Read this article in Hindi to learn about Regsian contribution to development administration.

फ्रेडरिग्स का नाम प्रशासनिक चिंतकों में अग्रणी है । 1971 में चीन के गुलिका ग्राम में जन्में लेकिन अमेरिकी परिवेश पढ़े रिग्स को ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेश में पलने-बढ़ने का अवसर मिला जिसने उनके मस्तिष्क में स्वाभाविक तुलनात्मकता को जन्म दिया । और संभवत: इसीलिये उनके तुलनात्मक अध्ययन की शुरूआत ”सामाजिक परिवेशों” की तुलना से है, जो बाद ”प्रशासनिक परिवेश” पर जाकर केन्द्रीत हो जाती है ।

रिग्स के योगदान को निम्नांकित शीर्षकों में रखा जा रहा है:

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विकास का अर्थ स्वायत्तता की मात्रा से (Development Means the Status of Autonomy):

रिग्स ने ”विकास” का अर्थ बताया, किसी सामाजिक प्रणाली को प्राप्त स्वायत्ता की वह मात्रा जो उसमें निरन्तर परिवर्तन और गतिशीलता सुनिश्चित करती है । वह मानवीय समाज उतना अधिक विकसित होगा जिसमें अपने पर्यावरण में अनुकूल परिवर्तन लाने की अधिक से अधिक क्षमता या स्वायत्तता होगी । इस स्वायत्तता को प्राप्त करने के लिये वियोजन का स्तर ऊँचा उठाना जरूरी होता है ।

प्रो. रिग्स विकास के लिये डिफेक्टेड शब्द प्रयुक्त करते है, जिससे आशय है किसी भी क्षेत्र में विभेदीकरण और एकीकरण का समानुपात में मौजूद होना । उनके अनुसार भूमिका विभेदीकरण (एक अर्थ में विशेषीकरण) के बिना न तो विकास हो सकता है और नहीं समस्याओं का समाधान । विभेदीकरण अर्थात ढाँचों और कार्यों के अलगाव से भी समस्याएं उत्पन्न होगी और इससे निबटने के लिये उसी अनुपात में भी जरूरी है ।

रिग्स कहते है कि समाज के विकास की प्रक्रिया वस्तुत: विभेदीकरण और एकीकरण दोनों की प्राप्ति की प्रक्रिया है और किसी समाज का विकास कहा तक हुआ है यह इन दोनों की मात्रात्मक उपस्थिति द्वारा तय होता है ।

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इस अनुसार:

(i) यदि न्यूनतम विभेदीकरण और न्यूनतम एकीकरण है तो यह प्राथमिक समाज (पिछड़ा या अल्पविकसित) है ।

(ii) यदि अधिकतम विभेदीकरण और अधिकतम एकीकरण है तो यह आधुनिक विकसित समाज है ।

(iii) यदि विभेदीकरण तो हुआ हो लेकिन उस अनुपात में एकीकरण नहीं हो, तो यह प्रिज्मेटिक समाज है ।

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इसी प्रकार विभेदीकरण एकीकरण की भिन्न-भिन्न अवस्थाएं भिन्न-भिन्न प्रिज्मेटिक समाजों को इंगित करती है, जिन्हें रिग्स ने इयो, आर्थो और नियो की संज्ञा दी । लेकिन रिग्स ने इन अवस्थाओं को विवर्तित समाजों का भी लक्षण बताया ।

विभेदीकरण-एकीकरण के निर्धारक तत्व:

रिग्स के अनुसार समाज को विकास की प्रक्रिया में सर्वप्रथम ”विभेदीकरण” की तरफ बढ़ना होता है अर्थात् सबसे पहले राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक, सामाजिक, धार्मिक आदि सभी संस्थाओं को पृथक्-पृथक् करना पड़ता है । यह विभेदीकरण तकनीकी और गैर तकनीकी दोनों कारकों के विकास द्वारा सुनिश्चित होता है ।

अत: विभेदीकरण के निर्धारक तत्व है:

1. तकनीक या प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक विकास और

2. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे अनेक गैर तकनीकी क्षेत्रों में विकास । रिग्स ने विभेदीकरण के उच्च स्तर को प्राप्त करने में तकनीकी कारकों को अधिक महत्व दिया है ।

एकीकरण भी दो महत्वपूर्ण तत्वों पर निर्भर है:

1. प्रभाव (Effects):

इससे आशय है सरकार की समाज पर पकड़ । सरकार अपने निर्णयों को जिस क्षमता के साथ लागू कर सकती है, वह उसके प्रभाव का द्योतक है । यह प्रभाव जितना बढ़ेगा, समाज में विघटन के स्थान पर एकीकरण भी उतना ही अधिक उत्पन्न होगा ।

2. भागीदारी (Participation):

भागीदारी से आशय सामाजिक चेतना या जागरूकता से है । समाज जितना अधिक जागरूक होगा, वह सरकारी नीतियों, कानूनों के निर्माण में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा । भागीदारी दो तत्वों पर निर्भर है-लोगों में भागीदारी की इच्छा और भागीदारी निभाने की उनकी क्षमता ।

विकास प्रशासन और प्रशासनिक विकास:

रिग्स ने अपनी पुस्तक “फ्रंटियर्स ऑफ डेवलपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन” में विकास प्रशासन के दो पहलू बताये सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षेत्रों में विकास कार्यों को लागू करना और प्रशासन का भीतरी विकास । विकास और प्रशासन दोनों में से कौन पहले ? रिग्स ने इनमें अण्डे-मुर्गी जैसा कार्यकारी संबंध बताया है ।

विकास प्रशासन में विकास कार्यों के लिए प्रशासन मूल आत्मा है, क्योंकि इसका पहला ध्येय विकास है । अब विकास के अनुरूप प्रशासन को सक्षम बनाना यह इसका दूसरा पहलू है । दूसरे शब्दों में विकास कार्यों की प्राप्ति के लिए ”विकसित प्रशासन” एक साधन है ।