Read this article in Hindi to learn about how to control pests cucurbit crops.

1. फल बेधक मक्खी:

वैज्ञानिक नाम- डौकस कुकर बिटी

पहचान तथा प्रकोप:

यह मक्खी लाल-भूरे रंग की होती है । इसके सिर पर काले और सफेद धब्बे पाये जाते हैं । मादा लम्बी होती है तथा नर छोटा होता है । इस कीट का प्रकोप सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है । मक्खी का मैगट फलों के अन्दर गूदे को खाकर नष्ट कर देता है । कभी-कभी इस कीट से 90 प्रतिशत तक क्षति होती है ।

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रोकथाम:

1. कीटग्रस्त फलों को इकट्‌ठा कर नष्ट कर देना चाहिए ।

2. फसल पर साइथियान नामक कीटनाशी का 0.25 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए । यह छिड़काव फूल बनने पर ही किया जाना चाहिए ।

3. जिस खेत में फसल लेनी हो उसकी जुताई मिट्‌टी पलटने वाले हल से करना चाइए व तेज धूप में खुला छोड़ दें जिससे व्यूपा नष्ट हो जाये ।

2. लाल कद्‌दू भृंग:

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वैज्ञानिक नाम – रैफिडो पैल्पा फोवी कोलिस

पहचान तथा प्रकोप:

यह कीट नारंगी रंग का तथा काफी चमकीला होता है । इसकी लम्बाई 7 मिमी. तथा चौड़ाई 4.5 मिमी. होती है । प्यूपा हल्के पीले रंग का होता है । यह कीट पूरे भारत में पाया जाता है । वयस्क एवं प्यूपा दोनों ही फसल को नष्ट करते है । प्यूपा छोटे पौधों के तनों में जमीन के पास से छेद कर देते हैं जिससे पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है । वयस्क पौधों की पत्तियों को खाकर नष्ट कर देते हैं । इस कीट का प्रकोप बड़े पैमाने पर होता है तथा रातों-रात फसल नष्ट हो जाती है । इस कीट का प्रकोप छोटे पौधों पर अधिक होता है ।

रोकथाम:

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i. उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए ।

ii. मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करना चाहिए जिससे कि तेज धूप में अंडे नष्ट हो जाए ।

iii. फसलों को नवम्बर में बो देना चाहिए जिससे फरवरी-मार्च तक बेलें बड़ी हो जाए और कीट का कोई असर न हो ।

iv. फसल पर अंकुरण के तुरन्त बाद सेविन नामक कीटनाशी 0.25 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए ।

3. ऐपोलेकना भृंग:

वैज्ञानिक नाम – ऐपीलेकेना विजिन्शियाक्टो पक्टेटा

पहचान तथा प्रकोप:

यह भृंग हल्का पीलापन लिए हुए वह छोटे आकार का होता है । भृंगक पीले रंग के होते हैं व सुस्त दिखाई देते हैं । इस कीट का प्रकोप सभी स्थानों पर होता देखा गया है । आक्रमण बहुत तेजी से होता है । इस कीट के वयस्क एवं भृंगक दोनों ही फसलों को भारी क्षति पहुँचाते हैं ।

इसके भृंगक पत्तियों के नीचे चिपके रहते हैं और खुरचकर जाल-सा बना देते है । बाद में पत्तियों को ही खाते हैं । अंकुरण के बाद ही इसका प्रकोप दिखाई देता है और बहुत ही शीघ्र फसल नष्ट हो जाती है । जाड़े के दिनों में यह कीट किसी भी तरह की हानि नहीं पहुँचाता है ।

रोकथाम:

i. कीटग्रस्त पत्तियों को इकट्ठा करके गड्ढों में दबा देना चाहिए ।

ii. कीट लगने पर र्काबोरील भूल का बुरकाव करना चाहिए । बुरकाव सुबह के समय करना अच्छा रहता है । इससे कीटनाशी पत्तियों की सतह पर चिपक जाता है और सभी वयस्क एवं भृंगक नष्ट हो जाते हैं ।

iii. कीटों का आक्रमण होने पर इंडोसल्फान 30 ई.सी. के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव भी किया जाता है ।

4. कददू का पिच्छली पतंगा:

वैज्ञानिक का नाम – स्पेनार्किस कैफर

पहचान तथा प्रकोप:

यह एक छोटा सा पतंगा होता है जिसके अगले दो पंख मांसल व पत्तियों की तरह के होते हैं । यह सुस्त होता है वे धीरे-धीरे उड़ता है । इस कीट का प्रकोप दक्षिणी भारत में अधिक होता है । इस कीट की इल्ली पत्तियों को खाकर नष्ट कर देती है । अधिकांशतः लौकी की फसल पर इस कीट का भारी आक्रमण देखा गया है । पहले कीट मुलायम पत्तियों को खाता है तथा बाद में कड़ी पत्तियों को भी । इस कीट की मादा पत्तियों, कलियों व फूलों पर अंडे देती हैं । अंडे बाद में फूटते हैं जिनमें से निकलती है । ये इल्लियां पत्तियाँ खाती हैं ।

रोकथाम:

i. प्रभावित पत्तियों को इकट्‌ठा करके नष्ट कर दिया जाए ।

ii. कीटग्रस्त फसल पर सेविन, थायोडीन, इंडोसल्फान का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करने से कीट नष्ट हो जाते हैं ।

5. कुकुरबिट स्टिक बग:

वैज्ञानिक का नाम – एस्पोगीपस जेनस

पहचान तथा प्रकोप:

यह एक बड़ा लाल-काला कीट है जो लगभग 30 मिमी. लम्बा होता है । इस कीट का प्रकोप भारत के सभी भागो में देखा गया है । यह कीट कद्‌दूवर्गीय फसलों के साथ-साथ भिंडी व कसावा को भी हानि पहुँचाता है । इस कीट के अर्भक व वयस्क, दोनों ही पौधों से रस चूसते हैं जिससे पौधा कमजोर हो जाता है । फलतः फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

रोकथाम:

i. कीटों को पकड़ कर नष्ट कर दिया जाए ।

ii. मैलाथियॉन या कार्बोरिल कीटनाशक का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव किया जाए ।

iii. कार्बोरिल या मैलाथियान धूल का 25 किलो ग्राम प्रति हैक्टर की दर से बुरकाव किया जाए ।

6. चिचिंडा का बेल बेधक कीट:

वैज्ञानिक का नाम – मेलिट्‌टा यूरेशिअन

पहचान तथा प्रकोप:

इस कीट का वयस्क मध्यम आकार का होता है । इसके पंख साफ तथा शल्क रहित होते हैं । इस कीट का प्रकोप दक्षिण भारत में अधिक देखा गया है । कीट की इल्लियां बेलो में छेद करके ऊतकों को खाती हैं, जिसके फलस्वरूप ग्रंथियां बन जाती हैं । एक ग्रंथि में एक ही इल्ली पाई जाती है । कीटग्रस्त पौधों की वृद्धि रुक जाती है व उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

रोकथाम:

i. कीटग्रस्त पौधों को निकाल कर नष्ट कर दिया जाए ।

ii. प्रभावित पौधों पर रोगर का 0.15 प्रतिशत घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए ।

7. करेले की पिटिका मक्खी:

वैज्ञानिक का नाम – लेसिओटटेरा फेलेटा

पहचान तथा प्रकोय:

यह कीट मच्छर की तरह होता है । इसका प्रकोप पूरे भारत में पाया जाता है । यह लगभग सभी ककडीवर्गीय फसलों को हानि पहुँचाता है । इसकी मादा लताओं पर अंडे देती है । जिनसे बाद में मैगट निकलकर बेल को अन्दर ही अन्दर खाते हैं । क्षतिग्रस्त स्थानों पर गाँठें बन जाती हैं जिसके अन्दर मैगट होते हैं ।

रोकथाम:

i. उचित फसल चक्र अपनाए जाए ।

ii. आक्रमण के आरंभ में ही क्षतिग्रस्त बेलों को काटकर नष्ट कर दिया जाए ।

iii. फसल पर रोगर का 0.15 प्रतिशत घोल बनाकर छिडकाव किया जाए ।

8. मूली का पिस्सू भृंग:

वैज्ञानिक का नाम – फाइलीट्रेटा क्रूसिफेरी

पहचान तथा प्रकोप:

इस कीट के भृंग जड़ी के पास तने में छोटे-छोटे छेद बना देते हैं । वयस्क कीट पौधों की पत्तियाँ खाते हैं । शुरू में पौधा हल्का पीला दिखाई देता है जो बाद में सूखकर नष्ट हो जाता है । इस कीट का प्रकोप पूरे भारत में है तथा कद्दूवर्गीय सभी फसलों को हानि पहुँचाता है ।

रोकथाम:

i. रोगग्रस्त पौधों को निकाल दिया जाए ।

ii. मैलाथियान धूलि का बुरकाव किया जाए ।

iii. जमीन में भृंगक के नियन्त्रण के लिए 10 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से र्थाइमेट को मृदा में मिलाया जाए ।

iv. थायडिन या इंडोसल्फान नामक रसायनों का 0.25 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी कीट नष्ट हो जाता है ।

9. पट्‌टीदार फफोला भृंग:

वैज्ञानिक का नाम – माइलेब्रिस फैलेराटा

पहचान तथा प्रकोप:

यह कीट 25 से 30 मिमी. लम्बा तथा 10 से 15 मिमी. चौड़ा होता है । इसकी पीठ पर 3-4 चौड़ी पट्टियाँ होती हैं । उदर सिर एवं टांगें काली होती हैं । यह कीट एक लसलसा पदार्थ छोड़ता है जिसे केथसइंडीन अम्ल कहते है । इस अम्ल की वजह से शरीर में खुजली होती है व फफोले बन जाते हैं । इसीलिए इस कीट को फफोला भृंग कहते है । इस कीट का प्रकोप सभी प्रान्तों में देखा गया है । कीट के वयस्क फूल तथा पत्तियों को खाकर नष्ट कर देते हैं ।

रोकथाम:

i. कीट के वयस्क को हाथ से पकड़कर कीटनाशी में डाल दिया जाता है । कीटों को पकड़ने के लिए प्रकाश पाश का भी प्रयोग किया जाता है ।

ii. मैलाथियान या कार्बोरिल का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है ।

iii. उचित फसल चक्र अपनाए जाएँ ।

10. तरबूज का एफिड:

वैज्ञानिक का नाम – ऐफिस गोसीपीई

पहचान तथा प्रकोप:

इस कीट के वयस्क छोटे तथा हरे, पीले या काले रंग के होते हैं । इस कीट का प्रकोप देश के सभी भागों में देखा गया है तथा कद्दूवर्गीय फसलों के अलावा अन्य फसलों पर भी देखा गया । इस कीट के मुखांग चुभाने और चूसने वाले होते हैं; जो कि पत्तियों व तने से रस चूसते हैं ।

लगातार पत्तियों से रस चूसे जाने के फलस्वरूप वे पीली पड़ जाती है । रस चूसने के अलावा यह कीट एक लसलसा पदार्थ भी छोड़ता है जिसे मधु बिन्दु कहते हैं । इस पदार्थ से पत्तियों पर एक काला कवक लग जाता है जिससे पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण ढंग से नहीं हो पाता और पौधे छोटे रह जाते है । पैदावार पर भी उसका कुप्रभाव पड़ता है ।

रोकथाम:

i. फसल पर मेटासिस्टाक्स नामक कीटनाशी का 0.15 प्रतिशत घोल बनाकर 15-15 दिन के अन्तर में छिड़काव किया जाए ।

ii. रोगर न्यूवाक्रान (0.20% घोल) का भी प्रयोग किया जा सकता है ।

11. चिचिंडा का अर्ध-कुंडलक कीट:

वैज्ञानिक का नाम – भूरिया पेपोसिस

पहचान तथा प्रकोप:

इसका वयस्क कीट गहरे भूरे रंग का पतंगा होता है । यह चिचिंडा का एक भयानक कीट है जिसका प्रकोप देश के सभी भागों में देखा गया है और उसके अन्दर बैठकर उसे खाता रहता है । बाद में लता पत्ती-विहीन हो जाती है । इसके आक्रमण से बेल की बढ़वार रुक जाती है तथा उस पर फूल आने बंद हो जाते हैं ।

रोकथाम:

i. क्षतिग्रस्त पत्तियों को इकट्ठा करके जला दिया जाता है ।

ii. फसल पर मैलाथियान, या इंडोसल्फान या कार्बोरिल नामक रसायनों का 0.25 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है ।

iii. उचित फसल चक्र अपनाएँ जाएँ ।

12. कद्दू की इल्ली:

वैज्ञानिक का नाम – मार्गेरोनिया इंडिका

पहचान तथा प्रकोप:

यह पंख वाला पतंगा है । पंख पारदर्शी व सफेद होते हैं । यह कीट पूरे देश में पाया जाता है । और कद्‌दूवर्गीय सभी फसलों को हानि पहुँचाता है । इस कीट की इल्लियां एक पत्ती की दूसरी पत्ती से धागों से जोड़ देती हैं । और फिर उनमें रहकर उसे खाती हैं । इल्लियां फूलों को भी खाती हैं तथा कभी-कभी फलों को भी क्षति पहुँचाती हैं ।

रोकथाम:

i. इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दिया जाए ।

ii. मैलाथियान या इन्डोसल्फान का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव किया जाए ।

iii. उचित फसल चक्र अपनाये जाएँ ।

13. कुकंरबिट माइट:

वैज्ञानिक का नाम – यूटेट्रोनिकस ओरिएंटेलिस

पहचान तथा प्रकोप:

ये कीट बहुत ही छोटे होते हैं । इनकी 8 टांगें होती हैं । ये पत्तियों की नीचे की सतह पर बहुत संख्या में पाए जाते हैं । यह कीट पूरे भारत में पाया जाता है । ये पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं और पीली पड़ जाती हैं । परिणामतः पौधों की बढ़वार रुक जाती है जिसका प्रभाव पैदावार पर भी पड़ता है ।

रोकथाम:

1. प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दिया जाएं ।

2. इन्डोसल्फान या मैलाथियान का 0.20 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडकाव किया जाए ।