Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारत का योजना आयोग (Planning Commission of India) 2. राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council) 3. विकेन्द्रीकृत नियोजन तथा जिला योजना समिति (Decentralized Planning and District Planning Committee).

भारत का योजना आयोग (Planning Commission of India):

स्वतंत्रता के बाद जब देश की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथ में आयी तो उन्होंने नियोजित विकास को सर्वाधिक प्रमुखता दी । सर्वप्रथम मार्च 1950 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के एक कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा भारत में नियोजन के लिए योजना आयोग की स्थापना की गयी । योजना आयोग का गठन 1946 में के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में गठित योजना सलाहकार बोर्ड की सिफारिश पर किया गया था ।

स्पष्ट है कि योजना आयोग एक संवैधानिक संस्था नहीं है और न ही यह संसद के कानून द्वारा स्थापित विधिक संस्था है । मूलत: योजना आयोग केन्द्र सरकार के एक कार्यकारी आदेश द्वारा गठित संस्था है । चूंकि इसके अध्यक्ष पदेन रूप से भारत के प्रधानमंत्री ही होते हैं इसलिए इसका महत्व बढ़ गया है ।

‘आयोजन’ विषय को भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अन्तर्गत समवर्ती सूची में शामिल किया गया है । इसका तात्पर्य यह है कि आयोजन के सम्बन्ध में कानून निर्माण का अधिकार केन्द्र व राज्य दोनों को है । इसी प्रावधान के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा योजना आयोग की स्थापना की गयी ।

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कार्य:

15 मार्च 1950 के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के कार्यकारी प्रस्ताव में योजना आयोग के निम्न सात कार्यों का उल्लेख किया गया है:

1. देश के भौतिक, पूंजीगत एवं मानवीय संसाधनों का आकलन करना तथा उनमें वृद्धि करने की संभावनाओं की पड़ताल करना ।

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2. इन संसाधनों के सर्वाधिक प्रभावी और संतुलित उपयोग हेतु योजनाओं का निर्माण करना ।

3. योजना की प्रमुखताओं तथा उन चरणों का निर्धारण करना जिनके माध्यम से योजना को क्रियान्वित किया जायेगा ।

4. उन तत्वों को चिह्नित करना जो देश के आर्थिक विकास में बाधा पहुंचा रहे हैं ।

5. प्रत्येक चरण में योजना के सफल क्रियान्वयन हेतु प्रशासनिक मशीनरी का निर्धारण करना ।

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6. समय-समय पर योजना के क्रियान्वयन में हुई प्रगति का आंकलन करना तथा आवश्यकतानुसार समायोजन की सिफारिश करना ।

7. अपने कार्य निष्पादन को सुगम बनाने के लिए अथवा केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा किसी सन्दर्भित विषय में सलाह माँगे जाने पर उचित सिफ़ारिशें करना ।

राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council):

राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना योजना आयोग की ही तरह केन्द्र सरकार के एक कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा अगस्त 1952 में की गयी थी । इसकी स्थापना की संस्तुति प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत की गयी थी । योजना आयोग की तरह राष्ट्रीय विकास परिषद् भी न तो एक संवैधानिक संस्था है और न ही एक विधि द्वारा निर्मित संस्था है ।

गठन:

राष्ट्रीय विकास परिषद् में निम्नलिखित सदस्य होते हैं:

1. भारत का प्रधानमंत्री इसका पदेन अध्यक्ष होता है

2. सभी केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं ।

3. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी इसके पदेन सदस्य होते हैं । इसके साथ ही केन्द्रशासित राज्यों के मुख्यमंत्री और प्रशासक भी इसके सदस्य होते हैं ।

4. योजना आयोग के सभी सदस्य राष्ट्रीय विकास परिषद् के पदेन सदस्य होते हैं ।

उद्देश्य:

केन्द्र सरकार के अगस्त 1952 के प्रस्ताव में राष्ट्रीय विकास परिषद् के जिन उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है ।

वह निम्नलिखित हैं:

(i) राष्ट्रीय विकास परिषद का मुख्य उद्देश्य पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन में राज्यों का सहयोग प्राप्त करना है ।

(ii) पंचवर्षीय योजनाओं की सहायता हेतु राष्ट्रीय संसाधनों को बढ़ाना तथा उनको मजबूत बनाने के प्रयास करना ।

(iii) सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सामान्य आर्थिक नीतियों को प्रोत्साहित करना ।

(iv) देश के सभी क्षेत्रों का तीव्र व संतुलित विकास सुनिश्चित करना । चूंकि भारत में संघात्मक व्यवस्था को लागू किया गया है तथा योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है, अत: केन्द्र व राज्यों के मध्य योजना के निर्माण व क्रियान्वयन में समन्वय स्थापित करना ही राष्ट्रीय विकास परिषद् का मुख्य कार्य है । भारत में राज्य योजनागत् धन के आबंटन में दलीय आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा भेदभाव करने की शिकायत करते रहते हैं ।

योजनागत् विकास के लक्ष्य:

भारत में यद्यपि समय व परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न लक्ष्यों को प्राथमिकता प्रदान की गयी है, लेकिन भारत में नियोजन के कतिपय अधारभूत उद्देश्य है ।

जिनका उल्लेख निम्नलिखित है:

1. तीव्र आर्थिक वृद्धि जिससे राष्ट्रीय व प्रति व्यक्ति आय बढ़ोत्तरी की जा सके ।

2. रोजगार के अवसरों का बढ़ाना व गरीबी निवारण ।

3. सम्पत्ति व आय की असमानताओं को कम करना ।

4. सामाजिक न्याय को लागू करना ।

इन आधारभूत उद्देश्यों के साथ-साथ विभिन्न योजनाओं में भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को प्राथमिकता प्रदान की गयी है । अब तक भारत में 11 योजनाओं को लागू किया जा चुका है तथा बारहवीं योजना वर्तमान में लागू है ।

इनमें से कुछ प्रमुख योजनाओं का उल्लेख किया जा रहा है:

1. पहली पंचवर्षीय योजना [First Five Year Plan (1951-56)] :

प्रथम पंचवर्षीय योजना का आकार तो छोटा था, लेकिन इसके ड्राफ्ट प्रस्ताव पर देश के अर्थशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों तथा नीति निर्माताओं में विभिन्न मुद्‌दों पर तीव्र बहस हुयी थी, क्योंकि यह देश के विकास की पहली योजना थी । इस योजना का प्रमुख उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध तथा देश के विभाजन से लेकर हुयी अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाना था । विभाजन के कारण खाद्यान्न का संकट गंभीर रूप धारण कर गया था, क्योंकि कृषि उत्पादन के महत्वपूर्ण क्षेत्र विभाजन में पाकिस्तान को प्राप्त हो गये थे ।

भारत उस समय अपनी खाद्यान्न आवश्यकताओं के लिए विदेशी निर्यात पर निर्भर था । इसीलिये इस योजना में कृषि विकास तथा सिंचाई व बिजली उत्पादन को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गयी थी । सिंचाई तथा विद्युत् परियोजनाओं में भाखड़ा-नांगल परियोजना को प्राथमिकता के आधार पर लागू किया गया ।

कृषि उत्पादन बढ़ाने में भूमि सुधारों को आवश्यक माना गया तथा इसीलिये भूमि सुधारों का व्यापक कार्यक्रम लागू किया गया, जिसमें जमींदारी उन्मूलन प्रमुख कार्यक्रम था । ग्रामीण जनता का जीवन स्तर उठाने तथा ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास करने के लिये 2 अक्टूबर, 1952 को देशव्यापी सामुदायिक विकास कार्यक्रम लागू किया गया । 1953 में कृषि विकास के लिये नेशनल एक्सटेंशन सर्विस योजना लागू की गयी । रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की दृष्टि से छोटे तथा कुटीर उद्योगों को भी प्रोत्साहित किया गया ।

2. दूसरी पंचवर्षीय योजना [Second Five Year Plan(1956-1961)]:

दूसरी योजना में तीव्र औद्योगीकरण तथा बड़े व आधारभूत उद्योगों के विकास को प्राथमिकता प्रदान की गयी थी । यह योजना प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पी. सी. महलनोविस के निर्देशन में तैयार की गयी थी । इस योजना में अगले पाँच वर्षों में राष्ट्रीय आय में 25 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था । तीव्र औद्योगीकरण के प्रमुख लक्ष्य के अन्तर्गत कोयला, लोहा सीमेण्ट, स्टील, भारी रसायन, बिजली, यातायात व संचार के साधनों के विकास को प्राथमिकता प्रदान की गयी थी ।

दूसरी पंचवर्षीय योजना की मुख्य उपलब्धि यह थी कि योजना काल में दुर्गापुर, राउरकेला तथा भलाई में बड़े स्टील प्लाण्टों की स्थापना की गयी थी । दुर्गापुर प्लाण्ट ब्रिटेन की सहायता से, राउरकेला कारखाना जर्मनी की तकनीकी सहायता से तथा भलाई स्टील प्लाण्ट सोवियत संघ की सहायता से स्थापित किया गया था ।

इसी योजना के काल में चितरंजन, पश्चिम बंगाल में स्थित रेल इंजिन कारखाने की उत्पादन क्षमता का विस्तार किया गया था । इस योजना के द्वारा समाज के समाजवादी ढाँचे के लक्ष्य को भी करने का प्रयास किया गया । इसमें सामाजिक न्याय तथा लोक कल्याण को समाहित किया गया था ।

समाज का समाजवादी ढाँचा क्या है? (What is Socialist Pattern of Society?)

‘समाज का समाजवादी ढाँचा’ के प्रस्ताव को कांग्रेस के अवाडी अधिवेशन में 1955 में स्वीकार किया गया था । नेहरू के समय तथा उनके बाद भी कांग्रेस की आर्थिक नीतियों का मार्गदर्शन इसी प्रस्ताव द्वारा किया गया । प्रस्ताव के अनुसार उत्पादन के साधनों को धीरे-धीरे सामाजिक नियंत्रण में लाया जायेगा तथा आय व सम्पत्ति का वितरण समानता व न्याय के आधार पर होगा ।

समानता व न्याय के साथ आर्थिक विकास ही समाज के समाजवादी ढाँचे की अवधारणा का मूल तत्व है । इस सिद्धान्त का समावेश नीति निर्देश के सिद्धान्तों के अनुच्छेद 37 में दिया गया है, जिसके अनुसार आर्थिक साधनों का नियंत्रण तथा अर्थव्यवस्था का संचालन लोकहित में किया जायेगा । अनुच्छेद 38 के अनुसार राज्य विभिन्न वर्गों के मध्य आय तथा सम्पत्ति की असमानता को दूर करने का प्रयास करेगा ।

भारत में इस समाजवादी लक्ष्य को पूरा करने के लिये कई उपाय अपनाये गये, जैसे- जमींदारी उन्मूलन, राज्य के नियंत्रण में नियोजित विकास, मिश्रित अर्थव्यवस्था के सरकारी क्षेत्र का प्रभुत्व, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, 1971 में देशी राजाओं को सालाना पेंशन के रूप में प्रिवी पर्स की समाप्ति, 1978 में सम्पत्ति के मौलिक अधिकार की समाप्ति तथा कमजोर वर्गों के लिये विशेष नीतियों व कार्यक्रमों का संचालन आदि ।

3. तीसरी पंचवर्षीय योजना [Third Five Year Plan]:

तीसरी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1961 से 1966 तक था । इस योजना में भारत को आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर बनाने के उपाय किये गये ।

इस योजना के प्रमुख लक्ष्य निम्न थे:

(i) राष्ट्रीय आय में पाँच प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि ।

(ii) खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की प्राप्ति ।

(iii) रोजगार के अवसरों में वृद्धि । ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर विशेष बल दिया गया ।

(iv) आर्थिक आत्म-निर्भरता की दृष्टि से भारी उद्योगों का विकास ।

तीसरी योजना में कुल 2378 करोड़ रुपये व्यय के लिये आवंटित किये गये । योजनावधि में राष्ट्रीय आय में 17.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो तत्कालीन परिस्थितियों के हिसाब से संतोषजनक थी ।

योजनावकाश:

1965 के भारत-पाक युद्ध तथा 1966 में आये सूखे के चलते देश की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर हो गयी थी । अत: 1966 से 1969 की अवधि में कोई पंचवर्षीय योजना लागू नहीं हो सकी थी । इसे पंचवर्षीय योजनाओं का अवकाश काल कहा जाता है । इस अवधि में तीन वार्षिक योजनाएं लागू की गईं ।

इसी तरह, 1 अप्रैल 1979 से 31 मार्च 1980 की अवधि में भारत में कोई पंचवर्षीय योजना लागू नहीं थी । अत: इस वर्ष भी वार्षिक योजना ही लागू की गयी थी । भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल को आरंभ होता है तथा 31 मार्च को समाप्त होता है । अत: प्रत्येक नयी योजना की शुरूआत 1 अप्रैल से ही होती है ।

1990 से 1992 के मध्य भी भारत में किसी पंचवर्षीय योजना को नहीं लागू किया जा सका । इसका कारण यह था कि आर्थिक उथल-पुथल व नीतिबद्ध बदलावों के आलोक में आठवीं पंचवर्षीय योजना को 1 अप्रैल 1992 को लागू किया जा सका था । आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाने के बाद यह पहली योजना थी ।

4. बारहवी पंचवर्षीय योजना [Twelfth Five Year Plan, (2012-2017)]:

12वीं पंचवर्षीय योजना में तीव्र जीवन्त तथा समेकित विकास को मुख्य लक्ष्य घोषित किया गया है ।

इस व्यापक लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

1. 12 वीं योजना में आर्थिक वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत निर्धारित की गयी थी लेकिन विषम आर्थिक परिस्थितियों के चलते इसे बाद में कम करके 7 प्रतिशत कर दिया गया है । कृषि विकास का लक्ष्य 4 प्रतिशत रखा गया है । कृषि विकास के लिए जल प्रबन्धन, भूमि संरक्षण, शोध उत्तम बीजों व खादों का प्रबन्धन तथा कृषि बीमा का विस्तार किया जायेगा ।

2. इस योजना का तीसरा प्रमुख लक्ष्य सड़क, रेल, बन्दरगाह तथा हवाई परिवहन की क्षमता का विस्तार करना तथा उसका आधुनिकीकरण करना है । सड़क परिवहन के विकास में पी. पी .पी. मॉडल अर्थात् सरकारी क्षेत्र व निजी क्षेत्र के बीच भागीदारी के आधार पर किया जायेगा । रेलवे में आधुनिकीकरण को प्राथमिकता दी जायेगी तथा महत्वपूर्ण नगरों को वायु मार्ग से जोड़ा जायेगा ।

3. 12वीं योजना का एक मुख्य उद्देश्य ग्रामीण रूपान्तरण है । इसके लिए ग्रामीण ढाँचागत सुविधाओं को मजबूत किया जायेगा ।

4. इस योजना में महिला व बाल स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया गया है । इसके लिए अधारभूत सुविधाओं को बढ़ाया जायेगा ।

5. 12वीं योजना में 2012 से 2020 के दशक को नवाचार (Innovation) दशक के रूप में घोषित किया गया है । अत: 12वीं योजना के अंतर्गत नवाचार के क्षेत्र में विशिष्ट व विस्तृत प्रयास किये जायेंगे ।

विकेन्द्रीकृत नियोजन तथा जिला योजना समिति (Decentralized Planning and District Planning Committee):

1950 से भारत में केन्द्रीकृत नियोजन की प्रणाली लागू है, जिसके अंतर्गत सारे देश की विकास योजना का निर्माण एक केंद्रीय संस्था-योजन आयोग

तथा स्तर पर लागू जाता । इस योजना का टाप डाउन मॉडल भी कहते है । इसकी सबसे बड़ी कमी है कि इसमें स्तर की विशिष्ट विकास समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है और न ही योजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन में जनता की भागीदारी हो सकती है ।

इन कमियों को दूर करने के लिये विकेन्द्रीकृत योजना को अपनाया जाता है, जिसे बॉटम-अप मॉडल भी कहते हैं । इसमें योजना को निचले स्तर पर तैयार किया जाता तथा बाद में उन्हें केन्द्रीय योजना में समाहित कर लिया जाता है । भारत में जिला योजना ही विकेन्द्रीकृत योजना का रूप है ।

भारत में जिला योजना की शुरुआत 74में संविधान संशोधन, 1992 से की गयी. जिसका सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू जिला योजना समिति की स्थापना है । जिला योजना समिति की स्थापना का प्रावधान अनुच्छेद-243 जेड डी में किया गया है । उल्लेखनीय है कि जिला योजना समिति की सिफारिश हनुमन्त राव कमेटी द्वारा 1984 में की गयी थी । बार संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है तथा जिला योजना की स्थापना को सभी राज्यों में बाध्यकारी बना दिया गया है ।

जिला योजना समिति से सम्बन्धित संवैधानिक प्रावधान यह है कि प्रत्येक राज्य में जिले स्तर पर एक जिला योजना समिति होगी, जिसका कार्य जिले की पंचायतों और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार की गयी विकास योजनाओं को समेकित कर सम्पूर्ण जिले की विकास योजना तैयार करना है ।

जिला योजनाओं को राज्य योजना में शामिल किया जायेगा तथा राज्य योजनाओं को केन्द्रीय योजना में समाहित किया जायेगा इस प्रकार योजना निर्माण का कार्य नीचे से ऊपर की ओर चलेगा ।

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