Read this article in Hindi to learn about how to control pests of soyabean.
(1) तना मक्खी (Stem Fly):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम मेलेनोग्रामा सोजी है । यह डिप्टेरा गण के एग्रोमाइजीडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क मक्खी गहरे धात्विक काले रंग की होती है । काचाम पंखों पर पशुर्क क्षेत्रों में बिल्कुल अलग-अलग खांचे होते हैं । यह पंख फैलाकर 18 से 21 मि.मी. होती है ।
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क्षति:
इस कीट के मैगट (लार्वा) बुवाई के 15-20 दिनों बाद सक्रिय होते है । प्रारम्भिक अवस्था में पहली दो पत्तियों की अवस्था में यह कीट नुकसान पहुँचाता है तथा प्रभावित पौधों को सूखा कर गिराने लगता है । इस कीट की हानिकारक अवस्था मैगट है जो कि तने को भीतर ही भीतर खाता रहता है तथा तनों में दरार उत्पन्न कर देता है । चाकू से काटने पर इस प्रकार के तनों में सुरंग दिखाई पड़ती है ।
जीवन-चक्र:
मादा कीट पत्ती के निचले भाग में अण्डे देती है । अण्डे से 2-3 दिनों में मैगट निकलते हैं और तुरन्त ही पास की शिरा में छेदकर पर्णवृत्त तक खाता चला जाता है और फिर तने में घुस जाता है । यहाँ पर यह तने के मध्य में नीचे जड़ की तरफ फिर ऊपर की ओर तने में खाता रहता है ।
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मैगट 8-11 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाता है एवं तने में प्यूपावस्था में चला जाता है । प्यूपावस्था 9-11 दिनों की होती है । इस कीट का जीवन 21 दिनों में पूर्ण होता है । वर्ष में इस कीट की 4-5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिये ।
ii. बुवाई के समय फोरेट 10 प्रतिशत कण 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिये ।
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iii. अंकुरण के 3-4 दिनों बाद मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 500 मि.ली. या फास्फोपिडान 85 एस.एल. 300 मि.ली. या ऐसीफेट 75 एस.पी. 300 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये ।
iv. इस कीट के मैगेट पर सेकोडेला जाति तथा प्यूपा पर सिनोपोयडा जाति और ट्राइगोनोगेष्ट्रा एग्रोमाइजा परजीवी है अतः खेत में इनकी पहचान करके इनका संरक्षण व संवर्धन करना चाहिये ।
(2) गर्डल भृंग (Gradel Bhring):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम आबेरिया ब्रेविस है । यह कोलियोप्टेरा गण के सिरेम्बीसीडी कुल का कीट है ।
पहचान:
इस कीट की मादा मृग मध्यम आकार की होती है तथा नर का लम्बे होते हैं । पक्षवर्म के अगले भाग भूरे लाल तथा पिछले भाग गहरे लाल रंग के होते हैं । इस कीट की शृंगिका शरीर से बड़ी होती है ।
क्षति:
मादा कीट डंठल में से वलय या मेखलाएँ खाती हैं जो 2-3 दिन में भूरे रंग की हो जाती है । इस प्रकार मादा पौधों में बहुत से छेद करती है तथा उनमें अण्डे देती है । इस प्रकार से अण्डे देने की क्रिया से पौधों को बहुत नुकसान होता है । अण्डे से निकलने के बाद ग्रब तने में छेद बनाते हैं और भीतर ही भीतर उसे खाते रहते हैं ।
तने को चाकू से काटने पर उनमें सुरंगें दिखाई देती हैं । इन सुरंगों के अन्दर भूरे रंग का मल भी पाया जाता है । इस कीट की क्षति से पत्तियाँ तथा प्ररोह सूख जाते हैं । खेतों में टूटे हुए तनों से भी इस कीट की क्षति को आसानी से पहचाना जा सकता है ।
जीवन-चक्र:
मादा कीट तने में बनी मेखलाओं या वलयों में छेद करके उसके अन्दर अण्डे देती है । इन अण्डे का ऊष्मायन काल एक सप्ताह होता है । अण्डे से निकले ग्रब पहले पत्तियों व बाद में तनों में छेदकर उसे अन्दर ही अन्दर खाते रहते हैं ।
इसके खाने से तने में सुरंगें बन जाती हैं । ये ग्रब 5 से 20 दिन में पूर्ण विकसित हो जाते हैं व सुरंग में ही प्यूपा में परिवर्तित हो जाते हैं । प्यूपावस्था एक सप्ताह की होती है । इस कीट की एक वर्ष में कई पीढ़ियां पायी जाती हैं ।
प्रबन्धन उपाय:
इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर डाईमिथोएट 30 ई.सी. 1.0 लीटर या मोनोक्राटोफॉस 36 एस.एल. 1.0 लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये ।