Read this article in Hindi to learn about:- 1. ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा (Definition of Noise Pollution) 2. ध्वनि प्रदूषण का मापन और मानक (Measurement and Standards of Noise Pollution) 3. स्रोत (Sources) 4. कुप्रभाव (Effects).

ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा (Definition of Noise Pollution):

(अ) जे. टिफिन के अनुसार ”शोर एक ऐसी ध्वनि है, जो किसी व्यक्ति को अवांछनीय लगती है और उसकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है ।

(आ) हटैल के अनुसार- “शोर एक अवांछनीय ध्वनि हे जो कि थकान बढ़ाती है और कुछ औद्योगिक परिस्थितियों में बहरेपन का कारण बनती है ।”

(इ) रॉय के अनुसार- अनिच्छापूर्ण ध्वनि जो मानवीय सुविधा, स्वास्थ्य तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है ।” एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका शोर को एक “आवंछनीय ध्वनि” के रूप में परिभाषित करता है । Environment Health Criteria के अनुसार “शोर एक आवंछनीय ध्वनि है, जो कि व्यक्तिध्समाज के लोगों के स्वास्था और रहन-सहन पर प्रतिकुल प्रभाव डालती है ।”

ध्वनि प्रदूषण का मापन और मानक (Measurement and Standards of Noise Pollution):

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ध्वनि की तीव्रता को मापने के लिए डेसीबेल इकाई निर्धारित की गई है । मानवीय कान (Ear) 30Hz is 20,000 H) तक की ध्वनि तरंग, के लिए बहुत अधिक संवेदनशील है, लेकिन सभी धनिया मनुष्य को नहीं सुनाई देती हैं । डेसी का अर्थ है 10 और वैज्ञानिक ग्राहमबेल के नाम से ”बेल” शब्द लिया गया है । कान की क्षणितम श्रव्य ध्वनि शून्य स्तर से प्रारम्भ होती है ।

ध्वनि प्रदूषण के मानक (Standards of Noise Pollution):

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार निद्रावरथा में आस-पास के वातावरण मेख 35 डेसीबेल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबेल से अधिक नहीं होना चाहिए ।

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Noise Pollution):

(1) प्राकृतिक स्रोत:

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प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण होता है । परन्तु प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण अपेक्षाकृत अल्पकालीन होता है तथा हानि भी कम होती है । शोर के प्राकृतिक स्रोतों के अंतर्गत बादल की गडगडाहट, बिजली की कडक, तूफानी हवाएं आदि से मनुष्य असहज (क्पेबवउवितज) महसूरा करता, परन्तु बूंदों की छमछम, चिडियों की कलरव और नदियों, झरनों की कलकल ध्वनि मनुष्य में आनंद का संचार भी करती है ।

(2) मानवीय स्रोत:

बढते हुए शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है । वस्तुतः शोर और मानवीय सभ्यता सदैव साथ रहेंगे ।

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख मानवीय स्रोत निम्न है:

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i. उद्योग:

लगभग सभी औद्योगिक क्षेत्र ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित है कल-कारखानों में चलने वाली मशीनों से उत्पन्न आवाजध्गडगडाहट इसका प्रमुख कारण है । ताप विद्युत गृहों में लगे ब्यायलर, टरबाइन काफी शोर उत्पन्न करते हैं । अधिकतर उद्योग शहरी क्षेत्रों में स्थापित हैं, अतः वहां ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता अधिक है ।

ii. परिवहन के साधन:

ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण परिवहन के विभिन्न साधन भी हैं । परिवहन के सभी साधन कम या अधिक मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं । इनसे होने वाला प्रदूषण बहुत अधिक क्षेत्र में होता है । वर्ष 1950 में भारत में कुल वाहनों की संख्या 30 लाख थी जिसमें से 27 हजार दो पहिया वाहन एक लाख 59 हजार कार, जीप और टैक्सी, 82 हजार ट्रक और 34 हजार बसें थीं ।

देश की प्रगति के साथ 2011 तक भारत में कुल वाहनों का आंकड़ा लगभग 22 करोड हो गया, जिसमें से दो पहिया वाहनों की संख्या लगभग 17 करोड 60 लाख और चार पहिया वाहनों की संख्या 4 करोड 40 लाख हैं । जिसमें कार, टैक्सी, बसें और ट्रक शामिल हैं । केवल लखनऊ में एक लाख से अधिक वाहन पंजीकृत है और वाहनों में प्रतिवर्ष 5 से 10 प्रतिशत तक की वृद्धि हो रही है । उपरोक्त तथ्यों से ध्वनि प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण की कल्पना स्वतः की जा सकती है ।

iii. मनोरंजन के साधन:

मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करता है । वह टी वी. रेडियो, टेपरिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम (डी.जे.) जैसे साधनों द्वारा अपना मनोरंजन करता है परन्तु इनसे उत्पन्न तीव्र ध्वनि शोर का कारण बन जाती है । विवाह, सगाई इत्यादि कार्यक्रमों, धार्मिक आयोजनो, मेंलों, पार्टियों में लाऊड स्पीकर का प्रयोग और डी.जे. के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है ।

iv. निर्माण कार्य:

विभिन्न निर्माण कार्यों में प्रयुक्त विभिन्न मशीनों और औजारों के प्रयोग के फलस्वरूप ध्वनि प्रदूषण बढा है ।

v. आतिशबाजी:

हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत है । विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मेंलो, सांस्कृतिकध्वैवाहिक समारोहों में आतिशबाजी एक आम बात है ।

मैच या चुनाव जीतने की खुशी भी आतिशबाजी द्वारा व्यक्त की जाती है । परन्तु इन आतिशबाजियों से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही ध्वनि तरंगों की तीव्रता भी अधिक होती है, जो ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या को जन्म देती है ।

vi. अन्य कारण:

विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक रैलियों श्रमिक संगठनों की रैलियों का आयोजन इत्यादि अवसरों पर एकत्रित जनसमूहों के वार्तालाप से भी ध्वनि तरंग तीव्रता अपेक्षाकृत अधिक होती है । इसी प्रकार प्रशासनिक कार्यालयों. स्कूली, कालेजों, बस स्टैण्डों, रेलवे स्टेशनों पर भी विशाल जनसंख्या के शोरगुल के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है । इसी प्रकार अन्य छोटे-छोटे कई ऐसे कारण हैं जो ध्वनि प्रदूषण को जन्म देते हैं जैसे कम चौडी सडकें, सडक पर सामान बेचने वालों के लिए कोई योजना न होना पीक आवर में ज्यादा ट्रैफिक ।

ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव (Effects of Noise Pollution):

शोर से उत्पन्न प्रदूषण एक धीमी गति वाला मृत्यु दूत है ।

ध्वनि प्रदूषण से मनुष्यों पर पडने वाले प्रतिकूल प्रभावों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) सामान्य प्रभाव:

ध्वनि प्रदूषण द्वारा मानव वर्ग पर पडने वाले प्रभावों के अंतर्गत बोलने में व्यवधान (चममबी प्दजमतमितमदबम) चिडचिडापन, नींद में व्यवधान तथा इनके संबंधित पश्चप्रभावों एवं उनसे उत्पन्न समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है ।

(ii) श्रवण संबंधी प्रभाव

विभिन्न प्रयोगो के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ध्वनि की तीव्रता जब 90 डी.वी. से अधिक हो जाती है तो लोगों की श्रवण क्रियाविधि में विभिन्न मात्रा में श्रवण क्षीणता होती है ।

श्रवण क्षीणता निम्न कारकों पर आधारित होती है:

शोर की अबोध ध्वनि तरंग की आवृत्ति तथा व्यक्ति विशेष की शोर की संवेदनशीलता । लखनऊ में बढते ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए ऐसे लोगों पर शोध किया गया जो लगातार पाँच साल से 10 घंटे से अधिक समय शोर-शराबे के बीच गुजारते हैं । देखने में आया कि 55 प्रतिशत लोगों की सुनने की ताकत कम हो गई है ।

(iii) मनोवैज्ञानिक प्रभाव:

उच्च स्तरीय ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्यों में कई प्रकार के आचार व्यवहार संबंधी परिवर्तन हो जाते है । दीर्घ अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में न्यूरोटिक मेंटल डिसार्डर हो जाता है । माँसपेशियों में तनाव तथा खिचाव हो जाता है । स्नायुओं में उत्तेजना हो जाती है ।

(iv) शारीरिक प्रभाव:

उच्च शोर के कारण मनुष्य विभिन्न विकृतियों एवं बीमारियों सग्रसित हो जाता है जैसे- उच्च रक्तचाप, उत्तेजना, हृदय रोग, आँख की पुतलियों में खिचाव तथा तनाव मांसपेशियों में खिचाव, पाचन तंत्र में अव्यवस्था, मानसिक तनाव, अल्सर जैसे पेट एवं अतडियों के रोग आदि ।

विस्फोटों तथा सोनिक बूम के अचानक आने वाली उच्च ध्वनि के कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है लगातार शोर में जीवनयापन करने वाली महिलाओं के नवजात (ध्वनि की गति से अधिक चलने वाले जेट विमानों से उत्पन्न शोर को सोनिक बूम कहते हैं ।) शिशुओ में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं ।