Read this article in Hindi to learn about how to control pests of gram.
(1) कटुआ सूँडी (Cut Worm):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम एग्रोटिस इप्सिलान है । यह लैपिडोप्टेरा गण के नीक्टुइडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क शलभ धूसर भूरे रंग का होता है जिसका आकार 4-6 से.मी. पंख विस्तार सहित होता है । अगले पंखों पर विशेष प्रकार के चिन्ह होते हैं । लगभग दो-तिहाई पंख क्षेत्र फीके रंग का होता है । इस फीके क्षेत्र में वृक्काकार धब्बे पाये जाते हैं । पंख के आधार पर दो काली अंतस्थ धारियाँ होती हैं । यह कीट अधिक उड़ने वाला कीट है । यह ग्रीस की तरह चमकदार होता है ।
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क्षति:
यह कीट एक प्रकार से विविधभक्षी कीट है । ये मुख्यतः चने का कीट है मगर ये मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, मटर आलू इत्यादि को भी भारी नुकसान पहुँचाता है । इसकी लार्वी भूरे रंग की होती है । यह भूमि के अन्दर दरारों में छिपी रहती है एवं शाम के समय जब अंधेरा होने लगता है, निकलकर पौधों को जमीन के पास से काटकर गिरा देती है एवं फिर उसे खाती है । यह कीट खाता कम है परन्तु नुकसान अधिक पहुँचाता है क्योंकि इसके द्वारा काटा गया पौधा सूख जाता है । यह कीट नवम्बर-दिसम्बर माह में अधिक सक्रिय रहता है ।
जीवन-चक्र:
इस कीट की मादा अण्डे एक-एक करके अथवा कभी-कभी गुच्छों में पत्तियों के ऊपर अथवा तने पर देती है । मादा पतंगा रात्रि के समय अण्डे देती है । प्रत्येक मादा लगभग 200-300 अण्डे देती है । अण्डे से 8-10 दिनों में लारवा निकलता है ।
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लारवा 3-5 सप्ताह में पूर्ण विकसित होता है जब ये पूर्ण विकसित हो जाता हैं तो भूमि में मिट्टी का ककून बनाता है और उसी में प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है । ग्रीष्म में प्यूपाकाल 10 दिनों का व शीत में 30 दिनों का होता है । इस प्रकार जीवन चक्र पूरा होने में 48 से 77 दिन लगते हैं । इस कीट की एक वर्ष में तीन पीढ़ियां पाई जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. छोटे खेतों में प्रकोप होने पर लारवा को हाथों से पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए ।
2. अधिक मात्रा में सिंचाई करने से लारवा मर जाता है ।
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3. खेतों में प्रकाश पाश एक लगाकर भी वयस्क पतंगों को आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता है ।
4. इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिये एण्डोसल्फॉन 4 प्रतिशत या क्यूनलफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा 1 हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय भुरक कर भूमि में मिलाना चाहिये ।
(2) चने का फली बेधक (Gram Pod Borer):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम हैलियोधिस आर्मीजेरा है । यह लेपिडोप्टेरा गण के नोक्टइडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क शलभ मजबूत एवं हल्के भूरे रंग का होता है जिसकी लम्बाई पंखों सहित लगभग 35 मि.मी. होती है । मादा का पंख विस्तार 40.0 मि.मी. होता है । इसके अगले जोड़ी पंखों पर भूरे बिन्दु होते हैं जो कि धारीदार रेखाएँ बनाते हैं तथा ऊपर की तरफ काले रंग के धब्बे होते हैं । नीचे वृक्काकार धब्बा पाया जाता है । पिछली जोड़ी पंख सफेद हल्के रंग के होते हैं तथा बाहरी सिरे पर काली धारी की किनारी होती है ।
क्षति:
इस कीट का लार्वा अण्डे से निकलकर पत्तियों के हरे पदार्थ को खुरचकर खाता है तथा बाद में फूल तथा फली में व फल में पहुँचकर उनमें छेदकर उनको खाता है । इस प्रकार इस कीट से चने को भारी नुकसान होता है । एक अकेला लार्वा लगभग 30-40 फलियों में छेद करके खा जाता है । जब ये लार्वी बड़ी हो जाती है ।
तब उसका आधा भाग फली के अन्दर एवं आधा भाग बाहर निकालकर खाते हुए देखा जा सकता है । इस कीट से प्रभावित फलियां खोखली होकर सूखकर पीली पड़ जाती हैं । फली में लार्वा का मल भी पाया जाता है । इसका प्रकोप नवम्बर से मार्च तक अधिक रहता है ।
जीवन-चक्र:
वयस्क मादा रात्रि के समय एक-एक करके अण्डे देती है । मादा 500-1676 तक अण्डे देती है । ये पत्तियों, फलों अथवा फली पर अण्डे देती है । अण्डे गोलाकार, चमकदार तथा हरे पीले रंग के होते हैं । अण्डे का ऊष्मायन काल 4-5 दिनों का होता है । अण्डे से निकली लार्वी पत्तियों, फूलों और कोमल शाखाओं को खाना शुरू कर देती है ।
ये लगभग 2-3 सप्ताह में 5 बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाती हैं इस समय इसका ऊपरी पृष्ठ हरा होता है तथा मध्य में गहरी-मोटी स्लेटी रंग की धारी होती है जो कि स्थान-स्थान पर टूटी होती है और पीछे की ओर लम्बी पीली धारी होती है ।
पूर्ण विकसित लार्वा भूमि में 75 से 10.0 से.मी. गहराई में जाकर एक चिकना ककून बनाता है और वहीं प्युपा में बदल जाता है । यह अवस्था 1 से 3 सप्ताह का होता है । बसंत ऋतु में इसका जीवन काल लगभग 5 सप्ताह तथा शीत ऋतु में यही समय बढ्कर 9 सप्ताह तक हो जाता है । वर्ष भर में इस कीट की 3 से 7 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. छोटे खेतों में लार्वा को हाथों से पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए ।
ii. चने की फसल के कटते ही खेत की अच्छी प्रकार से सफाई कर जुताई कर देना चाहिए ताकि प्यूपा गर्मी में मर जायें ।
iii. उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिए ।
iv. प्रकाश प्रपंच एवं फेरोमोन ट्रेप की सहायता से वयस्क पतंगों को एकत्रित करके नष्ट किया जा सकता है ।
v. इस कीट से प्रतिरोधी चने की किस्में जैसे- आई.सी.सी.-506 या सहनशील किस्में जैसे आई.सी.सी.वी-2 या आई.सी.सी.-6 को काम में लेनी चाहिये ।
vi. नीम की पत्ती या निम्बोली के रस का 10 प्रतिशत घोल बनाकर फसल पर अंकुरण के 20 दिन बाद, 40 दिन बाद (फूल आने पर) व 60 दिन बाद (फली बनने पर) छिड़काव करना लाभप्रद होता है ।
vii. एन.पी.वी 250 एल.ई. प्रति हैक्टेयर की दर से शाम के समय छिड़काव करना चाहिये ।
viii. अंकुरण के 20 दिन बाद मिथाइल पैराथियान 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिये एवं फूल आने पर एण्डोसल्फॉन 35 ईसी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफास 36 एस एल., 1.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये ।
ix. इस कीट का नियंत्रण निम्नलिखित परजीवी कीटों द्वारा किया जा सकता है- ट्राइकोग्रामा माइन्यूटम अण्डे का परजीवी तथा केम्पोलोटस क्लोरीडी, ऐपेन्टेलिस, ब्रैकोन, दिलेर इन्सिडयोसस तथा किलोनस आदि लारवा के परजीवी हैं । खेतों में इनकी पहचान कर इनका संरक्षण व संवर्धन करना चाहिये ।