स्वतन्त्रता का मूल्य । Speech of John F Kennedy on ‘The Value of Freedom’ in Hindi Language!

जॉन एफ॰केनेडी ने सन 1961 में 4 जनवरी को अमेरिका का राष्ट्रपति बनने पर यह भाषण दिया था । हम आज अपनी पार्टी की विजय का ही हर्ष नहीं मना रहे, आजादी की विजय का भी हर्ष मना रहे हैं । यह एक समापन और एक शुरुआत का प्रतीक है । यह बदलाव और नवीकरण का प्रतीक है ।

मैंने आपके और भगवान के सामने वह पवित्र शपथ ली है, जो हमारे पहले के व्यक्तियों ने लगभग एक शताब्दी और तीन तिमाही पहले निश्चित (नियत) की थी । आज का संसार तब से बहुत अलग है । अब मनुष्य के नश्वर हाथों में प्रत्येक प्रकार के मनुष्य-गरीबी और प्रत्येक प्रकार के मनुष्य जीवन को खत्म करने का सामर्थ्य है ।

फिर भी हमारे पूर्वजों ने जिस क्रान्तिकारी विश्वास से प्रतिबद्ध होकर संघर्ष किया वह संसार में आज भी एक मुद्दा है । यह विश्वास कि मनुष्य के अधिकार राज्य-शासन की अनुकम्पा से नहीं भगवान् के हाथों से उसे मिलते हैं । हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम उस पहली क्रान्ति के उत्तराधिकारी हैं ।

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अब इस देशकाल से हमारे दोस्तों और शत्रुओं सबको यह सन्देश मिल जाना चाहिए कि अब मशाल अमेरिकियों की एक नयी पीढ़ी के हाथों में आ गयी है । वे इस युद्ध से धीमी पड़ी मुश्किल और कटु शान्ति से अनुशासित शताब्दी में जनमी अपनी विरासत पर गर्व करने वाली और मानव अधिकारों की धीरे-धीरे न्यूनता का विरोध करने वाली पीढ़ी के हाथों में है ।

उन अधिकारों के प्रति यह राष्ट्र हमेशा वचनबद्ध रहा है । आज भी हम अपने देश में और समस्त संसार में उन अधिकारों के प्रति वचनबद्ध हैं । हमारा अच्छा या बुरा चाहने वाले हर राष्ट्र को स्नान लेना चाहिए कि हम आजादी की रक्षा और कामयाबी के लिए कोई भी कीमत चुकाने भार उठाने दु:ख सहन करने दोस्त की मदद करने या दुश्मन का विरोध करने के लिए तैयार हैं ।

हम यह प्रतिज्ञा लेते हैं । इसके अलावा भी जिन सांस्कृतिक दोस्तों के साथ हमारे सांस्कृतिक और आत्मिक मूल्य साझे है, हम उनके विश्वसनीय दोस्त होने की वफादारी की सौगन्ध लेते हैं । कई सहकारी परियोजनाओं में ऐसा बहुत ही कम होगा, जो हम नहीं कर सकते ।

हम पृथक-पृथक् बहुत कम कर पायेंगे; क्योंकि हम पृथक्-पृथक रहकर शक्तिशाली कठिन चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत नहीं कर सकते । हम नये आजाद राष्ट्रों का स्वागत करते हुए उन्हें भरोसा दिलाते हैं कि एक प्रकार का उपनिवेशी नियन्त्रण दूसरे प्रकार के उत्पीड़न में परिवर्तित नहीं होगा । हम यह उम्मीद नहीं करते कि वे हमेशा हमारे नजरिये का समर्थन करेंगे लेकिन हम यह उम्मीद जरूर करते हैं कि वे

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हमेशा अपनी आजादी की सुरक्षा करते रहेंगे । उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अतीत में जिन्होंने शेर की पीठ पर सवार होने की गलती की थी वे आखिर में उसके पेट में पहुंच गये । हम आधे विश्व के झुग्गी-झोपड़ी वालों को जो दरिद्रता की बेड़ियां तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, पूरी मदद देने की प्रतिज्ञा लेते हैं ।

हमारा प्रयत्न उनकी अपनी मदद करने में मदद करने का होगा चाहे जितने वक्त के लिए इस मदद की जरूरत हो । इसलिए नहीं कि साम्यवादी ऐसा कर रहे होंगे इसलिए नहीं कि हमें उनके वोट चाहिए अपितु इसलिए कि यही सही है । यदि एक आजाद समाज बहुसंख्य गरीबों की मदद नहीं कर सकता तो वह अल्पसंख्यक अमीरों की भी रक्षा नहीं कर सकता ।

हमारी सीमा के दक्षिणवर्ती सहयोगी गणतन्त्रों के लिए हम एक विशेष सौगन्ध लेते हैं कि हम उनके भरोसे को अपने अच्छे कामों में बदल देंगे । हम उनके साथ विकास के नये गठबन्धन करेंगे ।  हम आजाद जनता और आजाद सरकारों को गरीबी की शृंखलाओं से आजाद होने में मदद देंगे । लेकिन इस उम्मीद की शान्तिमय क्रान्ति को हम विरोधी शक्तियों का शिकार नहीं बनने देंगे ।

हम अपने सभी पड़ोसियों को बताना चाहते हैं कि हम अमेरिका में कहीं भी अतिक्रमण की कार्रवाई होने पर उनका साथ देंगे । प्रत्येक दूसरी शक्ति को जान लेना चाहिए कि यह गोलार्ध अपने क्षेत्र का स्वामी खुद होगा । विश्व के सार्वभौम राष्ट्रों के संघ संयुक्त राष्ट्र को ऐसे वक्त में जब युद्ध के उपकरण शान्ति के उपकरणों से कहीं तेजी से बढ़ रहे हैं, हम समर्थन का वचन देते हैं ।

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हम उसे केवल निन्दा करने वाली संस्था नहीं बनने देंगे । हम नये और दीन-हीनों के लिए उसकी सुरक्षा ढाल को मजबूत बनाने और उसके अधिकार के क्षेत्र का विस्तार करने में उसकी मदद करेंगे । हमारे प्रति दुश्मनी का बर्ताव रखने वाले राष्ट्रों को हम कोई वचन तो नहीं देते लेकिन उनसे विनती करते हैं कि दोनों पक्ष शान्ति की खोज के लिए नये सिरे से प्रयत्न करें ।

इससे पहले कि विज्ञान की छोड़ी विनाश की अंधेरी शक्तियां योजनाबद्ध या दुर्घटनावश हुए आत्म-विनाश से सारी मानवता को निगल जायें । हम उनके साथ शिथिलता से पेश नहीं आ सकते; क्योंकि जब हमारे शस्त्रास्त्र आशंका से परे पर्याप्त होंगे, तभी हम बिना किसी आशंका के भरोसा कर सकेंगे की उनका कभी इस्तेमाल नहीं होगा ।

हमारे राष्ट्रों के दोनों ही महान् और शक्तिशाली गुट वर्तमान स्थिति में आराम से नहीं रह सकते । दोनों ही पक्ष आधुनिक शस्त्रास्त्रों की कीमत के भारी बोझ से त्रस्त हैं । दोनों ही एटमी शक्ति की बढ़ती गति से आशंकित हैं । लेकिन दोनों ने ही आतंक के अनिश्चित सन्तुलन में परिवर्तन लाने की होड़ लगा रखी है, जिसने मानवता की आखिरी लड़ाई को रोक रखा है ।

इसलिए हमें नये सिरे से शुरू करना चाहिए । यह स्मरण रखते हुए कि सभ्याचार कमजोरी की निशानी नहीं और ईमानदारी प्रमाण-सापेक्ष्य होती है । हमें कभी डरकर भयभीत होकर समझौता-वार्ता नहीं करनी चाहिए । लेकिन हमें कभी समझौता-वार्ता करने से भयभीत भी नहीं होना चाहिए ।

दोनों पक्षों को मालूम करना चाहिए कि वे कौन-सी समस्याएं हैं, जो हमें आपस में एकजुट करती है, न कि उन समस्याओं को लेकर आन्तरिक संघर्ष या खींचा-तानी करनी चाहिए जो हमें अलग करती है । दोनों पक्षों को चाहिए कि वे प्रथम बार ऐसे गम्भीर और निश्चित किये हुए प्रस्ताव तैयार करें जिनके आधार पर शस्त्रास्त्रों का परीक्षण और उन पर काबू किया जा सके ।

हमें चाहिए कि सभी राष्ट्रों को खत्म करने की अबाधित शक्ति को सभी राष्ट्रों के अबाधिक नियन्त्रण के अधीन कर दें । दोनों पक्षों को चाहिए कि विज्ञान के आतंक की जगह पर उसके चमत्कारों का आह्वान करें । हम एकजुट होकर सितारों का अन्वेषण करें मरुस्थलों पर जीत हासिल करें रोगों का दूर भगायें सागर की गहराइयों की गवेषणा करें कला और वाणिज्य को बढ़ावा दें ।

नये शक्ति-सन्तुलन का प्रयत्न नहीं विधि-नियम संचालित एक नया संसार बनाने का जिनमें शक्तिशाली न्यायसंगत हों शक्तिहीन सुरक्षित हों और हर जगह शान्ति बनी रहे । यह काम प्रथम सौ दिनों में पूरा नहीं होगा । यह पहले एक हजार दिनों में भी पूरा नहीं होगा । यह इस शासन के कार्यकाल में भी नहीं होगा । शायद यह इस ग्रह पर हमारे पूरे जीवनकाल में भी नहीं हो पायेगा परन्तु हम आरम्भ तो करें !

मेरे साथी नागरिको ! मेरी बजाय इस रास्ते की आखिरी कामयाबी या नाकामयाबी आपके हाथों में है । जब से इस देश की स्थापना हुई है, अमेरिकनों की प्रत्येक पीढ़ी को अपनी राष्ट्रीय वफादारी का सबूत देना पड़ा है । जिन्होंने अपने कर्तव्य की आवाज सुनी ऐसे युवा अमेरिकियों की कब्रें समस्त संसार में हैं ।

अब फिर बिगुल बजा है: लेकिन हथियार उठाने के लिए नहीं हालांकि हमें हथियार चाहिए; लड़ाई के लिए नहीं यद्यपि हम युद्ध में लिप्त हैं । यह है एक दीर्घकालीक संघर्ष का आह्वान जो सालों तक चलेगा । ‘उम्मीद का मजा लेते हुए, कठिनाइयों में धीरज रखते हुए ।’ यह संघर्ष है मनुष्य के साझे दुश्मनों: अत्याचार, गरीबी, बीमारी और युद्ध के खिलाफ ।

क्या हम उत्तर-दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में मनुष्य के इन दुश्मनों के खिलाफ सन्धियां कर सकते हैं, जो मनुष्य के लिए ज्यादा अर्थपूर्ण जीवन निश्चित कर सके? क्या आप ऐसे ऐतिहासिक प्रयत्न का हिस्सा बनेंगे ? विश्व के दीर्घकालीन इतिहास में कुछ ही पीढ़ियों की आजादी की अधिकतम खतरे में रक्षा करने की भूमिका मिली है । मैं इस जिम्मेदारी से भागता नहीं मैं इसका स्वागत करता हूं ।

मैं इस बात में भरोसा नहीं रखता कि हमें कुछ और लोगों के साथ या किसी अन्य पीढ़ी के साथ अपनी जगह बदल लेने चाहिए । इस कोशिश को हम जो ऊर्जा भरोसा समर्पण दे रहे हैं, वह हमारे देश और उसकी सेवा करने वाले सभी लोगों को रोशनी देगा और वह धधकती अग्नि समस्त संसार को रौशन करेगी ।

इसलिए मेरे साथी अमेरिकियो ! यह मत पूछो कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, यह पूछो कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं ! संसार के मेरे साथी नागरिको ! यह मत पूछो कि अमेरिका आपके लिए क्या कर सकता है, अपितु यह कि हम एक साथ मनुष्य की आजादी के लिए क्या कर सकते हैं ! अन्त में चाहे आप अमेरिका के नागरिक हैं या संसार के नागरिक हमसे मजबूती और बलिदान के उन्हीं उच्च स्तरों की उम्मीद रखें जो हम आपसे रखते हैं ।

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