चुंबक: प्रकार और गुण | Magnet: Types and Properties in Hindi. Read this article in Hindi to learn about:- 1. Introduction to Magnet 2. Types of Magnet 3. Properties 4. Attraction and Repulsion 5. Magnetic Needle 6. Terrestrial Magnetism 7. Electric Current and Magnetism 8. Electromagnet.
Contents:
- चुम्बक का आशय (Introduction to Magnet)
- चुम्बक के प्रकार (Types of Magnet)
- चुम्बक के गुण (Properties of Magnet)
- चुम्बक में आकर्षण व प्रतिकर्षण (Attraction and Repulsion in Magnet)
- चुम्बकीय सुई (Magnetic Needle)
- पार्थिव चुम्बकत्व (Terrestrial Magnetism)
- विद्युतधारा तथा चुम्बकत्व (Electric Current and Magnetism)
- विद्युत-चुम्बक (Electromagnet)
1. चुम्बक का आशय
(Introduction to Magnet):
आपने ऐसे लोहे के टुकड़ों को देखा होगा जो दूसरे लोहे के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । इस प्रकार वह लोहा जो दूसरे लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है चुम्बक कहा जाता है । इस अध्याय में आप चुम्बक तथा इसके महत्वपूर्ण गुणों के विषय में अध्ययन करेंगे ।
ADVERTISEMENTS:
लगभग आठ सौ वर्ष ईसा पूर्व मैग्नीशिया नगर में एक खनिज की खोज हुई । इसमें कुछ अद्भुत गुण पाए गए । इस खनिज का नाम उस नगर के नाम पर मैग्नेटाइट रखा गया । जब कोई लोहे का टुकड़ा इसके पास लाया जाता है तो यह उसे आकर्षित करता है तथा इसके सम्पर्क में आया लोहे का टुकड़ा भी अन्य लोहे के टुकड़ों को आकर्षित करता है ।
इस गुण के कारण इस प्राकृतिक पत्थर को भार पत्थर (Load Stone) कहा जाता है । सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब इसके एक लम्बे टुकड़े को धागे से लटकाया जाता था तो यह उत्तर दक्षिण दिशा में ठहरता था । इसके इस गुण के कारण यात्री इसका उपयोग यात्रा के दौरान दिशा ज्ञान के लिए करते थे ।
इसलिए इस पत्थर को अग्रम पत्थर (Leading Stone) या लेड स्टोन (Lead Stone) कहा जाने लगा । बाद में प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि ये पत्थर लोहे के ऑक्साइड (Fe2O3) से बने होते हैं । आज इनको चुम्बक(Magnet) कहा जाता है । चुम्बक के गुणों को चुम्बकत्व कहते हैं ।
लोहा, निकिल, कोबाल्ट इत्यादि से बनी वस्तुओं को चुम्बक अपनी ओर आकर्षित करता है । इन वस्तुओं को चुम्बकीय पदार्थ कहते हैं ।
सन् 1600 में विलियम गिलबर्ट ने सम्भवत: चुम्बक के गुणों का विस्तार से अध्ययन किया । आज चुम्बक का उपयोग जीवन के अनेक क्षेत्रों में हो रहा है ।
2. चुम्बक के प्रकार (Types of Magnet):
चुम्बक दो प्रकार के होते हैं:
ADVERTISEMENTS:
(i) प्राकृतिक चुम्बक (Natural Magnet)
(ii) कृत्रिम चुम्बक (Artificial Magnet)
(i) प्राकृतिक चुम्बक:
प्रकृति से प्राप्त चुम्बक को प्राकृतिक चुम्बक कहते हैं । ये अनिश्चित आकार के तथा कम शक्तिशाली होते हैं । इन्हें इच्छानुसार आकृति नहीं दी जा सकती है । चित्र 12.7 देखें ।
(ii) त्रिम चुम्बक:
मानव द्वारा निर्मित चुम्बक को कृत्रिम चुम्बक कहते हैं । इन्हें अपनी इच्छा अनुसार आकृति का तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है । चित्र 12.8 देखें ।
कृत्रिम चुम्बक दो प्रकार के होते हैं ।
(1) स्थायी चुम्बक (Permanent Magnet):
जिस चुम्बक में चुम्बकत्व का गुण स्थायी होता है उसे स्थायी चुम्बक कहते हैं । ये चुम्बक लोहा, निकिल, कोबाल्ट आदि के बनाए जाते हैं । इनका चुम्बकत्व शीघ्र नष्ट नहीं होता है अत: ये लम्बे समय तक उपयोग में लाए जा सकते हैं ।
(2) अस्थायी चुम्बक (Temporary Magnet):
जिस चुम्बक में चुम्बकत्व का गुण स्थायी नहीं रहता है उस चुम्बक को अस्थायी चुम्बक कहते हैं । अस्थायी चुम्बकों को सामान्यत: नर्म (मुलायम) लोहे का बनाया जाता है । अधिकांश अस्थायी चुम्बकों को नर्म लोहे के चारों ओर प्रथक्कृत चालक तार की कुण्डली में विद्युतधारा प्रवाहित कर बनाया जाता है ।
कुण्डली में जब तक विद्युतधारा प्रवाहित होती रहती है, नर्म लोहे में चुम्बकत्व रहता है तथा धारा प्रवाह बन्द करते ही इसका चुम्बकत्व समाज हो जाता है । इन्हें विद्युत चुम्बक कहते हैं । चित्र 12.9 देखें ।
3. चुम्बक के गुण (Properties of Magnet):
चुम्बक में मुख्यत: निम्न गुण होते हैं:
i. यह चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करता है ।
ii. स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर चुम्बक सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ही ठहरता है ।
iii. चुम्बक के अन्दर प्रत्येक सिरे के निकट एक ऐसा बिन्दु पाया जाता है जहाँ चुम्बकत्व सर्वाधिक होता है; इसे चुम्बकीय ध्रुव कहते हैं ।
iv. चुम्बक के दो ध्रुव उत्तरी ध्रुव (North Pole) व दक्षिणी ध्रुव (South Pole) होते हैं ।
v. सजातीय ध्रवों में प्रतिकर्षण तथा विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है ।
vi. चुम्बक को गर्म करने पर, पीटने पर या घिसने पर उसका चुम्बकत्व नष्ट हो सकता है ।
4. चुम्बक में आकर्षण व प्रतिकर्षण (Attraction and Repulsion in Magnet):
चुम्बक के एक और गुण को जलने के लिए आप दो छड़ चुम्बक लीजिए । इनमें से एक को चित्र 12.3 अ की भाँति धागे से स्वतंत्रतापूर्वक लटकाइए और इसके उत्तरी एवं दक्षिण ध्रुव को पहचान कर चिन्हित कीजिए ।
इसी प्रकार दूसरे छड़ चुम्बक को लटकाकर उसके भी ध्रुवों को चिन्हित कीजिए । अब हाथ से पकड़कर इसका उत्तरी ध्रुव दूसरे लटके हुए चुम्बक के दोनों ध्रुवों के पास बारी- बारी से लाइए (चित्र 12.3 ब) ।
देखिए क्या होता है ?
जब हाथ में पकड़े हुए चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को लटके हुए चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के पास लाते हैं तो लटकता हुआ चुम्बक प्रतिकर्षित होकर पीछे की ओर खिसक जाता है । (चित्र 12.3 अ) परन्त जब हाथ वाले चम्बक का उत्तरी सिरा लटके हुए चुम्बक के दक्षिणी सिरे के पास लाया जाता है तो लटका हुआ चुम्बक आकर्षित होकर हाथ वाले चुम्बक से चिपक जाता है । (चित्र 12.3 ब)
इससे स्पष्ट है कि चुम्बक के सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण तथा विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है । किसी चुम्बक के आसपास का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बकीय शक्ति का प्रभाव रहता है चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है । चुम्बक जितना शक्तिशाली होगा उसका चुम्बकीय क्षेत्र उतना ही बड़ा होगा ।
धनात्मक व ऋणात्मक विद्युत आवेश स्वतंत्रतापूर्वक रहते हैं । अत: आपके मस्तिष्क में एक प्रश्न अवश्य आता होगा कि क्या चुम्बक के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव भी स्वतंत्रतापूर्वक रहते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हम एक क्रियाकलाप करते हैं ।
5. चुम्बकीय सुई (
Magnetic Needle):
स्वतंत्रतापूर्वक लटका हुआ चुम्बक उत्तर-दक्षिण दिशा के समान्तर ठहरता है । चुम्बक के इस गुण का उपयोग दिशा-ज्ञान के लिए किया जाता है । जिस यंत्र की सहायता से दिशा-ज्ञान प्राप्त करते हैं उसे चुम्बकीय सुई कहते हैं । कम्पास में चुम्बकित लोहे से बनी एक छोटी सुई होती है इसके दोनों सिरे नुकीले होते हैं ।
इसके उत्तरी ध्रुव की पहचान के लिए सुई के उचित सिरे पर चिन्ह बना रहता है । जब चुम्बकीय सुई एक नुकीली कील पर क्षैतिज तल में स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है । तब यह कम्पास कहलाती है । इसमें यह नुकीली कील एक वृताकार आधार वाली डिबिया के केन्द्र पर स्थित होती है । इस डिबिया के आधार पर ऊपर की ओर एक डायल लगा होता है ।
डायल को 360॰ (अंशों) में विभाजित किया जाता है । चित्र 12.5 के अनुसार डायल पर उत्तर (N-North), पूर्व (E-East), दक्षिण (S-South) एवं पश्चिम (W-West) अंकित रहता है । डिबिया किसी अचुम्बकीय पदार्थ (जैसे एल्युमीनियम) की बनी होती है । डिबिया को काँच के ढक्कन से बन्द कर देते हैं । वायुयान और पानी के जहाजों में चम्बकीय कम्पास की सहायता से दिशा-ज्ञान किया जाता है।
विशेष:
चुम्बकीय सुई का उपयोग किसी चम्बक के ध्रुवों की पहचान के लिए भी किया जाता है ।
6. पार्थिव चुम्बकत्व (
Terrestrial Magnetism):
पृथ्वी एक चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है । पृथ्वी के इस गुण को पार्थिव चुम्बकत्व कहते हैं ।
पार्थिव चुम्बकत्व हेतु प्रमाण:
i. क्षैतिज तल में स्वतंत्रतापूर्वक लटकता हुआ चुम्बक सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरता है । यह तभी संभव है जबकि पृथ्वी चुम्बक की भाँति व्यवहार करे ।
ii. लोहे की एक छड़ को उत्तर-दक्षिण दिशा में जमीन में गाड़ देने पर वह कुछ समय पश्चात् चुम्बक बन पार्थिव जाती है । यह तभी सम्भव है जब पृथ्वी चुम्बक की भाँति व्यवहार करे ।
iii. इन तथ्यों के अलावा कई प्रयोगों से भी सिद्ध हुआ है कि पृथ्वी एक विशाल चुम्बक की तरह व्यवहार करती है । उत्तर दिशा (भौगोलिक उत्तर) के करीब पार्थिव चुम्बक (पृथ्वी के चुम्बक) का दक्षिणी ध्रुव व दक्षिण दिशा (भौगोलिक दक्षिण) के करीब पार्थिव चुम्बक का उत्तरी ध्रुव स्थित है ।
7. विद्युतधारा तथा चुम्बकत्व (
Electric Current and Magnetism):
सन् 1820 में डेनमार्क के प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री हेंस क्रिस्टियन ओर्स्टेड ने विभिन्न प्रयोगों द्वारा पता लगाया कि विद्युतधारा और चुम्बकत्व का आपस में घनिष्ठ संबंध है ।
क्रियाकलाप:
उद्देश्य:
विद्युतधारा के चुम्बकीय प्रभाव का अध्ययन ।
आवश्यक सामग्री:
टार्च में प्रयुक्त होने वाला एक सेल (या बैटरी), चुम्बकीय सुई (दिक सूचक) संयोजन तार (Connecting Wire) ।
प्रक्रिया:
चित्र 12.10 में दर्शाए अनुसार संयोजी तार का एक सिरा बैटरी के धन (+) सिरे और दूसरा सिरा कुन्जी के K1 पेंच से जोड़िए एक अन्य संयोजी तार का एक सिरा बैटरी के ऋण (-) सिरे से तथा दूसरा सिरा कुन्ती के K2 पेंच से जोड़िए । किसी एक तार को चित्रानुसार खीचंकर पकड़ लीजिए ।
इस तार के पास एक चुम्बकीय सुई लाइए । यह चुम्बकीय सुई उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकेगी । किन्तु जैसे ही कुन्जी दबाकर तार में विद्युतधारा प्रवाहित करते हैं चुम्बकीय सुई विक्षेपित हो जाती है । धारा का प्रवाह बन्द होते ही चुम्बकीय सुई अपनी मूल स्थिति में लौट आती है ।
निष्कर्ष:
तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर तार के आसपास चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है ।
8. विद्युत-चुम्बक (
Electromagnet):
यदि लोहे के बेलन (या नर्म लोहे की पट्टी) पर धात के तार को कुण्डलीनुमा लपेटकर उसमें विद्युतधारा प्रवाहित की जाए तो लोहे का बेलन (या पट्टी) एक अस्थायी चुम्बक की तरह कार्य करने लगता है । धारा का प्रवाह बन्द करते ही लोहे का चुम्बकत्व लगभग समाप्त हो जाता है । ऐसे चुम्बक को विद्युत चुम्बक कहते हैं ।
विद्युत-चुम्बक के उपयोग:
i. विद्युत चुम्बक का उपयोग लोहे के अत्याधिक भारी सामान को उठाने में लोहे की छीलन तथा लोहे के टुकड़ों आदि को उठाने में किया जाता है ।
ii. इसका उपयोग विद्युत चलित उपकरणों जैसे विद्युतघंटी, पंखा, मिक्सर-ग्राइंडर, टेलीफोन, टेलीग्राफ, स्पीकर आदि में किया जाता है ।
iii. उद्योगों में अचुम्बकीय पदार्थों से चुम्बकीय पदार्थ जैसे लोहा निकिल कोबाल्ट आदि को अलग करने में ।
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction):
जब किसी चालक में विद्युतधारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । इस खोज से प्रभावित होकर इंग्लैंड के फैराडे ने सोचा कि जब विद्युतधारा से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है तो चुम्बकीय क्षेत्र से विद्युतधारा उत्पन्न होनी चाहिए । इसके लिए उन्होंने लगभग 11 वर्ष तक विभिन्न प्रयोग किए ।
इन्हीं दिनों हेनरी ने अमेरिका में इसी संबंध में अनेक प्रयोग किए । इसके परिणामस्वरूप सन् 1831 में फैराडे व हेनरी ने स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हुए ज्ञात किया कि जब एक चुम्बक और चालक तार (विद्युतरोधी लेप चढ़ा हुआ) से बनी बन्द कुण्डली के मध्य आपेक्षिक गति होती है तो विद्युतधारा उत्पन्न होती है जिसे परिपथ में लगे धारामापी से मापा जा सकता है ।
इनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष निम्न प्रकार हैं:
i. यदि कुण्डली और चुम्बक के मध्य सापेक्षिक गति होती रहती है तो विद्युतधारा उत्पन्न होती रहती है ।
ii. चुम्बक व बन्द कुण्डली के मध्य आपेक्षिक गति तेज होने पर कुण्डली में अधिक धारा उत्पन्न होती है और आपेक्षिक गति धीमी होने पर कम धारा उत्पन्न होती है । आपेक्षिक गति शून्य होने पर धारा उत्पन्न नहीं होती ।
iii. इस प्रकार से बन्द कुण्डली में उत्पन्न धारा को प्रेरित विद्युतधारा कहते हैं । इस सिद्धांत को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) कहते हैं ।
iv. यदि आपेक्षिक गति की दिशा बदल दी जाए या चुम्बक के ध्रुव को बदल दिया जाए तो उत्पन्न होने वाली धारा की दिशा भी बदल जाती है ।
v. कुण्डली के लपेटों की संख्या बढ़ा देने पर चुम्बक की शक्ति बढ़ा देने पर तथा आपेक्षिक गति को बढ़ाने पर उत्पन्न होने वाली धारा का मान भी बढ़ जाता है ।
vi. कई यंत्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करते हैं । जैसे- विद्युत जनित्र, ट्रांसफार्मर आदि ।