Read this article in Hindi to learn about how to control pests of wheat.
(1) गेहूं की प्ररोह मक्खी (Wheat Shoot Fly):
इस की का वैज्ञानिक नाम एथेरीगोना नेक्विआई है । यह डिप्टेरा गण के ऐन्थोमाइडी कुल का कीट है ।
पहचान:
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वयस्क कीट हल्के धूसर रंग का 4.8 मि.मी. से लेकर 9.14 मि.मी. लम्बा होता है । इसके नर का पंख विस्तार 2.7 से 3.5 मि.मी. होता है तथा मादा का 3.18 से 3.5 मि.मी. होता है ।
क्षति:
इस कीट की सूँडियाँ अकुरण के 10-20 दिन बाद पौधे के पत्तों को खाकर तने में सुरंग बना देती हैं तथा ऊतक व कोशिका को खाकर नष्ट कर देती हैं जिसके फलस्वरूप ‘मृत केन्द्र’ बन जाता है । प्रभावित पौधा पीला पड़ जाता है और अन्ततः सूख जाता है ।
जीवन-चक्र:
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मादा कीट अपने अण्डे एक-एक करके तने के निचले भाग में पत्तियों के निचले हिस्से में देती है । मादा अपने जीवन काल में 14-22 अण्डे देती है । तुरन्त दिये अण्डे सफेद रंग के होते हैं । अण्डे के ऊपर लम्बी-लम्बी हल्की धारियाँ होती हैं । इन अण्डों से 2-3 दिनों में डिंभक (मैगेट) निकलते हैं ।
डिंभक दो बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाता है । डिंभक काल 7-8 दिनों का होता है । पूर्ण विकसित डिंभक 3-4 दिन में तने के नीचे या भूमि में प्यूपा बन जाता है । प्यूपा काल 6-10 दिनों का होता है । वयस्क कीट 4-7 दिनों तक जीवित रहते हैं व इनकी एक वर्ष में अनेक पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. इस कीट की रोकथाम हेतु उचित फसल चक्र अपनाना चाहिये ।
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2. खेत में पर्याप्त सिंचाई करने पर इस कीट का प्रकोप कम होता है ।
3. गेहूं की बुवाई 15 नवम्बर के बाद करनी चाहिये ।
4. कीट ग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिये ।
5. बुवाई के समय फोरेट 10 प्रतिशत कण 15-20 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें ।
6. अंकुरण के 3-4 दिन बाद मोनोकोटोफॉस 36 एस.एल. (500 मि.ली.) का 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें ।
(2) सैन्य कीट (Army Worm):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम मिथेमना सेपरेटा है । यह लैपिडोप्टेरा गण के नोक्टुइडी कुल का कीट है ।
पहचान:
इस कीट का वयस्क बदामी रंग का पुष्ट पतंगा होता है । इसकी देह बालों से भरी होती है ।
क्षति:
इस कीट की लार्वा अवस्था हानिकारक होती है ये गेहूँ की पत्तियों तथा तने को काटकर क्षति पहुँचाती हैं । ये भूमि की सतह के ऊपर के हिस्से से पौधे की पत्तियों को खाती हैं और उनमें केवल मोटी शिरा ही शेष रह जाती है । यह कीट प्रायः रात्रि के समय बाहर निकलता है तथा दिन में दरारों अथवा ढेलों में छिपा रहता है ।
जीवन-चक्र:
वयस्क मादा एक-एक करके अण्डे देती है । मादा अपने जीवन काल में 500 तक अण्डे देती है । अण्डे गोल हल्के हरे रंग के होते हैं जो बाद में पीले-काले रंग के हो जाते हैं । इनसे 3-5 दिनों में लार्वा निकल जाते हैं । बसंत ऋतु में लार्वा अवधि 14-15 दिनों की तथा सर्दियों में 80-100 दिनों की होती है । लार्वा पूर्ण विकसित होने पर रेशमी ककून बनाकर प्यूपावस्था में चली जाती है । प्यूपावस्था एक-दो सप्ताह की होती है । इस कीट की एक वर्ष में अनेक पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
1. फसल कटाई के उपरान्त ठूँठों व फसल अवशेष को जला देना चाहिये ।
2. फसल कटाई के बाद खेत की जुताई कर देनी चाहिये । इससे लार्वा व प्यूपा भूमि की ऊपरी सतह पर आ जाती है एवं परभक्षियों द्वारा नष्ट कर दिये जाते है ।
3. इस कीट के एकान्तर परपोषी पास व खरपतवरों को नष्ट कर देना चाहिये ।
4. खेत में पानी भरकर लार्वा व प्यूपा को नष्ट किया जा सकता है ।
5. अत्यधिक प्रकोप की दशा में मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकना चाहिये ।
(3) गेहूँ का मोयला (Wheat Aphid):
इस कीट का वैज्ञानिक नाम माईक्रोसाइफम मिसकैन्थाई है । यह हैमिप्टेरा गण के एफिडी कुल का कीट है ।
पहचान:
वयस्क हरे रंग का जूँ के समान होता है । इस कीट के निम्फ या शिशु और वयस्क लगभग एक समान ही दिखाई पड़ते हैं यह पत्तियों पर पाए जाते हैं । इसके पंख युक्त कीट केवल ग्रीष्म ऋतु में ही निकलते हैं ।
क्षति:
वयस्क तथा निम्फ (शिशु) कोमल पत्तियों व बालियों का रस चूसते हैं जिसके कारण फसल की उपज में काफी कमी हो जाती है । इस कीट का प्रकोप शीत ऋतु में जब बादल छाए रहते हैं तब अधिक होता है एवं जब फसल में अधिक खाद और पानी दिया जाता है उस समय भी इस कीट का प्रकोप काफी बढ़ जाता है ।
जीवन-चक्र:
इस कीट की वृद्धि शीत ऋतु में होती है एवं वृद्धि की मात्रा फरवरी-मार्च में अधिक हो जाती है जिस समय बालियाँ पकने पर होती हैं । इस कीट की मादा सीधे निम्फ को जन्म देती है जोकि बिना संभोग के होते हैं । इनमें अनिषेकजनन होता है ।
जब प्रजनन की दर सक्रिय होती है तो नर अनुपस्थित होते हैं । जब गेहूँ लगभग पकने पर होता है तथा गर्मी होती है तब पंख वाले नर और मादा पैदा होते हैं और यह दूसरे खरपतवारों पर चले जाते हैं और फिर अक्टूबर-नवम्बर में पुन: सक्रिय होते हैं ।
समन्वित प्रबन्धन उपाय:
फसल पर डाइमिथोएट 30 ई.सी. या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ई.सी या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. का छिड़काव करना चाहिये ।