वीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन मिला है । अत: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का दायरा बढ़ गया है ।
निर्धन और संपन्न राष्ट्र:
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जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है, जहाँ ठोस आर्थिक उन्नति हुई होती है और साक्षरता का अनुपात अधिक होता है, ऐसे राष्ट्रों को ‘संपन्न राष्ट्र’ कहते हैं । मानवीय विकास सूचकांक में संपन्न राष्ट्रों का स्थान ऊपर होता है ।
निर्धन देश प्राकृतिक संसाधन के रूप से संपन्न हो सकते हैं परंतु ऐसे राष्ट्रों के पास भौतिक और तकनीकी साधनों का अभाव होता है । अत: वे अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आर्थिक विकास के लिए नहीं कर पाते । निर्धन राष्ट्रों में कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था, औद्योगिकीकरण की धीमी गति, साक्षरता का कम अनुपात जैसी बातें दिखाई देती है ।
निर्धन राष्ट्र मानवीय विकास सूचकांक में निचले स्थान पर दिखाई देते हैं । दरिद्रता, बेरोजगारी, सामाजिक पिछड़ापन और राजनीतिक अस्थिरता जैसी समस्याओं को हल करने के लिए निर्धन राष्ट्रों को विशेष प्रयास करने पड़ते हैं ।
वैश्वीकरण:
विभिन्न देशों में सूचना एवं प्रौद्योगिकी, पूँजी, लोग, बाजार और वस्तुओं का जो स्वतंत्र संचार और आदान-प्रदान होता है; उसे वैश्वीकरण कहते हैं । वैश्वीकरण के फलस्वरूप विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएँ और बाजार एक-दूसरे से जुड़ गए हैं ।
ADVERTISEMENTS:
ई.स. १९९० के पश्चात वैश्वीकरण की प्रक्रिया को गति प्राप्त हुई । देशों के सीमा पार विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क बढ़ा । उनके वैचारिक आदान-प्रदान में वृद्धि हुई । पूँजी और कुशल-अकुशल श्रमिकों को विश्व के किसी भी भाग में ले जाना संभव हुआ ।
वस्तुओं का उत्पादन सुविधाजनक और किफायती पद्धति से जहाँ करना संभव है, वहाँ करना, जहाँ उपलब्ध हो वहाँ से श्रमिकों को बुलाना और विश्व बाजार में कहीं भी अपने माल का विक्रय करना परिवर्तित व्यापार का स्वरूप है ।
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यह व्यापार वैश्वीकरण के कारण निर्मित हुआ है । यद्यपि वैश्वीकरण का प्रमुख कारण आर्थिक उद्देश्य है परंतु इसके अन्य अंग राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक भी है । वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप सभी राष्ट्रों की आर्थिक और विदेश नीति में परिवर्तन हुआ है ।
व्यापार:
वैश्वीकरण द्वारा अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण हो रहा है । इस प्रक्रिया को भारत ने रचनात्मक समर्थन दिया है । भारत ने ई.स. १९९० के पश्चात अनेक आर्थिक सुधार यह जानकर किए है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का संवर्धन करने हेतु विश्व व्यापार एक महत्वपूर्ण मार्ग है ।
इसलिए भारत ने सभी देशों के लिए अपना बाजार खोल दिया है । व्यापार पर लगे प्रतिबंधों को हटाकर भारत प्रादेशिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक संगठनों में सम्मिलित हुआ है ।
विश्व व्यापार की नियमावली बनाने के लिए ई.स. १९९५ में ‘विश्व व्यापार संगठन’ की स्थापना हुई । भारत ने इस संगठन की सदस्यता स्वीकार की है । इस संगठन में विश्व व्यापार से संबंधित बातचीत और विचार-विमर्श किया जाता है तथा विश्व-व्यापार नीति को निश्चित किया जाता है । इस नीति का लाभ विकसनशील देशों को प्राप्त करवाने की दृष्टि से भारत निरंतर प्रयास कर रहा है ।
प्रौद्योगिकी:
प्रौद्योगिकी में हुई उन्नति के फलस्वरूप विभिन्न देशों और देश के भीतरी प्रदेशों के बीच की दूरी कम हुई है । कम समय में विश्व में कहीं भी संपर्क करना संभव हुआ है । इलेक्ट्रानिक्स माध्यमों द्वारा पूँजी का निवेश और आदान-प्रदान करने जैसी बातें सुलभ हो गई हैं ।
प्रौद्योगिकी में हुई उन्नति का महत्वपूर्ण लाभ स्वास्थ्य क्षेत्र में दिखाई देता है । चिकित्सा क्षेत्र की उन्नति, स्वास्थ्य सेवाओं में हुए सुधार, जीवन स्तर में हुई वृद्धि, औसतन आय में हुई वृद्धि, प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रगति के सूचक हैं ।
यह आदान-प्रदान एकहरा न होकर सभी राष्ट्र इस प्रक्रिया में अपना योगदान देते हैं । जैसे-भारत के पारंपरिक ज्ञान, योगविज्ञान और आयुर्वेद विज्ञान का संपूर्ण विश्व में प्रसार हो रहा है ।
राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन:
वैश्वीकरण के फलस्वरूप जनतंत्रीकरण की प्रक्रिया को गति प्राप्त हुई है । प्रशासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की आवश्यकता पर लोग बल देने लगे है । अधिकार एवं स्वतंत्रता के लिए कहीं भी हो रहे आंदोलन की जानकारी इन दिनों सभी स्थानों पर सहजता से पहुँच जाती है । परिणामस्वरूप लोगों में जागरूकता बढ़ रही है । प्रतिदिन के जीवन में संगणक, इंटरनेट, ई-मेल, फैक्स, भ्रमणध्वनि (मोबाइल) आदि का उपयोग किया जाता है ।
परिणामत: लोगों के पारस्परिक संपर्क में वृद्धि हुई है । प्रौद्योगिकी से प्राप्त सुविधाओं के कारण कला, साहित्य, संगीत, विज्ञान, खेलकूद, मनोरंजन, सूचना प्रसारण आदि क्षेत्रों का बड़ी शीघ्रता से विकास हुआ है । इन सभी परिवर्तनों से सामान्य मनुष्य का जीवन और उसके विचार प्रभावित हुए हैं । नया बोध उत्पन्न हो रहा है कि विश्व एक है और इस बोध से एक नई वैश्विक संस्कृति का जन्म हो रहा है । ये सभी बातें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विकास के लिए पोषक हैं ।