Read this article in Hindi to learn about how to control pests of chillies.

(1) पर्ण जीवी (Thrips):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम सिर्टोथ्रिप्स डोर्सेलिस है । ये थाइसैनोप्टेरा गण के थ्रिपिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

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वयस्क कीट 1 मि. मी. से कम लम्बा तथा कोमल हल्के पीले रंग का होता है । इसके पंख झालरदार होते हैं जो सूक्ष्मदर्शी यंत्र में देखने पर स्पष्ट दिखाई देते हैं । इसके मुखांग चाटने वाले होते है । इस कीट के शिशु पंखरहित होते हैं । यह कीट सैकड़ों की संख्या में पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर छिपे रहते है और कभी-कभी ऊपरी सतह पर भी पाए जाते हैं ।

क्षति:

निम्फ (शिशु) तथा वयस्क दोनों ही पौधों को क्षति पहुँचाते हैं । यह कीट अपने मुखांगों से पत्तियों की बाह्य त्वचा को खुरच-खुरचकर उनका रस चूसता है । जिन स्थानों से यह रस चूसता है, वे पीले, सफेद और बाद में भूरे हो जाते हैं । इस कीट के अधिक प्रकोप होने की स्थिति में पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है । इस कीट से मिर्च में 25 से 75 प्रतिशत तक की क्षति पायी गयी है ।

जीवन-चक्र:

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मादा कीट नर से संगम करके अथवा अनिषेकजनन द्वारा 30-50 अण्डे देती है जोकि पत्तियों की निचली सतह पर ऊतकों के अन्दर दिये जाते हैं । इनसे 6-7 दिनों में निम्फ निकलते हैं । ये निम्फ तुरन्त ही कोमल पत्तियों से कोशिका-रस चूसते हैं एवं 10-15 दिनों में 3-4 बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाते हैं ।

इसके उपरान्त ये 18-24 घण्टों तक पूर्व-प्यूपावस्था व 48 से 58 घंटों तक प्यूपावस्था में रहते हैं । वयस्क कीट 15-18 दिनों तक जीवित रहते हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. पौधों की रोपाई के एक सप्ताह बाद 15 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से फोरेट कण पौधों के आस पास कतारों में डालकर गुड़ाई करने से इस कीट का नियन्त्रण हो जाता है ।

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ii. फसल पर इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर 0.03 प्रतिशत मिथाइल डिमेटान या 0.03 प्रतिशत डाइमेथोएट का छिड़काव करना चाहिये ।

iii. कीट प्रतिरोधी किस्में जैसे एल सी ए-235 तथा एल सी ए-315 लगानी चाहिये ।

iv. मिर्च की 10-15 कतारों के बाद एक कतार चंवले या सेम की लगानी चाहिये । ये प्राकृतिक शत्रुओं की बढ़वार में मदद करती है ।

(2) फल बेधक (Fruit Borer):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम हैलियोथिस आर्मिजेरा है । ये लेपिडोप्टेरा गण के नोक्टइडी कुल का कीट है ।

क्षति:

इस कीट की लटें शुरू की अवस्था में मिर्च की छोटी-छोटी मुलायम पत्तियाँ खाती हैं । बड़ी होने पर जब पौधों पर फल लग जाते हैं तो ये फलों में घुस जाती हैं व अन्दर से बीज और गूदा खा जाती हैं जिससे मिर्च के फलों का रंग उड़ जाता है व फल सड़कर नीचे गिर जाते हैं ।

(3) माइट (वरुथी) (Mite):

इस जीव का वैज्ञानिक नाम हैमिटारसोनेमा लैटस है ये ऐकेरिना गण के टारसोनेमिडी कुल का जन्तु है ।

पहचान:

यह पीले रंग का आठ पैरों वाला जन्तु है । इसके पृष्ठ भाग पर सफेद धारियाँ पायी जाती हैं ।

क्षति:

यह मिर्च में पर्ण कुंचन रोग फैलाता है । यह माइट प्रायः शाखाओं की अन्तिम पत्तियों पर पहले आक्रमण करती है । क्षतिग्रस्त पौधों की पत्तियाँ मुड़कर ऐंठ जाती हैं । पत्तियाँ आकार में छोटी हो जाती हैं और आपस में गुच्छा सा बना लेती है ।

क्षतिग्रस्त पौधों से जो शाखाएँ निकलती है उन पर भी इसका प्रकोप हो जाता है और देखते ही देखते पूरा खेत इसके प्रकोप में आ जाता है । ऐसे पौधों में फूल कम आते है एवं जो आते हैं, वे झड़ जाते हैं । फल बहुत ही कम लगते हैं । पत्तियां ताम्रवत भूरी होकर झड़ जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

इस जीव का खेत में अधिक प्रकोप हो तो मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. का 1.0 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये ।

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