एक परियोजना का लागत-लाभ विश्लेषण | Cost-Benefit Analysis of a Project | Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. लागत लाभ विश्लेषण (Meaning of Cost Benefit Analysis) 2. लागत लाभ विश्लेषण की उत्पत्ति (Origin of Cost Benefit Analysis) 3.  कल्याण नींव (Welfare Foundation) 4. वित्तीय अध्ययन (Financial Study) and Other Details.

Contents:

  1. लागत लाभ विश्लेषण (Meaning of Cost Benefit Analysis)
  2. लागत लाभ विश्लेषण की उत्पत्ति (Origin of Cost Benefit Analysis)
  3. लागत लाभ विश्लेषण की कल्याण नींव (Welfare Foundation of Cost Benefit Analysis)
  4. वित्तीय अध्ययन और लागत लाभ विश्लेषण (Financial Study and Cost Benefit Analysis)
  5. लाभों और लागतों की माप (Measurement of Benefits and Costs)
  6. लागत लाभ विश्लेषण में छाया कीमतें (Shadow Pricing in Cost Benefit Analysis)

1. लागत लाभ विश्लेषण (Meaning of Cost Benefit Analysis):

परियोजना मूल्यांकन की सबसे लोकप्रिय विधि है- विभिन्न परियोजनाओं के लागत लाभ विश्लेषण पर विचार करना और फिर ऐसी परियोजना का चुनाव करना जिस पर कम लागत और अधिक लाभ हो ।

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लागत लाभ की भूमिका को मार्गलिन ने इस प्रकार परिभाषित किया है- ”संदर्श एवं पंचवर्षीय योजनाएं क्षेत्रों के बीच साधनों के आबंटन द्वारा वृद्धि की स्पष्ट रणनीति निर्धारित करती हैं । परन्तु योजनाओं में सम्मिलित वृद्धि की रणनीति अनेक रणनीतिक प्रश्नों को हल किये बिना छोड़ देती है, और यह, वह रणनीतिक निर्णय है जो लागत लाभ लागत विश्लेषण का कार्यक्षेत्र है ।”

यह नियोजित अर्थव्यवस्था में परियोजना मूल्यांकन के लिये उत्तम मानदण्ड उपलब्ध करता है । यह लाभों की वर्तमान कीमत और परियोजना की लागतों के बीच अन्तर को अधिकतम बना कर इष्टतम साधन आबंटन की प्राप्ति के लिये ठीक निवेश निर्णय निर्माण में योजना प्राधिकरण की सहायता करता ।

इस प्रकार लागत लाभ विश्लेषण ”एक नीति के सामान्य मौद्रिक इकाई के रूप में सामाजिक लाभों और हानियों के वर्णन और परिमाणन का लक्ष्य रखता है ।” उद्देश्य फलन का वर्णन शुद्ध सामाजिक लाभ (NSB) = लाभ – लागतों के रूप में किया जा सकता है जहां लाभों और लागतों का माप छाया अथवा आगतों की लेखा कीमतों के रूप में किया जाता है न कि वास्तविक बाजार कीमतों में ।


2. लागत लाभ विश्लेषण की उत्पत्ति (

Origin of Cost Benefit Analysis):

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लागत लाभ विश्लेषण की उत्पत्ति को उन्नीसवी शताब्दी के कल्याण अर्थशास्त्र में खोजा जा सकता है । शुद्ध लाभों के अधिकत्तमीकरण का पहला व्यावहारिक मूर्तरूप सन् 1930 में जल संसाधनों के रूप में सामने आया ।

सन् 1936 के बाढ़ नियन्त्रण अधिनियम अनुसार- “किसी को भी प्राप्त होने वाले लाभों की अनुमानित लागतों से तुलना करने का नियम” इससे सार्वजनिक निवेश निर्णय का सामाजिक स्वरूप प्रयत्न दिखाई देता है ।

इससे पहले, नौ-संचालन के क्षेत्र में संघीय व्यय का मूल्यांकन इन्जीनियरों के दल द्वारा आरम्भ किया गया था । जिसे ‘फैडरल इन्टर-एजैन्सी रिवर बेसन कमेटी’ और 1952 के ब्यूरों ऑफ बजटस बजट सरकुलर A-47 1950 की ग्रीन बुक को प्रस्तुत किया, विविध एवं अस्पष्ट रूप में परिभाषित लागत-लाभ मानदण्ड को व्यवस्थित करने का वास्तविक प्रयत्न किया ।

सन् 1950 में लागत-लाभ (CBA) में लोगों की शैक्षिक रुचि भी बढ़ रही थी । वास्तविक परिवर्तन बिन्दु सन् 1958 में तब आया जब एक्स्टीन (Ecksein) मैकीन (Mckean) तथा क्रुटिला (Krutilla) और एक्सटीन के प्रकाशन कार्य साथ-साथ प्रकट हुये ।

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इन प्रकाशनों ने- “कल्याणकारी अर्थशास्त्र के स्थापित मानदण्ड के सम्बन्ध में सार्वजनिक निवेश मानदण्ड को औपचारिक बनाने का प्रयत्न किया । इस प्रकार लाभों को दूप्यूट (Dupuit) मार्शल (Marshall) और अन्यों के ‘उपभोक्ता के अतिरेक’ से सम्बन्धित किया गया और शुद्ध सामाजिक लाभों के संदर्भ में वर्गीकरण को कल्याण अधिकतमीकरण के लिये पारेटो (Pareto) मानदण्ड को न्यायसंगत ठहराया गया ।”


3. लागत लाभ विश्लेषण की कल्याण नींव (

Welfare Foundation of Cost Benefit Analysis):

लागत लाभ विश्लेषण का लक्ष्य साधनों को उन परियोजनाओं की ओर गतिशील करना है जो समाज के शुद्ध लाभ में अधिकतम सहायक होगें शुद्ध लाभों के अधिकतमीकरण का अभिप्राय है सामाजिक उपयोगिता का अधिकतमीकरण, सबसे पहले सन् 1944 में डयूपिट ने इस समस्या का परीक्षण किया ।

हम रेखा चित्र 5.1 में उसके तर्कों को समझते है जो पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता को ध्यान में रखते हुये दिये गये हैं । रेखा चित्र 5.1 में यह कल्पना की गई है कि परियोजना का आरम्भ सीमान्त लागत को MC1 से MC2 तक नीचा करता है फलत: बाजार कीमत D पर निर्धारित होती है जो सीमान्त लागत के साथ मांग वक्र BQ का कटाव बिन्दु है ।

नई कीमत पर, उपभोक्ता OE मात्रा के लिये OBDE देने को तैयार है । क्षेत्र OBDE में दो भाग सम्मिलित हैं- OHDE, वास्तव में दी गई राशि और HBP, अतिरिक्त राशि जो वह देने को तैयार है जिसे उपभोक्ता अतिरेक कहा जाता है । C बिन्दु पर, कुल कीमत जिसका उपभोक्ता भुगतान करने को तैयार थे OBCK थी ।

इस प्रकार कम कीमत के फलस्वरूप भुगतान की रजामन्दी में परिवर्तन KEDC है । अन्य शब्दों में नीची कीमत कुल लाभों को क्षेत्र KEDC द्वारा बढ़ाती है । लाभों में वृद्धि में KEDF की अतिरिक्त लागतें शामिल हैं ।

अत: लाभ में शुद्ध प्राप्ति त्रिकोण FDC की है । त्रिकोण के दो भाग हैं GCD और GFD । GCD उपभोक्ता के अतिरेक के रूप में लाभ है जबकि GFD उत्पादक के अतिरेक के रुप में लाभ है ।

डयूपिट ने सुझाव दिया कि एक पुल से गुजरने के लिये लगाये गये शुल्क से उत्पन्न होने वाले कल्याण में परिवर्तन को मापने के लिये संयुक्त अतिरेक का प्रयोग किया जाये । इस विश्लेषण को नये निवेश पर भी विस्तारित किया जा सकता है ।

बाद में मार्शल ने आय की स्थिर सीमान्त उपयोगिता की प्रतिबन्धक मान्यता के अन्तर्गत कल्याण में परिवर्तन को मापने के लिये उपभोक्ता अतिरेक की धारणा को अपनाया । इस विश्लेषण की अन्य मान्यताएं, उपयोगिता लाभों तथा हानियों और प्रत्येक व्यक्ति के लिये समरूप उपयोगिता परिमापों के गणना सूचक संकेतक थे ।

इन मान्यताओं के अन्तर्गत व्यक्तिगत अतिरेकों और हानियों को जोड़ने की कोई समस्या नहीं थी । क्रम सूचक समर्थकों (Ordinalists) द्वारा गणनासूचक उपयोगिकता की कड़ी आलोचना की गई । होटलिंग (Hoteling) तथा हिक्स (Hicks) का विचार था कि उपभोक्ता के अतिरेक की धारणा को अब भी, कार्डीनल उपयोगिता तथा आय की सीमान्त उपयोगिता एवं सततता की मान्यताओं को त्याग कर, कायम रखा जा सकता है ।

पारेटो (Pareto) एक ऐसी स्थिति का वर्णन करता है जहां किसी व्यक्ति की दशा को बेहतर बनाने के लिये किसी अन्य की दशा को बदतर बनाना आवश्यक होता है ।

अत: यदि कोई आर्थिक संगठन प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति को बेहतर बनाता है, अथवा अधिक संक्षेप में किसी की भी स्थिति को बदतर बनाये बिना यदि वह समाज में एक या एक से अधिक सदस्यों की स्थिति को बेहतर बनाता है, तो यह पारेटो सुधार है ।

क्योंकि उपयोगिता की अन्तवैक्तिक तुलना का क्रमवादियों ने बहिष्कार किया है, पारेटो इष्टतम किसी ऐसी स्थिति का विश्लेषण नहीं कर सकता जिसमें परिवर्तन कुछ लोगों को लाभ पहुंचाता है तथा कुछ को हानि । इसके अतिरिक्त काल्डोर हिक्स का क्षतिपूर्ति नियम इस स्थिति का वर्णन करने के लिये पारेटो के इष्टत्तम के प्रयोग का एक प्रयत्न है ।

एक परिवर्तन जो ऐसे लाभ उत्पन्न करता है जिनके मूल्य साथ आने वाली हानियों से अधिक हैं तो यह एक सुधार है । अन्य शब्दों में- एक परिवर्तन सामाजिक कल्याण को बढ़ाता है यदि लाभ प्राप्तकर्त्ता सभी हानि उठाने वालों की पूर्ण क्षतिपूर्ति करने के पश्चात् भी पहले से बेहतर स्थिति में हों ।

लागत-लाभ विश्लेषण के कल्याण आधार, किसी भी अभिगम की स्थिति में चाहे वह उपभोक्ता अतिरेक की हो अथवा पारेटों इष्टतम की, अधिक मूल्य नहीं रखते । वह अनेक अति प्रतिबन्धक मान्यताओं पर आधारित हैं ।

उपभोक्ता अतिरेक अभिगम को यदि इसकी गणना वाचक उपयोगिता की मान्यता से वंचित भी कर दिया जाता है, तो यह इस आधार पर व्यर्थ है, जैसा कि लिटल द्वारा दर्शाया गया है कि मांग वक्र केवल आंशिक है तथा निवेश का अन्य सभी वस्तुओं की कीमतों पर प्रभाव की ओर ध्यान देने में असफल है ।

इस प्रकार अतिरेक में परिवर्तन जो कहीं और घटित हो सकते है, विचाराधीन परियोजना के विश्लेषण में हिसाब में नहीं लिये जाते । पारेटो सुधार आय के वितरण में परिणामित परिवर्तनों की उपेक्षा करता है ”न केवल यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति बेहत्तर नहीं होती, यह भी सम्भव है कि समाज में वह सभी जिनकी स्थिति बदत्तर बन जाती हैं अधिकतर कम आय वर्ग में पाये जाते हैं ।”

कल्पना करें कि एक परिवर्तन एक अमीर व्यक्ति को 3,00,000 रुपयों द्वारा, एक निर्धन के व्यय पर जो 2,00,000 रुपयों से बदत्तर बनते है, बेहतर बनाता है । सम्पूर्ण समाज को 1,00,000 रुपयों का अतिरिक्त लाभ है ।

परन्तु ऐसा आर्थिक परिवर्तन जो आय वितरण में असमानता को और भी बिगाड़ता है बहुमत को स्वीकार्य नहीं हो सकता । काल्डोर हिक्स का क्षतिपूर्ति नियम इस समस्या का कोई समाधान नहीं है क्योंकि यह हानि उठाने वालों के केवल काल्पनिक भुगतान पर विचार करता है ।


4. वित्तीय अध्ययन और लागत लाभ विश्लेषण (

Financial Study and Cost Benefit Analysis):

किसी निर्गत के उत्पादन के लिये पूंजी निवेश करते समय, निवेश पर प्रत्याशित प्रतिफलों के आधार पर निर्णय लिया जाता है । यदि इस प्रतिफल के उत्पादन की अन्य दिशाओं से कम होने की सम्भावना होती है तो यह विशेष उत्पादन निवेशकों से पूंजी आकर्षित करने के योग्य नहीं होगा ।

सार्वजनिक निवेश परियोजना के प्रकरण में, यदि निवेश सीधे सरकारी कोष की आय में से किया जाता है तो योजना निर्माता राष्ट्र को पर्याप्त प्रतिफल उपलब्ध करने का दायित्व लेते है । निजी क्षेत्र के प्रकरण में, निवेश में ऐसी ही वचनबद्धता अंशधारकों को लाभांश के रूप में देने के लिये होती है ।

अत: समय का तत्व निवेश कोष के लिये एक महत्वपूर्ण कारक होता है, क्योंकि इसमें वर्तमान उपभोग का त्याग और भविष्य के उपभोग के लिये प्रतीक्षा सम्मिलित होती है । कोई भी व्यक्ति भविष्य में अधिक उपभोग के वादे से अपने वर्तमान उपभोग का त्याग कर देगा जिसे उसकी समय वरीयता कहा जाता है ।

यदि एक रुपये मूल्य के वर्तमान उपभोग और एक वर्ष बाद एक रुपया दस पैसे मूल्य के उपभोग के प्रति वह तटस्थ है, उसकी सीमान्त समय वरीयता की दर 0.10 अथवा 10 प्रतिशत है । इस तथ्य को रेखा चित्र 5.3 की सहायता से वर्णित किया जा सकता है ।

रेखा चित्र 5.3 में वक्र पूंजी उत्पादकता अथवा निवेश अवसरों की सम्भावना दर्शाता है । विभिन्न बिन्दुओं पर वक्र की ढलान अथवा जिसे तकनीकी रूप में रुपान्तरण का सीमान्त दर (HRT) कहा जाता है, वह दर दर्शाता है जिस पर वर्तमान आय को भविष्य की आय में परिवर्तित किया जा सकता है ।

अत: बिन्दु E पर दर रेखा DC की ढलान द्वारा दिया गया है जो दर्शाता है कि राशि AM की वर्तमान आय को भविष्य की राशि EM की आय में परिवर्तित किया जा सकता है । वर्तमान आय का जितना बड़ा त्याग होगा, रूपान्तरित भविष्य आय की राशि उतनी ही बड़ी होगी ।

परन्तु वर्तमान आय के बलिदान से प्रतिफलों का दर कम हो रहा है अत: इसलिये रूपान्तरण वक्र उत्पत्ति के बिन्दु की ओर नतोदर है । दूसरी ओर, व्यक्ति की समय वरीयता की सीमान्त दर उसके वर्तमान उपयोग और भविष्य के उपयोग के लिये उसके तटस्थ वक्र की ढलान द्वारा दी गयी है ।

यह उस दर को दर्शाता है जिस पर वह अपने वर्तमान उपयोग का भविष्य में एक सुनिश्चित राशि के उपभोग के लिये बलिदान करने के लिये तैयार है । यदि तटस्थ सतह के किसी बिन्दु पर ढलान भविष्य के उपभोग को वर्तमान उपभोग से बड़ा दिखाती है तो समय वरीयता का सीमान्त दर ऋणात्मक होगी जैसा कि P3 सूची द्वारा KL ढलान के साथ दिखाया गया है ।

इसके विपरीत स्थिति में ढलान रेखा DC द्वारा तटस्थ सूची P1 के बिन्दु E पर दर धनात्मक होगी जबकि P2 की GF ढलान तटस्थ वरीयता अथवा शून्य दर की ओर संकेत करती है ।

समय वरीयता का सीमान्त दर और परिवर्तन की सीमान्त दर बिन्दु E पर बराबर है जहां वरीयता और रूपानान्तरण सूचियां एक दूसरे की स्पर्श रेखाएं हैं । इस बिन्दु पर, निजी अर्थव्यवस्था में ब्याज दर निर्धारित की जाती है ।

 


5. लाभों और लागतों की माप (

Measurement of Benefits and Costs):

यदि सभी मूल्यों को बाजार कीमतों के रूप में देखा जा सके तो माप का प्रश्न बहुत सरल होगा । परन्तु ऐसी स्थिति नहीं है । लागतें और लाभ प्राय: अमूर्त रूप में होते है, और यहां तक कि जहां बाजार मूल्य देखे जा सकते है उन्हें समायोजन की आवश्यकता होगी क्योंकि बाजार परिपूर्ण नहीं है और विकृतियों को स्थान देना आवश्यक है ।

अमूर्त वस्तुओं का मूल्यांकन (Valuation of Intangible Items):

हम अमूर्त वस्तुओं (गैर-बाजारी वस्तुओं) के मूल्यांकन से आरम्भ करते हैं, एक समस्या जिसका अनेक परियोजनाओं के लिये लागत-लाभ विश्लेषण का उन पर प्रयोग करने से पहले समाधान करना आवश्यक है ।

सामाजिक लाभ और लागतें (Social Benefits and Costs):

परियोजना लाभ आवश्यक रूप में अमूर्त हो सकते है जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्बन्ध में अथवा परिणाम मूर्त और अमूर्त दोनों लाभ हो सकते हैं । अत: शिक्षा सांस्कृतिक समृद्धि और प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया की सुधरी हुई कार्य प्रणाली द्वारा अमूर्त लाभ उपलब्ध करती है । लोगों की अर्जन शक्ति में वृद्धि एक मूर्त लाभ है । इसी प्रकार लागतें आंशिक मूर्त और आंशिक रूप में अमूर्त हो सकती हैं ।

परन्तु जहां अमूर्त लाभ और लागतें संलिप्त हैं, माप हमें पीछे की ओर समाज-भलाई मूल्यांकन की केन्द्रीय समस्या की ओर ले जाता है । ऐसे लाभों और लागतों का मूल्य सरलतापूर्वक बाजार कीमतों से नहीं लिया जा सकता, और उसके निर्धारण के लिये राजनीतिक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है ।

मतदाताओं के लिए यह निर्णय लेना आवश्यक है कि वह शुद्ध जल अथवा वायु अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा में वृद्धि द्वारा बढ़ाये गये संरक्षण को कितना महत्व देते हैं । लागत लाभ विश्लेषण इस प्रक्रिया के लिये कोई विकल्प नहीं है । यह किसी लाभ का मूल्य निर्धारित हो जाने के पश्चात् केवल परियोजनाओं के चयन का मार्ग है ।

अमूर्त निजी लाभ अथवा लागतें (Intangible Private Benefits or Costs):

सम्बन्धित समस्याएं उन लाभों और लागतों के सम्बन्ध में उत्पन्न होती हैं जिनका स्वरूप निजी होता है परन्तु वह स्वयं को बाजार मूल्यांकन के लिये प्रस्तुत नहीं करते । कुछ प्रकरणों में, प्राय: सन्तोषजनक स्वरूप की परोक्ष मूल्यांकन विधियों का प्रयोग इन अमूर्त वस्तुओं पर किया जा सकता है ।

उदाहरणार्थ, समय का व्यक्तिगत मूल्य परिवहन के साधनों जिनमें भिन्न गतियों की यात्रा सम्मिलित है, के लिये दी गई विविध कीमतों के अवलोकन द्वारा निकाला जा सकता है ।

लागत प्रभावीपन (Cost Effectiveness):

लाभों के मूल्यांकन के कठिन होने के बावजूद विश्लेषण दो प्रकार से सहायक हो सकता है । पहले, यह दर्शा सकता है कि विशेष परियोजनाओं से क्या लाभ अथवा लागतें परिणामित होगी । यह दर्शाता है कि रुपयों के संदर्भ में किस प्रकार के परिणामों को महत्व दिया जाना चाहिये । कुछ स्थितियों में मूल्यांकन की परोक्ष विधियों को विकसित किया जा सकता है ।

परन्तु जहां लाभों और लागतों को परोक्ष रूप में नहीं मापा जा सकता, न ही विश्लेषण परीक्षण कर सकता है कि वांछित लाभों और लागतों को परोक्ष रूप में कैसे नहीं मापा जा सकता, विश्लेषण परीक्षण कर सकता हैं कि एक प्रदत्त लागत के लिये वांछित प्रभाव को कैसे अधिकतम बनाया जा सकता है अथवा न्यूनतम लागत दर पर एक प्रदत्त परिणाम कैसे प्राप्त किया जा सकता है । एक सामान्य अभिगम को “लागत-प्रभावीपन” विश्लेषण कहा जाता है, जोकि उत्पाद के कठिन मूल्यकरण के बावजूद सहायक है ।

मध्यवर्ती वस्तुओं से लाभ (Benefits from Intermediate Goods):

लाभ मूल्यांकन के कार्य को सुविधा मिलती है जहां सार्वजनिक सुविधाओं का स्वरूप मध्यवर्ती प्रकार का हो न कि अन्तिम उत्पाद जैसा । अन्तिम वस्तुओं के प्रकरण में जैसे पार्क, में वस्तु के सामाजिक पक्ष का सामना करना आवश्यक है । क्योंकि कर मूल्यकरण द्वारा मूल्यांकन के लिये बहिष्करण के अदक्ष उपकरण की आवश्यकता होगी । इसलिये किसी अन्य अभिगम की आवश्यकता है ।

लागत बचत (Cost Saving):

एक अन्य स्थिति जो लाभ मूल्यांकन के कार्य को सरल बनाती है, वहां उत्पन्न होती है जहां सार्वजनिक सेवा की व्यवस्था समाज को अन्य लागतों से मुक्त करती है जो अब अनावश्यक हो गयी हैं ।

इस प्रकार, एक कार्यक्रम के लाभों का माप सुधारक संस्थाओं पर व्ययों में बचत के रूप में किया जा सकता है । बचाई गई लागतों के रूप में लाभों का अनुमान एक उपगमन उपलब्ध करता है जिसके द्वारा परियोजना चयन का निर्धारण होता है ।


6. लागत लाभ विश्लेषण में छाया कीमतें (

Shadow Pricing in Cost Benefit Analysis):

विस्तृत बाजार अपूर्णतायेंसुझाव देती हैं कि एक सार्वजनिक निवेश परियोजना का सामाजिक लागत लाभ विश्लेषण बाजार कीमतों के आधार पर असम्भव है क्योंकि उन्हें सामाजिक लागतों और लाभों के उचित उपायों से अपसारित किया जाता है । विकासशील देशों की स्थिति ऐसी है ।

इन देशों में बाजार अपूर्णतायें विकसित देशों से अधिक होती है और जहां कीमतें यथार्थ बलिदानों को प्रकट करने में कम दक्ष होती है । दो महत्वपूर्ण संशोधन आवश्यक हैं । पहला, परियोजना के आगतों और निर्गतों की बाजार कीमतों को कुछ अन्य कीमतों पर बदलना पड़ता है जो समाज के प्रति उनके वास्तविक मूल्य का नाप कर सके ।

दूसरे, निवेश परियोजना से उत्पन्न होने वाली, बाहरी मितव्यताओं अथवा फिजूल खर्चों का मूल्यांकन प्रक्रिया में प्रबन्ध करना पड़ता है । ऐसे मूल्यकरण, जो बाजार मूल्यों को लागत लाभ विश्लेषण में प्रतिस्थापित करते हैं, को प्राय: छाया कीमतें अथवा लेखा कीमतें कहा जाता है ।

अत: समाज द्वारा परियोजना की आगतों और निर्गतों को दिये मूल्य को प्रकट करने के लिये हमारे पास छाया श्रम लागत अथवा छाया मजदूरी, छाया विदेशी विनिमय दर, पूंजी की छाया लागत, उत्पादन की छाया कीमत आदि हैं ।

छाया मजदूरी दर (Shadow Wage Rate):

श्रम बाजार में विद्यमान वास्तविक मजदूरी दर श्रम की दुर्लभता का एक निर्बल उपाय है । श्रम लागत का मूल्यांकन, श्रम की दक्षता में विभिन्न विविधताओं के कारण, कठिन हैं । मुख्यता हम श्रम को प्रशिक्षित एवं अप्रशिक्षित श्रेणियों में बांट सकते हैं । परन्तु प्रत्येक श्रेणी में अनेक किस्में हैं ।

उद्योगों और अन्य व्यवसायों में कार्यरत प्रशिक्षित श्रम के सम्बन्ध में प्राय: यह विश्वास किया जाता है कि बाजार मजदूरी वास्तविक सामाजिक मजदूरी अथवा श्रम के सीमान्त उत्पाद से कम है, परन्तु अप्रशिक्षित श्रम के प्रकरण में अन्तिम विचार यह है कि सीमान्त उत्पाद कम है तथा इसलिये, बाजार मजदूरी सामाजिक वास्तविक मजदूरी से बहुत ऊपर है ।

इस रूप में अप्रशिक्षित श्रम के लिये सामाजिक वास्तविक मजदूरी को शून्य समझा जा सकता है । यह अप्रशिक्षित श्रम के बीच विस्तृत रूप से फैली हुई छिपी हुई बेरोजगारी के कारण है जो दर्शाती है कि कृषि से श्रम का निष्कासन उत्पादकता को कम नहीं करता ।

भूमि के प्राकृतिक साधनों की छाया कीमत (Shadow Price of Natural Resources of Land):

अर्थशास्त्र में भूमि का अर्थ केवल कृषि और उद्योगों के लिये प्रयुक्त भूमि और शहरों में निर्माण के लिये प्रयुक्त भूमि से नहीं लिया जाता बल्कि अन्य सभी प्राकृतिक साधन भी इसी में आते है । प्राकृतिक साधनों तथा भूमि की अन्य किस्मों का आर्थिक मूल्यांकन यद्यपि, आगत के शुद्ध वर्तमान मूल्य तथा निर्गत के शुद्ध वर्तमान मूल्य में अन्तर है ।

फिजगराल्ड (Fitzgerald) ने भूमि की छाया कीमतों का सूत्र दिया है । यह ऊपर दिये अन्तर के समान है । उनके अनुसार, शुद्ध आय (t) की एक धारा के लिये, जो प्रत्येक वर्ष (t) में प्राप्त होती है ।

वर्तमान मूल्य (X) आयोजन छूट दर (r) के अनन्त प्रयोग द्वारा दिया गया है-

तथापि, यह अनन्त योग बन जाता है क्योंकि भूमि से शुद्ध आय का वृद्धि दर उतना ऊँचा नहीं होगा जितना कि किसी लम्बे समय में घटते प्रतिफलों के संचलन के कारण छूट दर होता है । इसलिये फिज़गेराल्ड (Fitzgerald) सूत्र को संशोधित करते हैं ।

शुद्ध आय (z) की वृद्धि दर दिये होने पर, आधार वर्ष X0 में निरपेक्ष शुद्ध आय और छूट दर (r), व वर्तमान मूल्य (X) का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जायेगा:

छाया विनिमय दर (Shadow Exchange Rate):

‘बाजार कीमतें दुर्लभता स्तर को प्रतिबिम्बित नहीं करती’ यह विदेशी विनिमय दर द्वारा स्पष्टतापूर्वक दर्शाया गया है । विकासशील देशों में विनिमय दर प्राय: बड़े स्तर पर अधिमूल्यत नहीं होते । परियोजनाओं की निवेश लागतें प्राय: अलग दिखाई जाती है जैसे विदेशी विनिमय और घरेलू व्यय ।

इसी प्रकार, परियोजनाओं का चालू लागतों के प्रकरण में श्रेणीकरण किया जाता है । निर्यात योग्य उत्पादन और आयात-प्रतियोगी उत्पादन के कारण विदेशी विनिमय में बचत से, विदेशी विनिमय के अर्जन के अनुमान लगाये जाते है ।

परन्तु क्योंकि विभिन्न परियोजनाओं के उत्पादन, विभिन्न अनुपातों में विदेशी विनिमय का अर्जन अथवा बचत करते हैं विदेशी विनिमय और घरेलू लागतों के एक गलत मूल्यांकन के कारण विभिन्न परियोजनाओं की अर्थव्यवस्थाओं के मूल्यों के अनुमान गलत हो सकते है ।

भुगतानों के सन्तुलन में सामंजस्यता प्राप्त करने के लिये देश प्राय: बहुमुखी विनिमय दरों का अनुकरण करते है । इन विनिमय दरों का एक औसत भार विदेशी विनिमय की दुर्लभता और आर्थिक मूल्यांकन के सम्बन्ध में एक उचित विचार उपलब्ध कर सकता है ।

परियोजनाओं के उत्पादन के सम्बन्ध में विदेशी विनिमय और घरेलू लागत तत्वों और प्राप्ति तत्वों को विभिन्न भारिताएं दी जाती है ताकि विदेशी विनिमय की वास्तविक दुर्लभता प्रकट हो सके ।