Read this article in Hindi to learn about how to control pests of stored foodgrains.
संग्रहित अनाज को सुरक्षित रखने की विधियों को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है:
(1) निरोधक उपचार
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(2) उपचारी उपचार
(1) निरोधक उपचार (Prophylactic Measures):
इसके अन्तर्गत वे विधियाँ आती हैं जिनका उपयोग कीट ग्रसन से पूर्व किया जाता है । ताकि कीट का ग्रसन नहीं हो ।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित विधियाँ शामिल हैं:
अनाज को सुखाना:
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i. संग्रहण से पूर्व अनाज को भली-भांति सुखा लेना चाहिये क्योंकि अनाज में नमी की मात्रा 10 प्रतिशत या इससे कम होने पर कीट-ग्रसन नहीं होता है ।
ii. अनाज को बहुत अंधेरी व नम जगहों पर नहीं रखना चाहिए, ऐसे स्थानों पर कीटों का प्रकोप अधिक होता है । संग्रहण के स्थान पर हवा तथा प्रकाश पहुँचना चाहिए । यदि कोठी में अनाज रखना हो तो वह वायुरोधी होनी चाहिए ।
iii. अनाज की पुरानी बोरियों को उबलते हुए पानी में कुछ समय के लिए डालकर धूप में सुखा लेना चाहिये अथवा उन्हें तेज धूप में सुखाना चाहिये ताकि उसमें विद्यमान कीट, रुढियों व अण्डे मर जायें ।
iv. बोरियों में भरकर रखा जाने वाला अनाज सीधे जमीन के सम्पर्क में नहीं आना चाहिए । अनाज तथा फर्श के बीच लकड़ी के पडे अथवा पौलीथीन की शीट लगाकर डनेज कर देना चाहिए ।
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v. बोरियों अथवा ढेर के रूप में रखे हुए अनाज को भण्डार की पूरी क्षमता तक नहीं भरना चाहिए ताकि समुचित रूप से वायु संचरण हो सके बोरियों को थप्पी के रूप में रखना चाहिए तथा थप्पीयों के बीच में खुले रास्ते होने चाहिए जिससे हवा तथा काम करने वाले व्यक्तियों के आवागमन में सुविधा हो ।
vi. अनाज संग्रहण से पूर्व भण्डार को भली प्रकार से साफ कर लेना चाहिए । भण्डार तथा कोठियों का प्रघूमन भी अच्छा रहता है । प्रधुमन हेतु धूमकों का उपयोग करना चाहिए जिससे कीटों का समूल नाश हो जाये ।
(2) उपचारी उपचार (Remedial Measures):
इसके अन्तर्गत वे विधियाँ आती हैं जिनका उपयोग कीट ग्रसन हो जाने के बाद किया जाता है । इनके उपयोग से कीटों की संख्या कम हो जाती है जो उनके मरने या अन्य तरीकों से भी हो सकती है ।
(I) यांत्रिक नियंत्रण:
(अ) अनाज को हिलाना-डुलाना:
इस विधि में अनाज को कम से कम 0.25 से 1.00 मीटर की ऊँचाई से गिराते हैं । फलस्वरूप अनाज में विद्यमान कीट मर जाते हैं तथा उनकी अपरिपक्व अवस्थाएँ हिल-डुल जाने से क्षतिग्रसत हो जाती है एवं विकसित नहीं हो पाती हैं । यदि अनाज में गर्म स्थान बन गये हों तो उन्हें भी हिला-डुलाकर नष्ट कर देना चाहिये ।
(ब) पैकिंग:
सामान्यतः अनाज को बोरियों में भरकर रखा जाता है मगर बोरी में भरकर रखे अनाज का प्रघूमन आसानी से नहीं हो पाता है, इसके अलावा इसमें बाहर से कीट ग्रसन आसानी से हो सकता है । बोरियों में बाहर से कीटों के प्रवेश को रोकने के लिये बोरियों को बनाते समय ही उनमें कीटनाशी मिलाने की व्यवस्था की जा सकती है । ऐसा करने से अनाज में बाहर से कीटों का ग्रसन नहीं होता मगर इसमें पहले से अन्दर विद्यमान कीटों पर यह अप्रभावी रहता है ।
(II) भौतिक नियंत्रण:
i. निष्क्रिय पदार्थों का उपयोग:
अनाज में कीटों के नियंत्रण के लिए निष्क्रिय पदार्थ जैसे राख, रेत, नीम की पत्ती एवं तेल आदि को अनाज के साथ मिलाकर रखने से प्रायः कीटों का प्रकोप कम होता है । ये तरीके काफी पुराने समय से अपनाये जा रहे हैं ।
ii. ताप का उपयोग:
संग्रहित अनाज के कीटों को एक निश्चित ताप से अधिक या कम पर रखने से उनकी जीवन क्रिया पर ताप का बुरा असर पड़ता है तथा वे मर जाते हैं । ऐसा पाया गया है कि अधिकांश कीट 35० से ताप पर मर जाते हैं । कुछ कीट यथा खपरा को मारने के लिये यह ताप 40० से करना पड़ता है ।
iii. अपकेन्द्रीय बल का उपयोग:
कीट ग्रसित सामग्री को 2000 से 3000 घूर्णन प्रति मिनट (आर.पी.एम.) की गति से घुमाने पर प्रायः कीट मर जाते हैं । बड़ी-बड़ी आटा मिलों में इस विधि का उपयोग किया जाता है । यह विधि पीसी सामग्री के लिये उपयुक्त होती है ।
iv. कीटों को भौतिक रूप से अलग करना:
प्रायः छालने से कीटों को छान कर अलग किया जाता है फलस्वरूप दानों के बाहर विद्यमान कीट अलग हो जाते हैं मगर दानों के अन्दर पाये जाने वाले कीटों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
v. वायु प्रवाह:
संग्रहण के दौरान भण्डारों में वायु प्रवाह ताप व नमी को कम करने हेतु किया जाता है । इससे कीटों की वृद्धि रुक जाती है ।
vi. ध्वनि का प्रयोग:
ध्वनि के प्रभाव से कीटों की अण्डे देने की क्षमता, उसके विकास तथा जीवन-काल पर दुष्प्रभाव पड़ता है । ध्वनि के प्रभाव से कीटों का व्यवहार बदला जा सकता है ।
(III) जैविक नियंत्रण:
संग्रहित अनाज में हानिकारक कीटों का जैविक नियंत्रण अपेक्षाकृत कठिन होता है इसका कारण यह है कि नाशीकीट को मारने के उपरान्त उस के परजीवी एवं प्राकृतिक शत्रु भी मर जाते हैं । प्रायः सूक्ष्मजीवी जैसे बैसिलस धूरिलिएन्सिस संग्रहण के दौरान शीघ्र नष्ट नहीं होता तथा ये नियंत्रण के लिये काफी उपयोगी होता है ।
(IV) वैधानिक नियंत्रण:
किसी क्षेत्र विशेष में न पाए जाने वाले कीट के प्रवेश को नाशक कीट एवं नाशक जीव अधिनियम 1914 को लागू कर रोका जा सकता है ।
(V) रासायनिक नियंत्रण:
(i) निष्क्रिय गैस:
यदि खाद्यान्न भण्डारों में आक्सीजन की मात्रा कम तथा अन्य गैस जैसे कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा अधिक कर दी जाये तो कीटों का जीवित रहना असंभव हो जायेगा । इसी तरह आक्सीजन के स्थान पर दूसरी गैस द्वारा भण्डार में कीट नियंत्रण किया जा सकता है ।
(ii) वनस्पति उत्पाद:
वनस्पतिक उत्पादों यथा नीम कनेर आक की पत्तियों, नीबू की पत्ती, घतूरे की पत्ती, लेटाना की पत्ती आदि में कीटनाशी गुण होते है इनका प्रयोग करने से कीटों का ग्रसन कम होता है । इसी प्रकार खाद्य तेलों व अखाद्य तेलों जैसे- नीम, महुआ, सत्यानाशी, रतनजोत, अरंडी आदि भी अनाज की कीटों से सुरक्षा करते हैं ।
खाद्यान्नों के सुरक्षित भण्डारण के पाँच सुनहरे नियम:
(a) भण्डारण से पूर्व अनाज को सुखाएं और साफ करें ।
(b) अनाज के बोरों के नीचे डनेज का प्रयोग करें ।
(c) कीट निरोधी उपचार हेतु मैलाथियान का तथा कीटनाशी उपचार हेतु सिफारिश किये गये धूमकों का प्रयोग करें ।
(d) अनाज भण्डारण हेतु आधुनिक भण्डारण पात्रों का उपयोग करें अथवा परम्परागत भण्डारण पात्रों को सुधारें ।
(e) घरों तथा खेतों में चूहों की रोकथाम के लिये सिफारिश किये गये चूहानाशकों का उपयोग करें ।
(iii) रासायनिक कीटनाशी का प्रयोग:
कीटनाशी रसायनों का प्रयोग सुरक्षात्मक उपाय के रूप में किया जाता है डाईएल्ड्रिन, मैलाथियान, पाइरेथ्रेम आदि का छिड़काव कोठियों, गोदामों तथा बोरियों पर सतही उपचार के रूप में किया जाता है । मैलाथियान का उपयोग सर्वोत्तम रहता है, क्योंकि कम विषालु होने के साथ-साथ इसके उपयोग से अनाज में किसी भी तरह की गन्ध नहीं आती है । (0.5% मैलाथियान) ।
कीटनाशियों को अनाज में मिश्रित करके भी कीटों के प्रकोप को रोका जा सकता है । कीटनाशी का मिश्रण केवल बीज की सुरक्षा के लिये किया जाता है । मैलाभियन का चूर्ण 250 ग्राम/क्विंटल की दर से मिलाकर अनाज को लगभग एक वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है ।
(iv) धूमन:
वह रसायन, जो एक निश्चित ताप व दाब पर गैस के रूप में इतनी शक्ति में रह सके कि शत्रु कीटों के लिये घातक हो, धूमक कहलाता है ।
अच्छे धूमक के गुण:
(I) कीटों के लिये अत्यन्त विषैला व पृष्ठवशियों व पौधों के लिये हानिरहित हो ।
(II) आसानी से द्रव अवस्था में संघनित न हो ।
(III) पानी में घुलनशील न हो ।
(IV) इसकी उपस्थिती का पता सूँघकर आसानी से लगाया जा सके ।
(V) खाद्य पदार्थों पर कोई दुष्प्रभाव न छोड़े ।
(VI) अधिक प्रसारण व वेधन क्षमता हो ।
(VII) ज्वलनशील व विस्फोटक नहीं होना चाहिये ।
(VIII) उपयोग आसान व सस्ता हो ।
(IX) धातु व कपड़ों पर कोई दुष्प्रभाव न छोड़े ।
धूमन के लिये-इथाइलीन डाइब्रोमाइड (EDB), इथाइलीन डाइब्रोमाइड + कार्बन टेट्रा क्लोराइड, इथाइलीन डाइफ्लोराइड + कार्बन टेट्राफ्लोराइड (EDCT) एवं एल्युमिनियम फास्फाइड बाजार में उपलब्ध सामान्य धूमक है ।
धूमन विधि:
धूमन करने से पहले भण्डारगृहों में रखे अनाज की बोरियों को गैसरोधी आवरण से ढांका जाता है । यदि अनाज कोठियों में है तो उनके ढक्कनों को पालीथीन शीट द्वारा गैसरोधी बनाया जाता है तथा धूमकों की अनुशंसित मात्रा उपयोग में लाई जाती है ।
ई.डी.सी.टी. मिश्रण के प्रयोग में बोरियों के बीच रखे पटसन जूट या खाली बोरियों के बण्डलों पर अनुशंसित मात्रा डाली जाती है । एवं उन्हें तत्काल ढक दिया जाता है । कोठियों में जब अधिक मात्रा में अनाज भंडारित है उसे धूमित करने हेतु धूमक को कोठी के अंदर निश्चित अंतराल में छोड़ने के लिये इनके एकलों को एक लम्बी छड़ से नियमित अंतराल पर बांध कर फोड़ने के बाद अनाज से भरी कोठी में उतार देते हैं अथवा 2 इंच व्यास के पाइप जिसके एक सिरे पर कपड़ा रस्सी से बाँधकर पाइप को कोठी के अंदर उतार दिया जाता है एवं इस पाइप को वांछित ऊँचाई तक बाहर खींचकर धूमन एकल को तोड़कर इसके अंदर गिरा दिया जाता है ।
एकल की गिरने की आवाज के साथ ही पाइप को खिंचा जाता है एवं एकल डाला जाता है । इस प्रकार विभिन्न गहराइयों पर एकल डाले जाते हैं । धूमन के बाद करीब एक सप्ताह तक इसे अच्छी तरह ढका रहने दिया जाना चाहिये । धूमन से पूर्व अनाज को खुली हवा देना आवश्यक होता है ।