Read this article in Hindi to learn about how to control pests of sugarcane.
(1) मूल बेधक (Root Borer):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम इममेलोसेरा डेप्रेसिला है । यह लेपिडोप्टेरा गण के पाइरेलिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
इस कीट की लार्वी भूरी अथवा सूखी पीली घास के रंग की होती है ।
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क्षति:
इस कीट की लार्वी भूमि के अन्दर वाले भाग पर आक्रमण करती है । यह वस्तुतः जड़ का कीट नहीं है मगर साधारणतया प्रयोग में इसे मूल बेधक कहते हैं । यह छोटे गन्ने के पौधों को नुकसान पहुँचाता है जिससे केन्द्रीय पर्ण चक्र सूख जाता है और मृत केन्द्र इति हकार बन जाता है । इसकी लार्वी अधिकतर गन्ने के निचले भाग में पायी जाती है । इस कीट का प्रकोप प्रायः शुष्क मौसम में अधिक होता है । यह मार्च से अगस्त माह में सक्रिय रहता है ।
जीवन चक्र:
वयस्क मादा रात्रि के समय पत्तियों की निचली सतह पर एवं तने पर हल्के पीले रंग के अण्डे देती है । इनसे 4-5 दिनों में लारवा निकलता है ये लारवा पत्तियों के सहारे तने के आधार तक पहुँच जाती हैं ये तने को खाकर खोखला कर देती हैं लारवा काल 6-7 सप्ताह का होता है ।
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ये तने के भीतर ही प्यूपावस्था में बदल जाती हैं । प्यूपाकाल 11-12 दिनों का होता है । इस कीट की प्रत्येक पीढ़ी को पूर्ण होने में 60-70 दिनों का समय लगता है । प्रत्येक वर्ष में इसकी 3-5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।
ii. प्रभावित पौधों को तत्काल उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिये ।
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iii. फसल की कटाई जमीन के नीचे से करें तथा पेड़ी की फसल न लें ।
iv. फसल के अवशेषों को नष्ट करें ।
v. प्रकाश पाश से पतंगों को नष्ट करें ।
(2) शीर्ष बेधक (Top Borer):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम ट्राइपोराइजा (सिर्पोफेगा) निवेला है । यह लेपिडोप्टेरा गण के पाइरेलिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
इस कीट का पतंगा सफेद रंग का और करीब 25 मि.मी. पंख फैलाकर चौड़ा होता है । इसके नर का उदर बेलनाकार व नुकीला होता है । मादा का आकार चपटा और अन्त में पीला-लाल बालों का गुच्छा लिए होता है । नर मादा से आकार में कुछ छोटा होता है ।
क्षति:
लार्वी पत्ती के मध्य शीरा में प्रवेश करके धीरे-धीरे तने की ऊपरी भाग में प्रवेश कर जाती है जिसे प्रभावित भाग सूख जाता है । अधिक प्रकोप होने से शीर्ष शाखाओं का झुण्ड बन जाता है, इस तरह की शाखायें पिराई योग्य नहीं होती हैं । कीट का मानसून के बाद नम व आर्द्र मौसम में अधिक प्रकोप होता है ।
जीवन-चक्र:
रात्रि के समय मादा पतंगा पत्तियों के नीचे अण्डे देती है तथा उसे उदर के अन्त में स्थित अपने बालों से ढक देती है । ये अण्डे समूहों में दिये जाते हैं । प्रत्येक समूह में 60-70 तक अण्डे होते हैं । इनसे 6-8 दिनों में लारवा निकलता है ।
ये पत्ती के सहारे तने में घुस जाते हैं तथा तने में सुरंगें बनाकर उसे खाते हैं । लारवा काल 15-35 दिनों का होता है । पूर्ण विकसित लारवा तने में ही प्यूपा में बदलता है । प्यूपावस्था 10-12 दिनों की होती है । इसका जीवन पूर्ण होने में 7 सप्ताह लग जाते हैं । इस कीट की एक वर्ष में 5 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. कीट ग्रसित तनों को उखाड़ कर नष्ट करें ।
ii. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें जैसे- को. – 7224, को.-67 व को – 1158 ।
iii. पत्तियों पर पाये जाने वाले कीट के अण्ड समूहों को नष्ट करें ।
iv. 1.5 लीटर एण्डोसल्फान प्रति हैक्टर 1000 लीटर पानी में घोलकर बनाकर पौधों पर छिडकाव करें ।
(3) तना बेधक (Stem Borer):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम काइलो टुमिदीकास्टेलिस है । यह लेपिडोप्टेरा गण के पायरेलिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
इस कीट का नर शलभ 21-25 मि.मी. लम्बा तथा मादा 28-30 मि.मी. लम्बी होती है । नर कीट के अगले पंख भूरे रंग के होते हैं जो लाल या गहरे भूरे रंग की झिल्ली से ढके हुए होते हैं । जिसके अन्त में काले धब्बे होते हैं । पिछले पंख सफेदी लिए होते हैं । मादा में नर के समान मध्य झिल्ली होती है इसमें गहरे भूरे रंग के शल्क कम होते हैं । मादा में भी पिछले पंख सफेद होते हैं ।
क्षति:
इस बेधक की उपस्थिति की पहचान ऊपरी सूखी पत्तियों द्वारा लगायी जा सकती है । यह पाया गया है कि वातावरण तथा जलवायु इस कीट के प्रकोप पर बड़ा असर डालते हैं ।
प्राथमिक संक्रमण:
इस प्रकार की हानि में नई दंडी जो अण्डे से निकालती है । वह एकत्रित होकर ऊपर की 4-5 पोरियों में प्रवेश करना शुरू कर देती है । ताजा कीटमल चमकता लाल रंग का उसी के ऊपर वाली गांठों से निकलता मालूम पड़ता है तो समझ लेना चाहिए कि इसमें तना बेधक का आक्रमण शुरू हो गया है । किनारे से शाखाएं निकलना आरम्भ हो जाती है । ऊपरी पत्तियाँ या तो बिल्कुल सूख जाती है या सूखने लगती है ।
द्वितीय संक्रमण:
जब सूँडी बड़ी हो जाती है तो वह पास के गन्ने के तनों में छेद करना शुरू कर देती है । इस प्रकार की हानि में ऊपर का भगा नहीं सूखता है लेकिन एक सूँडी 5-6 गांठों को बेध देती है ।
जीवन चक्र:
मादा कीट केवल रात्रि के समय अण्डे देती है ये नई खुली हुई पत्तियों पर अपने अण्डे देती है । अण्डे से एक सप्ताह बाद लारवा निकलता है एवं वह गाँठों के बेधना प्रारम्भ करता है । लारवा काल 26-45 दिनों का होता है इसके उपरान्त ये प्यूपावस्था में बदल जाता है । प्यूपावस्था 6-12 दिनों की होती है ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. पतंगों को प्रकाश पाश लगाकर आकर्षित किया जा सकता है ।
ii. अण्डे को नष्ट करना चाहिये ।
iii. जिस गन्ने के तनों में प्राथमिक संक्रमण हो गया हो उनको उखाड़ देना चाहिये ।
iv. स्वच्छ फसल प्रबन्ध अपनायें तथा बुवाई के लिये स्वस्थ गन्ने का चयन करें ।
v. फसल की छोटी अवस्था में तने के निचले हिस्से पर दो बार हल्की मिट्टी चढ़ाये ।
vi. फसल के जमीन में बचे अवशेषों को नष्ट करने के लिये गहरी जुताई करें ।
vii. कीट प्रतिरोधी किस्म को.- 6806, को.-62175, को-975 तथा को.-77-1 को काम में लेना चाहिए ।
viii. लार्वा का परजीवी ऐपेन्टेलिस फ्लेविपीज 16-35 प्रतिशत लार्वी को नष्ट कर देता है ।
(4) पाइरीला (Pyrilla):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम पाइरीला पर्पूसिला है । यह हेमिप्टेरा गण के फल्गोरिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
प्रौढ़ की लम्बाई 10 मि.मी. और पंख विस्तार सहित 22 मि.मी. तक होती है । इसका रंग गन्ने की सूखी पत्तियों जैसा होता है । सिर के आगे एक नोकदार नाक निकली होती है जिसे प्रोथ कहते हैं । सिर तथा वक्ष सटा होता है । वक्ष पर दो जोड़ी पंख होते हैं । उदर पर पंख छत की तरह ढाल बनाए उदर से कुछ बाहर निकले रहते है ।
क्षति:
इसके निम्फ और प्रौढ़ दोनों ही हानिकारक होते हैं । इनमें बेधन एवं चूषण प्रकार के मुखांग होते हैं । इसका प्रकोप पत्तियों पर होता है । ये पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियाँ पीली और कमजोर पड़ जाती हैं । पत्तियों के कमजोर हो जाने से पौधे की बढवार घट जाती है तथा रस में शर्करा अंश की कमी भी हो जाती है ।
जहाँ इस कीट का प्रकोप होता है, वहाँ पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ जाते हैं, जिनसे एक प्रकार का चिपचिपा पदार्थ निकलता है जिस पर काली कवक उग आती हैं जो कि प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न करती है । इस कीट के अत्यधिक आक्रमण की स्थिति में लगभग 35 प्रतिश शर्करा अंश में कमी आ जाती है ।
जीवन-चक्र:
यह कीट पूरे वर्ष भर सक्रिय रहता है । मादा 300-400 अण्डे गुच्छों में देती है । अण्डे पत्तियों को निचली सतह पर दिये जाते हैं । ये अण्डे रोमयुक्त पदार्थ से ढके रहते है अण्डे 8-10 दिनों में विकसित हो जाते हैं तथा इनसे निम्फ (शिशु) निकलता है । ये पत्तियों का रस चूसता है । ये 5 बार निर्मोचन कर 4-6 सप्ताह में पूर्ण विकसित हो जाता है । इस प्रकार 50-60 दिनों में इस कीट की एक पीढ़ी पूरी होती है तथा एक वर्ष में 3-4 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
i. जिन पत्तियों पर इस कीट के अण्डे हो उन्हें तोड़कर जला देना चाहिये ।
ii. फसल की पेडी को जहाँ तक हो सके नहीं लेनी चाहिये ।
iii. फसल को नाइट्रोजन युक्त उर्वरक अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिये ।
iv. कठोर व संकरी पत्तियों वाली कीट प्रतिरोधक प्रजातियों की बुवाई करें ।
v. फसल की कटाई के बाद फसल के अवशेषों को नष्ट करें ।
vi. 25 किग्रा. मिथाइल पेराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें ।
vii. इस कीट के अंडों की परजीवी एजोनिओस्पिस पाइरिली व अर्भक परजीवी कवक एपक्रेनिई पाइरीली का प्रयोग करें ।