Read this article in Hindi to learn about how to control pests of mustard.

(1) आरा मक्खी (Sawfly):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम ऐथिलिया ल्यूजन्स प्रोक्सीमा है । यह हाइमेनोप्टेरा गण के टेन्थ्रीडिनीडी कुल का कीट है ।

पहचान:

प्रौढ़ कीट की देह पर नारंगी-पीले रंग के चिह्न होते हैं तथा पंखों का रंग गहरा लाल-भूरा होता है । इस कीट के दो जोड़ी पंख होते हैं । यह 1.5 से.मी. लम्बा होता है । इसका अण्ड निक्षेपक काफी विकसित एवं आरी के समान होता है जिससे छेद करके ये पत्तियों पर अण्डे देती हैं ।

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क्षति:

इस कीट की हानिकारक अवस्था केवल शौक है । इस अवस्था में यह पत्तियों में छिद्र कर खाता है । इस प्रकार पत्तियों में जाल बच जाता है । कभी-कभी प्ररोह की पूरी बाह्य त्वचा भी खा जाता है । इस प्रकार बड़े हुए पौधों पर फलियां नहीं लगती हैं ।

जीवन-चक्र:

वयस्क मादा कीट अपने आरीदार अण्ड निक्षेपक से पत्रियों में छिद्र बनाकर अण्डे देती है । यह अण्डे अलग-अलग देती है तथा एक बार में एक पत्ती पर 24 घण्टे में 30-35 तक अण्डे देती है । इसका अंडा देने का काल 6-8 दिन का होता है । अण्डे का ऊष्मायन काल 4-5 दिनों का होता है । अण्डे से निकला ग्रब हरे रंग का होता है एवं रोये रहित होता है ।

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बढ़वार के साथ इसका रंग और गहरा होता जाता है । ग्रब सात निर्मोक रूपों से गुजरता है एवं 16-35 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाता है । पूर्ण विकसित ग्रब खूपीय ककून का निर्माण करता है । प्यूपावस्था 10 से 12 दिनों की होती है । वयस्क कीट प्राय: 5-0 दिनों तक जीवित रहते हैं । एक वर्ष में इस कीट की 5-8 पीड़ियां पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

1. फसल की निराई-गुड़ाई करें ताकि मिट्टी के डेली में छिपी ग्रब नष्ट हो जायें ।

2. मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से सुकना चाहिये । आवश्यकतानुसार इसे 15-20 दिन-बाद पुन: दोहराना चाहिये ।

(2) चित्रित बग (Painted Bug):

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इस कीट का वैज्ञानिक नाग बैघाड़ा कुसिफेरेरम है । यह हैमिप्टेरा गण के पेन्टेटोमिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

प्रौढ़ कीट चपटा, लगभग 3.69 मि.मी. लम्बा तथा 3.33 मि.मी. चौड़ा होता है । इसका रंग चमकीला काला और देह पर नारंगी या भूरे रंग के धब्बे पाये जाते हैं । इस कीट का स्कूटेलम काफी लम्बा होता है ।

क्षति:

सरसों की फसल को इस कीट के निम्फ (शिशु) एवं वयस्क दोनों ही क्षति पहुँचाते हैं जो कि पौधों की पत्तियाँ एवं कोमल तनों का रस चूसते हैं । इस कीट से ग्रस्त पौधे रोगी पौधों के समान हो जाते हैं । प्रभावित पौधों की बढ़वार रुक-सी जाती है तथा उपज पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

जीवन-चक्र:

यह कीट मार्च से दिसम्बर तक सक्रीय रहता है । मादा कीट अधिकतर एक-एक करके अण्डे देती है जो कि पत्तियों, पत्तियों के डंठलों तथा तने पर दिए जाते है । एक मादा अपने जीवन काल में 40-100 अण्डे देती है । अण्डे से 3-5 दिनों में निक (शिशु) निकल आते हैं ये पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं ।

ये निम्फ 5 बार निर्मोचन करके वयस्क बनते हैं । निम्फ अवस्था 2-3 सप्ताह की होती है । इस प्रकार इस कीट का जीवनकाल 3-8 सप्ताह का होता है । वर्ष भर में इस कीट की 9 पीढ़ियाँ पाई जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

1. समय पर फसल की बुवाई करनी चाहिये ।

2. गेहूं + सरसों की मिलवा खेती करने पर इस कीट का प्रकोप कम होता है ।

3. फसल की कटाई के उपरान्त सभी कचरे या अवशेष को जला देना चाहिये ।

4. कीटग्रस्त फसलों पर मैलाथियॉन 0.1 श्रतिशय या डाईमेथोएट 0.03 प्रतिशत या इमीडाक्तोरीप्रिड 0.02 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिये ।

5. फसल के अंकुरण के 2-3 सप्ताह बाद मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिये । जरूरत पड़ने पर यही भुरकाव 15-20 दिन बाद पुन: करें ।

(3) मोयला या एकड़ि (Aphid):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम लिफाफीस ईरीसमाई है । यह हैमिप्टेरा गण के एर्फिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

ये कीट आकार में छोटे लगभग 2 मि.मी. लम्बे तथा गोलाकार होते हैं । इस कीट के मुखांग चुभाने व चूसने वाले होते हैं । इस कीट की देह के आखिरी सिरे पर दो छोटी नलिकाएँ होती हैं जिन्हें विनाल कहते हैं इस कीट में पंखदार व पंखहीन दो अवस्थाएँ पायी जाती हैं ।

क्षति:

इस कीट की निम्फ (शिशु) व वयस्क अवस्थाएँ फसल की पत्तियों, तने, फूलों तथा कलिकाओं का रस चूसते हैं । इस कीट के प्रकोप से पौधे बदरंग व कमजोर हो जाते हैं तथा उनमें फलियाँ नहीं लगती हैं । यह कीट एक प्रकार का द्रव्य उत्सर्जित करता है जिसे ‘मधुरस’ कहते हैं ।

ये मधुरस मीठा होता है तथा चींटियों व काली फफूंदी को आकर्षित करता है । इस प्रकार पत्तियों पर काली फफूंदी भी उग जाती है तथा प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में बाधा उत्पन्न करती है । यह कीट दिसम्बर से फरवरी तक अत्यधिक सक्रिय रहता है । इस कीट द्वारा फसल को पहुंचायी गयी क्षति की मात्रा 15-50 प्रतिशत तक होती है ।

जीवन-चक्र:

यह कीट सरसों तथा कूसीफेरी कुल के अन्य पौधों पर नवम्बर या दिसम्बर के आरम्भ में दिखाई देता है । सर्वप्रथम इस कीट की छोटी कॉलोनियाँ होती हैं जिसमें अधिकतर मादाएँ होती हैं । यह मादा सीधे निम्फ (शिशु) को जन्म देती हैं । इस किया को अनिषेक जनन कहते हैं ।

बिना अण्डे दिये निम्फ को जनन की क्रिया को संजीव प्रजनन कहते हैं । ये शीघ्र ही वयस्क हो जाते हैं इस प्रकार इनकी संख्या तेजी से बढ़ती है । बाद में मादा में पंख उग आते हैं तथा ये फसलों पर उड़ती दिखाई देती हैं । निम्फ 7 दिनों में पूर्ण विकसित होकर वयस्क बन जाते हैं तथा वयस्क कीट 3-5 दिनों का होता है । एक वर्ष में इस कीट की अनेक पीढ़ियां पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

1. फसल की बुवाई 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए । देरी से बोई गयी फसल पर इस कीट का भीषण प्रकोप होता है ।

2. कीट प्रतिरोधी किस्में जैसे टी-59, बी-58, ग्लोसी, आर.डब्ल्यू. व्हाइट ग्लोसी आदि को बुवाई के काम में लेना चाहिये ।

3. खेत में उपस्थित प्राकृतिक शत्रु जैसे परभक्षी, कायसोपा, लेडी बर्ड मृग, आदि इसका भक्षण कर संख्या को कम करते हैं ।

4. नीम बीज सत् के 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना काफी प्रभावी होता है ।

5. फसल पर 0.03 प्रतिशत फास्फोमिडान दवा का छिड़काव करना चाहिए ।

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