Read this article in Hindi to learn about how to control diseases and pest of chillies (mirchi).
कीट-नियन्त्रण:
1. सफेद लट:
जमीन के अन्दर लटें जड़ें खाकर भारी नुकसान करती है । इनके नियन्त्रण के लिये फोरेट 10 जी या कारबोफ्यूरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व भूमि में मिला देवें ।
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2. सफेद मक्खी, पर्णजीवी (थ्रिप्स), हरा तेला व मोयल:
चारों ही कीट रस चूस कर नुकसान करते हैं तथा मोजेक व अन्य विषाणु रोगों को फैलाते हैं । इन सबका उपचार एक-सा है अतः नियन्त्रण हेतु मोनोक्रोटोफास 10 मिली लीटर या मिथायल डिमेटीन 10 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी की दर से 15-20 दिन के अन्तर से छिडकाव करना चाहिए ।
व्याधियाँ:
I. आर्द्र-गलन:
इसका प्रकोप पौधों की छोटी अवस्था में ही होता है । जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ कर कमजोर हो जाता है । छोटे-छोटे पौधे गिर कर मरने लगते हैं । इसके नियन्त्रण हेतु बीज को बुवाई पूर्व 2 से 3 ग्राम कैप्टान या थाईरम प्रति किलो बीज की दर से उपारित कर बोना चाहिये ।
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II. पर्णकुंचन व मोजेक विषाणु-रोग:
पर्णकुंचन रोग मिर्च का सबसे भयंकर रोग साबित हो रहा है । इसमें पत्ते मुड़कर उनमें झुरियाँ पड जाती हैं । मोजेक विषाणु-रोग में पत्तियों पर गहरा व हल्का हरा पीलापन लिये हुए धब्बे बन जाते हैं । इस रोग को फैलाने में रस चूसने वाले कीट सहायक होते हैं ।
(1) इनका सबसे बढ़िया नियन्त्रण रोगरोधी किस्मों का ही उपयोग करना है ।
(2) रोग ग्रसित पौधों को उखाड कर नष्ट करें ।
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मिर्च में पर्ण-कुंचन विषाणु-रोग की रोकथाम के लिए बीज बोने से पूर्व पौधशाला को 2.5 ग्राम फोरेंट (10 जी) प्रति वर्ग मीटर की दर से उपचारित करें तथा रोपाई से पूर्व नर्सरी में खड़ी पौध में मिथाइल डिमेटीन (25 ई.सी.) के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए ।
खेत में:
पौध-रोपाई के बाद खड़ी फसल में अच्छी नमी की स्थिति में फोरेट (10 जी) 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से दो बार यथा 10 एवं 40 दिन की अवस्था पर कतारों में डाल कर गुडाई द्वारा मिला दें अथवा फसल की 10 दिन की अवस्था तथा बाद में 15-15 दिन के अन्तराल पर कुल पाँच बार मिथाइल डिमेटोन (25 ई.सी.) या मोनोक्रोटोफास 36 एस.एन. का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिये ।
III. श्याम वर्ण (एन्थ्रेक्नोज):
पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बनते हैं व पत्तियाँ झड़ने लगती हैं । रोग की उक्त अवस्था में शाखाओं के शीर्ष नीचे की तरफ सूखने लगते हैं । इसका प्रकोप पके फलों पर भी आ जाता है । इसके नियन्त्रण हेतु मेन्कोजेब दो किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये ।
IV. जीवाणु धब्बा रोग:
इस रोग से पत्तियों पर शुरू में छोटे-छोटे जलीय धब्बे बनते हैं जो बाद में गहरे भूएर रंग के उठे हुए दिखायी देते हैं और अन्त में पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती हैं । इसके नियन्त्रण हेतु रोग के लक्षण दिखायी देते ही स्ट्राप्टोसाइक्लिन 200 मि.ली./ ग्राम प्रति लीटर पानी में या ब्लाईटोक्स 3 ग्राम के साथ स्ट्रप्टोसाइक्लिन 100 मि.ली./ ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये ।
V. मूल ग्रंथि (सूत्र कृमि):
इसके प्रकोप से पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं तथा पौधे पीले पड जाते हैं । पौधों की बढवार रुक जाती है । रोकथाम हेतु पौध रोपण के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी, 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से मृदा में मिलाते हैं । सन् 2001-04 में राजस्थान के कुल फसली क्षेत्र का 0.14 प्रतिशत क्षेत्र मिर्च की कृषि के अन्तर्गत है । मिर्च उत्पादन क्षेत्र अधिकांश पश्चिमी व उत्तर पूर्वी जिलों में संकेन्द्रित है ।