Read this article in Hindi to learn about the various challenges of world security and its solutions.
सुरक्षा की नई चुनौतियाँ परम्परागत चुनौतियों से भिन्न हैं । अत: उनके लिए भिन्न उपायों को अपनाये जाने की आवश्यकता है । अब युद्ध रोकने मात्र से ही मानव सुरक्षा को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता । सुरक्षा की नई चुनौतियाँ मानव जीवन की गतिविधियों से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है ।
इसीलिए इन्हें मानव सुरक्षा की चुनौतियाँ भी कह सकते है । इसीलिए वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा का स्थान मानव सुरक्षा ने ले लिया है । मानव सुरक्षा की चुनौतियों का स्वरूप व समय अनिश्चित है । इसीलिए उनसे निपटने के लिए बेहतर प्रतिरोधात्मक उपायों की आवश्यकता है ।
संक्षेप में इन चुनौतियों से निपटने के लिए निम्न उपायों की आवश्यकता है:
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(I) राष्ट्रों के मध्य घनिष्ठ सहयोग (Close Cooperation between Nations):
विश्व सुरक्षा की नई चुनौतियों से निपटने का पहला उपाय विश्व समुदाय के विभिन्न देशों के मध्य घनिष्ठ सहयोग को बढ़ाना है । इस सहयोग के अंतर्गत सूचनाओं का आदान-प्रदान, संयुक्त क्षमता विकास अनुभवों का आदान-प्रदान तथा कानूनी सहयोग आदि शामिल है । संतोषजनक बात यह है कि विश्व समुदाय के अधिकांश देश आधुनिक चुनौतियों जैसे आतंकवाद प्राकृतिक आपदा गरीबी व भुखमरी से निपटने के लिए आपसी सहयोग हेतु तत्पर हैं ।
(II) समुचित कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ (Proper Legal and Administrative Arrangements):
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए विश्व स्तर पर नये कानूनों व प्रशासनिक संस्थाओं की स्थापना की आवश्यकता है । इनके बिना इन समस्याओं पर नियन्त्रण स्थापित नहीं किया जा सकता है । संयुक्त राष्ट्र संघ प्रमुख चुनौतियों के संदर्भ में इस तरह के कानूनों तथा संस्थाओं की स्थापना हेतु प्रयासरत् है । आतंकवाद की चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में व्यापक बहस हो चुकी है तथा एक व्यापक संधि का मसौदा अंतिम विचार हेतु लंबित है ।
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(III) क्षमता निर्माण (Tolerance Construction):
नई चुनौतियों का स्वरूप भिन्न है । अत: इनका सामना करने के लिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नई क्षमताओं के विकास की आवश्यकता है । इसमें चुनौती से निपटने के साथ-साथ सूचना, शोध तथा पूर्व तैयारी की विशेष आवश्यकता है । नई चुनौतियों से निपटने के लिए सैनिक तथा प्रशासनिक उपायों के अतिरिक्त सूचना तकनीकि का प्रभावी उपयोग आवश्यक है । उदाहरण के लिए आतंकवाद से निपटने के लिए उसके नेटवर्क तथा कार्यवाहियों की गुप्त सूचना तथा उसके विरुद्ध तकनीकि क्षमता अर्जित करने की आवश्यकता है ।
(IV) मानवाधिकारों की रक्षा (Protection of Human Rights):
मानवाधिकारों का उल्लंघन विश्व सुरक्षा की बड़ी चुनौती है । अत: राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास किये जाने आवश्यक हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ राष्ट्रीय सरकार तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्वैच्छिक संस्थाएं जैसे- एमनेस्टी इन्टरनेशनल इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रही हैं ।
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मानवाधिकार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1977 में नोबल शांति पुरस्कार एमनेस्टी इन्टरनेशनल को प्रदान किया गया था । यद्यपि विश्व जनमत के कारण मानवाधिकारों के पक्ष में जनान्दोलन भी चल रहे हैं, लेकिन विश्व के अधिकांश देशों में अभी भी मानवाधिकारों के उल्लंघन की समस्या बनी हुई है । उदाहरण के लिए 2009 में श्रीलंका की सेना ने चौथे तमिल युद्ध के समय बड़ी संख्या में तमिलों का नरसंहार किया है तथा यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद् में लंबित है ।
(V) प्राकृतिक आपदाओं का प्रभावी प्रबन्धन (Effective Management of Natural Disasters):
प्राकृतिक आपदाएँ देशों की सीमाओं को नहीं देखतीं । उनका प्रभाव एक साथ कई देशों में देखने में आता है । उदाहरण के लिए 2004 की सुनामी आपदा का प्रभाव सम्पूर्ण एशिया प्रशान्त क्षेत्र में देखा गया था । प्राकृतिक आपदाओं के प्रबन्धन तथा राहत सहायता उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न देशों के मध्य प्रभावी प्रतिरोधात्मक उपायों की आवश्यकता है ।
प्राकृतिक आपदाएँ गृह युद्ध को जन्म दे सकती हैं शरणार्थी समस्या के लिए उत्तरदायी है तथा अन्तत: यह विश्व युद्ध सुरक्षा के लिए भी चुनौती है । प्राकृतिक आपदाओं के निवारण के लिए पर्यावरण संतुलन तथा उसके संरक्षण के दीर्घकालीन उपायों को अपनाया जाना आवश्यक है । प्राकृतिक आपदाओं का एक प्रमुख कारण पारिस्थितकी में बढ़ रहा असंतुलन है ।
(VI) गरीबी निवारण तथा समेकित विकास (Poverty Alleviation and Integrated Development):
समाज में शांति व सुरक्षा के लिए विकास की ऐसी रणनीति अपनायी जानी आवश्यक है कि जिसमें सभी वर्गों की समान भागीदारी हो तथा सभी को विकास के समान लाभ प्राप्त हो सकें । ऐसे विकास को समेकित विकास की संज्ञा दी गयी है ।
इसके साथ ही विश्व में गरीबी कुपोषण भुखमरी आदि की चुनौतियों से निपटने के लिए विकसित व विकासशील देशों में प्रभावी सहयोग की आवश्यकता है, क्योंकि ये समस्याएँ विकासशील देशों में अधिक मुखर है तथा विकसित देशों के सहयोग के बिना वे अकेले इसका समाधान नहीं कर सकते । संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2000 में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की घोषणा इस दिशा में एक गंभीर प्रयास है ।
क्या है सहस्राब्दि विकास लक्ष्य? (What is the Millennium Development Goal?):
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 2000 में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की घोसणा को स्वीकार किया गया था । चूंकि इन लक्ष्यों को सहस्राब्दि वर्ष 2000 में स्वीकार किया गया था, अत: इन्हें सहस्राब्दि विकास लक्ष्य कहा जाता है । इन लक्ष्यों को 2015 तक प्राप्त किया जाना है ।
इसमें विकास के निम्नलिखित आठ लक्ष्य शामिल हैं:
(i) 2015 तक गरीबी व भुखमरी से पीड़ित जनसंख्या की आधा करना ।
(ii) 2015 तक सभी बच्चों को सार्वभौमिक प्राइमरी शिक्षा उपलब्ध कराना ।
(iii) नारी समानता व सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करना ।
(iv) 2015 तक शिशु मृत्यु दर में दो-तिहाई कमी करना ।
(v) मातृ स्वास्थ्य में सुधार तथा 2015 तक मातृ मृत्यु दर में तीन-चौथाई कमी करना ।
(vi) एड्स व अन्य बीमारियों की रोकथाम तथा उनमें कमी करना ।
(vii) पर्यावरण व जैव विविधता का संरक्षण, शुद्ध पेय जल की उपलब्धि आदि ।
(viii) विकास के लिये सभी देशों के मध्य वैश्विक साझेदारी को बढ़ाना ।