छत्तीसगढ़: जनसांख्यिकी और शिक्षा | Read this article in Hindi to learn about the demography and education schemes of Chhattisgarh.
छत्तीसगढ़ का जनांकिकी (Demography of Chhattisgarh):
भारत में जनसंख्या संबंधी जानकारी का उल्लेख हमें इतिहास में भी मिलता है । आचार्य कौटिल्य की अर्थशास्त्र नामक पुस्तक में मौर्य काल में किए गए कृषि, आर्थिक व जनसंख्या संबंधी सर्वेक्षण की जानकारी देखने को मिलती है ।
अकबर के शासनकाल में भी जनसंख्या संबंधी जानकारी ‘आइने-अकबरी’ में विस्तारपूर्वक किया गया है, किंतु ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व जनगणना अथवा जनसंख्या की समस्याओं का व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया, पर विगत कुछ वर्षों से इसमें काफी सुधार हुआ । 1881 से ब्रिटिश शासनकाल में सर्वप्रथम ‘जनगणना’ शासकीय स्तर पर करायी गयी । बाद में प्रत्येक 10 वर्षों में जनगणना का कार्य किया जाने लगा ।
जनांकिकी का महत्व:
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जनसंख्या के महत्व एवं समस्याओं के प्रति विश्व का ध्यान प्राचीनकाल से आकर्षित होता रहा है । परंतु इस संबंध में लोगों ने गंभीरता से विचार करना तभी प्रारंभ किया, जब 1798 में माल्थस का जनसंख्या संबंधी विश्व प्रसिद्ध निबंध प्रकाशित हुआ ।
अपने जनसंख्या संबंधी विचार में माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि एवं खाद्यान्न उत्पादन में असंतुलन की संभावनाएँ व्यक्त की थी, परन्तु गंभीर वाद-विवादों के बावजूद एक लम्बे समय तक उनके विचार उपेक्षित रहें ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त अर्द्धविकसित देशों ने अपनी विकास की गति को तीव्र करने के लिए आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया । इन देशों में हो रही तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि इनके नियोजित विकास के मार्ग में प्रमुख अवरोध बनकर खड़ी हो गयी, फलस्वरूप इनकी आर्थिक समस्याएँ कठोर प्रयासों के बावजूद यथावत बनी रहीं ।
ऐसे देशों में विकास योजनाओं के परिणाम-स्वरूप स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि हुई, जनसंख्या के गुणात्मक पक्ष में कुछ सुधार हुआ, अद्भुत औषधियों के अन्वेषण एवं जीवन-स्तर में सतत् सुधार के फलस्वरूप मृत्यु-दर में तो गिरावट आयी, परन्तु जन्म-दर में कोई विशेष कमी नहीं आयी, फलस्वरूप जनसंख्या की शुद्ध बढ़ोत्तरी होती गयी ।
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ऐसे देशों में विकास तो हुआ, परंतु जनसंख्या की वृद्धि ने समस्त विकास के प्रयास को निष्टभावी बना दिया । जनसंख्या ने उपभोग तो बढ़ाया, परंतु बचत एवं विनियोग को घटाकर पूजी निर्माण की दर कम कर दी, जिससे इन देशों में विकास प्रभावित हुआ ।
इसके विपरीत, विकासशील देश जो युद्ध से क्षतिग्रस्त हो गए थे, वहाँ विकास करना कठिन नहीं था, क्योंकि इन देशों में शिक्षा का स्तर ऊँचा था. उन्हें तकनीक तथा तकनीक ज्ञान उपलब्ध था । अतः इन देशों ने कम समय में ही अपना पर्याप्त विकास कर लिया ।
विकसित देशों ने जनसंख्या के श्रमशक्ति, स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा वितरण आदि गुणात्मक पक्षों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, क्योंकि इन देशों में जनसंख्या साधन की अपेक्षा साध्य का दर्जा प्राप्त कर चुकी थी । आर्थिक विकास की दृष्टि से जनसंख्या संबंधी आकड़ों का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि जनसंख्या के आंकड़ो के आधार पर ही आर्थिक विकास की प्रवृत्ति, व्यावसायिक ढाँचा, ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर परिवार नियोजन और खाद्य समस्या का विस्तृत रूप में अध्ययन किया जाता है ।
बेरोजगारी की समस्या के निवारण हेतु यह बहुत महत्वपूर्ण है, कि जनसंख्या में वृद्धि की वार्षिक दर तथा उसके अनुपात में श्रमशक्ति में वृद्धि की वार्षिक दर कम थी । जनसंख्या संबंधी आंकडों का व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक दोनों ही दृष्टि से स्थानीय एवं राष्ट्रीय ऋण पर ज्ञान होना बहुत आवश्यक होता है ।
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किसी देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात एवं परिवहन, आवास एवं सामाजिक सुरक्षा तथा अन्य जनहितकारी कार्यों एवं मनोरंजन आदि कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन हेतु उस क्षेत्र विशेष में निवास करने वाली जनसंख्या के आकार व संरचना का पूरा ज्ञान होना चाहिए ।
इसके अतिरिक्त देश में उत्पादन, आय, रोजगार, वितरण, आदि आर्थिक विकास के कार्यों के संचालन हेतु अपनायी जाने वाली नीतियों की सफलता के लिए भी जनांकिकी आकड़ों की महती आवश्यकता पड़ती हे । सामाजिक दृष्टिकोण से भी जनांकिकी के आकड़ों का महत्व बहुत अधिक है ।
समाज में जनसंख्या का आकार एवं संरचना, आयु वर्ग, जाति, भाषा, धर्म एवं लिंग के आधार पर जाने बिना समाज की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती इसके अतिरिक्त जनसंख्या में जन्म-दर, मृत्यु-दर, स्त्री-पुरुष अनुपात, विवाह के आंकडे भी सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं ।
i. शिक्षा का प्रसार:
यद्यपि छत्तीसगढ़ में शिक्षा का प्रसार हुआ हैं, फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक सुधार किये जाने की आवश्यकता है । विशेष कर स्त्री शिक्षा पर ध्यान दिये जाने तथा उसमें सुधार करने की आवश्यकता है ।
छत्तीसगढ़ की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण है और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा निम्न है । जब एक पुरुष शिक्षित होता है, तो इसका लाभ सिर्फ उसी को होता है, जबकि एक स्त्री शिक्षित होती हैं, तो उसका लाभ पूरे परिवार को मिलता है ।
ii. अंधविश्वास एवं रूढिवादिता:
छत्तीसगढ़ गांवों का राज्य है । ग्रामीण जनसंख्या की अधिकता तथा शिक्षा की कमी उनमें अंधविश्वास एवं रूढिवादिता को बढ़ावा देते हैं अशिक्षित व्यक्ति किसी भी घटना के पीछे दिये वैज्ञानिक कारणों को जानने का प्रयत्न नहीं करता अपितु वह उनको अंधविश्वास से जोड़कर देखता है । अतः यह आवश्यकता है कि लोगों को शिक्षित कर अंधविश्वास को दूर किया जाये ।
iii. रोजगार, लघु एवं कुटीर उद्योग स्थापना:
छत्तीसगढ़ का प्रमुख व्यवसाय कृषि यहां की अधिकांश जनसंख्या कृषि कार्य करती हैं अतः यहां छिपी हुई बेरोजगारी पायी जाती है । अतः इस बेरोजगारी को दूर करने के लिए आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास किया जाये ।
iv. स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं:
जनसंख्या के स्तर को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण घटक ऊँची मृत्यु दर हैं । हालांकि पिछले कई दशकों में मृत्युदर में उत्तरोत्तर गिरावट आई है, लेकिन इसमें सुधारों की आवश्यकता है । इसका प्रमुख कारण ग्रामीण अंचल में डॉक्टर की कमी, उपकरण एवं दवाइयों का अभाव, गरीबी, अप्रशिक्षित दाईयों, द्वारा प्रसव जो स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन नहीं करती है । जब तक ग्रामीण अचल में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का तथा टीकाकरण से मिलने वाले लाभों का प्रचार तथा प्रसार नहीं किया जायेगा तब तक मृत्युदर कम नहीं होगी ।
छत्तीसगढ़ की शिक्षा योजनाओं (Education Schemes of Chhattisgarh):
जनजाति से आशय एक ऐसा समूह से लगाया जाता है, जिनके सदस्य एक निश्चित भू-भाग में निवास करते हैं और उनकी अपनी एक भाषा संस्कृति एवं रीति-रिवाज होते है, जो किसी दुर्गम या भौगोलिक रूप से पिछड़े हुए क्षेत्रों में जीवन व्यतीत करते हैं ।
यह सच है कि उनकी संस्कृति अन्य समुदाय से भिन्न होती हैं, लेकिन यही आधार पर हम इस जनजातियों को पिछडी हुए नहीं कह सकते है, बल्कि इनके पिछड़े होने के कारण आर्थिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक दशाओं के साथ-साथ शिक्षा के स्तर निम्न होना है ।
यदि हम इतिहास को देखे तो मालूम होगा आज किसी भी देश, समाज या व्यक्ति ने विकास किया है तो वह इसलिए नहीं किया है कि उनके पास पैसा अधिक है. वह तकनीकी अधिक है या खनिज संपदा अधिक है । वह इसलिए विकास किया है कि उनके पास शिक्षित व्यक्ति अधिक है ।
शिक्षा को सामाजिक एवं आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण साधन माना जाता है, क्योंकि शिक्षा श्रमिक की कार्यकुशलता में वृद्धि कर उत्पादन को बढ़ाता है, जो आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है, लेकिन जनजाति बच्चे स्कूल जाने के स्थान पर श्रम करते हुए दिखाई देते है या घर के कार्यों में सहयोग करते है ।
चूंकि जनजातियाँ एक ऐसे क्षेत्रों में निवास करती है, जहाँ रोजगार के साधन नहीं होते हैं, जिसके कारण इसके आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाता है । अतः शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे जनजातियों की न केवल आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि विकास की मुख्य भाग से उन्हें जोड़ा जा सकता है ओर यही कारण है कि सरकार इन जनजातियों की शिक्षा के विकास के लिए अनेक योजनाएँ संचालित कर रही है ।
उद्देश्य:
अध्ययन का उद्देश्य छ.ग. सरकार द्वारा जनजातियों के शिक्षा के विकास के लिए चलाए जा रहे योजनाओं का मूल्यांकन करना है, जिसके अन्तर्गत शिक्षा के बजट प्रावधान, संस्था एवं छात्र-छात्राओं की संस्था को जानना । साथ ही आश्रम योजना एवं छात्रवृत्ति का अध्ययन करना है ।
सुझाव:
(1) शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा की जाए, इसके लिए मीडिया का सहारा लिया जाना चाहिए ।
(2) जनजाति महिलाओं की शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए ।
(3) जनजाति शिक्षा निवेश में वृद्धि की जाए, साथ ही बजट प्रावधान को पूरा व्यय किया जाए ।
(4) छात्रावास / आश्रम योजना जैसी संस्थाओं में और अधिक वृद्धि की जाए ।
(5) छात्रवृत्ति दर में वृद्धि की जाए, ताकि आर्थिक बोझ परिवार पर कम से कम पड़े ।
(6) जनजाति शिक्षा पूर्णत: रोजगार मूलक होनी चाहिए, ताकि विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके ।
उपरोक्त अध्ययन से ज्ञात होता है कि यदि हम छ.ग. राज्य की स्थापन से आदिवासी शिक्षा योजना का मूल्यांकन करने से मालूम होता है कि शिक्षा के सभी क्षेत्रों में सरकार ने पूरी ईमानदारी के साथ लगभग दस गुना व्यय में वृद्धि है, जो सराहनीय है, किन्तु इन जनजातियों की साक्षरता बताते है कि इसमें सरकार को और अधिक ईमानदारी के साथ काम करने की जरूरत है ।