Read this article in Hindi to learn about how to control pests of brinjal.

(1) फल एवं प्ररोहबेधक (Fruit and Shoot Borer):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम ल्यूसिनोडीस आर्बोनेलिस है । ये लेपिडोप्टेरा गण के पायरीलिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

वयस्क कीट मध्यम आकार का पतंगा होता है । इसके पंख सफेद होते है जिन पर कई बड़े भूरे धब्बे होते हैं । पंखों की फैली हुई दशा में यह कीट लगभग 2 से.मी. लम्बा होता है । वयस्क सूँडी लगभग 2.5 मि.मी. लम्बी, हल्की पीली कुछ गुलाबी आभा लिये हुए झुर्रीदार होती है । इसकी पीठ पर बैंगनी रंग की धारियाँ पायी जाती है ।

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क्षति:

इस कीट की इल्ली अण्डे से निकलने के बाद कोमल प्ररोहों, फूल के बाह्य दल एवं छोटे-छोटे फलों में प्रवेश कर जाती है और अन्दर ही अन्दर खाती रहती है । कोमल कीटग्रस्त प्ररोह मुरझाकर लटक जाते हैं । बड़ी अवस्था में प्रकोप होने पर नई शाखाएँ मर जाती है और पौधे की बढ़वार पर कुप्रभाव पड़ता है तथा फूल और फल अपेक्षाकृत कम लगते हैं ।

जिन फलों में इल्लियाँ प्रवेश कर जाती हैं उनका गूदा खराब हो जाता है । फल प्रायः टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं और खाने योग्य नहीं रहते हैं । जिन खेतों में इस कीट का प्रकोप होता है उनमें समय पर उपचार नहीं किया जाये तो 75-100 प्रतिशत तक फल खराब हो जाते हैं ।

जीवन-चक्र:

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मादा पत्तियों की ऊपरी सतह, फूलों व छोटे फलों पर छोटे, चपटे सफेद रंग के अण्डे देती है । एक मादा लगभग 25 अण्डे देती है । इनसे 3-4 दिनों लारवा निकलता है । यह लारवा प्ररोह को अपना शिकार बनाता है । लारवा काल 14-20 दिनों का होता है ।

ये भूमि में गिरी पत्तियों में जाकर ककून बनाता है व प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है । प्यूपावस्था 7-11 दिनों की होती है । यह कीट पूरे साल सक्रिय रहता है । इसका पूरा जीवन-काल 20-30 दिनों में पूरा होता है । एक वर्ष में इसकी 10-13 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

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i. कीट द्वारा ग्रसित भागों को तोड़कर जमीन में गहराई में दबा देना चाहिये ।

ii. फसल लेने के पश्चात् पौधों के अवशेष जलाकर या भूमि के नीचे गड़कर नष्ट कर देने चाहिये । फसल लेने के बाद सूखे पौधे जलाने के काम में भी लिए जा सकते हैं ।

iii. बैंगन के लम्बे फलों वाली पंजाब बरसाती, एआरयू-2-सी एवं गोल फलों वाली पूसा पर्पल राउण्ड तथा पंजाब नीलम इस कीट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती है ।

iv. इस कीट के सफल नियन्त्रण के लिये ग्रसन दिखते ही 0.05 प्रतिशत इन्डोसल्फान या 0.1 प्रतिशत कार्बेरिल का छिड़काव करना चाहिये ।

v. परजीवी क्रेमैस्टस फ्लैवूर्बिलैलिस और इरीओरस आर्जेन्टिओपिलोसस इस कीट के प्राकृतिक शत्रु हैं ।

(2) हाडा भृंग (Hadda Beetle):

इस कीट की तीन प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनका वैज्ञानिक नाम निम्नलिखित है:

(i) एपिलैक्ना विटिंशियोटोपंक्टेटा,

(ii) ए. डोडेकारिटग्मा और

(iii) ए. डेमुरिली ।

ये कीट कोलियोप्टेरा गण के काक्सीलीडी कुल के कीट हैं ।

पहचान:

(1) ए. विटिशियोक्टापंक्टेटा – यह गहरे लाल रंग के भृंग होते हैं जिनके प्रत्येक पंख में 7 से 14 काले धब्बे पाये जाते हैं ।

(2) ए. डोडेरिटग्मा – इसके भृंग गहरे ताम्र रंग के होते हैं तथा प्रत्येक पंख पर 6 काले धब्बे पाये जाते हैं जिनकी शीर्ष लगभग गोल होती है ।

(3) ए. डेमुरिली – यह पा हल्के ताम्र रंग के होते हैं । इसके पंखों पर 6 काले धब्बे पाये जाते हैं । धब्बों के चारों ओर एक हल्के पीले रंग का गोला पाया जाता है ।

क्षति:

इस कीट के मृग व वयस्क दोनों ही बैंगन की पत्तियों की ऊपरी सतह को खाकर क्षति पहुंचाते हैं । ये पत्ती के हरे भाग को खाकर केवल नसों को छोड़ देते हैं । पत्तियाँ भूरी हो जाती है, धीरे-धीरे सूख जाती है और बाद में झड़ जाती है । जिन पौधों में इसका प्रकोप होता है वे लगभग सूख जाते हैं । फलतः उन पर फल नहीं लगते है और फसल पूर्णतः नष्ट हो जाती है ।

जीवन-चक्र:

वयस्क मादा पत्तियों की निचली सतह पर पीले व लम्बे अण्डे 15-50 के समूहों में देती है । एक मादा अपने जीवन काल में 120-200 तक अण्डे देती है । ये अण्डे 2-4 दिनों में परिपक्व हो जाते हैं व इनसे भृंगक (ग्रब) निकलते हैं । ये भृंगक 10-25 दिनों में 4 निर्मोचन करके पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं ।

ये पत्तियों की निचली सतह पर प्यूपा बनाते हैं जो पीले-नारंगी रंग का होता है । प्यूपाकाल एक सप्ताह का होता है । इसका पूरा जीवनकाल 15-50 दिनों में पूर्ण होता है । एक वर्ष में इसकी 8-9 पीढ़ियां पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. कीट प्रकोप की प्रारम्भिक अवस्था में ग्रसित पत्तियों और मृगों की हाथ से एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिये ।

ii. बैंगन की आरका शीरिस, हिसार सेलेक्शन-1-4 और शंकर विजार भला किस्में इस कीट के प्रकोप के प्रति प्रतिरोधक है ।

iii. मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्र/हैक्टर की दर से भुरकाव करके भृंग का नियंत्रण किया जा सकता है अथवा 0.1 प्रतिशत मैलाथियान या 0.05 प्रति एण्डोसल्फान का छिड़काव भी भृंग नियंत्रण में प्रभावी होता है ।

iv. पेडिओबियस फोबिओलैटस लट परजीवी तथा रेनोसेपीलैक्ना विजिन्टिओक्टोपंक्टेटा प्यूपा के परजीवी है जबकि केथेकोनिडिया फर्सेलाटा मृगों का परभक्षी है ।

(3) तना बेधक (Stem Borer):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम यूजोफेरा पर्टीसेला है । यह लेपिडोप्टेरा गण के पायरीलीडी कुल का कीट है ।

पहचान:

इसके पतंगे भूरे-कत्थई रंग के होते हैं । ये कीट मध्यम आकार के होते हैं । इसके पंखों की फैली हुई दशा में यह लगभग 18 से 22 मि.मी. चौड़ा होता है और इसकी लम्बाई लगभग 10 मि.मी. होती है । इसका अगला पंख लाल-भूरे रंग का होता है जिस पर अंग्रेजी ‘ई’ अक्षर के आकार का धब्बा होता है और किनारे पर टेढ़ी-मेढ़ी धारियाँ होती हैं । इसके निचले पंख भूरे रंग के होते हैं । इसकी इल्ली पीली सफेद, कडी और रोयेदार होती है ।

क्षति:

इस कीट की इल्लियाँ ही क्षति पहुँचाती हैं । वयस्क कीट बैंगन के लिए हानिकारक नहीं होता । कीट की इल्लियाँ पौधों के तनों में प्रवेश कर उसके संगम तन्तुओं को खाती है । फलतः पौधों में भोजन का प्रवाह रूक जाता है और पौधे मुरझा जाते हैं अधिक प्रकोप होने पर पौधे मर भी जाते है । यह कीट सामान्यता: छोटे पौधों पर नहीं लगता है । इस कीट से 20-25 प्रतिशत तक क्षति होती है ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट पत्तियों के हरे भागों पर गोल, चिकने सफेद रंग के 100 से 300 अण्डे देती है । इनसे 3-10 दिनों में लार्वा निकलता है । ये तने में प्रवेश कर उनके कोमल ऊतकों को खाते हैं । ये लारवा 4-5 बार निर्मोचन करके 26-58 दिनों में पूर्ण रूप से विकसित हो जाते है ।

पूर्ण विकसित लारवा तने की सुरंगों में रेशमी ककून बनाकर प्यूपावस्था में चले जाते हैं । प्यूपावस्था 9 से 16 दिनों की होती है । एक वर्ष में इस कीट की 4-6 पीढ़ियाँ पूरी होती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. इस कीट की सूंडियाँ चूंकि तने के अन्दर सुरंगें बनाकर रहती हैं अतः इस कीट का रासायनिक कीटनाशियों से नियंत्रण करना कठिन होता है अतः इनके नियंत्रण के लिये ग्रसित पौधों को उखाड़कर भूमि में गहराई से गाड़कर या जलाकर नष्ट कर देना अधिक लाभकारी रहता है ।

ii. बैंगन की पेडी फसल नहीं लेनी चाहिये ।

iii. फसल लेने के बाद अवशेषों को नष्ट कर या जला देना चाहिये ।

iv. एन्डोसल्फान 35 ई.सी. (1 लीटर) का छिड़काव करना चाहिये ।

(4) फीता-पंखी बग (Lace Wing Bug):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम यूरेंटिस सेंटिस है । यह हेमीप्टेरा गण के टिंजिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

यह कीट चपटा, पीले-गेरुई रंग का होता है और इसके शरीर पर कत्थई रंग के धब्बे होते हैं । इसके प्रवक्ष पृष्ठक, वक्ष व उदर पर नुकीले कटि होते हैं । पूर्ण विकसित शिशु 2 मि. मी. लम्बे और 1.35 मि. मी. चौड़े होते हैं । वयस्क बग 3 मि.मी. लम्बा होता है । यह ऊपर की ओर से भूसे के रंग का और नीचे की ओर से काले रंग का होता है । प्रवक्ष पृष्ठक और पंखों पर धब्बों व नसों का जान-सा बना रहता है । इसी कारण इसका नाम फीता-पंखी रखा गया है ।

क्षति:

इस कीट के निम्फ और वयस्क दोनों ही क्षति पहुँचाते हैं । ये पत्तियों का रस चूसते हैं फलतः पत्तियों पर पीले-पीले धब्बे बन जाते हैं । इन धब्बों के ऊपर कीट का मल-मूत्र जमा रहता है जो क्षतिग्रस्त स्थान को स्पष्ट बना देता है । इस कीट का प्रभाव अगस्त व दिसम्बर में अधिक रहता है । मगर क्षति ग्रीष्म ऋतु में अधिक होती है ।

जीवन चक्र:

यह कीट अप्रैल से अक्टूबर माह में सक्रिय रहता है । मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर ऊतकों के अन्दर अलग-अलग निपल के आकार के 30-55 अण्डे देती है । ये अण्डे 4-12 दिनों में पूर्ण विकसित होते हैं । इनसे निकले निम्फ (शिशु) पत्तियों का रस चूसते हैं । निम्फ 5 बार निर्मोचन करके 10-23 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाते हैं । नर कीट 40 दिन व मादा कीट 30 दिनों तक जीवित रहते हैं इसके कीट की एक वर्ष में 8 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. कीट द्वारा ग्रसित पौधे के नीचे की पत्तियों को एकत्र कर कीट सहित नष्ट कर देना चाहिये । यह प्रक्रिया छोटे क्षेत्र में पूर्ण प्रभावी और व्यवहारिक है ।

ii. इस कीट के नियन्त्रण के लिये 1:55 के अनुपात में रोसिन सोप एवं 1:800 के अनुपात में निकोटिन सल्फेट का मिश्रण बराबर मात्रा में मिलाकर छिड़काव करना अति प्रभावी पाया जाता है । इसके अतिरिक्त डामेथोएट (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव भी लाभकारी होता है ।

(5) हरा तेला (Jassid):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम एमरास्का बिगटुला बिगटुला है । ये हेमिप्टेरा गण के जेसिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

इस कीट का वयस्क 3 मि.मी. लम्बा होता है । इसका रंग भूरा लाली लिये तथा इसके पंखों पर छोटे-छोटे काले धब्बे होते हैं । इसके सिर पर दो काले रंग के धब्बे होते हैं ।

क्षति:

इसके अवयस्क कीट पत्तियों का रस चूसते हैं फलस्वरूप पत्तियाँ सिकुड जाती हैं और रंग पीला हो जाता है । तत्पश्चात पत्तियाँ ऐठीं हुई दिखाई देती हैं जो कि कुछ समय बाद सूखकर गिर जाती हैं । वो प्रत्येक पौधे जिस पर इसका प्रकोप होता है, रोगी दिखाई देता है । यह कीट एक प्रकार का विषैला पदार्थ स्रावित करता है जो कि पत्तियों पर असर करता है । देरी से बोयी गयी फसल पर इस कीट का प्रकोप अधिक होता है ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. बैंगन की कल्याणपुर-2 एवं पंजाब चमकीला, लम्बे फल वाली तथा गोटे, अन्नामलाई, गोल फल वाली प्रतिरोधी किस्में हैं ।

ii. कीट के नियन्त्रण के लिये फल आने से पूर्व 0.03 प्रतिशत फास्फैमिडान 20 दिन के अन्तराल में और फल आने पर 0.05 प्रतिशत मैलाथियान 7 से 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिये ।

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