Read this article in Hindi to learn about how to cultivate diseases and pests of cumin (jeera).

जीरे की फसल में बीमारियों से बहुत हानि होती है । अच्छे उत्पादन के लिए इन फसलों की बीमारी लगने से पहले या अतिशीघ्र सुरक्षा व उपचार करना आवश्यक है ।

जीरे की फसल में होने वाले प्रमुख रोग:

i. उखटा रोग (विल्ट):

यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम फार्म स्पाइसेज क्यूमिनाई नामक कवक द्वारा होता है । यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में हो सकता है । इसमें पौधे हरे के हरे मुरझा जाते हैं क्योंकि यह कवक पौधे की जड़ों को प्रभावित करता है । इससे सभी क्षेत्रों की फसल को हानि होती है ।

ADVERTISEMENTS:

नियंत्रण के उपाय:

(1) रोग रहित फसल के स्वस्थ बीज ही बोये ।

(2) रोगग्रसित खेत में 3-4 साल तक जीरे की फसल न बोये ।

(3) जिस खेत में जीरा बोना हो उसकी गर्मी में ही जुताई करें ।

ADVERTISEMENTS:

(4) बीजों को बोविस्टन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा 4-6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करके ही बुवाई करें ।

ii. झुलसा (ब्लाइट):

यह रोग आल्टरनेरिया क्यूमेनाई कवक द्वारा होता है । 30-35 दिन की अवस्था में इस रोग के लगने की सम्भावना अधिक होती है । इस रोग के प्रभाव से पत्तियों व तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं । यदि आकाश में बादल छाये हुए हो तो रोग तेजी से फैलता है और पौधे मुरझा जाते हैं । लक्षण दिखने पर इसका उपचार शीघ्र करना आवश्यक है अन्यथा फसल को नुकसान से बचाना कठिन है ।

नियंत्रण:

ADVERTISEMENTS:

इसकी रोकथाम हेतु बुवाई के 30-35 दिन बाद फसल पर टाप्सिन एम दो ग्राम या मेन्कोजेब या जाइरम दो ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव किया जाता है । 10 से 15 दिन के पश्चात् पुन: छिड़काव करना चाहिये ।

iii. छाछया (पाउडरी मिल्डयू):

यह रोग इरीसाइफी पोलिगोनाई तथा लेविव्यूला टाँरिका नामक कवक द्वारा होता है । इसका प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियों तथा तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगता है । इस सफेद चूर्ण के बढ़ने पर पौधा गंदला एवं कमजोर हो जाता है । रोग के छोटी अवस्था में होने पर पौधे में बीज नहीं बनते तथा बीमारी देरी से होने से बीज छोटे व अधपके बनते हैं । इस रोग का प्रकोप 60-65 दिन की फसल की अवस्था पर होने लगता है ।

नियंत्रण:

इस रोग की रोकथाम हेतु 25 किलोग्राम गंधक का चूर्ण प्रति हैक्टेयर भुरकते हैं या घुलनशील गंधक 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर का छिड़काव या केराथियन एल. सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इसका नियन्त्रण हो जाता है । आवश्यकता पड़ने पर उपरोक्त छिड़काव 10-15 दिन में दोहराया जाता है ।

कीट प्रकोप एवं नियन्त्रण:

I. चेंपा मोयला:

मोयला या चेंपा से जीरे की फसल में बहुत नुकसान होता है । यह हरे, पीले, काले रंग के कोमल शरीर वाला छोटा सा कीट है । यह कीट पौधे के कोमल भाग से रस चूसकर उसे हानि पहुँचाता है । इसका सर्वाधिक प्रकोप फरवरी के अन्त से मध्य मार्च तक रहता है । मौसम में नमी में वृद्धि से इनकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती है ।

नियंत्रण:

इसके नियंत्रण के लिए डाईमिथोएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर या मेलाथियान 50 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से मिलाकर छिड़काव किया जाता है ।

II. कसारी:

यह कीट दिन के समय जमीन में दरारों में छिपा रहता है तथा रात्रि के समय बाहर निकलकर फसल को नुकसान पहुँचाता है । यह कीट अधिक तापक्रम होने पर अधिक सक्रिय हो जाता है तथा तापक्रम कम होने पर सुषुप्त अवस्था में चला जाता है ।

नियंत्रण:

इस कीट की रोकथाम के लिए मिथाइल पेराथियोन 2 प्रतिशत पाउडर या एण्डोसल्फान 4 प्रतिशत पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से शाम के समय भुरकाव किया जाता है ।

III. शस्य क्रियाएँ:

कटाई:

जीरे की फसल 90-135 दिन में पककर तैयार हो जाती है । इसे काटकर अच्छी तरह सुखा लिया जाता है । फसल के ढेर को पक्के फर्श पर धीरे-धीरे पीट कर दानों से धूल, हल्का कचरा व अन्य पदार्थ विभिन्न प्रचलित विधियों द्वारा ओसाई से दूर कर दिये जाते हैं । दानों को अच्छी तरह सुखाकर बोरियों में भर दिया जाता है ।

भण्डारण:

जीरे की फसल के दानों का भण्डारण करते समय उनमें नमी की मात्रा 8 से 9 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए । बोरियों को दीवार से 50 से 60 सेन्टीमीटर की दूरी पर लकड़ियों की पट्‌टी पर रखा जाना चाहिए ताकि चूहे, कीट आदि से सुरक्षित रहे । संगृहीत जीरे को समय-समय पर धूप में रखना चाहिए जिससे उसकी नमी बाहर निकलती रहे ।

Home››Pest Control››Cumin››