Read this article in Hindi to learn about:- 1. विकास प्रशासन का अर्थ (Meaning of Development Administration) 2. विकास प्रशासन की परिभाषाएं (Definitions of Development Administration) 3. अवधारणा (Concept) and Other Details.
विकास प्रशासन का अर्थ (Meaning of Development Administration):
लोक प्रशासन में 1950 के दशक में प्रकट हुई विकास प्रशासन की अवधारणा का इतना विकास हुआ है कि उसे ”विशिष्ट कोटि के लोक प्रशासन” की संज्ञा जाने लगी । विकास प्रशासन वस्तुत: राष्ट्र निर्माण और सामाजिक-आर्थिक प्रगति से संबंधित अवधारणा है जो एकमात्र “विकास” को समर्पित है, लेकिन इस विकास के अर्थ और दायरे को लेकर विद्वानों में सैद्धान्तिक मतभेद रहे हैं ।
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1950 के दशक को उपनिवेशवाद से मुक्ति का तथा उदयीमान स्वतन्त्र राष्ट्रों का दशक कहा जा है, क्योंकि विश्व युद्ध (1939-45) के बाद भारत, इन्डोनेशिया, विएतनाम जैसे अनेक राष्ट्र उपनिवेशवाद के चंगुल से निकलकर स्वतन्त्र हुए ।
एशिया, अफ्रीका, द. अमेरिका में सर्वत्र ही धीरे-धीरे शोषण की यह चादर सिमटने लगी । तीसरी दुनिया के इन राष्ट्रों की कमोबेश एक समान सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयाँ थी और इनकी ज्वलन्त समस्याऐं अपना हल इन राष्ट्रों के राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आदि ढाँचों में तीव्र परिवर्तन में ही ढूँढ रही थी । यद्यपि इन देशों के राष्ट्रीय विकास एजेन्डे में योजनाओं को लेकर विभिन्नताएं मौजूद थी, तथापि विकास हेतु इनकी संरचनात्मक पहल के अनेक लक्षण समान रहे हैं ।
ईराशार कैन्सकी ने ऐसे पाँच लक्षण बताये है जो विकासशील देशों के ”विकास-प्रतिमान” को प्रतिबिम्बित करते हैं:
1. विकास के लक्ष्यों पर व्यापक सर्व सम्मति ।
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2. नेतृत्व के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का सहारा, सरकारी अंगों में एक समान विकास का अभाव तथा नौकरशाही पर अधिक निर्भरता ।
3. राजनैतिक अस्थिरता, आर्थिक निराशाओं, नस्लीय-जातिय झगड़ों आदि की बारम्बरता ।
4. दो प्रकार के अभिजन वर्ग (नगरीय और ग्रामीण) और उनकें मध्य भारी दूरी ।
5. असंतुलित और असमान विकास, भ्रष्टाचार और भाई भतिजावाद की प्राबल्यता, करिश्माई राजनीतिक नेतृत्व आदि ।
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतन्त्र हुऐ इन राष्ट्रों को विरासत में वह औपनिवेशिक प्रशासनिक तन्त्र विरासत में प्राप्त हुआ जिसनें अब तक जनता के लिए विकास कार्यों के स्थान पर अपने औपनिवेशिक स्वामी की सेवा के लिऐ नियमिकीय कार्यों को सम्पन्न करने की विशेषताएं ही प्राप्त की थी ।
उसमें नियमिकीय कार्यों के लिए आवश्यक अधिकारिता का विकास हुआ था, जनता के प्रति कर्तव्य भावना का नहीं । इन राष्ट्रों में स्वतंन्त्रता संघर्ष का इतिहास कुछ कम और अधिक मात्रा में लगभग समान रहा था और जनता को स्वाधीन सरकारों से प्राप्त होने वाली सुविधाओं, स्वतन्त्रताओं, प्रशासन में सहभागिता आदि के बारे में इस दौरान बताया गया था ।
अब जनता इनकी स्वाभाविक आशाऐं अपनी चुनी सरकारों से करने लगी । लेकिन राजनीतिक नीति-निर्धारकों ने शीघ्र ही यह जाना कि जो प्रशासन विरासत में मिला है, वह औपनिवेशिक सकीणर्ताओं से ग्रस्त है और जब तक उसमें विकास कार्यों के लिऐ प्रतिबद्धता, योग्यता आदि का विकास नहीं हो जाता वह जनता के लिऐ किये जाने वाले विकास कार्यों को योजनानूरूप क्रियान्वित करने में सफल नहीं होगा ।
यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि दोनों तरह की समस्याऐं इन राष्ट्रों के समक्ष लगभग समान समय पर उपस्थित हुई थी । प्रथम, इन्हें व्यापक पैमाने पर विकास कार्य करना था जिनका अब तक जनता के हितार्थ क्रियान्वयन नहीं हुआ था अपितु अल्पमात्रा में जो बुनियादी संरचना विकसित हुई थी वह साम्राज्यवादी दृष्टिकोण से प्रेरित थी ।
द्वितीय, ऐसे विकास कार्यों के लिऐ विरासत में प्राप्त प्रशासनिक संगठन का ढाँचा सर्वथा योग्य नहीं था । विकास कार्य की महती जरूरत और उसके लिऐ अपेक्षित संगठन, दोनों के मध्य गहरी खाई ने समस्या को अधिक संकटग्रस्त कर दिया था । ऐसे समय व्यवहारिक तौर पर विकास प्रशासन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी ।
विकास प्रशासन की परिभाषाएं (Definitions of Development Administration):
विकास प्रशासन की परिभाषा पर मतैक्यता का अभाव रहा है । इसे सीमित और व्यापक दो अर्थों में परिभाषित किया जाता है । प्रो. मांटगोमरी इसकी सीमित परिपेक्ष्य में परिभाषित करते है । उनके शब्दों में- विकास प्रशासन मुख्य रूप से आर्थिक क्षेत्र में योजनाबद्ध परिवर्तन लाता है और आंशिक रूप से सामाजिक सेवा में । उनके अनुसार विकास प्रशासन का संबंध राजनीतिक क्षमताओं के बढ़ाने से नहीं है ।
इससे यह आशय भी है कि प्रशासनिक क्षमता का विकास भी विकास प्रशासन का ध्येय नहीं है । पाई पानिन्दकर मांटगोमरी की आलोचना करते है क्योंकि इसमें संरचना-परिवर्तन की उपेक्षा की गयी है । पानिन्दकर के अनुसार- ”विकास प्रशासन का संबंध उस संरचना, संगठन और व्यवहार से है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिये सरकारी योजनाओं कार्यक्रमों को पूरा करने के लिये आवश्यक है ।”
फ्रेडरिग्स और जी.एफ. गाण्ट ने भी इसी तरह की परिभाषायें दी है । प्रो. विडनर- ”विकास प्रशासन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि प्रगतिशील लक्ष्यों को चुनने और पूरा करने हेतु संगठन का निर्देशन है । इसका जोर लोक प्रशासन प्रणाली में सुधार करने पर है । उन्हीं के शब्दों में वि.प्र. लक्ष्योन्मुख, कार्योन्मुख व्यवस्था है । इसका संबंध विकास के लिये अधिकाधिक नवीन प्रयोग करने से है ।”
मांटिर्न लेंडयू- ”विकास प्रशासन का अर्थ सामाजिक परिवर्तन लाने के प्रयत्नों से है ।” टी.एन. चतुर्वेदी भी वि.प्र. को सामाजिक रूपान्तरण से संबंधित करते है । स्टोन्स के अनुसार- ”विकास प्रशासन निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये उपलब्ध समस्त साधनों का ऐसा संयुक्त प्रयास है जो साधनों के उचित समिण पर आधारित है ।”
फ्रेडरिग्स- ”विकास प्रशासन निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उपलब्ध साधनों की प्रभावकारिता में वृद्धि की प्रणाली है ।” पुनश्च: रिग्स के शब्दों में- ”जिस प्रकार कृषि कार्यक्रम का प्रशासन कृषि प्रशासन, स्वास्थ्य के प्रबन्ध से संबंधित स्वास्थ्य प्रशासन, उसी प्रकार विकास कार्यों के प्रबन्ध से संबंधित प्रशासन ”विकास प्रशासन” होगा ।”
पानिन्दीकर की भाँति मेरील फैनसोड ने भी विकास प्रशासन के संगठनात्मक पहलू पर अधिक बल देते हुऐ कहा है कि- ”विकास प्रशासन नये मूल्यों की ओर ले जाने वाला वाहन है जिसमें आधुनिकीकरण और औधोगिकीकरण के लिये विकासशील देशों द्वारा अपनाये गये विभिन्न कार्य शामिल है ।”
उक्त अवधारणा और परिभाषाओं के परिपेक्ष्य में विकास प्रशासन से संबंधित महत्वपूर्ण निष्कर्ष इस प्रकार निकाले जा सकते है:
1. विकास प्रशासन एक अवधारणा और अध्ययन विषय दोनों ही है ।
2. विकास प्रशासन और लोक प्रशासन में अन्तर ”प्रकार” की अपेक्षा ”स्तर” का है । अर्थात इनमें क्रमश: विकास और सामान्य प्रशासन की प्रबलता तुलनात्मक रूप से अधिक होती है ।
3. विकास प्रशासन और लोक प्रशासन में स्पष्ट विभेद नहीं किया जा सकता । लेकिन विकास कार्यों और गैर विकास कार्यों (सामान्य प्रशासन) में अन्तर पाया जाता है ।
4. विकास प्रशासन विकासशील देशों के प्रशासव से संबंधित अवधारणा है लेकिन इसका क्षेत्र सभी देशों के प्रशासन तक विस्तृत है ।
5. विकासशील देशों के प्रशासन का अधिकांश भाग विकास विकास प्रशासन के अन्तर्गत आता है जबकि विकसित देशों का बहुत कम ।
6. विकास प्रशासन एक बहुआयामी अवधारणा है और इसकी प्रकृति और क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है ।
7. विकास प्रशासन में विकास से आशय मात्र आधुनिकीकरण या पश्चिमीकरण नहीं है अपितु समाज की समस्त वर्तमान स्थितियों से उच्च स्तर की तरफ बढ़ाना है ।
8. विकास की प्रक्रिया नैरन्तर्य है ।
9. विकास और विकास प्रशासन दोनों गतिशील और परिवर्तनशील है अर्थात् उनका स्वरूप न तो स्थिर है, नहीं एकरूप ।
10. विकास प्रशासन पारिस्थितकीय से अन्तर्सबंधित है ।
11. विकास प्रशासन का केन्द्रीय तत्व व्यैक्तिक और सामाजिक विकास है ।
12. विकास प्रशासन की अवधारणा में सर्वाधिक बल विकास कार्यों पर है ।
विकास प्रशासन का अवधारणा (Concept of Development Administration):
विकास प्रशासन, विकास और प्रशासन, दो शब्दों से मिलकर बना है । विकास का शाब्दिक अर्थ है- निरन्तर आगे बढ़ना, प्रगति करना, वृद्धि करना आदि । प्रशासन से सामान्य आशय है- सेवा करना । अत: विकास प्रशासन का अर्थ है- समाज की प्रगति के लिये सरकारी सेवा कार्य ।
विकास प्रशासन भी लोक प्रशासन की भाँति सरकारी प्रशासन ही है अत: ”लोकहित” उसका भी केन्द्रीय मुद्दा है । लेकिन विकास प्रशासन का अर्थ ”विकास” नामक अनेकार्थी शब्द के कारण उलझ गया है । विभिन्न सामाजिक विज्ञानों में विकास का अर्थ अपने विषय की जरूरत के अनुसार लिया जाता है ।
प्रो. रोस्टोव ने आर्थिक सन्दर्भ में ”टेक आफ” की स्थिति को विकास कहा अर्थात् वह स्थिति जहां से अर्थव्यवस्था स्वत: आगे बढ़ती है । रिग्स के अनुसार विकास का सम्बन्ध किसी भी क्षेत्र से हो सकता है, जैसे राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज या प्रशासन, लेकिन प्रत्येक क्षेत्र में विकास का एक ही आशय है- “डिफेक्टेड व्यवस्था” । इससे आशय है किसी भी क्षेत्र में विभेदीकरण और एकीकरण का समानुपात में मौजूद होना ।
उनके अनुसार भूमिका विभेदीकरण (एक अर्थ में विशेषीकरण) के बिना न तो विकास हो सकता है और नहीं समस्याओं का समाधान । विभेदीकरण अर्थात् ढाँचों और कार्यों के अलगाव से भी समस्याएं उत्पन्न होगी और इससे निबटने के लिये उसी अनुपात में एकीकरण भी जरूरी है ।
लोक प्रशासन का सम्बन्ध समाज के सभी घटकों से है । उसे जनहित में विभिन्न क्षेत्रों के विकास को निर्देशित करना पड़ता है अत: लोक प्रशासन में विकास का अर्थ राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सभी में उच्च स्तर की तरफ प्रगति से है ।
विकास प्रशासन की अवधारणा से सम्बंधित कतिपय प्रमुख विवाद बिन्दु है:
1. यह एक नई अवधारणा है या इसका अस्तित्व पहले से था ।
2. यह मुख्यरूप से आर्थिक विकास से संबंधित संकुचित अवधारणा है या देश के सभी घटकों के विकास से संबंधित व्यापक अवधारणा है ।
3. यह विकास कार्यों का प्रशासन है या प्रशासन का विकास है या दोनों है ?
4. यह एक पृथक् विषय है या लोक प्रशासन का एक उपक्षेत्र ।
5. यह मात्र विकासशील देशों से संबंधित है या सभी देशों से ।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर खोजे तो कहना होगा कि लोक प्रशासन के क्षेत्र में समयानुसार अनेक प्रवृत्ति रही । लेकिन कालान्तर में ”विकास प्रशासन” पर इतना अधिक अध्ययन हुआ कि वह एक विशिष्ट कोटि का लोक प्रशासन बन गया ।
स्पष्ट है कि विकास प्रशासन को जिस अर्थ में आज लिया और प्रयुक्त किया जाता है, उस अर्थ में वह एक नवीन अवधारणा है, एसी अवधारणा जो अपने उद्देश्यों और साधनों दोनों में अत्यधिक गतिशील और परिवर्तनशील है । जहां तक विकास के क्षेत्रों का प्रश्न है, विकास प्रशासन बहुआयामी अवधारणा है ।
यह सम्पूर्ण सामाजिक या राष्ट्रीय विकास का महत्वपूर्ण उपकरण है । वस्तुत: विकास प्रशासन सरकारी प्रशासन का वह विकासोन्मुख चेहरा है जो विभिन्न क्षेत्रों में अनेक विकास कार्यों को न सिर्फ स्वयं निश्चित और संचालित करता है, अपितु इस दिशा में निजी प्रयत्नों को भी उत्प्रेरित करता है । सामाजिक विकास के एक भाग के रूप में ही प्रशासनिक विकास भी होता है और विकसित प्रशासन पुन: सामाजिक विकास को प्रेरित करता है ।
इस प्रकार समाज-प्रशासन-समाज के चक्रीय विकास से संबंधित अवधारणा ”विकास परक” प्रशासन है, और इसीलिये इसे मात्र आर्थिक विकास से संबंधित नहीं किया जा सकता । सामाजिक विकास से तात्पर्य सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास से है जिसके अन्तर्गत समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति, प्रशासन आदि सभी घटक शामिल है । और यह नहीं कहा जा सकता कि विकास सबसे पहले कहा ? अर्थात विकास को दिशा देने वाले प्रशासन की क्षमता में पहले वृद्धि हो या विकास पहले हो, तभी उसके प्रभाव से प्रशासन का विकास होगा ।
रिग्स ने विकास के प्रशासन और प्रशासन के विकास को पहले अण्डा या पहले मुर्गी के मिथक् की संज्ञा दी है वस्तुत: विकास प्रशासन में विकास और प्रशासन को लेकर बिना वजह शब्दों की बाजीगरी की जाती रही है । हम कैसे इस तथ्य को नजर अंदाज कर दे कि उद्देश्य और उसके साधन में अन्तर होता है ।
विकास प्रशासन में भी ”विकास” उद्देश्य है और प्रशासन उसको प्राप्त करने का साधन । अत: विकास प्रशासन की अवधारणा स्पष्ट रूप से ”विकास” के प्रशासन से संबंधित है, और प्रशासन का विकास इस ”विकास” में अन्तर्निहत एक तत्व है ।
स्पष्ट है कि ”विकास प्रशासन” कारण है और प्रशासनिक विकास उसका परिणाम । प्रगतिशील लक्ष्यों को चुनना और पूरा करना विकास प्रशासन का हृदय है । इसके लिये वर्तमान प्रशासनिक क्षमता का विकास भी एक अनिवार्य शर्त है । इसी व्यवहारिक स्थिति के सन्दर्भ में विकास प्रशासन का अर्थ लिया जाना चाहिये ।
बहरहाल विकास प्रशासन की अवधारणा ने इस विवाद को भी उठाया है कि क्या यह परम्परागत लोक प्रशासन से भिन्न है । जो पाण्डेय अवधारणात्मक रूप में विकास प्रशासन को लोक प्रशासन की तुलना में उच्च स्थिति प्राप्त एक पृथक् विषय मानते है लेकिन क्षेत्र के रूप में लोक प्रशासन का ही एक भाग मानते है ।
काइडन और रिग्स विकास प्रशासन को पृथक् विषय मानते है जिसका अपना सिद्धान्त, विचारधारा और विषय वस्तु है जब कि विकास प्रशासन के पितामह जार्ज गाँट विकास प्रशासन को लोक प्रशासन की उस्कशाश्वा मानते है ।
यही मत स्वेरडलो, खोसला जैसे विद्वानों का है । निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि विकास प्रशासन ऐसी लोक प्रशासन है, जो विकास समर्पित है और इसीलिये लोक प्रशासन में ढाँचा गत और प्रक्रियागत ऐसे सुधार आवश्यक मानता है जो विकास के लिये जरूरी है ।
विकास प्रशासन के बारे में अब यह भ्रांति भी दूर हो चली है कि यह मात्र विकासशील देशों की विकास संबंधी जरूरतों से संबंधित अवधारणा ही है । यह सत्य है कि विकास प्रशासन को वास्तविक पहचान तभी मिली जब नवोदित विकासशील राष्ट्रों को अपने त्वरित विकास की समस्या तीव्रतर महसूस हुई । लेकिन रिग्स के अनुसार अमेरिका में ”टेनिस घाटी” प्राधिकरण भी विकास प्रशासन का उदाहरण है ।
समृद्धता और निर्धनता दोनों ही असंतोष और हिंसा के कारण होते है । विकासित देशों का अत्यधिक विकास भी चुनौती है कि कैसे इसे निरन्तरता प्रदान की जाये । उन्हें भी परिवर्तन और परिवेशीय मांगों की चुनौती से निपटने के लिये विकास प्रशासन के लक्षणों को अपनाना होता है ।
विकास तो हर राष्ट्र की जरूरत है और इसको उत्प्रेरित करने के लिये सरकार और उसका प्रशासन ही प्रेरक भूमिका निभाते है यद्यपि विकसित और विकासशील राष्ट्र के संदर्भ में इस भूमिका के स्वरूप को लेकर भिन्नताएं हो सकती है । विकास प्रशासन प्रत्येक देश के प्रशासन का एक पहलू है, भले ही इसकी जरूरत विकासशील राष्ट्रों को ज्यादा महसूस होती है ।
स्टोन्स की 4पी अवधारणा:
डोनाल्ड सी स्टोन ने विकास प्रशासन को 4पी से संबंधित किया है, क्रमश: प्लान (योजना), पॉलिसी (नीति), प्रोग्राम (कार्यक्रम) प्रोजेक्ट (परियोजना) । स्टोन के अनुसार विकास प्रशासन उक्त 4पी को बनाने और लागू करने की अवधारणा है ।
जन्म और विकास के कारण (Reason for Origin and Development of Development Administration):
”विकास प्रशासन” शब्दावली का पहला प्रयोग भारतीय विद्वान यू. एल. गोस्वामी ने अपने लेख “द स्ट्रक्चर आफ डेवलपमेन्ट एडमिनिस्ट्रेशन इन इंडिया” में किया था, जो 1955 में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (I.I.P.A.) के जर्नल में छपा था । जार्ज ग्राण्ट ने इसकी अवधारणा की पहली कोशिश की । अत: उन्हें विकास प्रशासन का पिता या जनक माना जाता है । यद्यपि उनकी पुस्तक “Development Administration: Concepts. Goals and Methods” 1979 में प्रकाशित हो पायी ।
विकास प्रशासन की पहली स्पष्ट अवधारणा देने का श्रेय एडवर्ड विडनर को है, जिन्होंने ”डेवलपमेन्ट एडमिनिस्ट्रेशन” नामक पुस्तक में इसे ”कार्योन्मुख-लक्ष्योन्मुख” प्रक्रिया घोषित किया । बाद में माण्टगोमरी, पाई पानिन्कर, क्षीरसागर, स्टोन्स, रिग्स, कॉज, मार्टिन जैनन आदि ने इस पर पर्याप्त साहित्य लिखा ।
प्रारंभ में विकास प्रशासन को मात्र विकासशील देशों की आवश्यकता समझा गया लेकिन 1970 के दशक से इस धारणा में परिवर्तन हुआ और विकास प्रशासन एक सार्वभौमिक आवश्यकता के साथ सर्वस्वीकृत अवधारणा बन गयी ।
इसकी विषयवस्तु भी बदली और आज इसमें विकेन्द्रीयकरण, सीमित सरकार, विकास के वैकल्पिक मॉडल, संवृद्धिवाद, जनसहभागिता जैसे सिद्धान्तों पर इतना अधिक बल दिया जा रहा है कि इस नव अवधारणा को ”नवीन विकास प्रशासन” तक की संज्ञा दी जा रही है । उल्लेखनीय है कि ”विकास” शब्द सामाजिक विज्ञानों का जहां तक संबंध है, अर्थशास्त्र में सर्वप्रथम प्रयुक्त हुआ और वहां से राजनीति विज्ञान के माध्यम से लोक प्रशासन में आया ।
i. ईस्ट वेस्ट केन्द्र का सम्मेलन, 1946:
”लोक प्रशासन के प्रयोगात्मक विषय” पर एक सम्मेलन अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय के ”ईस्ट-वेस्ट केन्द्र” पर हुआ । 13 से 15 जुलाई, 1946 के मध्य हुए इस सम्मेलन ने पूर्वी देशों में विकास के लिये विकासात्मक मॉडल (पश्चिमी देशों के अनुरूप) अपनाने पर जोर दिया ।
1962 में ईस्ट-वेस्ट केन्द्र ने ”द नेशनल एडवांस्ड प्रोजेक्ट” की स्थापना ”विकास प्रशासन” की मान्यताओं के प्रचारार्थ की ।
ii. पश्चिमी मॉडल की विफलता:
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी सहायतान्तर्गत पहुँचे पश्चिमी मॉडल विकासशील देशों के पर्यावरण में अप्रासंगिक सिद्ध हुऐ । परिणामत: इन देशों के विकास की जरूरतों को पूरा करने के किसी स्वदेशी मॉडल विकसित करने की भावना ने विकास प्रशासन का मार्ग प्रशस्त किया ।
iii. संयुक्त राष्ट्र विकास सहायता कार्यक्रम:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने नवोदित राष्ट्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु वित्तीय सहायता के साथ अपने विद्वानों को भी भेजा ताकि वे अपने तकनीकी सहायता को वहां लागू कर सके । इनमें अमेरिकी विद्वानों का बोलबाला था । इन्होंने महसूस किया कि विकासशील और पिछड़े राष्ट्रों के लिये विकसित देशों के विकासात्मक-मॉडल कारगर नहीं हो सकते अपितु इनके लिये विकास प्राशासन की धारणा अपनायी जानी चाहिये ।
iv. अमेरिकी सहायता कार्यक्रम:
लगभग इसी समय अमेरिका ने भी एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के इन नव स्वतन्त्र राष्ट्रों को वित्तीय और तकनीकी सहायता की पेशकश की । अनेक अमेरिकी विद्वान इन देशों में पहुंचें और वहां के विकास की विशेष जरूरतों से परिचित हुऐ ।
v. तुलनात्मक लोक प्रशासन समूह का योगदान:
इस समूह को 1970 तक फोर्ड फाउंडेशन से वित्तीय सहायता मिली और इस समूह ने विकास प्रशासन और प्रशासनिक विकास के अध्ययन पर ध्यान केन्द्रीत किया ।
vi. परम्परागत प्रशासन की आन्तरिक कमजोरी:
वस्तुत: इन स्वतन्त्र राष्ट्रों को विरासत में मिला प्रशासन औपनिवेशीक भावना से ग्रस्त था, जिसे विकास के स्थान पर नियामिकीय कार्यों का अनुभव ही अधिक था । वह साधनन्मुख, यथास्थितिवादी प्रशासन था जिसमें लक्ष्योन्मुख, परिवर्तनोन्मुख कार्यशैली नहीं थीं । अत: इस परम्परागत ढाँचे को नयी विकास जरूरतों के अनुरूप ढालने की अवधारणा के रुप में ”विकास प्रशासन” का जन्म हुआ ।
vii. औपनिवेशीकरण का समापन:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनेक राष्ट्रों में औपनिवेशक शासन का अंत हुआ । इन स्वतन्त्र राष्ट्रों के सामने सामाजिक-आर्थिक पुनर्निमाण की जो चुनौती खड़ी थी, उससे निपटने के उपकरण के रूप में विकास प्रशासन का उद्भव और विकास हुआ ।
viii. लोक प्रशासन की विषयगत कमजोरी:
वीडनर ने लोक प्रशासन की परंपरागत विचारधाराओं की आलोचना करते हुए कहा कि ये साध्य पर कम ‘साधन’ पर अधिक ध्यान देते है । वीडनर कहते है कि सुशासन और अच्छे मानव संबंधों को ही लोक प्रशासन का ध्येय मान लिया गया है ।
ix. नवीन विकास प्रशासन का उदय:
विकास प्रशासन की विधा का विकास भी दो चरणों में हुआ । प्रथम चरण (1945-1970) में विकास प्रशासन को मात्र विकासशील देशों के परिप्रेक्ष्य में विकसित किया गया । फ्रेडरिग्स, वीडनर, स्वेरडलों, फैनसॉड आदि इस समय के विद्वानों ने अपने अध्ययन विकासशील देशों पर ही केन्द्रीत रखे ।
1970 के उत्तरार्ध में इस मान्यता का खण्डन हुआ और इजमैन के अनुसार अब वि.प्र. को विकसित और विकासशील सभी समाजों की जरूरत के रूप में ढाला गया और इसी कारण इसके मुख्य लक्षणों में भी कतिपय संशोधन हुऐं । इजमेन, नेफ, कैम्प होप, हरबर्ट वरलिन, ओ.पी. द्विवेदी आदि इस विचारधारा के समर्थक हुऐ जिनके अनुसार जहां विकासशील राष्ट्रों में अल्प विकास चुनौती है वहीं विकसित राष्ट्रों में अत्यधिक विकास ”सतत् विकास” के लिये चुनौती बन गया है ।
विकास प्रशासन बनाम प्राशासन का विकास:
(i) कुछ विद्वान विकास प्रशासन को विकास कार्यों के लिए प्रशासन तक सीमित करते हैं अर्थात् जो प्रशासन विकास कार्यों को अंजाम दें, वही विकास प्रशासन है ।
(ii) कुछ ऐसे भी विद्वान है जो इसे प्रशासन के विकास के रूप में स्वीकृत करते है अर्थात यह प्रशासन की प्रकृति या प्रवृत्ति में सुधार है ।
(iii) रमेश अरोरा के अनुसार विकास प्रशासन में विकास कार्यों का प्रशासन और प्रशासन का विकास दोनों अर्थ परस्पर गूंथे हुये है । विकास कार्यों को करने में वहीं प्रशासन सफल हो सकता है जो उसके लिए बना हो ।
विकास प्रशासन के उद्देश्य और आवश्यकता (Purpose and Necessity of Development Administration):
विकास प्रशासन का उद्देश्य है, विकासात्मक नीति को निर्धारित और क्रियान्वित करना । विकास के आयाम बहुविध, बहुमुखी और बहुस्तरीय होते है, अतएव इनकों प्राप्त करने के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाना जरूरी होता है । विकास प्रशासन ऐसा ही समग्र दृष्टिकोण है, जो राष्ट्र और समाज के सभी पहलुओं के संतुलित और परस्पर अन्तर्निभर विकास को सुनिश्चित करता है ।
चूँकि ऐसा संतुलित विकास सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक विषमताओं से ग्रस्त विकासशील और पिछड़े देशों के लिये अत्यधिक महत्व रखता है, अत: विकास प्रशासन की मुख्य आवश्यकता इन देशों में विशेष रूप से महसूस की जाती है । विकास प्रशासन वस्तुत: राष्ट्र निर्माण और सामाजिक-आर्थिक प्रगति से संबंधित अवधारणा है ।
ग्राण्ट के शब्दों में- ”विकास प्रशासन का उद्देश्य है, सामाजिक, आर्थिक विकास के तयशुदा कार्यक्रमों को अभिप्रेरित करना और उन्हें सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ाना । विकास प्रशासन के उद्देश्य यथास्थिति बनाये रखने के बजाय परिवर्तन, अन्वेषण और प्रगति के लिये कटिबद्ध होते है ।”