Read this article in Hindi to learn about the effects of water pollution.
जल प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । विशेष रूप से प्रदूषित जल पीने से कई तरह की भयावह बीमारियां सामने आई हैं । यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने जन स्वास्थ्य विकास के लिए बहुआयामी प्रयास किये परन्तु जनसंख्या वृद्धि तथा इसके बढ़ते घनत्व के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है ।
बहुत-से शिशु अतिसार, हैजा जैसी बीमारियों से अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं । इसका मूल कारण प्रदूषित पेयजल होता है । शुद्ध वातावरण उत्तम स्वास्थ्य की अनिवार्य शर्त है, स्वास्थ्य नियमों का अनुपालन इसका आधार है ।
व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों ही स्वस्थ राष्ट्रीय जीवन के लिए आवश्यक हैं, परन्तु ये एक-दूसरे के ऊपर आश्रित हैं । स्वस्थ नागरिक राष्ट्र की एक अनमोल सम्पत्ति है ।
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भारत जैसे विशाल जनतंत्रीय राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का पुनीत कर्तव्य है कि वह स्वास्थ्य को बिगाड़ने वाले कारकों का निदान करते हुए सहयोग भावना से प्रेरित होकर अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने की क्षमता प्राप्त करें ताकि व्यक्ति, समाज एवं सरकार सामूहिक रूप से जिम्मेदारी से उपचार कर सकें ।
निजी संगठनों तथा सरकार द्वारा अत्यधिक स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार करने के उपरांत भी बीमारियां बढ़ रही हैं । देश के लिए स्वास्थ्य-योजना बनाने वालों के लिए विभिन्न बीमारियां एक चुनौती बनी हुई हैं ।
देशवासियों को स्वस्थ रखना केवल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि डॉक्टरों एवं अस्पतालों की संख्या में वृद्धि कर दी जाये । जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप प्रतिवर्ष हम एक नये हरियाणा को जन्म दे रहे हैं ।
हम इस द्रुतगति से बढ़ती हुई जनसंख्या को शुद्ध जल नहीं दे पा रहे हैं । संसार की 80 प्रतिशत बीमारियाँ अशुद्ध पानी के फलस्वरूप ही होती हैं । चिकित्सालयों की वृद्धि नहीं, अपितु जल की गुणवत्ता में वृद्धि तथा संरक्षण से हमारा स्वास्थ्य उत्तम होगा ।
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हम शहरी गंदे नालों व अन्य अस्वस्थकारी नालों आदि पर नियंत्रण करते हुए पेट की कब्ज व अन्य भयंकर बीमारियों से बच सकते हैं । भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है । यहीं बाल मृत्यु दर में वृद्धि अनचाहे बच्चे, कुपोषण एवं शुद्ध जल की पूर्ति में अवरोध का मुख्य कारण गरीबी है ।
धन की कमी के कारण पर्याप्त संख्या में आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नहीं खोले जा सकें हैं । देश के सभी हिस्सों में शुद्ध पेयजल आपूर्ति की योजनाएँ भी पूर्ण नहीं हो सकी है । आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग प्राकृतिक स्रोतों जैसे- नदी, तालाब, कुआँ आदि का पानी पीने में प्रयोग करते हैं ।
ये जलाशय बढ़ती जनसंख्या व प्रदूषण के कारण बहुत हद तक प्रदूषित हो चुके हैं । इस प्रदूषित जल के सेवन से पेट संबंधी कई भयानक बीमारियाँ होती है । इन बीमारियों का इलाज करना आज प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा, मुश्किल हो रहा है क्योंकि देश में बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुरूप इतने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना मुश्किल प्रतीत होती है ।
हमें स्वयं इसके बारे में अपना उत्तरदायित्व समझते हुए विभिन्न बीमारियां जैसे दस्त रोग, मलेरिया, मेलिगनेंट (भयंकर) मलेरिया जैसी बीमारियां जो अशुद्ध पानी के फलस्वरूप होती हैं, उसके प्रति सचेत रहना चाहिए ।
1. प्रदूषित जल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ (Health Related Problems from Polluted Water):
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विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 35 प्रतिशत शिशु कुपोषण के शिकार हैं । भारत में दस्त के कारण बच्चे स्कूल जाने के पूर्व ही मर जाते हैं । दस्त रोग से प्रत्येक मिनट में तीन बच्चे मर जाते हैं । इस बीमारी के लिए प्रदूषित जल काफी हद तक जिम्मेदार है ।
सरकार विभिन्न योजनाओं द्वारा देशवासियों को शुद्ध जल की पूर्ति कराने के लिए प्रयत्नशील है । दस्त रोगों में कमी करने हेतु स्थायी इलाज किया जा सकता है जैसे- एक चुटकी नमक, कुछ चीनी-दोनों को पानी के गिलास में डालकर बच्चों को शौच जाने के बाद दिया जाये ।
यदि उस पर रोक नहीं लगाई गई तो बच्चों के शरीर में पानी की कमी हो जाती है । यदि चीनी नहीं हो तो गुड़ का उपयोग भी कर सकते हैं । नमक व पक्का चावल मिलाकर देने से भी उचित प्रभाव संभव हैं । इसके साथ-साथ जीवन रक्षक घोल भी दिया जा सकता है ।
यह शिशुओं का दुर्भाग्य ही है कि कुछ फैशन-परस्त माताएं बच्चों को बोतल से ही दूध पिलाती हैं, जबकि स्तन-पान कराने से शिशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है । स्तनपान करता बच्चा यदि बीमार होता है तो जल्दी ठीक भी हो जाता है ।
बोतल के दूध में जल का प्रयोग किया जाता है । यदि प्रदूषित जल का प्रयोग होता है तो विभिन्न प्रकार के जल जनित रोग उत्पन्न होते हैं, यथा- पीलिया, डायरिया आदि । इसलिए, स्वच्छ पानी का उपयोग ही पीने व खाना पकाने के लिए किया जाता है ।
पानी का उपयोग गंदे हाथों से करने पर कीटाणुओं का प्रभाव फैल जाता है । बच्चे गंदा पानी पीने से भी बीमार हो जाते हैं । कीटाणुओं का प्रभाव गंदी जगहों पर अधिक होता है । जो मलेरिया को बढ़ावा देता है । अत: डी.डी.टी. का प्रचुर मात्रा में उपयोग वांछित हैं ।
सिंचाई योजनाओं की विविधता के कारण ही विभिन्न बीमारियों का प्रादुर्भाव हुआ । कई नगरों में गंदे पानी की नाली के बगैर बनाये ही जल पूर्ति योजना बन जाया करती है । परिणामस्वरूप गंदा पानी फैल जाती हैं तथा मच्छर पैदा हो जाते हैं ।
कई गांवों व नगरों में गंदे पानी को खुल रूप में पाया जाना एक सामान्य: बात है । अत: विकास कार्यों को प्रारंभ करने से पूर्व सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विचार वांछित हैं, जिससे मनुष्य व जानवरों के लिए बीमारियां पैदा ही न होने पायें ।
देश की स्वतंत्रता के बाद मलेरिया को नष्ट करने हेतु प्रभावशाली कदम उठाये गये जिससे मलेरिया का प्रभाव कम हुआ और इससे मरने वालों की संख्या भी कम हुई ।
मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम संभवतः केवल मृत्यु नियंत्रण कार्यक्रम था । मलेरिया एनाफ्लीज नामक मच्छर से फैलने वाला रोग है । मलेरिया रोधक औषधि ‘क्लोरोक्वीन’ ने भी इसके विस्तार पर नियंत्रण किया है ।
2. झरने और महासागरों में रिसाव (Waterfall and Leakage in the Oceans):
यदि सतह के पानी के स्रोत में भी पर्याप्त वाष्पीकरण हो, तो उप-सतह का जल खारा बन सकता है यह स्थिति स्वाभाविक रूप से Endorheic जल के निकायों के तहत या कृत्रिम सिंचित खेत के तहत हो सकता है तटीय क्षेत्रों में मानवीय इस्तेमाल से उप-सतह का जल स्रोत रिसाव की दिशा उल्टी कर सकता है ।
जिसके कारण मिट्टी लावाणीय बन सकती है मनुष्य उप-सतह के जल को खो सकता है (यानी उसे बेकार बना सकता है) प्रदूषण के माध्यम से मनुष्य जलाशयों या निरोध तालाबों के निर्माण द्वारा सतह जल स्रोत के लिए निवेश बढ़ा सकता है ।
3. विलवणीकरण (Desalination):
विलवणीकरण एक कृत्रिम प्रक्रिया है जिसके द्वारा खारा पानी आम तौर पर समुद्र का पानी ताजे पानी में बदला जाता है सब से आम विलवणीकरण प्रक्रियाएं आसवन ओर उलट परासरण हैं हाल फिलहाल अन्य स्रोतों वैकल्पिक स्रोतों की तुलना में विलवणीकरण एक बहुत महंगा विकल्प है और कुल मानव उपयोग का एक बहुत छोटा अंश ही इस के द्वारा संतुष्ट होता है ।
यह केवल आर्थिक दृष्टि से उत्तम व्यावहारिक-मूल्य (जैसे घरेलू और औद्योगिक उद्योगों के लिए) शुष्क (तपक) क्षेत्रों में उपयोगी है सबसे व्यापक उपयोग फारस की खाड़ी में है ।
4. जमा हुआ जल (Accumulated Water):
हिमशैल को जल के स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिए कई प्रस्ताव रखे गए हैं, किंतु आज तक यह केवल नवीन परियोजनों के लिए ही किया गया है हिमानी अपवाह भी सतह का जल माना जाता है ।
5. ताजे पानी के उपयोग (Use of Fresh Water):
ताजे पानी के उपयोग तपेदिक और गैर रूप-तपेदिकढ (कभी-कभी अक्षय कहलाया गया) वर्गीकृत किया जा सकता है । यदि जल तुरंत एक और उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं हो तो वह तपेदिक उपयोग होगा उप-सतह रिसाव और वाष्पीकरण नुकसान एवं उत्पाद में सम्मिलित जल (जैसे कृषि उपज) को तपेदिक माना जाता है जल जिसे प्रबंधित कर सतह के जल के रूप में लौटाया जा सके जैसे कि मॉल, अक्सर गैर-तपेदिक बन जाता है, अगर उसे किसी अन्य उपयोग में लाया जा सके ।