Read this article in Hindi to learn about:- 1. आसियान (ASEAN): एक उभरता हुआ क्षेत्रीय आर्थिक समूह (ASEAN: An Emerging Regional Economic Group) 2. आसियान: गठन तथा उद्देश्य (ASEAN: Formation and Objectives) 3. आसियान शैली (ASEAN Way) 4. ‘आसियान’ व्यवस्था (ASEAN System) 5. भारत व आसियान : एक सफल बहुआयामी साझेदारी (India and ASEAN: A Successful Multidimensional Partnership).

Contents:

  1. आसियान (ASEAN): एक उभरता हुआ क्षेत्रीय आर्थिक समूह (ASEAN: An Emerging Regional Economic Group)
  2. आसियान: गठन तथा उद्देश्य (ASEAN: Formation and Objectives) 
  3. आसियान शैली (ASEAN –Skills and Its Features)
  4. आसियान व्यवस्था (ASEAN System)
  5. भारत व आसियान : एक सफल बहुआयामी साझेदारी (India and ASEAN: A Successful Multidimensional Partnership).


1. आसियान (ASEAN): एक उभरता हुआ क्षेत्रीय आर्थिक समूह (ASEAN: An Emerging Regional Economic Group):

ADVERTISEMENTS:

आसियान अथवा एसोशिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स प्रशान्त महासागर क्षेत्र में स्थित दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों का संगठन है । इसका मुख्य उद्देश्य दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में आर्थिक सहयोग व विकास को बढ़ाना है । शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त आसियान ने क्षेत्रीय सहयोग व विकास की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है तथा यह आर्थिक सहयोग संगठन विश्व की उभरती हुयी आर्थिक शक्ति बन गया है ।

आसियान के दस देशों का कुल क्षेत्रफल 4.46 मिलियन किलोमीटर है, जो पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का तीन प्रतिशत है । वर्तमान में इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 600 मिलियन है जो विश्व की कुल जनसंख्या का 8.8 प्रतिशत है । 2012 में आसियान देशों का कुल सकल घरेलू उत्पाद 2.3 ट्रिलियन डॉलर था तथा आसियान अर्थव्यवस्था विश्व की आठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है ।

भारत ने भी आसियान के महत्व को देखते हुये 1991 में घोषित अपनी ‘पूरब की ओर देखो की नीति’ के अन्तर्गत गत दो दशकों में आसियान देशों के साथ बहुआयामी साझेदारी को मजबूत करने का प्रयास किया है ।


2. आसियान: गठन तथा उद्देश्य (ASEAN: Formation and Objectives):

ADVERTISEMENTS:

आसियान (ASEAN-Association of South East Asian Nations) की स्थापना 8 अगस्त 1967 को थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक में हुई थी । आरम्भ में इसके पाँच सदस्य थे- थाईलैण्ड, मलेशिया, इन्डोनेशिया, सिंगापुर तथा फिलीपीन्स । बाद में इस संगठन का विस्तार किया गया । वर्ष 1984 में ब्रुनेई, 1995 में वियतनाम, 1997 में लाओस और म्यांमार तथा 1999 में कम्बोडिया ने आसियान की सदस्यता ग्रहण की । इस प्रकार वर्तमान में आसियान में दस सदस्य राष्ट्र हैं ।

आसियान का विस्तार भी शीतयुद्ध की समाप्ति के कारण सम्भव हो सका । इसकी स्थापना के समय थाईलैण्ड तथा फिलीपीन्स के साथ अमेरिका के विशेष सैनिक सम्बन्धों, इन देशों में अमेरिका के सैनिक अड्‌डों तथा अमेरिका के नेतृत्व में सीटो जैसे सैनिक संगठनों की उपस्थिति के कारण आसियान को साम्यवाद विरोधी संगठन के रूप में देखा गया था ।

समीक्षकों अनुसार आसियान का जन्म एक सक्रिय संगठन के स्थान पर प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था । इसका गठन एक सामूहिक सकारात्मक लक्ष्य के स्थान पर किसी के (साम्यवाद के) सामूहिक विरोध स्वरूप हुआ था । लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त आसियान ने क्षेत्रीय सहयोग तथा विकास की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है ।

1967 में हस्ताक्षरित बैंकॉक घोषणा के अनुसार आसियान के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

ADVERTISEMENTS:

1. सदस्य राष्ट्रों में आर्थिक वृद्धि, सामाजिक उन्नति तथा सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना ।

2. दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में शान्ति तथा स्थिरता को सुनिश्चित करना ।

3. आसियान के सदस्य राष्ट्रों को शान्तिपूर्ण तरीकों से अपने मतभेदों पर चर्चा करने व समाधान का अवसर प्रदान करना ।

4. सदस्य राष्ट्रों में सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना ।

5. आसियान देशों में शैक्षणिक, व्यावसायिक, तकनीकि तथा प्रशासनिक मामलों में प्रशिक्षण व शोध सुविधाओं के लिए एक-दूसरे को सहायता प्रदान करना ।

6. दक्षिण-पूर्वी एशिया में विकास व सहयोग के लिये आवश्यक शोध व अध्ययनों (Studies) को प्रोत्साहित करना ।

7. समान उद्देश्य वाले विश्व के अन्य क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ घनिष्ठ व लाभकारी सम्बन्ध विकसित करना तथा उनके साथ सहयोग हेतु संभावनाओं का पता लगाना ।

आसियान के उक्त उद्देश्यों के अध्ययन से स्पष्ट है कि इसमें केवल सदस्य देशों के मध्य आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग ही नहीं किया गया बल्कि इस सहयोग के लिए आवश्यक शोध एवं अध्ययन तथा तकनीकि सहायता पर भी बल दिया गया है । उल्लेखनीय है कि सहयोग की प्रक्रिया को विवादों से मुक्त रखने के लिये राजनीतिक मुद्दों को आसियान के अधिकार क्षेत्र में शामिल नहीं किया गया है ।

आर्थिक समुदाय किसे कहते हैं? (Who are the Economic Community?):

वर्तमान युग राष्ट्रों की पारस्परिक निर्भरता का युग है । कोई भी देश बिना दूसरे के सहयोग के तेजी से विकास नहीं कर सकता । अत: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तीव्र क्षेत्रीय विकास की दृष्टि से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठनों की स्थापना की गयी ।

उदाहरण के लिये यूरोप में यूरोपीय संघ, दक्षिण एशिया में दक्षेस या सार्क, अफ्रीका में अफ्रीकी संघ, दक्षिण-पूर्वी एशिया में आसियान, दक्षिण अमेरिका में अमेरिकी राज्यों का संघ आदि का गठन किया गया ।

इन क्षेत्रीय सहयोग संगठनों का प्राथमिक उद्देश्य सदस्यों के मध्य सहयोग के माध्यम से विकास की गति को बढ़ाना होता है । कई बार ये संगठनों सहयोग की प्रक्रिया से आगे बढ़कर क्षेत्रीय आर्थिक समुदाय की स्थापना का लक्ष्य रखते हैं ।

आर्थिक समुदाय किसी क्षेत्र विशेष के आर्थिक एकीकरण (Economic Integration) की धारण पर आधारित है । आर्थिक समुदाय एक क्षेत्र विशेष के देशों के मध्य सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये वे अपने लिये एक ही करेन्सी या मुद्रा को अपना लेते हैं । उनकी आर्थिक, व्यापार, वित्तीय व मौद्रिक नीतियों में समन्वय की उचित व्यवस्था की जाती है ।

बाह्य विश्व के लिये यह समुदाय आर्थिक दृष्टि से एक ही इकाई का कार्य करता है । लेकिन राजनीतिक व सदस्य राष्ट्र अपनी अलग-अलग नीतियों हैं । वर्तमान में यूरोपियन संघ आर्थिक समुदाय का सफल उदाहरण कहा जा सकता है ।

आसियान भी आर्थिक समुदाय की स्थापना के लिये प्रयासरत है । आर्थिक समुदाय का सभी सबसे बड़ा लाभ यह है कि सभी सदस्य देश एक-दूसरे की विशिष्ट क्षमताओं का लाभ उठाकर सामूहिक सहयोग के माध्यम से विकास कर सकते हैं ।


3. आसियान शैली (ASEAN –Skills and Its Features):

शीतयुद्ध के तनाव तथा वियतनाम युद्ध के कारण शुरू के एक दशक में आसियान को अपने उद्दश्यों में कोई खास सफलता प्राप्त नहीं हुई । 1975 में वियतनाम युद्ध की समाप्ति के उपरान्त सदस्य राष्ट्रों में आर्थिक व राजनीतिक सहयोग को बढ़ाने की प्रक्रिया को गति प्रदान की गई । परिणामत: आसियान देशों का पहला शिखर सम्मेलन फरवरी 1976 में इन्डोनेशिया के शहर बाली में सम्पन्न हुआ ।

इस सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों के शीर्ष नेताओं ने दक्षिण-पूर्व एशिया सद्भाव व सहयोग संधि (TAC- Treaty of Amity and Co-Operation) की संधि तथा आसियान कानकार्ड (ASEAN Concord-I) पर हस्ताक्षर किये जिनका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थायित्व तथा आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना था ।

उल्लेखनीय है कि सद्भाव व सहयोग की इस संधि द्वारा कतिपय सिद्धान्तों को नि धारित किया गया जो आज भी आसियान की कार्यप्रणाली का आधार है तथा इन सिद्धान्तों को ‘आसियान शैली’ (ASEAN Way) की संज्ञा दी जाती है ।

आसियान शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:

1. सभी राष्ट्रों की स्वतंत्रता, सम्प्रभुता, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता तथा राष्ट्रीय पहचान को पारस्परिक सम्मान प्रदान करना ।

2. बाहरी हस्तक्षेप, दबाव तथा धमकी के बिना प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को अपना स्वतंत्र राष्ट्रीय अस्तित्व बनाये रखने का अधिकार ।

3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप ।

4. आपसी विवादों का शान्तिपूर्ण तरीकों से समाधान करना ।

5. सदस्य राष्ट्रों द्वारा दूसरे सदस्यों के विरुद्ध शक्ति के प्रयोग या उसकी धमकी से दूर रहना ।

6. सदस्य राष्ट्रों के बीच प्रभावी सहयोग को सुनिश्चित करना ।


4. आसियान व्यवस्था (ASEAN System):

आसियान व्यवस्था के अंतर्गत आसियान तथा इसके दो सहयोगी संगठनों-आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN Regional Forum) तथा पूर्वी एशिया सम्मेलन (East Asia Summit) को भी शामिल किया जाता है ।

1. आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN Regional Forum):

आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना 1994 में आसियान के प्रयासों से की गई थी । इसमें वर्तमान में 27 सदस्य देश हैं । इनमें से 10 सदस्य देश आसियान के सदस्य हैं तथा शेष 17 सदस्य हैं- आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया, चीन, अमेरिका, युरोपियन संघ, कनाडा, जापान, रूस, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, तीमोर, पापुआ न्यूगिनी, मंगोलिया तथा भारत । भारत ने इसकी सदस्यता चीन के विरोध के बावजूद 1996 में ही प्राप्त कर ली थी तथा वर्तमान में इस क्षेत्र में भारत सुरक्षा मामलों में महत्वपूर्ण भागीदारी है ।

आसियान क्षेत्रीय मंच के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

1. एशिया प्रशांत क्षेत्र में सामान्य हित के सुरक्षा व राजनीतिक मामलों पर चर्चा व विचार-विमर्श करना ।

2. एशिया प्रशांत क्षेत्र में विश्वास निर्माण (Confidence Building) तथा प्रतिरोधात्मक कूटनीति हेतु महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करना ।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सुरक्षा सम्बन्धी मामलों में आसियान क्षेत्रीय मंच कि भूमिका अभी तक अधिक प्रभावी नहीं हो सकी है । इस संगठन की अभी तक केवल मंत्रिस्तरीय बैठकें ही सम्पन्न हो सकी हैं ।

इसके दो प्रमुख कारण हैं:

(i) प्रथम यह कि आसियान द्वारा आर्थिक सहयोग के मुद्दों को अधिक प्राथमिकता दी गई है तथा राजनीतिक तथा सुरक्षा सम्बन्धी मामले उसकी प्राथमिकता सूची में नहीं रहें ।

(ii) दूसरा कारण इस क्षेत्र में निवासी शक्ति (Resident Power) के रूप में अमेरिका की प्रभावशाली सैनिक उपस्थिती है । इस क्षेत्र के अधिकांश देश अब भी अपनी सुरक्षा हेतु अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर निर्भर हैं । फिलीपीन्स, थाईलैण्ड, दक्षिण कोरिया, जापान आदि के साथ अमेरिका की सैनिक सुरक्षा सन्धियाँ भी अस्तित्व में हैं ।

2. पूर्वी एशिया सम्मेलन (East Asia Conference):

यूरोपियन समुदाय की तर्ज पर पूर्वी एशिया में एकीकृत समुदाय की स्थापना के लिए आसियान द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं । पूर्वी एशिया समुदाय की के लिए आसियान द्वारा पूर्वी एशिया सम्मेलन की स्थापना की गई है । पूर्वी एशिया सम्मेलन में आसियान के 10 देशों सहित देश भी शामिल हैं- चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, तथा भारत ।

प्रथम पूर्वी एशिया सम्मेलन का आयोजन 2005 में मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में किया था । उल्लेखनीय है कि भारत पूर्वी एशिया सम्मेलन का संस्थापक देश है तथा नियमित रूप से इसके सम्मेलनों व अन्य क्रियाकलापों में लेता रहा है । पूर्वी एशिया समुदाय का विचार सर्वप्रथम 1991 में मलेशिया के राष्ट्रपति महाथीर ने किया था ।

प्रथम शिखर में पाँच मुद्दों को प्राथमिकता प्रदान की गई थी- वित्तीय स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक एकीकरण, आर्थिक विकास, तथा व्यापार एवं निवेश ।

आसियान व्यवस्था के तीन स्तम्भ (Three Columns of ASEAN System):

2007 में सम्पन्न 12वें शिखर सम्मेलन में आसियान समुदाय की स्थापना का संकल्प किया गया था । आसियान द्वारा 2015 तक आसियान आर्थिक समुदाय की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है । इसके लिए तीन स्तम्भों को चिह्नित किया गया है ।

जो निम्नलिखित हैं:

i. आसियान राजनीतिक-सुरक्षा समुदाय (ASEAN Political-Security Community):

राजनीतिक सुरक्षा तथा शान्ति प्रजातन्त्र तथा पर्यावरण के क्षेत्र में विचार विमर्श और को बढाना ।

ii. आसियान आर्थिक समुदाय (ASEAN Economic Community):

आर्थिक विकास, वित्तीय स्थिरता, सुशासन, तथा ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में प्रयास करना ।

iii. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय (ASEAN Social-Cultural Community):

आसियान क्षेत्र में लोक कल्याण के बीच आपसी सम्पर्क सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देना । इन तीन दिशाओं में सहयोग था एकीकरण के माध्यम से ही आसियान समुदाय की स्थापना की जा सकती है । वर्तमान में आसियान इन तीनों स्तम्भों को मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत है ।

आसियान शैली के उक्त सिद्धांतों का परिणाम यह हुआ कि आसियान द्विपक्षीय राजनीतिक व सैनिक विवादों में उलझे बिना आर्थिक प्रगति व सहयोग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में सफल रहा । आसियान का दूसरा शिखर सम्मेलन 1977 में मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में सम्पन्न हुआ जिसमें वार्ताकार राष्ट्रों के साथ भागीदारी (Dialogue Partner) की व्यवस्था आरम्भ की गई ।

वर्ष 1979 में वियतनाम द्वारा या में सैनिक हस्तक्षेप के मामले पर आसियान को पहली राजनीतिक सफलता हासिल हुई । आसियान ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वियतनाम को अलग-थलग करने में सफलता प्राप्त की तथा आसियान से के परिणामस्वरूप ही वर्ष 1989 में वियतनाम ने कम्बोडिया से सेनाएं वापस ले लीं तथा बाद में दोनों आसियान के सदस्य बन गए ।

आर्थिक एकीकरण की दृष्टि से 1992 में चौथे शिखर सम्मेलन में ‘आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र’ (ASEAN Free Trade Area) के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया, जो 1 जनवरी, 2003 से पूर्ण रूप से लागू हो चुका है । इससे सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यापार तथा आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिला है । आसियान ने 2013 तक अन्य देशों- चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के साथ मुक्त व्यापार समझौते पूरे कर लिये हैं ।

1997 के शिखर सम्मेलन में ‘विजन दस्तावेज-2020’ को स्वीकार किया गया था, जिसमें आसियान क्षेत्र में शान्ति सम्पन्नता व स्थिरता बढ़ाने के लिये आपसी सहयोग को मजबूत बनाने पर बल दिया गया है ।

आसियान को प्रभावी बनाने के लिए तथा इसके कार्य क्षेत्र का विस्तार करने के लिए 1997 में ‘आसियान+3’ के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया जिसके अन्तर्गत आसियान के साथ तीन देशों- चीन, जापान तथा दक्षिण कोरिया को सहयोगी सदस्यों के रूप में स्थान दिया गया । आसियान+3 की व्यवस्था अब भी लागू है तथा ये तीनों देश आसियान के क्रियाकलापों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ।

आसियान शिखर सम्मेलन (ASEAN Summit Seminar):

उल्लेखनीय है कि आसियान में शिखर सम्मेलन ही शीर्ष निर्णयकारी संस्था है, जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष/राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं । 2007 में आसियान का चार्टर स्वीकार किया गया जिसमें यह प्रावधान है कि इसके शिखर सम्मेलन 2007 से वर्ष में दो बार आयोजित किये जायेंगे । अब तक के शिखर सम्मेलनों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है ।


5. भारत व आसियान : एक सफल बहुआयामी साझेदारी (India and ASEAN: A Successful Multidimensional Partnership):

उत्तर-शीत युद्ध काल में भारत ने अपनी ‘पूर्व की ओर देखो की नीति’ के अन्तर्गत पूर्वी एशिया विशेषकर आसियान देशों के साथ आर्थिक, सामरिक व सांस्कृतिक सम्बन्धों को मजबूत बनाने की प्रक्रिया आरम्भ की है । यद्यपि इन देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक सम्बन्ध रहे हैं लेकिन शीत युद्ध की विवशताओं के कारण भारत इन देशों के साथ 1950 से 1990 के बीच मजबूत सम्बन्धों का विकास नहीं कर पाया ।

1991 में शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त 1992 में ही भारतीय प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने इस क्षेत्र की यात्रा की तथा इसी वर्ष भारत आसियान का वार्ताकार सदस्य देश बन गया । 2002 में भारत व आसियान देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलनों की शुरुआत हुई । 2009 में भारत व आसियान के बीच मुक्त व्यापार समझौते अथवा फ्री ट्रेड एग्रीमेण्ट पर हस्ताक्षर हुये । 2012 में दोनों पक्षों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार 80 बिलियन डॉलर था जिसे 2015 तक बढ़ाकर 100 बिलियन डॉलर करने कर लक्ष्य रखा गया है ।

दोनों के मध्य संबन्धों की शुरुआत की 20वीं वर्षगांठ पर 20 दिसम्बर 2012 को भारत व आसियान का विशेष स्मारकीय शिखर सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया जिसमें 10 आसियान सदस्यों के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया । इस शिखर सम्मेलन की मुख्य थीम थी- शान्ति तथा सहभागी सम्पन्नता में भागीदारी । आसियान के साथ ही भारत इसके सहयोगी उपक्रम पूर्वी एशिया सम्मेलन तथा इसकी सुरक्षा व्यवस्था आसियान क्षेत्रीय मंच में भी सक्रिय सहभागिता कर रहा है ।

गत बीस वर्षों में भारत व आसियान देशों के साथ व्यापारिक आर्थिक, सामरिक, विकास साझेदारी सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में व्यापक सहयोग को बढ़ाने में सफलता मिली है । वर्तमान में भारत-आसियान के मध्य बढ़ती हुई बहुआयामी साझेदारी भारत की पूर्व की ओर देखो की नीति की सफलता का द्योतक है ।


Home››Political Science››ASEAN››