विकास प्रशासन: उद्भव और लक्षण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. विकास प्रशासन का अर्थ (Meaning of Development Administration) 2. विकास प्रशासन का उद्भव (Emergence of Development Administration) 3. विडनर का विकास प्रशासन में योगदान (Contribution of Weidner towards Development Administration) and Other Details.
Contents:
- विकास प्रशासन का अर्थ (Meaning of Development Administration)
- विकास प्रशासन का उद्भव (Emergence of Development Administration)
- विडनर का विकास प्रशासन में योगदान (Contribution of Weidner towards Development Administration)
- रिग्स का विकास प्रशासन में योगदान (Contribution of Riggs towards Development Administration)
- विकास प्रशासन के लाक्षणिक विशेषताएं (Characteristics of Development Administration)
- विकास बनाम परंपरा (Development Vs. Traditional Administration)
- विकास प्रशासन के उपागम (Approaches to Development Administration)
1. विकास प्रशासन का अर्थ (Meaning of Development Administration):
‘विकास प्रशासन’ शब्द का प्रयोग पहला बार एक भारतीय अध्येता यू.एल. गोस्वामी ने 1955 में छपे अपने लेख, ‘दि स्ट्रक्चर ऑफ डेवेलपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन इन इंडिया’ में किया था । लेकिन विद्वान जार्ज गांट हैं जिन्हें विकास प्रशासन का पिता जाता है ।
उन्होंने भी इसी काल में इस शब्द का प्रयोग शुरू किया । उनका पुस्तक डेवेलपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन कंसेप्टस, गोल्स एंड मेथडस पहली बार 1979 में प्रकाशित हुई । एडवर्ड डब्ल्यू. वीडनर, फ्रेड डब्ल्यू रिग्स, जोसेफ ला पोलोम्बा, केरेल हीडी, मिल्टन ज. एस्मास, एल्बर्ट वॉटरसन, लुसियन पाई, मर्ल फैनसॉड, अल्फ्रेड डियामाण्ट, हरविंग स्वेदलोव, विलियम जे. साफिन और हान बीन ली ने लोक प्रशासन के क्षेत्र में विकास प्रशासन की अवधारणा का लोकप्रिय बनाने और विकसित करने में योगदान दिया है ।
ADVERTISEMENTS:
एडवर्ड वीडनर विकास प्रशासन के सबसे बड़े भाष्यकार हैं । वे विकास प्रशासन का परिभाषा की पहली बार अवधारणात्मक रूप में व्यवस्था करने वाले व्यक्ति भी हैं । फेरल हेडी के अनुसार जार्ज गैंट को सामान्यत: विकास प्रशासन शब्द का गढ़न का श्रेय दिया जाना चाहिए । किन्तु प्रभादत्ता के अनुसार- ”विकास प्रशासन शब्द भारतीय विद्वान गोस्वामी की देन है फिर भी यह एक पाश्चात्य अवधारणा है । इस शब्द का प्रथम प्रयोग सोनालड सी. स्टोन ने किया है ।”
2. विकास प्रशासन का उद्भव (Emergence of Development Administration):
1950 और 1960 के दशक में विकास प्रशासन लोक प्रशासन के एक उप-क्षेत्र के रूप में उभरा ।
जिन कारकों ने इसमें योगदान किया, वे हैं:
1. पारंपरिक लोक प्रशासन द्वारा प्रशासन के ‘माध्यमों’ के अध्ययन पर ज्यादा और प्रशासन के ‘लक्ष्यों’ के अध्ययन पर कम जोर ।
ADVERTISEMENTS:
2. उपनिवेशवाद खार साम्राज्यवाद का समाप्ति क साथ एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका में नव-स्वाधीन विकासशील देशों का उदय ।
3. बहुपक्षीय तकनीकी मदद और वित्तीय सहायता द्वारा विकासशील देशों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित विकास योजनाएँ ।
4. नवोदित विकासशील देशों तक अमेरिकी आर्थिक और तकनीकी सहायता योजनाओं का विस्तार ।
5. अमेरिकन सोसायटी फॉर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के नेतृत्व में 1960 में कंपेरिटिव एडमिनिस्ट्रेशन ग्रुप (CAG) की स्थापना ।
ADVERTISEMENTS:
6. विकासशील देशों में पश्चिमी मॉडलों की नाकामी के कारण, इन देशों की विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए स्वदेशी प्रशासनिक मॉडल की खोज करना ।
परिभाषा:
जॉर्ज ग्रांट- “विकास प्रशासन लोक प्रशासन का वह पहलू है जिसमें ध्यानकेंद्रण का विषय सार्वजनिक अभिकरणों को इस प्रकार संगठित और प्रशासित करता है कि सामाजिक व आर्थिक प्रगति के सुपरिभाषित कार्यक्रमों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिल सके । इसका उद्देश्य परिवर्तन को आकर्षक और सम्भव बनाना है । विकास प्रशासन ऐसे अभिकरणों, प्रबंधन तंत्रों एवं प्रक्रियाओं का एक जाल है, जिनकी स्थापना सरकार द्वारा विकासात्मक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए की जाती है ।”
डोनाल्ड सी. स्टोन- “व्यापक रूप से विकास प्रशासन का सरोकार राष्ट्रीय विकास की उपलब्धि से होता है । लक्ष्य, मूल्य और परिवर्तन की रणनीतियां भिन्न हो सकती हैं किंतु कुछ समान प्रक्रियाएं सदैव मौजूद रहती हैं जिनके द्वारा लक्ष्यों पर समझौता कायम किया जाता है और योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं का निर्माण तथा क्रियान्वयन किया जाता है ।”
इरविंग स्वर्डलो- “लोक प्रशासन गरीब देशों में प्रशासन है । उन्होंने विकास प्रशासन में दो अन्तर्सम्बंधित कार्यों को पहचाना है- संस्था निर्माण और नियोजन ।” हान बीन ली- ”विकास प्रशासन का सम्बद्ध एक सरकार या किसी अभिकरण को प्रबंधित करने में निहित समस्याओं से होता है ताकि राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में संवहनीय संवृद्धि हासिल करने के उपागम सहित सरकार या अभिकरण नये व सतत सामाजिक बदलावों के प्रति अनुकूलन स्थापित करने एवं उपयुक्त कार्यवाही करने की वृद्धित क्षमता प्राप्त कर सके ।”
मार्टिन लैण्डाऊ- ”विकास प्रशासन सामाजिक परिवर्तन की अभियांत्रिकी है ।” इनायतुल्लाह- ”विकास प्रशासन सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों एवं राष्ट्र निर्माण की दिशा में लोकसत्ता के माध्यम से एक कार्य की उपलब्धि हेतु संगठनात्मक व्यवस्थापनों का एक संजाल हैं ।”
हैरी जे. फ्राइडमैन- “विकास प्रशासन का अर्थ आधुनिकता (जोकि सामाजिक-आर्थिक प्रगति एवं राष्ट्रनिर्माण के रूप में होती है) लाने एवं प्रशासनिक प्रणाली में बदलाव लाने के लिए डिजाइन किए गए कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना है ताकि प्रशासनिक प्रणाली की कार्यक्रम को क्रियान्वित करने की क्षमता में वृद्धि हो सके ।”
3. विडनर का विकास प्रशासन में योगदान (Contribution of Weidner towards Development Administration):
वीडनर ने पारंपरिक प्रशासनिक विचारधारा की, सर्वश्रेष्ठ संभव तरीके से प्रशासन करने के ‘माध्यमों’ पर ज्यादा जोर और ‘लक्ष्यों’ (उद्देश्यों) के अध्ययन पर कम जोर के लिए आलोचना की । इस परिप्रेक्ष्य में- उन्होंने टिप्पणी की ”लोक प्रशासन ने माध्यमों का महिमा-मंडन किया है और लक्ष्यों को भूल गया है । उपलब्ध और अनुपलब्धा मूल्यों की प्राप्ति से अलग अच्छा प्रशासन और अच्छे मानव संबंध ही अपने-आप में लक्ष्य बन गए हैं ।”
पारंपरिक प्रशासनिक विचारधारा की इस रिक्तता को भरने के लिए ही उन्होंने विकास प्रशासन की अवधारणा से हमारा परिचय कराया । उन्होंने विकास प्रशासन को ”किसी न किसी तरीके से प्राधिकृत तौर पर निर्धारित करने वाली वह प्रक्रिया” बताया है, जो संगठन के प्रगतिशील राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति में मार्गदर्शन करती है ।
उनके अनुसार विकास प्रशासन का संबंध विकास के लिए अधिकाधिक नवोचार से है । उन्होंने विकास के लिए नवाचार को आधुनिकता या राष्ट्र निर्माण एवं समाजार्थिक परिवर्तन की दिशा में नियोजित बदलाव की प्रक्रिया के रूप में परिभषित किया है ।
4. रिग्स का विकास प्रशासन में योगदान (Contribution of Riggs towards Development Administration):
एफ. डब्ल्यू. रिग्स ने विकास प्रशासन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । उन्होंने विकास प्रशासन को उन ”संगठित प्रयासों” के रूप में परिभाषित किया ”जो उन कार्यक्रमों और परियोजनाओं को लागू करते हैं जो विकास के उद्देश्यों की सेवा में लगे लोगों ने सोचे होते हैं ।” उन्होंने विकास प्रशासन के दो पहलुओं की पहचान की-विकास का प्रशासन और प्रशासन का विकास (प्रशासनिक विकास) ।
उन्होंने विकास के प्रशासन की पहचान ”विशाल-स्तर के संगठनों विशेषकर सरकार द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाली पद्धतियों के लिए उनके विकास उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनी नीतियों और योजनाओं के लिए विकास कार्यक्रमों के प्रशासन” के रूप में की; और प्रशासन के विकास की पहचान ”प्रशासनिक क्षमताओं के सुदृढ़ीकरण” के रूप में की ।
वे टिप्पणी करते हैं- ”विकास प्रशासन का अर्थ न केवल एक सरकार द्वारा उसके भौतिक, मानवीय और सांस्कृतिक परिवेश को बदलने के कार्यक्रमों को लागू करने के प्रयासों से है, बल्कि ऐसी प्रगति के कार्य में शामिल होने की उसकी क्षमता को बढ़ाने के संघर्ष से भी है ।”
इनके आपसी संबंध पर जोर देते हुए रिग्स ने टिप्पणी की- ”इन दोनों पहलुओं की परस्पर संबद्धता में एक प्रकार से अंडे और मुर्गी के बीच के कारणात्मक संबंध जैसा रिश्ता है । परिवेशीय बाधाओं (अवसंरचना) में बदलाव के बिना सामान्य रूप से प्रशासन को ज्यादा बेहतर नहीं बनाया जा सकता और स्वयं परिवेश भी तब तक नहीं बदल सकता जब तक विकास कार्यक्रमों के प्रशासन को मजबूत नहीं बनाया जाता ।”
5. विकास प्रशासन के लाक्षणिक विशेषताएं (Characteristics of Development Administration):
विकास प्रशासन के निम्नलिखित चारित्रिक गुण हैं:
(i) बदलाव की दिशा अर्थात यथास्थिति बनाए रखने की बजाय सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाना ।
(ii) लक्ष्य-निर्देशित अर्थात सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक लक्ष्यों में प्रगति हासिल करना (परिणाम-केन्द्रित) ।
(iii) प्रतिबद्धता अर्थात कार्य स्थितियों में विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ऊँचा उत्साह और प्रेरण ।
(iv) उपभोक्ता केन्द्रित अर्थात छोटे किसानों, बच्चों इत्यादि जैसे लक्ष्य समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करना (समय केन्द्रित) ।
(v) काल संबंधी आयाम अर्थात एक समय-सीमा में विकास कार्यक्रमों को पूरा करना (समय निर्देशित) ।
(vi) नागरिक सहभागिता केन्द्रित अर्थात विकास कार्यक्रमों के निर्धारण और लागू किए जाने में जन समर्थन और सहभागिता सुनिश्चित करना ।
(vii) संरचनात्मकता अर्थात विकास के लक्ष्यों को प्रभावशाली ढंग से प्राप्त करने के लिए प्रशासनिक संचनाओं, पद्धतियों और प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करना और सुधारना ।
(viii) परिवेशीय परिप्रेक्ष्य अर्थात विकास नौकरशाही और उसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवेश में संबंध कायम करना ।
(ix) प्रभावशाली तालमेल अर्थात विकास की जिम्मेदारियों में लगी कई विशिष्टीकृत इकाइयों और कार्यक्रमों के बीच तालमेल करना (एकीकरण की उच्च मात्रा) ।
(x) प्रतिक्रियात्मकता अर्थात जनता की जरूरतों और माँगों पर तुरंत कदम उठाना ।
जॉर्ज गाण्ट के अनुसार, विकास प्रशासन के चारित्रिक गुण इसके ‘उद्देश्यों’ (सामाजिक-आर्थिक प्रगति) इसकी ‘निष्ठाओं’ (जनता के प्रति जवाबदेही); और इसके ‘रुख’ (सकारात्मक, प्रयत्नशील और रचनात्मक आगम) से पता चलते हैं ।
6. विकास बनाम परंपरा (Development Vs. Traditional Administration):
कुछ विद्वानों ने विकास प्रशासन को परंपरागत प्रशासन (गैर विकास प्रशासन या सामान्य प्रशासन या नियामक प्रशासन) से अलग रूप में अवधारणाबद्ध करने का प्रयास किया है । उनके अनुसार, विकास प्रशासन भिन्नताओं से भरा लोक प्रशासन है । वे कहते हैं कि ये दोनों बेहद महत्त्वपूर्ण रूपों में एक दूसरे से भिन्न हैं । संक्षेप में इन भिन्नताओं को तालिका 1.2 में दर्शाया गया है ।
तालिका 1.2 विकास बनाम पारंपरिक प्रशासन:
विकास प्रशासन:
1. यह परिवर्तन मुखी है ।
2. यह गतिशील और लचीला है ।
3. यह लक्ष्य-प्राप्ति की प्रभाविता पर जोर देता है ।
4. इसके उद्देश्य जटिल और अनेक हैं ।
5. इसका सरोकार नई जिम्मेदारियों से है ।
6. यह विकेंद्रीकरण में विश्वास रखता है ।
7. यह योजना पर बहुत निर्भर करता है ।
8. यह रचनात्मक और आविष्कारक है ।
9. यह प्रशासन की जनवादी और सहभागिता पूर्ण पद्धति को लागू करता है ।
10. इसके कामों का विस्तार क्षेत्र व्यापक है ।
11. इसका कालिक आयाम है ।
12. यह बहिर्मुखी है ।
पारंपरिक प्रशासन:
1. यह यथास्थिति उन्मुख है ।
2. यह पदानुक्रमिक और कठोर है ।
3. यह अर्थव्यवस्था और प्रभाविता पर जोर देता है ।
4. इसके उद्देश्य सरल हैं ।
5. इसका सरोकार दैनिक सामान्य कामों से है ।
6. यह केंद्रीकरण में विश्वास रखता है ।
7. यह योजना पर उतना निर्भर नहीं करता ।
8. यह संगठनात्मक बदलाव का विरोध करता है ।
9. यह प्रशासन की अधिकारिक और निर्देशात्मक पद्धति को लागू करता है ।
10. इसके कामों का विस्तार क्षेत्र सीमित है ।
11. इसमें समय-निर्देशिता नहीं है ।
12. यह अंतर्मुखी है ।
लेकिन इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि विकास प्रशासन और पारंपरिक प्रशासन एक दूसरे के पूरक हैं । एक के अभाव में दूसरा भी कायम नहीं रह सकता । इसलिए दोनों के बीच भेद करना अवास्तविक, अव्यावहारिक और अतिसरल होगा ।
इसके अतिरिक्त, जैसा कि रमेश के. अरोड़ा उचित ही टिप्पणी करते हैं- ”विकास प्रशासन केवल विकासशील देशों के प्रशासन से संबद्ध है, यह सोच सिर्फ विकास प्रशासन की अवधारणा की उपयोगिता और ‘विकासशील’ देशों के तुलनात्मक विश्लेषण में इसकी उपयोगिता को कम करती है ।”
7. विकास प्रशासन के उपागम (Approaches to Development Administration):
विकास और विकास प्रशासन के प्रति विभिन्न उपागमों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है- प्रारंभिक उपागम और समकालीन उपागम ।
1. प्रारंभिक उपागम:
1950 और 1960 के दशकों के दौरान, विकास के चिंतकों ने तीसरी दुनिया के देशों में विकास की व्याख्या पश्चिमी मॉडल की शब्दावली में की । वे मानते थे कि तीसरी दुनिया के देशों को पश्चिमी तरीके से ही विकास करना होगा । उन्होंने विकास कार्यों में एक राष्ट्र की प्रगति की माप के तौर पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) पर जोर डाला ।
ये शुरुआती उपागम, जो कुलीनवादी और जातीयता केंद्रित थे, निम्न रूप से हैं:
(i) आर्थिक उपागम:
ये उपागम बताते हैं कि तीसरी दुनिया के देशों को ज्यादा बचत करके उसे पूँजी के रूप में निवेश करना चाहिए । उन्होंने औद्योगीकरण द्वारा आर्थिक वृद्धि पर जोर दिया । विकास की यह रणनीति एडम स्मिथ, जे.एस.मिल, कार्ल मार्क्स, कींस, रोस्तोव इत्यादि के लेखन पर आधारित थी ।
(ii) विसरण उपागम:
एवरेट रोजर्स और आर.एस. एडारी द्वारा प्रतिपादित इस उपागम ने विकास की व्याख्या विसरण के अर्थों में की । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तीसरी दुनिया के देश पूँजी, तकनीक और सामाजिक संरचना पश्चिमी औद्योगीकृत देशों से लेते हैं ।
(iii) मनोवैज्ञानिक उपागम:
इन उपागमों की वकालत डेविड मैक्लेलैंड, एवरेट हेजेन, कुंकेल, इंकल्स और स्मिथ ने की । इन्होंने विकास की व्याख्या कुछ व्यक्तिगत गुणों की मौजूदगी के अर्थों में की जैसे लक्ष्य-प्रेरण, परिवर्तन-निर्देशित, कम आधिकारिक इत्यादि ।
(iv) निर्भरता सिद्धांत:
इस सिद्धांत के प्रमुख भाष्यकार आंद्रे गुंदर फ्रेंक ने दलील दी कि तीसरी दुनिया के देशों में हावी गरीबी, उपनिवेशवाद और नवउपनिवेशवाद के कारण पश्चिमी देशों पर उनकी निर्भरता का प्रतिबिंबन है ।
2. समकालीन उपागम:
1970 और 1980 के दशकों से विकास के चिंतक विकास के परिप्रेक्ष्य-आधारित (न कि सार्वभौमिक) उपागमों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं । परिणामस्वरूप, विकास की कोई एक सम्पूर्ण विचारधारा नहीं है ।
अरविंद सिंघल के अनुसार, विकास को लेकर समकालीन सैद्धांतिक उपागम ये हैं:
(क) बहुलवादी, जो विकास के कई रास्तों को मान्यता देता है और
(ख) अपनी सांस्कृतिक अभिधारणाओं में कम पश्चिमी (कम कुलीनवादी, कम जातीयकेंद्रित और अधिक स्वदेशी) ।
उन्होंने समकालीन विकास उपागमों में कुंजीभूत तत्त्वों के रूप में निम्नलिखित तत्त्वों की पहचान की:
(i) विकास के फायदों के वितरण में पहले से ज्यादा समानता ।
(ii) व्यक्तियों, समूहों और समुदायों द्वारा आत्मविकास के कामों में सहायता देने के लिए जन सहभागिता, ज्ञान की साझेदारी और सशक्तिकरण ।
(iii) स्थानीय संसाधनों में निहित संभावना पर बल देते हुए, आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता ।
(iv) जनसंख्या वृद्धि को सीमित करना ।
(v) विकास को सहायता पहुंचाने के लिए ‘उचित’ तकनीक को ‘बड़ी’ आधुनिक तकनीकों के साथ एकरूप करना ।
अरविंद सिंघल समकालीन विकास प्रशासन सिद्धांत में दो रुझानों की भी पहचान करते हैं:
(i) ब्लू-प्रिंट से सीखने की प्रक्रिया की और:
ब्लू प्रिंट उपागम सख्त और बंद-छोर (Close-Ended) वाला है जबकि सीखने का उपागम लचीला और खुले-छोर वाला है । अरविंद सिंघल टिप्पणी करते हैं- “ब्लू-प्रिंट उपागम जनता ‘के लिए’ उन्नत योजना निर्माण पर जोर डालता है । सीखने-की-प्रक्रिया उपागम जनता ‘के साथ’ योजना-निर्माण और एक विकास कार्यक्रम को प्रशासित करने की प्रक्रिया में इस काम को करने पर जोर देता है ।”
(ii) उत्पादन-केंद्रित से जनता केंद्रित की और:
उत्पादन-केंद्रित उपागम निवेश पर लाभ को अधिकतम बनाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर जोर देता है । यह औद्योगिक विकास और शहरी विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करता है ।
इसके विपरीत जनता-केंद्रित उपागम (जिसे सहभागिता उपागम के नाम से भी जाना जाता है) जनता की जरूरतों, जनता के सशक्तिकरण, जिम्मेदार प्रशासन के विकास, अधिक सामाजिक-आर्थिक समानता, आत्म-निर्भरता, जन-सहभागिता, मानव विकास व सुस्वास्थ्य और पोषणीयता पर जोर देता है ।