Read this article in Hindi to learn about:- 1. संयुक्त राष्ट्र संघ का परिचय (Introduction to the UNO) 2. संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य (Objectives of the UNO) 3. सिद्धान्त (Principles) 4. प्रधान अंग (Important Parts) 5. योगदान  (Contributions ) 6. सुधार की आवश्यकता (Need for Improvement) and Other Details.

Contents:

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ का परिचय (Introduction to the UNO)

  2. संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य (Objectives of the UNO)

  3. ADVERTISEMENTS:

    संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्त (Principles of the UNO)

  4. संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रधान अंग (Important Parts of UNO)

  5. अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा में संयुक्त राष्ट्र का योगदान  (Contribution of UNO in International Peace and Security)

  6. संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की आवश्यकता (Need for Improvement in the UNO)

  7. ADVERTISEMENTS:

    संयुक्त राष्ट्र संघ की कुछ नई महत्वपूर्ण संस्थाएं (Some New Important Organizations of the UNO)

  8. भारत तथा सुरक्षा परिषद में सुधार (Improvements in India and Security Council).


1. संयुक्त राष्ट्र संघ का परिचय (Introduction to the UNO):

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व शांति सुरक्षा के लिए की गयी थी । 26 जून 1945 को सम्पन्न हुये सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 50 देशों ने इसके चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे । अक्टूबर 1945 में पोलैण्ड ने इस पर हस्ताक्षर किये तथा 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर लागू हुआ तथा यह संगठन अस्तित्व में आ गया ।

ADVERTISEMENTS:

भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक देश है तथा प्रत्येक वर्ष 24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस के रूप में मनाया जाता है । वर्तमान में इस संगठन में 193 देश सदस्य हैं । 193वाँ देश दक्षिण सूडान है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ का पूर्ववर्ती संगठन राष्ट्र संघ था जिसकी स्थापना प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद 1919 में सम्पन्न हुई वार्साय की संधि के अंतर्गत की गयी थी । यह संगठन 1920 में अस्तित्व में आया । इसका भी प्रमुख उद्देश्य विश्व शांति व सुरक्षा थी ।

लेकिन जर्मनी द्वारा निरन्तर इसमें असहयोग किये जाने तथा अमेरिका द्वारा इसमें शामिल न होने के कारण यह संगठन प्रभावी नहीं हो सका । इसमें संगठन से सम्बन्धित भी कुछ कमजोरियाँ थीं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में दूर करने का प्रयास किया गया है । अत: हम कह सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ अपने पूर्ववर्ती संगठन राष्ट्र संघ का उन्नत रूप है ।


2. संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य (Objectives of the UNO):

संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर की धारा 1 में इसके उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित हैं:

1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की स्थापना । संयुक्त राष्ट्र सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त पर कार्य करता है ।

2. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना जिसमें हिंसक उपायों की मनाही की गयी है ।

3. सभी राष्ट्रों को आत्मनिर्णय का अधिकार सुनिश्चित करना । इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक राष्ट्र को उपनिवेशवाद से मुक्त होकर स्वतंत्र होने का अधिकार है ।

4. सदस्य राष्ट्रों के मध्य सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक तथा मानवीय क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाना ।

इन चार उद्देश्यों के अलावा संयुक्त राष्ट्र ने कुछ अन्य को भी जोड़ा है- नि:शस्त्रीकरण और नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना । संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1974 में नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना का प्रस्ताव स्वीकार किया था तथा संयुक्त राष्ट्र संघ ने समय-समय पर अपनी गतिविधियों द्वारा नि:शस्त्रीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया है ।


3. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्त (Principles of the UNO):

संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की धारा दो में इसके सिद्धान्तों का उल्लेख है:

1. सभी राष्ट्रों की समानता तथा सम्प्रभुता का सम्मान करना ।

2. सभी सदस्य राष्ट्रों द्वारा चार्टर में निहित अपने दायित्वों को निष्ठापूर्वक पूरा करना ।

3. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण तरीके से करना ।

4. सदस्यों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों के विपरीत आचरण नहीं करना ।

5. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के विरुद्ध आचरण करने वाले अन्य राष्ट्रों की सहायता सदस्यों द्वारा नहीं की जायेगी ।

6. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किसी भी देश के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना ।


4. संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रधान अंग (Important Parts of UNO):

संयुक्त राष्ट्र के कार्यों का निष्पादन6 अंगों द्वारा किया जाता है । इन्हीं अंगों को संयुक्त राष्ट्र के प्रधान अंग कहा जाता है ।

ये अंग निम्नलिखित हैं:

1. महासभा (General Assembly):

यह संयुक्त राष्ट्र की विश्व संसद अथवा विश्व के अन्त करण की तरह है । इसमें प्रत्येक देश के पाँच प्रतिनिधि भाग लेते हैं, लेकिन प्रत्येक देश को केवल एक ही वोट देने का अधिकार है । इसे विश्व की लघु संसद भी कहा जाता है ।

महासभा में आने वाले विषय दो प्रकार के होते हैं- महत्त्वपूर्ण प्रश्न तथा अन्य प्रश्न । महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का निर्णय दो-तिहाई बहुमत से है, जबकि अन्य प्रश्नों में निर्णय साधारण बहुमत से होते हैं ।

महासभा के कार्य:

महासभा के कार्य दो प्रकार के होते हैं- अनिवार्य और ऐच्छिक । अनिवार्य कार्यों में बजट पारित करना, सुरक्षा परिषद व अन्य अंगों की रिपोर्टों पर विचार करना न्यास परिषद के कार्यों का निरीक्षण करना आर्थिक और सामाजिक सहयोग के मामलों में तथा सिफारिशें करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए मानव अधिकारों की प्राप्ति में सहायता करना आदि शामिल है । महासभा के ऐच्छिक लगा: में शांति की स्थापना, नि:शस्त्रीकरण के उपाय आदि शामिल हैं ।

2. सुरक्षा परिषद (Security Council):

सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण कार्यकारी अंग है तथा विश्व शांति व सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है । वर्तमान में इसमें 5 स्थाई तथा 10 अस्थाई सदस्य हैं । इसके सदस्य हैं- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस तथा चीन । अस्थाई सदस्यों का चुनाव महासभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से दो वर्ष के लिए किया है । 10 अस्थाई सदस्यों में 5 एशिया अफ्रीका के देशों से, 1 पूर्वी यूरोप से, 2 दक्षिण अमेरिका से तथा शेष 2 पश्चिमी यूरोप एवं अन्य देशों से होते हैं ।

सुरक्षा परिषद में वीटो की शक्ति:

परिषद् के 5 स्थाई सदस्यों को वीटो प्राप्त है । इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला लेने के लिए इन पाँचों देशों सहित सुरक्षा परिषद् के कुल 9 दृश्यों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है । यदि ये पाँच देश सहमति नहीं लेते तो सुरक्षा परिषद् कोई निर्णय नहीं ले सकती । इसी को वीटो की शक्ति कहते हैं ।

सुरक्षा परिषद कार्य:

सुरक्षा परिषद् का मुख्य कार्य विश्व शांति व सुरक्षा की स्थापना करना है ।

इसके लिए सुरक्षा परिषद् निम्नलिखित में से कोई कदम उठा सकती है:

(1) विश्व शांति व सुरक्षा के लिए वह सम्बन्धित पक्षों को विवाद के निपटारे हेतु विचार-विमर्श का सहारा ले सकती है ।

(2) सुरक्षा परिषद् पंचों मध्यस्थों तथा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा विवादों के निपटारे का प्रयास कर सकती है ।

(3) उक्त प्रयासों के असफल होने की स्थिति में दोषी राष्ट्र के विरुद्ध सुरक्षा परिषद् आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का निर्णय लेती है ।

(4) अन्तिम उपाय के रूप में सुरक्षा परिषद दोषी राष्ट्र के छ सैनिक कार्यवाही भी कर सकती है । सैनिक कार्यवाही के लिए संयुक्त राष्ट्र की अपनी कोई स्थाई सेना नहीं है । सदस्य राष्ट्रों द्वारा सेनाएँ सैनिक कार्यवाही में भेजी जाती हैं । सुरक्षा परिषद ने सबसे पहली बार 1950 में कोरिया युद्ध में उत्तर कोरिया के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही की थी । इसके अलावा सुरक्षा परिषद् इराक तथा अफगानिस्तान में भी सैनिक कार्यवाही कर चुकी है ।

उक्त के अतिरिक्त कतिपय अन्य मामलों जैसे- संयुक्त राष्ट्र में नये राष्ट्रों का प्रवेश, महासचिव का चयन, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति, चार्टर में संशोधन, सदस्यों का निष्कासन आदि विषयों में सुरक्षा परिषद् की सहमति आवश्यक है । इसके पश्चात् ही इन पर अन्तिम फैसला महासभा द्वारा किया जाता है ।

3. आर्थिक व सामाजिक परिषद (Economic and Social Council):

सदस्यों के मध्य आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक मामलों में सहयोग बढ़ाने के लिए आर्थिक व सामाजिक परिषद् का गठन किया जाता है । इसमें 54 सदस्य होते हैं. जिनका चुनाव तीन वर्ष के लिए होता है । इसके सदस्यों का चुनाव महासभा छ किया जाता है ।

आर्थिक व सामाजिक परिषद अपने पाँच क्षेत्रीय आयोगों तथा 9 क्रियात्मक आयोगों के माध्यम से देशों के मध्य सामाजिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाने का कार्य करती है । इसके कार्यों में सहयोग के मुद्दों पर विचार-विमर्श करना सहयोग के लिए नई संस्थाओं की स्थापना के लिए संस्तुति करना तथा सहयोग के लिए लागू कार्यक्रमों की देख-रेख करना है ।

4. न्यास परिषद (Trusteeship Council):

न्यास परिषद् का मुख्य कार्य उन क्षेत्रों के प्रशासन की देख-रेख करना है जो स्वतंत्र रूप से अपना शासन नहीं कर सकते हैं । ऐसे क्षेत्रों को प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अपनी देख-रेख में लिया गया था । ऐसी देख-रेख के लिए जिम्मेदारी किसी सदस्य राष्ट्र को सौंपी जाती थी । ऐसे क्षेत्रों की संख्या 11 थी ।

अब तक ये सभी 11 क्षेत्र स्वतंत्र देश बन चुके हैं तथा न्यास परिषद् का कार्य लगभग समाप्त हो चुका है । इन 11 प्रदेशों के नाम इस प्रकार हैं कोष्ठक में प्रशासक देश का नाम दिया गया है- न्यूगिनी (आस्ट्रेलिया) रूआण्डा-उरूण्डी (बेरियम), फ्रेन्च कैमरून (फ्रांस), फेन्च टोगोलैंड (फ्रांस), पश्चिम समोआ (न्यूजीलैण्ड), टंगानिका (ग्रेट ब्रिटेन), ब्रिटिश कैमरून (ग्रेट ब्रिटेन), ब्रिटिश टोगोलैण्ड (ग्रेट ब्रिटेन), नाअरू (आस्ट्रेलिया), प्रशान्त महासागरीय द्वीप क्षेत्र (अमेरिका) सोमालीलैण्ड (इटली) |

5. सचिवालय (Secretariat):

यह संयुक्त राष्ट्र का एक प्रशासनिक अंग है तथा प्रशासन सम्बन्धी कार्यों का निष्पादन करता है । इसका मुखिया महासचिव होता है, जिसकी नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की संस्तुति पर महासभा द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है । वर्तमान में दक्षिण कोरिया के बान की मून संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव हैं । इनका कार्यकाल जनवरी 2017 तक है । नार्वे के त्रिग्वेली संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम महासचिव थे । सचिवालय में 9000 कर्मचारी कार्यरत हैं तथा इसका मुख्यालय न्यूयार्क में है ।

सचिवालय को 8 विभागों में गठित किया गया है- सुरक्षा परिषद् के कार्यों से सम्बन्धित विभाग, आर्थिक विभाग, सामाजिक कार्य विभाग, न्याय विभाग सार्वजनिक सूचना विभाग, सम्मेलन तथा सामान्य सेवा विभाग प्रशासनिक तथा वित्त विभाग तथा विधि विभाग । इन्हीं 8 विभागों द्वारा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन किया जाता है ।

6. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court):

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय भी संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख अंग है । यह नीदरलैण्ड की राजधानी अंग में स्थित है । इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश सहित 15 अन्य न्यायाधीश होते हैं । न्यायाधीशों का चुनाव सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा द्वारा 9 वर्ष के लिए किया जाता है ।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के दो क्षेत्राधिकार हैं:

1. ऐच्छिक क्षेत्राधिकार तथा

2. अनिवार्य क्षेत्राधिकार ।

ऐच्छिक क्षेत्राधिकार में वे विवाद आते हैं जिन्हें सम्बन्धित पक्षों ने अपनी सहमति से निपटारे के लिए न्यायालय को सौंपा है, जबकि अनिवार्य क्षेत्राधिकार में विवाद के निपटारे का अधिकार किसी संधि की शर्तों के अनुसार न्यायालय को स्वत: प्राप्त हो जाता है । इसके अलावा न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ को विभिन्न विषयों पर विधिक परामर्श भी देता है । भारत के न्यायमूर्ति नागेन्द्र सिंह लम्बे समय तक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे हैं ।


5. अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा में संयुक्त राष्ट्र का योगदान  (Contribution of UNO in International Peace and Security):

अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्य जिम्मेदारी है ।

इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:

1. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा व प्रबन्धन (Settlement and Management of International Disputes):

संयुक्त राष्ट्र संघ ने विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय विवादों में प्रभावी हस्तक्षेप करके उनके निपटारे का प्रयास किया है । इस हस्तक्षेप में बातचीत के आयोजन से लेकर सैनिक कार्यवाही तक की गतिविधियाँ शामिल हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ ने अभी तक तीन मामलों में सैनिक कार्यवाही की हैं- कोरिया युद्ध (1950-53), इराक (2003) तथा लीबिया का लोकतांत्रिक संकट (2011) ।

इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ ने कतिपय अन्य मामलों में भी अपने प्रयासों से विवादों के समाधान का प्रयास किया है । जैसे- ईरान से सोवियत सेनाओं का हटाना (1946), बर्लिन घेरा की समाप्ति (1949), फिलीस्तीन समस्या (1949 से अब तक), कश्मीर समस्या (1949 से अब तक), स्वेज संकट (1956), कांगो संकट (1960), ईरान-इराक युद्ध (1988), दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति (1946 से 1990), कोसोव की स्वतंत्रता (1999), सोमालिया का गृह युद्ध (1991 से अब तक), लेबनान में संघर्ष विराम (2006) आदि ।

2. सदस्यों के बीच आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा (Promote Economic, Social, and Cultural Cooperation among the Members):

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रधान अंग आर्थिक व सामाजिक परिषद् के माध्यम से राष्ट्रों के मध्य आर्थिक व सामाजिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का प्रयास किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्यता है कि राष्ट्रों के मध्य सामाजिक और आर्थिक सहयोग व समझ की प्रक्रिया मजबूत होगी तो विवाद के अवसर भी कम होंगे । इसीलिए देशों के मध्य सामाजिक और आर्थिक सहयोग को विश्व शांति के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

3. वैश्विक समस्याओं का समाधान (Solution to Global Problems):

संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व की विभिन्न परम्परागत और गैर-परम्परागत चुनौतियों के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । विश्व शांति के लिए इन चुनौतियों का समाधान आवश्यक है । इस प्रकार की प्रमुख वैश्विक चुनौतियाँ हैं- आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, मानव अधिकारों का उल्लंघन, गरीबी, भुखमरी, प्राकृतिक आपदायें, ऊर्जा सुरक्षा इत्यादि ।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण की रक्षा के लिए 1972 तथा 1992 में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया । इस क्रम में तीसरा सम्मेलन 2012 में ब्राजील में सम्पन्न हुआ । जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का आयोजन किया जाता है । अभी तक 16 वार्षिक वार्ताओं का आयोजन किया जा चुका है ।

आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए एक व्यापक संधि का मसौदा महासभा के समक्ष लम्बित है । संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2000 में 8 सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को वर्ष 2015 तक प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें गरीबी अशिक्षा महामारी महिलाओं की समानता आदि आठ लक्ष्यों को शामिल किया गया है ।

4. निःशस्त्रीकरण (Disarmament):

आणविक नि:शस्त्रीकरण की दिशा में भी विचार-विमर्श का एक मंच प्रदान कर संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । इसकी संस्था वियना स्थित अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी परमाणु शस्त्रों के विस्तार पर निगाह रखती है । नि:शस्त्रीकरण के प्रयासों को सफल बनाने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की है ।

नि:शस्त्रीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र ने तीन विशेष सम्मेलनों का आयोजन 1978, 1982 तथा 1988 में किया है । परमाणु अप्रसार संधि 1970 की व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में की गई है । वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ ने परमाणु हथियारों की सुरक्षा के लिए भी प्रयास शुरू कर दिये हैं । ताकि ये हथियार आतंकवादी समूहों के हाथ में न पहुँच सकें ।

संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख योगदान यह है कि यह विश्व की समस्याओं के समाधान पर विचार-विमर्श के लिए एक प्रभावी मच प्रदान करता है । इसकी सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लेकर अब तक विश्व समुदाय को तीसरे विश्व युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा । राष्ट्रों के मध्य विवाद अवश्य हुये हैं, लेकिन उनके दायरों को सीमित करने तथा उनके समाधान के न्यास भी किये गये हैं ।


6. संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की आवश्यकता (Need for Improvement in the UNO):

संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में विश्व शांति व सुरक्षा के उद्देश्य से किया गया था । लेकिन तब से लेकर अब तक अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में व्यापक परिवर्तन हुआ है । इन परिवर्तनों के आलोक में संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक लोकतांत्रिक व प्रभावी बनाने के लिए माँग उठाई जाती रही है । इस सम्बन्ध में सुरक्षा परिषद् तथा महासभा में सुधार की विशेष आवश्यकता है ।

इसके निम्नलिखित कारण हैं:

1. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व स्तर पर यूरोपीय शक्तियों तथा अमेरिका को ही विश्व आर्थिक व राजनीतिक मंच पर प्रमुखता प्राप्त थी । लेकिन वैश्वीकरण के वर्तमान युग में एशिया के कई देश भी तेजी से आर्थिक विकास कर विश्व राजनीतिक व्यवस्था में प्रभावपूर्ण स्थान प्राप्त कर रहे हैं ।

इन देशों में भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, इण्डोनेशिया आदि प्रमुख हैं । इसके अतिरिक्त विश्व के अन्य देश जैसे- ब्राजील व द. अफ्रीका भी क्षेत्रीय शक्तियों के रूप में उभरे हैं । विश्व आर्थिक शक्ति का केन्द्र अब यूरोप से खिसककर एशिया की तरफ जा रहा है । अत: वर्तमान परिवेश में संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की आवश्यकता है, ताकि इस संस्था को अधिक प्रभावी बनाया जा सके ।

2. सुरक्षा परिषद में केवल पाँच देशों- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस तथा चीन को ही वीटो का अधिकार प्राप्त है । जबकि वर्तमान विश्व में कई देश जैसे- जापान, भारत, जर्मनी, ब्राजील आदि में से न स्थायी सदस्य देशों से आर्थिक दृष्टि से आगे हैं । अत: इन चारों देशों द्वारा सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता की माँग की जा रही है । इसी तरह सुरक्षा परिषद् के अस्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ाने की भी आवश्यकता है । इससे सुरक्षा परिषद् का स्वरूप अधिक लोकतांत्रिक तथा उसकी भूमिका अधिक प्रभावी हो सकेगी ।

3. विश्व शांति व सुरक्षा के मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे अधिक शक्तियाँ सुरक्षा परिषद् को दी गयी थीं । जहाँ पर केवल कतिपय देशों का ही वर्चस्व है । इसके विपरीत महासभा में सभी सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व होता है । लेकिन विश्व शांति के मामलों में महासभा की भूमिका सीमित है । विश्व सुरक्षा के लोकतांत्रिक प्रबन्धन के लिए आवश्यक है कि शांति सुरक्षा के मामलों में महासभा की भूमिका को बढ़ाया जाये ।

4. संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शांति व सुरक्षा के लिए कई बार सैनिक कार्यवाही करता है लेकिन उसकी अपनी कोई स्थाई सेना नहीं है । इसी तरह संयुक्त राष्ट्र संघ की वित्तीय व्यवस्था सदस्यों के योगदान पर निर्भर है । संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रभावी बनाने के लिए इन पहलुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है ।


7. संयुक्त राष्ट्र संघ की कुछ नई महत्वपूर्ण संस्थाएं (Some New Important Organizations of the UNO):

वर्तमान चुनौतियों के आलोक में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कतिपय नई संस्थाओं की स्थापना की गयी है ।

जिनमें प्रमुख संस्थाएं अग्रलिखित हैं:

I. अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद (International Human Rights Council):

मानवाधिकारों की रक्षा की दृष्टि से यह संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे प्रभावशाली संस्था है । महासभा के प्रस्ताव पर इसकी स्थापना 2006 में की गयी थी । यह परिषद् विभिन्न देशों में अपने जाँच अधिकारी भेजकर मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच कर सकती है तथा उस सम्बन्ध में अपनी संस्तुति महासभा को प्रस्तुत कर सकती है । प्रत्येक सदस्य का यह दायित्व है कि वह इसकी जाँच को सुविधाजनक बनाये । इसकी जाँच रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रभावी कार्यवाही की जा सकती है ।

II. यू. एन. वूमन (U N. Woman):

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस संस्था की स्थापना 2010 में की गयी है । इसके पहले संयुक्त राष्ट्र संघ में महिलाओं के विकास व उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए कई संस्थाएं कार्यरत थी । लेकिन उन सभी को समाप्त कर उनके स्थान पर यू. एन. वूमन की स्थापना की गयी । यह संस्था विश्व स्तर पर महिला सशक्तिकरण की नीतियों व कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करती है । भारत में इसका क्षेत्रीय कार्यालय स्थित है ।


8. भारत तथा सुरक्षा परिषद में सुधार (Improvements in India and Security Council):

भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी व अस्थायी दोनों प्रकार की सदस्यता में विस्तार का समर्थक है । भारत का दृष्टिकोण है कि बदली हुई परिस्थितयों में सुरक्षा परिषद् को प्रभावी बनाने के लिए इस तरह के बदलाव की आवश्यकता है । भारत ने सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए प्रबल दावेदारी प्रस्तुत की है ।

भारत की दावेदारी निम्न आधार पर प्रस्तुत की गयी है:

1. भारत का लोकतंत्र व आकार (India’s Democracy and Size):

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है तथा जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है । आकार की दृष्टि से भी भारत एक बड़ा देश है । जहाँ तक लोकतंत्र का सम्बन्ध है । भारत में 15 बार शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता परिवर्तन हो चुका है । भारत विधि के शासन व लोकतंत्र का प्रबल पक्षधर है, जो विश्व शांति के लिए आवश्यक है ।

2. लोकतंत्र और संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों में विश्वास (Believe in the Principles of Democracy and the United Nations Organization):

भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक देश है तथा उसने सदैव संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों में विश्वास व्यक्त किया है । भारत राष्ट्रों की समानता सम्प्रभुता तथा मानवाधिकारों का समर्थक है । साथ ही भारत विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का भी पक्षधर है ।

3. विश्व शांति में भारत का योगदान (India’s Contribution to World Peace):

भारत ने गत 66 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । 1953 में भारत की विजय लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष चुनी गयी थीं । संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना में भारत का योगदान उल्लेखनीय है । अब तक भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के 40 से अधिक शांति मिशनों में अपने लगभग 1 लाख सैनिकों का योगदान कर चुका है ।

इसके अलावा भारत उपनिवेशवाद की समाप्ति, रंगभेद नीति का विरोध, नि:शस्त्रीकरण, मानवाधिकार आतंकवाद जलवायु परिवर्तन आदि चुनौतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है । 1985 में संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने परमाणु नि:शस्त्रीकरण की एक व्यापक योजना प्रस्तुत की थी, जिसमें सार्वभौमिक व पूर्ण नि:शस्त्रीकरण की वकालत की गयी है । भारत ने कोरिया युद्ध 1950-53 तथा हिन्द-चीन समस्या के समाधान में सफलतापूर्वक मध्यस्थता का कार्य किया है । अत: विश्व शांति में भारत का योगदान सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु एक मजबूत आधार है ।

4. भारत की आर्थिक व तकनीकि प्रगति तथा विश्व मामलों में भारत की भूमिका (India’s Economic and Technological Progress and Role in World Affairs):

गत 23 वर्षों में भारत ने तीव्र आर्थिक व तकनीकि उन्नति की है तथा भारत की गणना आज विश्व की उभरती हुई आर्थिक शक्तियों में की जा रही है । यदि मुद्रा की क्रय शक्ति क्षमता को आधार बनाया जाये तो भारत अमेरिका चीन तथा जापान के बाद विश्व की चौथी सबसे बड़ी शक्ति है । इसके साथ ही भारत वर्तमान विश्व के प्रमुख संगठनों जैसे-जी-20, ब्रिक्स तथा इब्सा आदि का प्रमुख सदस्य है तथा विश्व व्यवस्था के प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।

भारत के स्थायी सदस्यता के दावे की वर्तमान स्थिति (Current Status of India’s Permanent Membership Claim):

सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों में विस्तार का मामला सबसे पहले भारत द्वारा 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष शिखर सम्मेलन में प्रभावी तरीके से उठाया गया था । इस सम्बन्ध में महासभा द्वारा गठित कार्यदल ने 1996 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें इस मुद्दे पर राष्ट्रों के मध्य आम सहमति बनाने का सुझाव दिया गया था ।

इसी तरह संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बुतरस घाली ने 2005 में ‘इन लार्जर फ्रीडम’ नाम की रिपोर्ट में सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या 15 से बढ़ाकर 24 किये जाने का प्रस्ताव किया गया था । लेकिन इस प्रस्ताव पर भी आम सहमति नहीं बन सकी । इसका प्रमुख कारण यह है कि सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्य तथा कुछ अन्य देश सुरक्षा परिषद् में सुधार का विरोध कर रहे हैं ।

स्थायी सदस्यता का विरोध कर रहे देशों ने कॉफी क्लब नाम का एक सगठन भी बनाया है, जिसे अब यूनाइटेड फार कान्सेन्सस के नाम से जाना जाता है । इसमें इटली, स्पेन, अर्जेन्टाइन, कनाडा, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको तथा पाकिस्तान शामिल हैं । वर्तमान में स्थायी सदस्यता हेतु चार प्रमुख दावेदार हैं- भारत, जर्मनी, ब्राजील तथा जापान ।

कॉफी क्लब के देश इनकी स्थायी सदस्यता का विरोध कर रहे हैं । भारत का सबसे तीव्र विरोध पाकिस्तान द्वारा किया जा रहा है । उधर स्थायी सदस्यों में चीन ने खुलकर भारत का समर्थन अभी तक नहीं किया है । जबकि रूस अमेरिका ब्रिटेन तथा फ्रांस भारत की स्थाई सदस्यता की दावेदारी का खुलकर समर्थन कर चुके हैं । इस विचित्र स्थिति में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का मामला अभी अधर में लटका हुआ है ।


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