Read this article in Hindi to learn about the theory of communitarianism.
समुदायवाद की संकल्पना समकालीन राजनीति-चिंतन की विशेषता है । यह व्यक्ति (Individual) की स्थिति और उद्देश्यों के संबंध में उदारवाद या व्यक्तिवाद से भिन्न विचार प्रस्तुत करता है । समुदायवाद के अनुसार, व्यक्ति का अपना अस्तित्व ऐसी सामाजिक स्थिति, भूमिकाओं और रीति-रिवाजों पर आश्रित है जो समाज की देन हैं इन सबके प्रति उसकी प्रतिबद्धता उसके व्यक्तित्व का आवश्यक अंग है ।
जहाँ उदारवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता, हितों और अधिकारों पर जोर देता है, वहाँ समुदायवाद उसके दायित्वों (Obligations) और कर्तव्यों (Duties) तथा समाज के सामान्य हित (Common Interest) पर अपना ध्यान केंद्रित करता है । यह हम सबकी सामान्य पहचान और उन मूल्यों एवं मान्यताओं को विशेष महत्व देता है जिनके प्रति हम सब श्रद्धा रखते है ।
यह एक आधुनिक विचारधारा है जिसके आरंभिक संकेत अरस्तू, रूसो, हेगेल, ग्रीन, आदि विचारकों के चिंतन में मिलते हैं । समकालीन विचारकों में माइकल ओकशॉट और हन्ना आरेंट के विचार समुदायवाद के प्रति संकेत देते हैं परंतु 1980 के दशक में यह एक पूर्ण-विकसित सिद्धांत के रूप में सामने आया ।
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समकालीन चिंतकों में समुदायवाद के सबसे मुखर वक्ता एलेस्थेयर मौकिंटाइर, माइकल सेंडेल, माइकल वाटर और चार्ल्स टेलर, आदि हैं । मैकिंटाइर ने अपनी पुस्तक ‘After Virtue-1981’ के अंतर्गत यह विचार त्यक्त किया है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व और आत्माभिव्यक्ति सामाजिक और समुदायिक बंधनों के तंतुजाल में सार्थक होते हैं ।
सैंडेल ने अपनी कृति ‘Liberalism and the Limits of Justice-1982’ में लिखा है कि अधिकारमूलक उदारवाद (Rights-Based Liberalism) जिस बंधनहीन व्यक्ति (Unencumbered Self) को स्वीकार करके चलता है वह चरित्र, आत्मज्ञान और मैत्री जैसी धारणाओं की यथेष्ट व्याख्या नहीं कर पाता ।
वाल्जर ने अपनी पुस्तक ‘Spheres of Justice-1983’ के अंतर्गत यह विचार व्यक्त किया है कि कल्याणकारी राज्य का औचित्य केवल राज्य की सदस्यता के आधार पर स्थापित किया जा सकता है, अधिकारों की संकल्पना के आधार पर नहीं ।
वहीं चार्ल्स टेलर ने अपनी कृति ‘Sources of the Self-1989’ में हेगेल के दर्शन का विश्लेषण करते हुए यह कहा है कि किसी समुदाय का नैतिक जीवन उसके सदस्यों के इस दायित्व का संकेत देता है कि उन्हें अपने समुदाय में निहित नैतिक संभावनाओं को चरितार्थ करना होगा । इसी दायित्व के माध्यम से मुनष्य की स्वतंत्रता की धारणा को साकार किया जा सकता है ।