Read this article in Hindi to learn about how to control pests of cucurbits.

(1) लाल कद्‌दू भृंग (Red Pumpkin Beetle):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम रेपिडोपाल्पा (एल्युकोफोरा) फोविकोलिस है । ये कोलियोप्टेरा गण के क्राइसोमेलिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

यह भृंग बहुत ही तेज चमकीले नारंगी लाल रंग का होता है । यह लगभग 7 मि.मी. लम्बा और 45 मि.मी. चौड़ा होता है । इसका सिर, वक्ष तथा उदर का निचला भाग काला होता है । वक्ष एवं उदर के निचले हिस्से पर छोटे-छोटे रोम भी पाये जाते हैं ।

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इसका ग्रब पीलापन लिए हुए सफेद होता है । इसका सिर भूरे रंग का होता है । पूर्ण विकसित ग्रब लगभग 12 मि.मी लम्बा होता है । यह 3.5 से 4 मि.मी. चौड़ा होता है ।

क्षति:

इस कीट के ग्रब तथा प्रौढ़ दोनों ही क्षति पहुँचाते हैं । ग्रब जमीन के नीचे रहते हैं और पौधों की जड़ों तथा तनों में छेद कर देते हैं जिससे वे मर जाते हैं । जो फल जमीन के सम्पर्क में आते हैं, ग्रब उनके अन्दर भी छेद करके उन्हें खराब कर देते हैं । प्रौढ़ कीट पत्तियाँ खाते हैं ।

प्रायः यह छोटे पौधों और कोमल पत्तियों को खाना पसन्द करते हैं । इस प्रकार नये आ रहे पौधों की पत्तियों में छेद करके उन्हें खा जाते है और नवजात पौधों को पत्तीरहित कर देते हैं । फलतः पौधे मर जाते हैं । इसका आक्रमण फरवरी से अक्सर तक होता है ।

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जीवन-चक्र:

मादा कीट पौधों की जड़ों के नजदीक मिट्टी में 150 से 300 नारंगी या पीले-भूरे रंग के अण्डे देती है । इनसे 5-8 दिनों में ग्रब निकल आते हैं । ये जमीन की सतह पर पड़े फलों, जड़ों व तने को खाते हैं । ग्रब 12-25 दिनों में 3-4 बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाते हैं ।

ये जमीन में नीचे 18 से 25 से.मी. तक चले जाते हैं वहां पर कृषि कोष के अन्दर प्यूपा में बदल जो हैं । प्यूपाकाल 7-17 दिनों का होता है । वयस्क कीट लगभग एक माह तक जीवित रहते हैं । एक वर्ष में इस कीट की 5 पीडियाँ पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

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i. फसल की शीघ्र बुवाई (जनवरी) करने से पौधों की बीज पत्री अवस्था मृगों के आक्रमण से बच जाती है क्योंकि शीत वातावरण के कारण लाल पा सक्रिय नहीं हो पाते हैं ।

ii. खरपतवार रहित स्वच्छ खेती कीट नियन्त्रण में सहायक होती है ।

iii. फसल लेने के पश्चात् बेलों के अवशेष जलाकर नष्ट कर देना चाहिये जिससे जड़ों और बेल में उपस्थित अपरिपक्व अवस्थाएँ नष्ट हो जाए ।

iv. फसल लेने के पश्चात् खेत की गहरी बुताई करने सूँ भी भूमि में उपस्थित अपरिपक्व अवस्थाएँ नष्ट हो जाती हैं ।

v. कद्‌दू की 596-2 और 613 जनन द्रव्य में भृंग के प्रकोप के प्रति प्रतिरोधी क्षमता पायी जाती है ।

vi. फसल की प्रारम्भिक अवस्था में या एक सीमित क्षेत्र में लगायी गयी फसल में भृंगों को हाथ से एकत्रित करके नष्ट किया जा सकता है । यह कार्य सुबह के समय करना चाहिये, क्योंकि इस समय मृग सुस्त रहते है । भृंगों को कंरोसिन युक्त पानी के बर्तन में डालकर मारा जा सकता है ।

vii. धतूरे की पत्तियों की राख से वयस्क कीट मर जाते हैं ।

viii. गाय के गोबर की राख थोड़े मिट्‌टी के तेल में मिलाकर पौधों पर भुरकने से कीट पौधों पर कम आते हैं ।

ix. 0.05 प्रतिशत मैलाथियान का छिड़काव करके मृग का प्रभावी तरीके से नियंत्रण किया जा सकता है ।

x. 5 प्रतिशत कार्बोरिल या 4 प्रतिशत एण्डोसल्फान या 5 प्रतिशत मैलाथियान चूर्ण 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से भुरकाव भी इस कीट का प्रभावी नियंत्रण करा जा सकता है ।

(2) फल मक्खी (Fruit Fly):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम डेकस क्करबिटी है । यह डिप्टेरा गण के ट्रिपिडी कल का कीट है ।

पहचान:

यह मक्खी लाल-भूरे रंग की होती है । इसके सिर पर काले तथा सफेद धब्बे पाये जाते हैं । वक्ष पर हरापन लिए हुए पीले रंग की लम्बाकार मुड़ी हुई धारियां होती हैं । इसकी मादा 6-7 मि. मी. लम्बी होती है । नर अपेक्षाकृत छोटा होता है । मादा का उदर शंक्वाकार होता है और नुकीले अण्ड्निक्षेपक में समाप्त होता है ।

नर का उदर गोलाकार होता है इसके पंख पारदर्शी होते हैं । पंखों के बाहरी सिरे पर भूरे रंग की धारियाँ व स्लेटी धब्बे होते हैं । पिछले पंख हाल्टियर में बदल जाते हैं । जब मक्खी बैठती है या अण्डे देती है तो इसके पंख पूर्णतः फैले रहते हैं ।

क्षति:

इसका मैगट ही क्षति पहुँचाता है । यह फलों के अन्दर ही अन्दर गूदे को खाकर नष्ट कर देता है । क्षतिग्रस्त फल कीट के अण्डे देने के स्थान पर से टेढ़ा हो जाता है और आसानी से पहचाना जा सकता है । अधिक दिन हो जाने पर फल सड़ जाते हैं । कभी-कभी इस कीट से 90 प्रतिशत तक क्षति होती है । कुछ मैगट फूलों और कुछ बेल को भी खाते हैं । फलतः बेल में गाँठें बन जाती हैं ।

जीवन चक्र:

मादा अपने अण्ड्निक्षेपक की मदद से फलों की बाह्य त्वचा में छेद करके उसके नीचे 5-27 अण्डे एक साथ देती है । अण्डे देने के बाद मादा इस छेद को हल्के लसदार पदार्थ से ढक देती है । अण्डे से 3-5 दिनों में मैगट निकलते हैं जो अन्दर ही अन्दर फलों का गदा खाते हैं ।

ये मैगट लगभग 7-14 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाते हैं । पूर्ण विकसित मैगट जमीन के नीचे 20-25 से.मी. गहराई में प्यूपावस्था में बदल जाते हैं । इन यूपी से 6-12 दिनों में वयस्क मक्खियाँ निकलती हैं और पुन: फलों को संक्रमित करती हैं । इस कीट की एक वर्ष में 7 से 10 पीढ़ियां पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. समय-समय पर बेलों के नीचे गुड़ाई करते रहना चाहिये, इससे भूमि में उपस्थित प्यूपा नष्ट हो जाते हैं ।

ii. कद्‌दू वर्गीय निम्नलिखित सब्जियों की विभिन्न किस्मों में फल मक्खी के प्रतिरोधी क्षमता पायी जाती है:

तरबूज – अर्का सूर्यमुखी, जौनपुर ज्वेल

ककड़ी – इम्प्रूव्ड लोंग ग्रीन

तुरई – पीलीभीत पद्‌मनी

करेला – सोफ्ट ग्रीन

लौकी – सुल्तान्स लोग ग्रीन

टिंडा – अर्का टिंडा

iii. मक्खी की भावी संख्या वृद्धि को रोकने के लिए प्रकोप दिखाई देते ही ग्रसित फलों को तोड़कर भूमि में गहराई में गाड़कर या जलाकर नष्ट कर देना चाहिए ।

iv. तम्बाकू के चूर्ण या केरोसीन मिश्रित राख का भुरकाव करने से फल मक्खियाँ बेलों पर कम बैठती हैं ।

v. फलमक्खी निषेचन के पश्चात् 5 दिन तक कोमल फलों में अण्डे देती रहती है । यह अवस्था इस कीट के नियंत्रण हेतु सबसे क्रान्तिक अवस्था है, अतः इस समय 0.1 प्रतिशत कार्बोरिल का छिड़काव करके इसका प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है । पुष्प आना प्रारम्भ होने पर कार्बोरिल का 15 दिन के अन्तराल में छिड़काव करते रहना चाहिये । प्रत्येक फुहार से पूर्व फल तोड़ लेने चाहिये ।

vi. विष चुग्गा रखना – फल मक्खियों को आकर्षित करके मारने के लिए निम्नलिखित अवयव मिलाकर घोल तैयार किया जा सकता है । घोल खेत में कई स्थानों में छिछले बर्तन में रखना लाभप्रद रहता है । एक प्रतिशत चीनी या मोलैसिस का घोल बनाएं + 0.1 प्रतिशत मैलाथियान मिश्रित करें + 1 प्रतिशत किण्वित ताड़ का रस मिलाएं ।

vii. ओपियस फ्चेचरी फल मक्खी का एक सशक्त परजीवी है जिसका उपयोग इस कीट के प्रबन्ध में किया जा सकता है ।

(3) मोयला (Aphid):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम ऐफिस गोसीपाई है । ये हेपिप्टेरा गण के एफिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

वयस्क कीट पीले-हरे या काले होते हैं । ये लगभग 1.25 मि. मी. लम्बे होते हैं । इसके पृष्ठ भाग पर दो नलिका सदृश्य संरचनाएँ होती हैं जिन्हें काकिल कहते हैं । इसके शिशु तथा वयस्क अधिकतर पंखहीन होते हैं । लेकिन फसल के पकने पर या पौधों पर इनकी संख्या बढ़ जाने पर पंखदार वयस्क भी दिखाई देते हैं, जो उड़कर दूसरे पौधों पर चले जाते हैं । इनके पंख पारदर्शी होते हैं जिनमें काली नसें दिखाई पड़ती हैं । शिशु भी दिखने में वयस्क के समान ही होते हैं । ये केवल आकार में छोटे होते हैं ।

क्षति:

इस कीट के शिशु तथा वयस्क, दोनों ही क्षति पहुंचाते हैं । इनके मुखांग चुभाने व चूसने वाले होते हैं । जिन्हें ये पत्तियों की कोशिकाओं में चुभाकर उनका रस चूसते हैं । लगातार रस चूसने से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है जो बाद में सूख जाती है । इसके अलावा ये एक चिपचिपा पदार्थ निकालते हैं जिसे हनीड्यू कहते हैं ।

यह पदार्थ पत्तियों पर गिर जाता है जिसके ऊपर काला कवक लग जाता है । काले कवक की अधिकता से पत्तियों के प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कठिनाई उत्पन्न होती है । अतः पौधे कमजोर हो जाते हैं । छोटे पौधे प्रायः मर जाते हैं । यह कीट खीरे एवं तरबूज में वायरस रोग फैलाते हैं । कद्‌दू में पर्ण कुंचन रोग भी इस कीट द्वारा फैलता है ।

जीवन चक्र:

मादा कीट अनिषेकजनन द्वारा मादा निम्फ को जन्म देती है ये पंखदार व पंखहीन दोनों होते हैं । ये 3-4 दिनों में विकसित होकर वयस्क बन जाते है तथा पुन: अपनी संतति को आगे बढ़ाते हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. इस कीट के नियंत्रण हेतु 0.03 प्रतिशत एण्डोसल्फान या 0.03 प्रतिशत डाइमेथोएट या 0.05 प्रतिशत मैलाथियान के घोल का छिडकाव करना चाहिये ।

ii. लेडीबर्ड भृंग, कॉक्सीनेला सेप्टमपंक्टेटा इसका मुख्य परभक्षी है । इसका संरक्षण व संवर्धन करें ।

iii. ऐफेलिनस सेमीफ्लेवस एवं एम्बलीनोटस सिर्फिडीपेगस भी इसके परभक्षी हैं । इनकी भी खेत में पहचान करके संरक्षण करना चाहिये ।

(4) कुकरबिट माइट (Cucurbit Mite):

इसका वैज्ञानिक नाम टेट्रानिकस निओक्लेडिनीकस है । यह ऐकेरिना गण के टेट्रानिकिडी कुल का जीव है ।

पहचान:

ये माइट एक सूक्ष्मदर्शी जीव है जिसकी चार जोड़ी टांगें होती हैं । ये पत्तियों की निचली सतह पर पायी जाती है तथा ऊपर से जाले द्वारा सुरक्षित रहती है । ये जाला वयस्क जीवों द्वारा बनाया जाता है ।

क्षति:

वयस्क तथा निम्फ, दोनों ही कोमल पत्तियों एवं टहनियों का रस चूसते हैं । फलतः पत्तियों पर पीली चित्तियाँ पड़ जाती हैं । जिससे वह पीली पड़कर सूख जाती है । इस प्रकार से फूलों एवं फलों की संख्या भी कम हो जाती हैं । अधिक प्रकोप होने पर पूरा पौधा मर जाता है एवं एक भी फल नहीं लगता है ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. इसका प्रकोप शुरू होते ही जालेदार पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये ।

ii. इथियॉन 20 ई.सी. या मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. घोल का छिड़काव करें तथा आवश्यकतानुसार 15-20 दिनों बाद इसे पुन: दोहरायें ।

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