Read this article in Hindi to learn about the constitutional system of Britain.
ब्रिटिश संविधान अलिखित संविधान है । अब प्रश्न उठता है कि जहाँ कोई लिखित संविधान नहीं है, वही किसी विषय की सांविधानिक स्थिति का पता लगाने के लिए कौन-सा तरीका अपनाना होगा ।
प्रस्तुत संदर्भ में यह कह सकते हैं कि ऐसी समस्या पैदा होने पर ब्रिटिश संविधान के 5 स्रोत में से उपयुक्त स्रोत या स्रोतों पर विचार करना जरूरी होगा:
1. संविधान का एक स्रोत संसदीय अधिनियम है ।
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2. संविधान का दूसरा स्रोत न्यायालयों के निर्णय हैं ।
3. संविधान का तीसरा स्रोत लोक-विधि (Common Law) के सिद्धांत हैं । लोक-विधि रीति-रिवाज से जुड़े हुए कानूनी सिद्धांत है जो न्यायालयों के विचार से संपूर्ण देश में समान रूप से लागू होते हैं ।
4. संविधान का चौथा स्रोत संसद के नियम और रीति-रिवाज हैं ।
5. अंतत: संविधान की परिपाटियाँ या प्रथाएं सांविधानिक व्यवहार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं ।
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संविधान की प्रथाओं के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण इस तरह दे सकते हैं:
(i) वर्ष में कम से कम एक बार अधिवेशन होना जरूरी है ।
(ii) कॉमन सभा में बहुमत के नेता को महारानी के द्वारा प्रधानमंत्री का पद संभालने के लिए आमंत्रित किया जाता है ।
(iii) जो विधेयक, सदन के दोनों सदनों में विधिवत् पारित हो जाता है, उसे सम्राट या महारानी के पास समनुमति के लिए भेजा जाता है ।
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(iv) इनके हस्ताक्षर के बाद वह कानून बन जाता है ।
(v) नीति संबंधी विषयों पर मंत्रिमंडल संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है ।
(vi) यदि नीति के किसी मुख्य मुद्दे को लेकर सरकार पर से कॉमन सभा का विश्वास उठ जाए तो सरकार को त्यागपत्र देना पड़ता है ।
(vii) यदि सरकार अपना कार्यक्रम लागू करते समय यह अनुभव करें कि कॉमन सभा इसमें बाधा डाल रही है तो प्रधानमंत्री समय से पहले संसद को भंग करने के लिए महारानी को सलाह दे सकता है ताकि उसका दल नया जनादेश प्राप्त कर सके ।
(viii) कॉमन्स सभा में जो सभाध्यक्ष (Speaker) चुना जाता है, वह जब तक चाहे, सभाध्यक्ष रह सकता है ।
(ix) नया चुनाव होने पर वह जिस निर्वाचन क्षेत्र से खड़ा होता है, वहाँ से अन्य सभी उम्मीदवार अपना नाम वापस ले लेते हैं । अत: वह संसद सदस्य के रूप में निर्विरोध चुना जाता है ।
(x) फिर सभाध्यक्ष के चुनाव के समय अन्य कोई उम्मीदवार उसके विरुद्ध खड़ा नहीं होता । अत: वहाँ भी निर्विरोध चुना जाता है और जब लॉर्ड सभा उच्च न्यायालय के रूप में कार्य करती है, तब उसमें लॉर्ड चांसलर के अलावा केवल विधि-लॉर्ड (Law Lords) उपस्थित होते हैं; अन्य सब लॉर्ड अनुपस्थित रहते हैं ।
राजमुकुट (The Crown):
ब्रिटिश संसदीय प्रेणाली के अंतर्गत राजमुकुट को राज्य का अध्यक्ष माना जाता है पर चूँकि राजमुकुट की शक्तियाँ और कृत्य संविधान के द्वारा निर्धारित कर दिए गए हैं, इसलिए ब्रिटिश राजनीतिक प्रणाली को सांविधानिक राजतंत्र या सीमित राजतंत्र की संज्ञा दी जाती है ।
औपचारिक दृष्टि से ब्रिटिश सरकार को ‘महारानी की सरकार’ या ‘महागरिमामयी की सरकार’ (Her Majesty’s Government) कहा जाता है, परंतु व्यवहार के धरातल पर वहाँ महारानी केवल संसद या मंत्रिमंडल के निर्णयों का अनुमोदन करती है ।
राजमुकुट ब्रिटिश राज्य की शक्ति, दायित्व, प्रभुसत्ता और गौरव का प्रतीक है । सम्राट् या सम्राज्ञी वे मनुष्य हैं जो समय-समय पर राजमुकुट को धारण करके उसके कृत्यों को सम्पन्न करते हैं ।
दूसरे शब्दों में, सम्राट् एक व्यक्ति है जबकि राजमुकुट एक संस्था है । संस्था का महत्व व्यक्ति से बढ़कर है । सम्राट बदलते रहते हैं, राजमुकुट अपनी जगह स्थिर रहता है । सम्राट की मृत्यु हो सकती है, परंतु राजमुकुट को ‘अमर’ कहा जाता है ।
सम्राट की स्थिति औपचारिक राज्याध्यक्ष की है जिसे अपने कार्य सम्पन्न करते समय संविधान की व्यवस्थाओं और प्रथाओं तथा सरकार की सलाह को ध्यान में रखना पडता है । दूसरी ओर, राजमुकुट राज्य की सम्पूर्ण कार्यकारी शक्तियों और दायित्वों का सूचक है ।
अत: यह संपूर्ण ब्रिटिश शासन का प्रतीक है । सरकार की शक्तियाँ राजमुकुट की शक्तियाँ हैं; सरकार के दायित्व राजमुकुट के दायित्व हैं । अत: कानून और व्यवहार की दृष्टि से सम्राट की शक्तियाँ नाममात्र की शक्तियों रह गई हैं, परंतु राजमुकुट की शक्तियाँ और दायित्व राज्य की यथार्थ शक्तियों और दायित्वों का सूचक हैं ।
राजमुकुट के कृत्य:
ब्रिटिश सरकार की समस्त शक्तियों का प्रयोग ‘राजमुकुट’ के नाम पर किया जाता है; अत: ब्रिटिश सरकार के सारे कृत्य राजमुकुट के कृत्य माने जाते हैं ।
‘राजमुकुट’ के मुख्य-मुख्य कृत्यों का विवरण निम्नलिखित है:
(i) सरकार के समस्त अधिकारियों की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाना,
(ii) सेनाओं का संचालन, युद्ध और शांति की घोषणा,
(iii) राजदूतों, मंत्रियों और वाणिज्यदूतों की नियुक्ति तथा विदेशी राजदूतों का स्वागत,
(iv) न्याय का प्रशासन क्योंकि राजमुकुट को न्याय का स्रोत माना जाता है; न्यायाधीश उसी के नाम से न्याय करते हैं; वही अपराधी को दंड दे सकता है, क्षमादान कर सकता है या उसके दंड को रोक सकता है;
(v) नागरिकों को उपाधियाँ या सम्मान प्रदान करना या उन्हें लॉर्ड के रूप में नियुक्त करना;
(vi) कॉमन्स सभा के अधिवेशन बुलाना, सत्रावसान करना या सदन को भंग करना, और
(vii) राजमुकुट को इंग्लैण्ड के चर्च का अध्यक्ष माना जाता है; इस हैसियत से चर्च जो कृत्य सम्पन्न करता है, उन्हें भी राजमुकुट के कृत्य मान सकते हैं ।
ब्रिटेन की विधायिका (UK Legislature):
ब्रिटिश पार्लियामेंट को विश्व के सभी संसदों की जननी कहा गया है । अमेरिकी कांग्रेस की भांति ब्रिटिश संसद के भी दो सदन हैं- लॉर्ड सभा और कॉमन सभा । कॉमन्स सभा निम्न सदन है जबकि लार्ड सभा उच्च सदन है जोकि एक वंशानुगत एवं विशाल सदन है ।
ए.वी. डायसी के अनुसार- कानूनी दृष्टि से संसद की प्रभुसत्ता इंग्लैंड की राजनीतिक संस्थाओं की प्रमुख विशेषता है । इंग्लैंड के कानून के अंतर्गत किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था को मान्यता नहीं दी गई है जिसे संसद के द्वारा बनाए गए कानून को रह करने या उससे ऊँचा कानून बनाने का अधिकार हो ।
विलियम ब्लैक्स्टन के शब्दों में- संसद को कानून बनाने, उसकी पुष्टि, विस्तार या व्याख्या करने का सर्वोपरि अधिकार है । ये कानून किसी भी तरह के हो सकते हैं । यह ऐसा सबकुछ कर सकती है जो प्राकृतिक दृष्टि से असंभव न हो ।
ब्रिटिश संसद को प्रभुसत्ता-संपन्न मानने का मुख्य कारण यह है कि वही कोई लिखित संविधान नहीं है । शासन-प्रणाली से जुड़ी हुई प्रथाएं, न्यायिक दृष्टांत और संसद के अधिनियम ही वही के संविधान के आधार हैं ।
संसद के अधिनियम कानून की दृष्टि से सर्वोपरि हैं । इनके माध्यम से प्रथाओं को भी बदला जा सकता है या रह किया जा सकता है । न्यायपालिका को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी आधार पर संसद के अधिनियमों को विधि-बाह्य (Extra Legal) या शक्ति-बाह्य (Ultravires) घोषित कर दे, अर्थात् यह निर्णय दे सके कि प्रस्तुत अधिनियम का निर्माण संसद की शक्ति से बाहर है ।
1689 के अधिकार-पत्र ने इंग्लैंड में संवैधानिक शासन की नींव डाली । हालांकि पहले पहल लॉर्ड सभा की शक्तियाँ अधिक थीं परंतु बाद में लॉर्ड सभा के अधिकार बहुत ज्यादा सीमित कर दिए गए और अब कॉमन सभा के पास ही वास्तविक शक्तियाँ हैं ।
ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों की रचना, संगठन एवं उनकी शक्तियों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:
1. कॉमन्स सभा:
कॉमन्स सभा के सदस्य निर्वाचित होकर आते हैं । प्रचलित भाषा में इन्हें एम.पी. या संसद-सदस्य कहा जाता है । वर्तमान समय में कॉमन्स सभा के सदस्यों की संख्या है । उसे बाहर के दबावों से मुक्त रखने के लिए कुछ ‘विशेषाधिकार’ प्राप्त होते हैं । उसे दीवानी कार्रवाई के अंतर्गत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता । ससद में अपने कर्तव्यपालन के दौरान वह जो भाषण देता है या अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेता है, उनके कारण उस पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता ।
कॉमन्स सभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का है, परंतु उसे इससे पहले भी भंग किया जा सकता है, या संसदीय अधिनियम के द्वारा इसका कार्यकाल बढाया जा सकता है । कॉमन्स सभा अपने अध्यक्ष या सभाध्यक्ष के अनुशासन में कार्य करती है ।
इसकी मुख्य-मुख्य शक्तियाँ और कृत्य इस तरह हैं:
विधि-निर्माण:
कॉमन्स सभा का मुख्य कार्य विधि-निर्माण या कानून बनाना है । संसदीय अधिनियम, 1911 के अनुसार, धन-विधेयक (Money Bills) केवल कॉमन्स सभा से ही शुरू किए जा सकते हैं । वहाँ पारित होने के बाद इन्हें लॉर्ड सभा में भेजा जाता है परंतु लॉर्ड सभा इन्हें अधिक-से-अधिक एक महीने तक रोक सकती है । इस तरह देश की वित्त-व्यवस्था पर कॉमन्स सभा का पूर्ण नियंत्रण है ।
साधारण विधेयक किसी भी सदन से शुरू किए जा सकते हैं, परंतु अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक कॉमन्स सभा से ही शुरू किए जाते हैं । कोई भी विधेयक दोनों सदनों में पारित होने के बाद राजकीय समनुमति के लिए भेजा जाता है । यह समनुमति मिलने के बाद वह कानून बन जाता है । साधारण विधेयक को लॉर्ड सभा अधिक-से-अधिक एक वर्ष तक रोक सकती है ।
1949 के संसदीय अधिनियम के अनुसार, यदि कॉमन्स सभा किसी साधारण विधेयक को एक वर्ष की अवधि के भीतर लगातार दो अधिवेशनों में पारित कर दे तो वह कानून बन जाएगा, भले ही उस पर लॉर्ड सभा की स्वीकृति न मिल पाए । इस तरह विधि-निर्माण की प्रक्रिया में कॉमन्स सभा की इच्छा को प्रवरता प्राप्त है ।
जहाँ तक धन-विधेयक का संबंध है, लॉर्ड सभा उस्ने अधिक-से-अधिक एक महीने तक रोक सकती है । यदि वह उसे इस अवधि में पारित नहीं करती तो उसे राजकीय समनुमति के लिए भेजा जा सकता है; यदि वह इसे अपनी सिफारिशों के साथ लौटा देती है तो कॉमन्स सभा उन्हें मानने या न मानने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है । इस तरह वित्तीय मामलों में कॉमन्स सभा की शक्तियाँ सर्वोपरि हैं ।
प्रशासन की निगरानी:
कॉमन्स सभा सरकार के सारे कामकाज की निगरानी करती है । मंत्रिमंडल तभी तक अपने पद पर बना रह सकता है जब तक उसे कॉमन्स सभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त हो । अत: सरकार कॉमन्स सभा की कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिए निरंतर सजग और प्रयत्नशील रहती है ।
विधेयकों पर वाद-विवाद के समय विपक्ष के सदस्य सरकार की नीतियों और उसकी कार्यकुशलता की तीखी आलोचना करते हैं । उसका उपयुक्त उत्तर देना संबद्ध मंत्री का दायित्व है ।
प्रश्न-काल के दौरान कॉमन्स सभा के सदस्य मंत्रियों से उनके विभागों के कामकाज के बारे में प्रश्न पूछ सकते हैं । उन्हें संतुष्ट करना मंत्रियों का कर्त्तव्य है । गैर-सरकारी सदस्य सार्वजनिक महत्व के अत्यावश्यक मामलों की चर्चा के लिए सदन में स्थगन प्रस्ताव या काम-रोको प्रस्ताव रखकर सरकार की गलतियों का पर्दाफाश कर सकते हैं ।
विपक्ष के सदस्य अनुदान-मांगों पर कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत करके सरकारी विभागों की कटु आलोचना कर सकते हैं, या अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करके सरकार को गिराने की कोशिश कर सकते हैं । विपक्ष का मुख्य कार्य संसद में राष्ट्रहित और जनमत की दृष्टि से सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करना है । विपक्ष की संयत और रचनात्मक आलोचना सरकार के लिए अत्यंत मूल्यवान सिद्ध होती है ।
यही कारण है कि ब्रिटेन में विपक्ष को महागरिमामयी का निष्ठावान विपक्ष कहा जाता है । ब्रिटिश संसद में विपक्ष के नेता को बाकायदा वेतन दिया जाता है क्योंकि यह मानकर चलते हैं कि सदन में उसका कार्य सत्तारूढ़ सरकार के किसी सदस्य से कम महत्वपूर्ण नहीं है ।
विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं का समूह अपने-आपको छाया-मंत्रिमंडल (Shadow Cabinet) के रूप में संगठित कर लेता है । इसके सदस्य विशिष्ट विषयों पर-जैसे कि वित्त, विदेशी मामलों, प्रतिरक्षा, इत्यादि के संदर्भ में अपने दल के प्रवक्ता की भूमिका निभाते हैं । सदन में सरकार की हार हो जाने पर इस छाया-मंत्रिमंडल को सरकार बनाने का अवसर दिया जाता है ।
2. लॉर्ड सभा:
इंग्लैंड में एकात्मक शासन प्रणाली (Unitary Government) प्रचलित है जिसमें साधारणत: दूसरे सदन की जरूरत नहीं होती परंतु वहाँ ऐतिहासिक कारणों से लॉर्ड सभा के रूप में दूसरा सदन चला आ रहा है, और वह आज भी बना हुआ है ।
विश्व में लॉर्ड सभा एकमात्र ऐसा द्वितीय सदन है जिसमें सदस्यों की संख्या प्रथम सदन से अधिक है । इसमें जनसाधारण के निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं होते, बल्कि देश के कुछ ऐसे गण्यमान्य लोग होते हैं जिन्हें या तो वंशपरंपरा से लॉर्ड की पदवी मिली हुई है, या वे पुरोहितवर्ग के उच्चाधिकारियों के नाते लॉर्ड सभा के सदस्य माने जाते हैं, या फिर उन्हें विशेष योग्यताओं, देश-सेवा, इत्यादि के आधार पर जीवनभर के लिए लॉर्ड के रूप में मनोनीत कर दिया जाता है । अक्टूबर, 1999 के बाद वंशपरंपरागत लार्डों को लॉर्ड सभा में बैठने का अधिकार नहीं रहा है ।
लॉर्ड सभा के सदस्यों की संख्या नियत नहीं है । इस सभा के सदस्यों के नाम से पहले सम्मानपूर्वक ‘लॉर्ड’ शब्द का प्रयोग किया जाता है; स्त्रियों के लिए इसकी जगह ‘लेडी’ शब्द का प्रयोग प्रचलित है । वस्तुत: बहुत कम लॉर्ड इस सभा में कोई सक्रिय भूमिका निभाते हैं ।
इनमें 9 विधि- लार्ड भी सम्मिलित हैं जिनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है । न्यायिक विशेषज्ञ होने के कारण इन्हें आजीवन नियुक्ति प्रदान की जाती है । लॉर्ड सभा अध्यक्ष को लार्ड चांसलर कहा जाता है ।
विधि-निर्माण के क्षेत्र में लॉर्ड की शक्तियाँ बहुत सीमित हैं परंतु इस सभा में विधेयकों पर उच्च स्तर का विचार-विमर्श होता है । इससे कई बार ऐसी महत्वपूर्ण बातें प्रकाश में आ जाती हैं जो कॉमन्स सभा के अत्यंत व्यस्त सदस्यों के ध्यान से छूट सकती थीं । इसके अलावा, राजनीतिक दबावों से मुक्त रहने के कारण लॉर्ड सभा अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर तटस्थ भाव से विचार कर सकती है ।
आर.सी. मेक्रिडीस के अनुसार- लॉर्ड सभा की सबसे मुख्य शक्ति न्यायिक शक्ति है । यह इंग्लैंड का सर्वोच्च न्यायाधिकरण और अंतिम अपील-न्यायालय है । एक प्रथा के अनुसार, जब लॉर्ड सभा उच्च न्यायालय के रूप में कार्य करती है, तब उसमें लॉर्ड चांसलर के अलावा केवल विधि-लॉर्ड उपस्थित होते हैं ।
लॉर्ड सभा के सदस्य राजनीति में भाग नहीं ले सकते परंतु लॉर्ड चांसलर मंत्रिमंडल का सदस्य होता है, और (कॉमन्स सभा के अध्यक्ष के विपरीत) वह लॉर्ड सभा के वाद-विवाद में सक्रिय भाग लेता है । 1963 के एक अधिनियम के अंतर्गत कोई भी लॉर्ड अपनी पदवी का त्याग करके राजनीति के मैदान में उतर सकता है, और राजनीतिक पद का उम्मीदवार हो सकता है ।
लॉर्ड सभा को कायम रखने के विरूद्ध मुख्य तर्क यह है कि यह गैर-लोकतंत्रीय सदन है; यह धनिक वर्ग और रूढ़ितादी विचारधारा का गढ़ है परंतु यह सिद्ध करना कठिन है कि लॉर्ड सभा के अस्तित्व के कारण ब्रिटिश राजनीति में धनिक वर्ग के हितों को प्रधानता दी जाती है ।
वस्तुत: लॉर्ड सभा की शक्तियाँ इतनी सीमित हैं कि वह सर्वसाधारण की इच्छा को कार्यान्वित करने में कोई विशेष बाधा उपस्थित नहीं करती । चूंकि लॉर्ड सभा कभी भंग नहीं होती, इसलिए राजमुकुट की तरह यह भी शासन की निरंतरता का साधन बनी हुई है । फिर, लॉर्ड सभा में विचार-विमर्श इतना उच्च कोटि का होता है कि वह देश के शासन को चलाने में महत्वपूर्ण सिद्ध होता है ।
राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर जो प्रवर समितियाँ बनाई जाती हैं, उनके कार्य में लॉर्ड सभा के सदस्य विशेष योगदान देते हैं । अंतत: यह देश के प्रतिभाशाली लोगों को सम्मान और मान्यता प्रदान करने का उपयुक्त साधन भी बनी हुई है । यह देश को उनकी योग्यता से लाभ उठाने का अवसर प्रदान करती है ।
प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल:
प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल ब्रिटेन की यथार्थ कार्यपालिका हैं । प्रधानमंत्री को शासन का अध्यक्ष माना जाता है । संसदीय प्रथा के अनुसार, आम चुनाव के बाद जब नई संसद-अर्थात नई कॉमन्स सभा का गठन होता है, तब महारानी इस सदन में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री का पद संभालने के लिए आमंत्रित करती हैं । इसके बाद प्रधानमंत्री अपनी सरकार के अन्य मंत्रियों के नाम महारानी को औपचारिक अनुमोदन के लिए भेजता है ।
इनमें से अधिकांश मंत्री कॉमन्स सभा में प्रधानमंत्री के अपने दल के सदस्यों में से चुने जाते हैं । जब अनेक दलों की मिलीजुली सरकार बनाई जाती है, तब संसद में इन दलों के समूह के सर्वसम्मत नेता को प्रधानमंत्री बनाया जाता है और अन्य मंत्री प्रधानमंत्री की सलाह पर इन दलों के संसद-सदस्यों में से नियुक्त किए जाते है ।
इन मंत्रियों का एक छोटा-सा समूह-जिसमें प्रधानमंत्री समेत 16 से 25 तक मंत्री रहते हैं- एक अंतरंग, नीति-निर्माण मंडली के रूप में नियुक्त किया जाता है; इन्हें शासन के सबसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपे जाते हैं । इन मंत्रियों के समूह को ‘मंत्रिमंडल’ कहा जाता है । देखा जाए तो मंत्रिमडल सरकार के ढांचे की आधारशिला है ।