Read this article in Hindi to learn about how to control pests of citrus.
(1) नीबू की तितली (Lemon Butterfly):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम पैपिलियो डेमोलियस है । ये लेपिडोप्टेरा गण के पेपीलियोनीड्री कुल की तितली है ।
पहचान:
वयस्क तितलियाँ आकर्षक रूप से चित्रित होती है । इनका आधार पीला एवं पंख पीले तथा काले रंगों से चित्रित होते हैं इसके लार्वा काले भूरे तथा शरीर स्पष्ट दूधिया सफेद चिह्न से युक्त होता है । इनको देखकर प्रायः चिड़ियों के उत्सर्ग की उपस्थिति का भ्रम होता है । पूर्ण विकसित लार्वा 28-35 मि.मी. लम्बा, चमकदार, हरे रंग के, चिकने व मखमली होते हैं ।
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क्षति:
इस कीट का प्रकोप अप्रैल से अगस्त माह में अधिक होता है । लार्वा का प्रकोप नर्सरी में अधिक होता है । ये पत्तियों को खा जाती हैं जिससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है एवं फल व फूल नहीं आते हैं ।
जीवन-चक्र:
मादा तितली पत्तियों की निचली सतह पर छोटे, गोलाकार सफेद तथा चिकने अण्डे देती है ये एक एक करके दिये जाते हैं । एक मादा अपने जीवनकाल में 75- 120 तक अण्डे देती है जिनसे 3-4 दिनों में लार्वी निकल आते हैं ।
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लार्वा काल 16-28 दिनों का होता है और लार्वा 7 बार निर्मोचन से गुजरता है । प्यूपावस्था गर्मियों में 6 दिनों की होती है । जब कि शीतकाल में प्यूपावस्था में कीट अपनी सुषुप्तावस्था व्यतीत करता है । इस कीट का जीवनकाल 20-31 दिनों में पूर्ण हो जाता है तथा वर्ष में 3-4 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. लार्वा को हाथों से पकड़कर नष्ट कर देना चाहिये ।
ii. नीम बीज सत् (3 प्रतिशत) का छिड़काव तितली नियंत्रण में प्रभावी होता है ।
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iii. वयस्क तितली के नियंत्रण के लिये 0.05 प्रतिशत क्वीनालफॉस का छिड़काव करना चाहिये ।
iv. डिपैल 0.5 प्रतिशत (बैसीलस यूरिन्जिएन्सिस) का छिड़काव भी लार्वा के नियंत्रण में प्रभावी होता है ।
v. सूत्रकृमि डी.डी.-136 भी इस कीट के विरुद्ध प्रभावी होता है ।
(2) नीबू का सिला (Citrus Psylla):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम डाइफोर्निया सिट्री है यह हेमीप्टेरा गण के एफीलेरीडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क कीट भूरे रंग के 2-3 मि.मी. लम्बे होते हैं । इनको पत्ती के अधर में, मुख्य पत्ती से सटे व शरीर को ऊपर उठाये बैठा देखा जा सकता है ।
क्षति:
ये कीट अलग-अलग समूहों में पत्तियों, पुष्पकलियों और टहनियों पर बैठकर पौधों का कोशिका द्रव्य चूसते रहते हैं । इससे पौधों की बढ़वार काफी प्रभावित होती है । प्रभावित भाग सूख जाता है । यह कीट ‘मधुरस’ उत्सर्जित करके अप्रत्यक्ष रूप से भी हानि पहुँचाते हैं । ग्रसन के अतिरिक्त यह विषाणुजन्य रोग ‘सिट्रस डेक्लाइन’ को भी पौधों में फैलता है ।
जीवन-चक्र:
मादा कीट संगम के तुरन्त बाद अण्डे देना आरम्भ कर देती है । एक मादा अपने जीवन काल में 800 तक अण्डे देती है । अण्डे देने का कार्य दो माह तक चलता है । अण्डे का ऊष्मायन काल 4-22 दिनों का होता है । निम्फ काल ग्रीष्म ऋतु में 9-12 दिन व शीत ऋतु में 35-37 दिनों का होता है । इस कीट का सम्पूर्ण जीवनकाल ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में क्रमशः 14 व 47 दिनों में पूर्ण हो जाता है । एक वर्ष में 7-10 पीढियों पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. इसके नियंत्रण के लिये डाइमेथोएट (0.045 प्रतिशत) या मोनोक्रोटोफॉस (0.05 प्रतिशत) में से किसी एक रसायन का छिड़काव करना चाहिये । कीटनाशी का छिड़काव फरवरी माह में फूल खिलने से पूर्व और दूसरा 15 दिन के अन्तराल में फल बनने के पश्चात् करना चाहिये ।
ii. निकोटिन सल्फेट (1:600) या एण्डोसल्फॉन (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव इसके नियंत्रण में प्रभावी होता है ।
iii. प्रकृति में इसको नियंत्रित करने के लिए अनेक परभक्षी व परजीवी पाये जाते हैं, परभक्षी- किलोकोरिस निग्रिटस, कोक्सीनेला सेप्टपंक्टाटा, को. रेपेन्डा, मिनोकाइलस सेक्समेक्यूलेटस, बुमस सैटुरेलिस, क्राइसोपा आदि परजीवी- टेट्रास्टिकस टैडिएअस, टे. फिलोक्निटोयस आदि ।
(3) फल चूसक शलभ (Fruit Sucking Moth):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम ओथ्रिस मैटर्ना है ये लेपिडोप्टेरा गण के नाक्टुईडी कुल का कीट है ।
पहचान:
नवजात लार्वा बेलनाकार धागे के समान 3-4 मि.मी. लम्बी व हल्के हरे रंग की होती है । वयस्क कीट का सिर व वक्ष हरा-घूसर और उदर नारंगी होता है । अग्र पंख हरे-घूसर, असंख्य फीकी-लाल रेखाओं एवं 3 रक्ताभ धब्बे युक्त होते हैं । पश्च-पंख का शीर्षस्थ भाग रक्ताभ होता है और केन्द्र में एक गोल धब्बा होता है । पंख के किनारे में काली धारियाँ होती हैं । पंख से पंख की लम्बाई 90-110 मि.मी. होती है ।
क्षति:
इस कीट के वयस्क पतंगे नीबू के फलों को काफी नुकसान पहुँचाते हैं । ये अपनी लम्बी प्रोबोसीस की सहायता से पके फलों को बेधकर रस चूसते हैं । इससे ग्रसित फल आकार में टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है तथा उसमें सड़न आरम्भ हो जाती है एवं वे अधपकी अवस्था में ही पेड़ से नीचे गिर जाता है ।
जीवन-चक्र:
इस कीट के वयस्क पतंगें रात्रिचर होते हैं एवं दिन के समय दिखाई नहीं देते हैं । मादा कीट उद्यान के आसपास व उसमें गो खरपतवारों तथा जंगली पौधों पर अण्डे देती है । ये अण्डे 8-10 दिनों में परिपक्व हो जाते हैं व इनसे लारवा निकलता है । अण्डे से निकलने के 24 घण्टे बाद लारवा अपने पोषी पौधों की पत्तियों को खाना आरम्भ करता है ।
ये लार्वा 5 विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है व 28-35 दिनों में पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है । पूर्ण विकसित लारवा पेड़ की पत्तियों व मिट्टी को धागे से गूँथ कर प्यूपावरण का निर्माण करता है । प्यूपावस्था 14-18 दिनों की होती है । एक वर्ष में इस कीट की 2-3 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. उद्यान के आसपास परपोषी पौधों को नष्ट कर कीट की संख्या को कम किया जा सकता है ।
ii. सीमित क्षेत्रों में फलों पर थैलियाँ चढ़ाकर कीट से फलों को बचाया जा सकता है ।
iii. छोटे उद्यानों में सांयकाल कचरा जलाकर धुंआ करना लाभप्रद रहता है ।
iv. पौधों पर जब फल पकने लगे उसके 10-15 दिनों पूर्व कार्बरिल 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करना लाभप्रद रहता है ।
v. विष चुग्गा 20 ग्राम मैलाथियॉन 50 डब्ल्यू.पी. + 200 ग्राम मोलेसिस + 2 लीटर पानी मिलाकर बनाया जा सकता है । इस विष चुग्गे को पौधे के विभिन्न भागों में चौड़े मुँह के बर्तन में भरकर रखना चाहिये ।