Read this article in Hindi to learn about the new challenges to politics in India.

1990 के दशक में भारतीय राजनीति की एक नयी प्रवृत्ति साम्प्रदायिकता की राजनीति में आये उबाल से है, जिसने लोकतंत्र तथा पंथनिरपेक्षता के लिये नयी चुनौती खड़ी कर दी है । वैसे तो आजादी के पूर्व से ही भारत की राजनीति में साम्प्रदायिकता का तत्व विद्यमान रहा है । धार्मिक आधार पर 1947 में देश के विभाजन के कारण साम्प्रदायिकता भावनाएँ अधिक मजबूत हुईं ।

विश्लेषकों का अनुमान था कि जैसे-जैसे भारत में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती जायेंगी साम्प्रदायिकता राजनीति कमजोर होती जायेगी । लेकिन 1990 के दशक में यह अनुमान गलत निकला । शाहबानो मामला, बाबरी मस्जिद का विध्वंस, गुजरात के दंगे आदि घटनाओं ने भारत में साम्प्रदायिकता की राजनीति का एक नया चेहरा प्रस्तुत किया । भारत की वर्तमान राजनीति को समझने लिये इसका अध्ययन आवश्यक है ।

हिन्दुत्व क्या है? (What is Hinduism?):

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पूर्ववर्ती जनसंघ तथा वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी को हिन्दुत्व की विचारधारा कहा जाता है । विपक्षी पार्टियों इसका समुचित अर्थ लेती हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी स्वयं इसकी उदारवादी व्याख्या करती है स्वयं सेवक संघ के प्रमुख दोत वीर सावरकर के अनुसार हिन्दू वह व्यक्ति जो भारत को अपनी पितृभूमि मानता है । अर्थात हिन्दुत्व भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है ।

उनके अनुसार हिदुत्व का अर्थ किसी धर्म विशेष से वहां लगाया जाना बल्कि यह भारत के निवासियों की सांस्कृतिक पहचान है प्रसिद्ध दार्शनिक एवं भारत के पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्णन के अनुसार हिन्दुत्व धार्मिक एकरूपता व समानता पर बल नहीं देता, बल्कि इसका संबंध जीवन में एक नैतिक और आध्यात्मिक विचार अपनाने से है ।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी 11 दिसम्बर 1995 को अपने एक निर्णय में हिन्दुत्व को भाषित करने का किया है । इस निर्णय के अनुसार हिन्दू, हिन्दुत्व तथा हिन्दूवाद कोई खास अर्थ नहीं है । वास्तव में हिन्दुत्व भारतीय महाद्वीप में रहने वाले लोगों की जीवन शैली का ही नाम है ।

1. शाहबानो केस (Shahbano Case):

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1985 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मध्य प्रदेश की शाहबानो नामक मुस्लिम महिला का यह मामला आया कि उसे भारत के नागरिक कानूनी के अनुसार अपने तलाकशुदा पति भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है अथवा नहीं । मुस्लिम कानूनों के अनुसार तलाकशुदा महिला को पति से शादी के समय नियत धनराशि अथवा मेहर प्राप्त होती है, लेकिन उसे नियमित भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है ।

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम कानून की व्यवस्था को बदलते हुए यह निर्णय दिया कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी अपने पति से नियमित भरण पोषण पाने का अधिकार है । कोर्ट ने तर्क यह दिया कि जो कानून देश की अन्य महिलाओं पर लागू है, वही कानून मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होगा ।

मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को मुस्लिम पर्सनल लॉं के विरुद्ध मानते हुए अपने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप माना । कतिपय राजनीतिक दलों ने भी वोट बैंक की राजनीति के चलते मुस्लिम समुदाय के इस तर्क का समर्थक किया ।

1986 में राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने इस संबंध में एक अधिनियम पारित किया जिसका प्रभाव सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त करना था । प्रगतिशील समूहों ने सरकार के इस अधिनियम की आलोचना की । भारतीय जनता पार्टी ने इसका पूरा फायदा उठाया तथा कांग्रेस की सरकार को महिला विरोधी सिद्ध करने की कोशिश की । कांग्रेस के ऊपर मुसलमानों के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाने का आरोप लगाया गया ।

2. समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code):

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समान नागरिक संहिता का तात्पर्य सभी धर्मों व जातियों के लोगों के लिए एक जैसे पारिवारिक कानूनों का होना है । पारिवारिक कानूनों का सम्बन्ध विवाह, तलाक सम्पत्ति का उत्तराधिकार आदि से सम्बन्धित कानूनों से है । भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 44 में राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह सभी धर्मों के लिए एक जैसी नागरिक संहिता लागू करे ।

वर्तमान में भारत में मुस्लिम समुदाय के ऊपर सरकार द्वारा बनाये गये पारिवारिक कानून नहीं लागू होते । वहाँ धार्मिक कानून शरियत को लागू किया जाता है । इसका परिणाम यह हुआ है कि वहाँ तलाक तथा भरण पोषण के मामलों में महिलाएँ शोषण की शिकार हैं ।

समय-समय पर मुस्लिम समुदाय के लिए भी समान नागरिक संहिता लागू करने की बात उठाई गयी है । सर्वोच्च न्यायालय ने 1995 मे एक मामले में समान नागरिक संहिता लागू करने का सुझाव दिया था इसके बाद पुन: जुलाई 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता लागू करने की बात दोहराई है लेकिन सरकार ने अभी तक मुस्लिम समुदाय के लिए समान नागरिक सहिता लागू नहीं की है ।

इसका मुख्य कारण यह है कि मुस्लिम समुदाय इस तरह के कानूनों को अपने धार्मिक मामलों में हस्ताक्षेप के रूप में लेता है तथा विभिन्न राजनीतिक दल तुष्टिकरण और मुस्लिम वाट बैंक की राजनीति के चलते मुस्लिम समुदाय के लिए समान नागरिक संहिता का समर्थन नहीं करते । निष्कर्ष यह है कि यह एक राजनीतिक विवाद का मामला बन गया है और अभी तक सरकार समान नागरिक संहिता को नहीं लागू कर पायी ।

3. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Janmabhoomi-Babri Masjid Controversy):

मध्य युग में मुगल शासक बाबर के शासनकाल में उत्तर प्रदेश के अयोध्या नामक स्थान पर उनके सेनापति मीरबाकी द्वारा एक मस्जिद का निर्माण कराया गया था । हिन्दुओं की मान्यता यह है कि राम का जन्म जिस स्थान पर अयोध्या में हुआ उसी स्थान पर अr में स्थित मन्दिर को तोड़कर यह मस्जिद बनाई गयी थी । लम्बे समय से हिन्दू संगठन इस मन्दिर की पुनर्स्थापना की माँग कर रहे थे । लेकिन सरकार ने विवाद को रोकने के लिए इस मस्जिद पर ताला लगा दिया था ।

1980 के दशक में विश्व हिन्दू परिषद् ने यह ताला खोलने की माँग की ताकि हिन्दू वहाँ जाकर पूजा-अर्चना कर सकें । इस मामले को फैजाबाद की जिला अदालत में भी ले जाया गया । अदालत ने 2 फरवरी, 1986 को ताला खोलने का आदेश दिया ।

इसके बाद नवम्बर 1989 में उसी स्थान पर हिन्दुओं द्वारा मन्दिर का शिलान्यास किया गया तथा वहाँ पर एक बडे राम मन्दिर के निर्माण का संकल्प लिया गया । उल्लेखनीय है कि उस समय केन्द्र तथा उत्तर प्रदेश दोनों में कांग्रेस की सरकारें थी तथा उनके द्वारा इस शिलान्यास का विरोध नहीं किया गया ।

बाबरी मस्जिद का विध्वंस (Demolition of Babri Masjid):

राम मन्दिर का निर्माण धीरे-धीरे हिन्दुओं के लिए एक अस्मिता का प्रश्न बन गया । भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्‌दे को जोर-शोर से उठाया । लेकिन उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण तभी हो सकता है जब मस्जिद को गिराया जाये । अत: 6 दिसम्बर, 1992 को करीब 4 लाख हिन्दू कार सेवक विश्व मन्दिर परिषद् के आह्वान पर अयोध्या में एकत्र हुए ।

कार सेवक उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो धार्मिक उद्देश्य के लिए नि:स्वार्थ कार्य करते है । कार सेवकों की भीड़ अनियन्त्रित थी । अत: 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढाँचा कार सेवकों द्वारा गिरा दिया गया ।

इस घटना की देश और विदेश में व्यापक निंदा हुई तथा अन्य पार्टियों व समूहों द्वारा भारतीय जनता पार्टी को एक साम्प्रदायिक पार्टी घोषित कर दिया गया । फिर भी इसी घटना के कारण उसे हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग का समर्थन भी प्राप्त हुआ । इस घटना के समय केन्द्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी तथा उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी ।

बाबरी मस्जिद विध्वंस की प्रतिक्रिया:

बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना प्रतिक्रिया देश व विदेश दोनों जगह हुई ।

इसके निम्न परिणाम सामने आये:

i. केन्द्र सरकार ने इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी सरकारों को भंग कर दिया । सर्वोच्च न्यायालय ने 11 मार्च 1994 को दिये गये अपने एक निर्णय में इन सरकारों की बर्खास्तगी को उचित बताया ।

ii. इस घटना से सम्प्रदायिकता और पंथनिरपेक्षता की बहस भारतीय रजनीति प्रक्रिया के केन्द्र में आ गयी । कई समूहों तथा संगठनों ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती माना तथा भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक पार्टी के रूप में चित्रित किया गया ।

iii. भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं जैसे- लालकृष्ण आणवानी आदि को हिरासत में ले लिया गया तथा कई हिन्दूवादी संगठनों जैसे- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् आदि की गतिविधियों पर कानूनी प्रतिबन्ध लगा दिया गया ।

iv. इस घटना के परिणामस्वरूप कई अन्य स्थानों पर भी हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए । जनवरी 1993 में मुम्बई में भी इस प्रकार के दंगे हुए तथा कई निर्दोष हिन्दुओं को जान-माल का नुकसान हुआ ।

v. इस घटना की प्रतिक्रिया विदेशों में भी देखने को आयी । पाकिस्तान बांग्लादेश इंग्लैण्ड आदि देशों में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिन्दू मन्दिरों तथा धर्मस्थलों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया ।

लिब्राहन आयोग (Libertine Commission):

बाबरी मम्बिद विध्वंस की घटना की जाँच करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 16 दिसम्बर, 1992 को एक आयोग का गठन किया गया, जिसे लिब्राहन आयोग के नाम से जानते हैं । इस आयोग ने 30 मई, 2009 को अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी । रिपोर्ट में भारतीय जनता पार्टी तथा अन्य हिन्दूवादी संगठनों को बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए उत्तरदायी पाया गया है । इसके बाद पुन: बाबरी मस्जिद विध्वंस का मामला आरोप-प्रत्यारोप का विषय बन गया ।

ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ नरसिम्हा राव के नेतृत्व में तत्कालीन कांग्रेस सरकार को भी इस घटना के लिए दोषी बताया । दूसरी तरफ तत्कालीन गृहमंत्री एस.बी. चौहान तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल दोनों का मानना था कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक सुनियोजित घटना नहीं थीं ।

गोधरा कांड तथा गुजरात के साम्प्रदायिक दंगे, 2002 (Godhra Carnage and Communal Riots in Gujarat, 2002):

बाबरी मस्जिद विध्वंस का प्रभाव देश के अन्य हिस्सों में भी हुआ । फरवरी 2002 में गुजरात से बड़ी संख्या में कार सेवक मंदिर निर्माण के लिए राम शिलायें (ईटें) लेकर अयोध्या गये थे । 27 फरवरी, 2002 को ये कार सेवक साबरमती एक्सप्रेस से वापस आ रहे थे, लेकिन गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर उस बोगी में आग लगाई गई जहाँ ये कार सेवक सवार थे ।

परिणामस्वरूप 57 कार सेवक जिंदा जल गये । पुलिस ने तात्कालिक प्रतिक्रिया स्वरूप गोधरा के नगरपालिका अध्यक्ष मोहम्मद हुसैन कलोटा सहित पाँच व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया । गुजरात के हिन्दुओं को विश्वास था कि मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है, अत: गुजरात के विभिन्न शहरों में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे । इन दंगों में आगजनी लूटपाट तथा हिंसा की घटनायें हुईं । गुजरात सरकार ने हिंसा को नियन्त्रित करने के लिए कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया । ये दंगे करीब एक महीने तक चलते रहे ।

गुजरात के इन साम्प्रदायिक दंगों में 1044 लोगों की जानें गयीं जिनमें से 254 हिन्दू थे तथा 790 मुसलमान थे । इन दंगों की भी विभिन्न समूहों तथा दलों द्वारा निंदा की गयी तथा प्रदेश सरकार को दंगे कराने का दोषी बताया गया । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी गुजरात सरकार पर दंगे रोकने में शिथिलता बरतने का आरोप लगाया था ।

निष्कर्षत: 1990 के दशक में उक्त घटनाओं ने साम्प्रदायिकता बनाम पंथनिरपेक्षता के मुद्‌दों को भारतीय राजनीति का केन्द्रीय विषय बना दिया । भारतीय जनता पार्टी को अन्य दलों द्वारा साम्प्रदायिक घोषित करते हुए उससे दूरी बनाने की कोशिश की ।

भारतीय जनता पार्टी ने अपने को वास्तविक पंथनिरपेक्ष पार्टी बताया तथा दूसरे दलों की पंथनिरपेक्षता को नकली पंथनिरपेक्षता की संज्ञा दी क्योंकि उसमें अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की बात निहित है । इस विवाद के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में समर्थन प्राप्त हुआ तथा पार्टी 1999 में केन्द्र में सरकार बनाने में सफल हुई ।

4. वोट बैंक की राजनीति (Vote Bank Politics):

वोट बैंक की राजनीति का तात्पर्य राजनीतिक दलों द्वारा किसी समूह अथवा समुदाय के मतों को सामूहिक रूप से अपने पक्ष में का प्रयास है । वोट बैंक की राजनीति का प्रयोग राजनीतिक दलों द्वारा अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम समुदाय के मतों को प्रभावित करने के संदर्भ में किया जाता हैं ।

चूंकि अल्पसंख्यक समुदाय राजनीतिक व सामाजिक रूप से अधिक संगठित होते हैं, अत: कतिपय राजनीतिक दल उस समुदाय के हितों से संबन्धित मुद्‌दों को उठाकर उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं । कई बार यह मुद्दे अव्यवहारिक भी होते हैं लेकिन समुदाय विशेष पर उनका भावनात्मक प्रभाव अधिक होते है ।

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