Read this article in Hindi to learn about the reorganization of states in India on the basis of language.
आयोग ने सैद्धान्तिक तौर पर भाषा को राज्य गठन का आधार मानते हुए निम्न कसौटियों के आधार पर नये राज्यों के गठन की संस्तुति की:
(i) उस क्षेत्र में भाषायी और सांस्कृतिक एकता की स्थिति क्या है ?
(ii) प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से नये राज्य का गठन उचित है अथवा नहीं ?
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(iii) नये राज्य का गठन आर्थिक और वित्तीय स्थिति के दृष्टि से उचित है अथवा नहीं ?
राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया तथा उन्हें लागू करने के लिए संसद द्वारा 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया । इस अधिनियम के अनुसार 1956 में भारतीय संघ में 14 राज्य तथा 6 केन्द्रशासित प्रदेशों का गठन किया गया ।
भाषायी आधार पर नये राज्यों की माँग (Demand for New States on Linguistic Basis):
1956 में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद भी भाषा के आधार पर नये राज्यों की माँग उठती रही । उदाहरण के लिए 1 मई, 1960 को बम्बई प्राप्त का पुनर्गठन किया गया तथा मराठी भाषा-भाषियों को महाराष्ट्र प्रान्त के अंतर्गत तथा गुजराती भाषा-भाषियों को नये प्रान्त गुजरात के अंतर्गत शामिल किया गया ।
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इसी तरह 1966 में पंजाब प्रान्त का विभाजन किया गया तथा पंजाबी भाषा वालों के लिए पंजाब व हिन्दी भाषा वालों के लिए हरियाणा एवं पहाड़ी भाषा वालों के लिए हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया । 1971 में हिमाचल प्रदेश को केन्द्रशासित प्रदेश से उच्चीकृत पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया ।
पूर्वोत्तर राज्यों में भाषायी व सांस्कृतिक आधार पर पुनर्गठन की प्रक्रिया 1972 में पूरी हुई । इसके अंतर्गत असम राज्य का विभाजन करके मेघालय, मणिपुर तथा त्रिपुरा तीन राज्य बनाये गये तथा अरूणाचल प्रदेश व मिजोरम को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में गठित किया गया । 1987 में अरूणाचल प्रदेश व मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया । उल्लेखनीय है कि नागालैण्ड राज्य का गठन 1963 में ही कर दिया गया था ।
अन्य आधारों पर नये राज्यों की माँग (Demand for New States on Other Grounds):
नये राज्यों की माँग भारतीय राजनीति में निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । अन्तर यह है कि अब भाषायी आधार पर राज्यों की मांग अधिक प्रबल नहीं है, लेकिन सांस्कृतिक आधार तथा विकास में पिछड़ेपन के आधार पर नये राज्यों की माँग निरन्तर जोर पकडू रही है । 1987 में गोवा जो कि एक केन्द्रशासित प्रदेश था उसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया तथा इसके साथ शामिल दमन व दीव को अलग करके एक अलग केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में गठित कर दिया गया ।
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इस तरह की माँग के लिए मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़, बिहार के झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश के उत्तराखंड में विकास व सांस्कृतिक दोनों आधारों पर अलग राज्य के गठन का आन्दोलन चलाया गया । परिणामत: वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़, झारखण्ड तथा उत्तराखण्ड राज्यों का गठन किया गया ।
नया राज्य तेलंगाना (New State of Telangana):
इस प्रकार भारतीय संघ में 2012 तक 28 राज्य तथा 7 केन्द्र-शासित प्रदेश अस्तित्व में थे । 2013 न में केन्द्र सरकार ने आन्ध्र प्रदेश राज्य का बँटवारा करके तेलंगाना नामक नये राज्य की स्थापना पर अपनी सहमति व्यक्त की है । अत: शीघ्र ही तेलंगाना नामक राज्य का निर्माण हो जायेगा तथा यह भारतीय संघ का 29वाँ राज्य है । पिछड़ेपन के आधार पर तेलंगाना क्षेत्र के निवासी लम्बे समय से अलग राज्य की माँग के पक्ष में आन्दोलन चला रहे थे । इस आन्दोलन का नेतृत्व तेलंगाना राष्ट्र समिति द्वारा किया जा रहा है ।
तेलंगाना में आन्ध्र प्रदेश के दस जिले शामिल किये जायेंगे जिसमें वहाँ की राजधानी हैदराबाद भी शामिल है । तेलंगाना क्षेत्र आजादी के पहले हैदराबाद की देशी रियासत का अंग था । 1948 में यह देशी रियासत भारत में शामिल हो गयी तथा 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद इसे आन्ध्र प्रदेश राज्य में शामिल कर दिया गया था ।
यह क्षेत्र आन्ध्र प्रदेश के पुराने हिस्सों की तुलना में आर्थिक रूप से पिछड़ा है । तेलंगाना आन्दोलन कई बार हिंसक रूप धारण कर चुका है । नये तेलंगाना राज्य का निर्माण एक विवादास्पद विषय भी बन गया है, क्योंकि पुराने आंध्र प्रदेश के नेता व जनता आन्ध्र प्रदेश के विभाजन का तीव्र विरोध भी कर रहे हैं ।
इसी तरह महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र, गुजरात में सौराष्ट्र उत्तर प्रदेश में हरित प्रदेश तथा बुन्देलखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में गोरखालैण्ड के गठन की माँग उठाई जा रही है । गोरखालैण्ड का आन्दोलन कई बार हिंसक रूप ग्रहण कर चुका है । पहले यह आन्दोलन सुभाष घिसिंग के नेतृत्व में 1980 के दशक में शुरू किया गया था ।
लेकिन वर्तमान में यह आन्दोलन विमल गोरंग के नेतृत्व में गोरखा जन मुक्ति मोर्चा द्वारा चलाया जा रहा है । इस आन्दोलन में पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखालैण्ड नामक अलग राज्य की माँग की जा रही है । केन्द्र सरकार ने अभी केवल वहाँ एक स्वायत्तशासी परिषद् की स्थापना की है ।
राज्यों के पुनर्गठन के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार की चरणबद्ध नीति (Center’s Phased Policy Regarding Restructuring of States):
नये राज्यों की माँग के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार एक चरणबद्ध नीति को अपनाती है, जिसके अंतर्गत माँग के पहले चरण में वार्ता के द्वारा संविधान के अंतर्गत विशेष सुविधाएं देकर सम्बन्धित क्षेत्रों की समस्या के समाधान का प्रयास किया जाता है । इसके बाद सम्बन्धित क्षेत्र को विकास मामलों में स्वायत्ता प्रदान कर स्वायत्तशासी परिषद् का गठन किया जाता है ।
यदि नये राज्य की माँग अधिक तीव्र व न्यायोचित है तो वहाँ पर एक केन्द्र शासित राज्य की स्थापना भी की जा सकती है । यदि माँग अत्यधिक प्रबल है तो अन्तिम उपाय के तौर पर केन्द्र सरकार नये राज्य के गठन का फैसला करती है । स्वाभाविक है कि केन्द्र में स्थित सत्ताधारी ऐसे फैसले करते समय अपने राजनीतिक नफा-नुकसान का आंकलन भी करता है ।
भारतीय राजनीति में भाषायी अस्मिता के अन्य रूप (Other Forms of Linguistic Dissimilarity in Indian Politics):
भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की माँग के अतिरिक्त भारतीय राजनीति में भाषायी अस्मिता के अन्य रूप भी देखने में आते हैं । प्रथम, कई क्षेत्र भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अपनी भाषाओं को सम्मिलित करने का प्रयास करते हैं । यदि कोई क्षेत्रीय भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर ली जाती है तो सरकार उसके प्रचार-प्रसार और साहित्यिक विकास के लिए प्रयास करती है । जब भारत का संविधान बना था जब आठवीं अनुसूची में 14 भाषाओं को शामिल किया गया था ।
वर्तमान में भारत के संविधान में 22 क्षेत्रीय भाषाएँ शामिल हैं, जो निम्नलिखित हैं:
1. असमी,
2. बंगाली,
3. बोडो,
4. डोगरी,
5. गुजराती,
6. हिन्दी,
7. कन्नड,
8. कश्मीरी,
9. कोंकणी,
10. मैथली,
11. मलयालम,
12. मणिपुरी,
13. मराठी,
14. नेपाली,
15. उड़िया,
16. पंजाबी,
17. संस्कृत,
18. संथाली,
19. सिंधी,
20. तमिल,
21. तेलुगू,
22. उर्दू ।
उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान लागू होने के बाद सबसे पहले 1967 में 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया था । 92वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा 4 भाषाओं- बोड़ो, डोगरी, मैथली तथा संथाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था । बोडो असम में, डोगरी जम्मू व कश्मीर में, मैथली बिहार में तथा संथाली झारखण्ड में बोली जाने वाली भाषाएँ हैं ।
द्वितीय, भाषायी अस्मिता की अभिव्यक्ति का दूसरा रूप हिन्दी विरोध के रूप में देखने में आता है । उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के द्वारा हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया था तथा संविधान लागू होने के बाद 15 साल तक अंग्रेजी के प्रयोग को भी पूर्व की भांति अनुमति प्रदान की गयी थी ।
1960 के दशक में दक्षिण राज्यों में हिन्दी का प्रबल विरोध किया गया । इस विरोध के चलते 1965 के बाद भी व्यावहारिक दृष्टि से हिन्दी राजभाषा नहीं बन सकी, क्योंकि नये अधिनियम द्वारा अंग्रेजी को समानान्तर भाषा की स्थिति प्रदान की गयी है । इसका तात्पर्य यह है कि 1965 के पहले अंग्रेजी का प्रयोग जिन कार्यों के लिए होता था वह 1965 के बाद भी होता रहेगा ।
यह बात अलग है कि केन्द्र के गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत् राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं । यद्यपि वर्तमान में हिन्दी का विरोध अहिन्दी क्षेत्रों में कम है। इस सम्बन्ध में केन्द्र सरकार की नीति अहिन्दी भाषी जनता की माँग के समायोजन पर केन्द्रित रही है ।