Read this article in Hindi to learn about how to control pests of pea.
(1) पर्ण सुरगक (Leaf Miner):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम क्रोमेटोमिइया हार्टिकोला है । ये डिप्टेरा गण के एग्रोमाइजिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
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वयस्क कीट हल्के पीले एवं गहरे धात्विक हरे रंग के होते है जिनकी लम्बाई 2.2 से 2.6 मि.मी. होती है । इसकी शृंगिकाएँ छोटी-छोटी होती हैं । जिसका तीसरा खण्ड तथा स्पर्शक काले रंग के होते हैं । संयुक्त नेत्र बड़े व उन्नत होते हैं ।
क्षति:
मादा कीट आहार ग्रहण करने एवं अण्डे देने के लिये पत्तियों में छेद करती हैं । मैगट पत्तियों में सुरंग बनाकर आहार ग्रहण करता है । मैगट द्वारा सुरंग बनाकर आहार ग्रहण करने के कारण पत्ती झुलसी हुई-सी प्रतीत होती है और समय से पूर्व गिर जाती है ।
जीवन-चक्र:
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वयस्क मादा कीट अपने अण्ड्निक्षेपक द्वारा बाह्यत्वचा में छेद करके उसके नीचे अण्डे देती है । मादा अपने जीवन काल में 300 तक अण्डे देती है अण्डे रंगहीन, लम्बाई लिये हुए गोल होते हैं अण्डे से 2-3 दिनों में मैगट निकलते हैं । ये पत्तियों में सुरंग बनाकर अन्दर ही अन्दर खाते हैं ।
इन्हीं सुरंगों में रहकर ये 5- 12 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाते हैं । पूर्ण विकसित हो जाने पर ये प्यूपा में बदल जाते हैं । प्यूपाकाल 5-12 दिनों का होता है । वयस्क कीट 15-25 दिनों तक जीवित रहते हैं । इस कीट की वर्ष में 4-5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. ग्रसित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये ।
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2. यह कीट सूखी भूमि पर अधिक सक्रिय रहता है अतः खेत में समय-समय पर पानी देना अत्यन्त आवश्यक है ।
3. अगेती तथा देरी से बोई गयी फसल पर इस कीट का अधिक प्रकोप होता है अतः फसल की समय पर बुवाई करनी चाहिये ।
4. बुवाई के समय फोरेट 10 प्रतिशत 20-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में प्रयोग करना चाहिये ।
5. कीट का प्रकोप दिखने पर एण्डोसल्फॉन 35 ई सी या मैलाथियान 50 ई.सी. 1.25 ली 1 हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये ।
6. इस कीट की संख्या सोलेनोटस गुप्ताईस एवं रोपैलोटस थैकेराई नामक परजीवी इस कीट की संख्या को नियंत्रित करते हैं ।
(2) फली बेधक (Pea Pod Borer):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम इटिएला जिन्किनैला है । यह डिप्टेरा गण के फाइसीटिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क कीट धूसर रंग का शलभ है । विश्राम अवस्था में यह 15-20 मि.मी. लम्बा और 3-5 मि.मी चौड़ा होता है परन्तु पंख विस्तार 24 से 27 मि.मी. होता है । इसके अगले पंख के अग्र भाग के किनारे के साथ-साथ फीकी पट्टी और आधार के समीप उभरे हुए शल्कों का अनुप्रस्थ कटक होता है । सिर के अन्त में एक प्रोथ होता है ।
क्षति:
अण्डे से निकली हुई लार्वी ही फली बेधक की ऐसी अवस्था है जो फलियों को क्षतिग्रस्त करती है । लार्वा फलियों में जाली बनाकर फिर छेद करके भीतर पहुँचकर बीजों पर आक्रमण करती है । फली के अन्दर पहुँचकर यह प्रथम हाइलम भाग को क्षति पहुँचाती है, फिर फली को और अन्त में दाल को नष्ट कर देती है ।
इसके फलस्वरूप यह खुरदरा व अनियमित रूप से कटा हुआ बन जाता है । इस कीट से क्षतिग्रस्त फली में जालों के साथ कीट का मल भी गुँथा हुआ होता है । लार्वा एक फली के दानों को समाप्त करके दूसरी फली में पहुँच जाती है । प्रभावित फलियाँ गिर जाती हैं एवं उपज में भारी कमी होती है ।
जीवन-चक्र:
वयस्क मादा 70 से 80 तक अण्डे देती है । अण्डे कच्ची कच्ची फलियों की मध्य शिराओं के साथ-साथ बाह्य दलपुँज, उसके भीतर और उसके चारों ओर एक-एक करके या समूहों में दिये जाते हैं अण्डकाल लगभग 4 से 7 दिन का होता है । अंडों से निकली लार्वी फली में छेद कर घुस जाती है और वहाँ से आहार प्राप्त करती है लारवा अवस्था 15-27 दिनों की होती है पूर्ण विकसित लारवा प्यूपा में रूपान्तरित हो जाता है । प्यूपाकाल 10-15 दिनों का होता है । वयस्क कीट 5-7 दिनों तक जीवित रहता है । एक वर्ष में इस कीट की 5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. क्षतिग्रस्त फलियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये ।
2. 0.03 प्रतिशत मोनोक्रोतोफॉस या 0.03 प्रतिशत फास्फोमिडान या 0.05 प्रतिशत एण्डोसल्फॉन का छिड़काव 2 बार करने से इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है ।
(3) तना मक्खी (Stem Fly):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम ओफियोमाइया फैजिओलाई है । यह डिप्टेरा गण के एग्रोमाइजिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
यह कीट काली चमकदार छोटी मक्खी होती है जिसकी लम्बाई 2-3 मि.मी. तक होती है । इसका पंख विस्तार 1.8 से 2.2 मि.मी. होता है । इसके मध्य वक्ष पृष्ठक और उदर चमकदार काले रंग के होते हैं तथा इनके किनारे धारीदार काले होते हैं ।
क्षति:
सर्वप्रथम इस कीट के मैगट पत्ती में सुरंग बनाकर आहार ग्रहण करता है फिर मोटी शिरा के साथ वक्ष द्वारा ऊपर तने की ओर बढ़ता है । इस प्रकार दो दिन के बाद यह तने के ऊपर और नीचे (भूमि की ओर) सुरंग बनाता है छोटे पौधों में ये नीचे की ओर खाता है व कभी-कभी जड़ों में भी प्रवेश कर लेता है ।
इस कीट का जब अधिक प्रकोप होता है तो वह तने को भीतर ही भीतर गहराई तक खाता है और ऊपर की ओर भी बढ़ जाता है । प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती है । यह कीट अकबर-नवम्बर माह में अत्यन्त सक्रीय रहता है । इस कीट से प्रभावित पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है ।
जीवन-चक्र:
मादा मक्खी छोटी पत्ती के किसी भी भाग में अण्डे देती है । एक मादा अपने जीवनकाल में दो सप्ताह में 100 से 300 तक अण्डे देती है । अण्डे से 2-4 दिनों में मैगट निकलते हैं मैगट पत्ती में सुरंग बनाता है फिर मोटी शिरा में छेद करके तने में प्रवेश कर जाता है ये तीन बार निर्मोचन कर 10 दिन में लगभग पूर्ण विकसित हो जाता है । ये सुरंग में ही प्यूपा बनकर 9-10 दिन में वयस्क मक्खी बनकर बाहर निकलती है । ये कीट साधारणतया अप्रैल में सक्रिय रहता है । इस कीट की एक वर्ष में 8-9 पीढ़ियाँ पायी जाती है ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. फसल की बुवाई से पूर्व जमीन में फोरेट 10 प्रतिशत कण 15 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये ।
2. खड़ी फसल में कीट प्रकोप होने पर मोनो कोटाफीस 36 एस.एल. 1.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये ।
3. इस कीट में कुछ परजीवी, जो इसकी संख्या को कम करने में सहायक है, जो निम्नलिखित हैं- ओपिअस ओलेरेसी, मेरिस्मोरोला शौक्सपियराई ।