लोक प्रशासन में लोग भागीदारी | People Participation in Public Administration in Hindi.
जन भागीदारी का अर्थ है- प्रशासनिक प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी । इससे प्रशासन पर नागरिकों के नियंत्रण की अथवा प्रशासन पर जनता के प्रभाव की अपेक्षा की जाती है । प्रशासन तंत्र को सरल और कारगर ढंग से चलाने के लिए यह आवश्यक है ।
यह प्रशासन को लोगों की जरूरतों के प्रति जवाबदेह बनाती है । यह सरकारी नीतियों के लिए जनसमर्थन हासिल करती है और उनको सफल बनाती है । यह प्रशासनिक जवाबदेही को लागू करने के एक महत्वपूर्ण साधन का निर्माण करती है । जनतांत्रिक सरकार ‘लोकप्रिय प्रभुसत्ता के सिद्धांत’ पर आधारित है ।
इसका अर्थ है कि जनतंत्र में सबसे ऊपर जनता है दूसरे शब्दों में जनतंत्र में अंतिम सत्ता जनता में निहित होती है । अत: जनतंत्र में प्रशासन अंतत: जनता के प्रति उत्तरदायी है या होना चाहिए । इस संदर्भ में प्रशासन में जनता की भागीदारी महत्वपूर्ण हो जाती है ।
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यह प्रतिनिधिक जनतंत्र को भागीदारी जनतंत्र में बदल देती है । यह ‘नीचे से शासन’ को बढ़ावा देती है । प्रशासन में जनता की भागीदारी का अध्ययन दो शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है- सामान्य प्रशासन में भागीदारी और विकास प्रशासन में भागीदारी ।
I. सामान्य प्रशासन में भागीदारी (Participation in General Administration):
उपेक्षित और असंगठित होने के कारण जनता आमतौर पर प्रशासन पर निश्चित और नियमित प्रभाव नहीं रख पाती । अत: प्रशासनिक प्रक्रिया पर जनता का प्रभाव मुख्यतया अप्रत्यक्ष और अनौपचारिक होता है ।
परंतु प्रशासन में जनता की भागीदारी की कुछ औपचारिक पद्धतियाँ हैं:
1. निर्वाचन:
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प्रतिनिधिक जनतंत्र को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है- राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार और संसदीय प्रणाली की सरकार । संयुक्त राज्य अमरीका की राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है । वह मुख्य कार्यकारी होता है जिसे सरकार के कार्यपालक अंग के सभी अधिकार प्राप्त होते हैं ।
वह विधायिका (कांग्रेस) को नहीं बल्कि अंतत: जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । अत: संयुक्त राज्य अमरीका जैसी राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार में मुख्य प्रशासक पर जनता का नियंत्रण प्रत्यक्ष होता है । ब्रिटेन और भारत की संसदीय प्रणाली की सरकारों में वास्तविक कार्यपालिका (अर्थात मंत्रिमंडल) विधायिका से निकलती है और अपनी नीतियों तथा कार्यों के लिए यह इसी के प्रति उत्तरदायी रहती है ।
विधायिका का उत्तरदायित्व जनता के प्रति होता है । अत: ब्रिटेन और भारत जैसी संसदीय प्रणाली की सरकारों में कार्यपालिका पर जनता का नियंत्रण अप्रत्यक्ष है, क्योंकि यह निर्वाचित संसद द्वारा लागू किया जाता है ।
चाहे वो राष्ट्रपति प्रणाली हो या संसदीय सरकार, जनतंत्र में जब वह अनुत्तरदायी, भ्रष्ट, अयोग्य और उदासीन हो जाती है, इसको समय-समय पर होने वाले चुनावों के द्वारा हटाया जा सकता है । किसी लोकप्रिय सरकार में लोगों के विश्वास की अभिव्यक्ति चुनावों के माध्यम से होती है ।
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2. वापस बुलाना:
यह एक सीधा जनतांत्रिक उपाय है । इसका प्रयोग स्विटजरलैंड तथा संयुक्त राज्य अमरीका के 13 राज्यों में किया जाता है जहाँ प्रशासनिक अधिकारियों का चुनाव सीधे जनता करती है । वापस बुलाने की व्यवस्था से लोग प्रतिनिधियों को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा सकते हैं ।
दूसरे शब्दों में, यदि प्रतिनिधि लोगों की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करने में विफल रहता है तो लोग उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उसे उसके पद से हटा सकते हैं । वापस बुलाने के अधिकार का प्रयोग लोग तब भी कर सकते हैं जब वे निर्वाचित प्रतिनिधि के काम से संतुष्ट नहीं होते ।
इसके लिए किसी गैरकानूनी कार्यवाही का आरोप लगाने की आवश्यकता नहीं होती । वापस बुलाने के उपाय का मुख्य लाभ यह है कि इससे लोगों का अपने प्रतिनिधि यों पर उनकी पेशेवर भूमिका और कर्तव्य के मामले में लगातार नियंत्रण बना रहता है ।
3. प्रभावी समूह:
‘दबाव समूह’ (Pressure Group) शब्द का जन्म संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ था । यह ऐसे लोगों का समूह है जो अपने समान हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से सक्रिय रूप से संगठित होते हैं । स्वयंसेवी संस्थाएँ, ट्रेड यूनियनें, रोजगार संगठन, व्यावसायिक संगठन, छात्र संघ इत्यादि ऐसे ही समूहों के उदाहरण हैं ।
इन समूहों को हित या निहित समूह भी कहा जाता है । अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वे प्रशासन पर दबाव डालते हैं । वे सरकार में नीति निर्माण और नीति क्रियान्वयन को प्रभावित करते हैं और इसके लिए वे प्रचार, प्रतिवेदन, सार्वजनिक बहस, विधायकों से संपर्क जैसे कानूनी तथा विधायी उपायों का सहारा लेते हैं ।
वे प्रशासन और अपने सदस्यों के बीच संपर्क साधने का काम करते हैं । परंतु कभी-कभी वे हड़तालों, हिंसक कार्यवाहियों और भ्रष्ट उपायों का भी प्रयोग करते हैं जिससे सार्वजनिक हितों और प्रशासनिक अखंडता को नुकसान पहुँचता है ।
4. सलाहकार समितियाँ:
इनको सलाहकार परिषद या बोर्ड भी कहा जाता है । ये ऊपर से नीचे तक सभी स्तरों पर प्रशासन प्रणाली से जुड़ी होती हैं । इनमें विशेषज्ञ नागरिक और विशेष हितों के प्रतिनिधि होते हैं । ये प्रशासन और जनता के बीच कड़ी का काम करती हैं और प्रशासनिक नीतियों, समस्याओं एवं कार्य पद्धतियों पर सरकार को सलाह देती हैं ।
इन संस्थाओं की सिफारिशें केवल सलाहकारी होती हैं और संबद्ध विभाग इनको मानने को बाध्य नहीं होता । परंतु वे विभाग के जनसंपर्क के कारगर उपायों के रूप में काम करतीं हैं तथा प्रशासन के चरित्र को जनतांत्रिक बनाती हैं ।
5. जनमत:
उपरोक्त औपचारिक पद्धतियों के विपरीत प्रशासन में, जनता की भागीदारी के संबंध में, जनमत जनता की राय है । यह अखबारों, सार्वजनिक मंच, राजनीतिक दलों, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, दबाव समूहों तथा शिक्षा संस्थानों इत्यादि के द्वारा व्यक्त होता है । इनमें से स्वतंत्र अखबार जनमत के सबसे प्रभावशाली माध्यम हैं । इसको जनतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ कहा जाता है ।
प्रशासन में जनता की भागीदारी की एक पद्धति के रूप में जनमत की महत्व निम्नलिखित से स्पष्ट किया जा सकता है:
(i) यह सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावित करता है ।
(ii) यह प्रशासन को उत्तरदायी बनाए रखता है और प्रशासन पर पहरेदारी का काम करता है ।
(iii) यह कानूनों के स्रोत का काम करता है और उनके कार्यान्वयन को आसान बनाता है ।
(iv) यह सरकार की अलोकप्रिय और गैर जनतांत्रिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है ।
II. विकास प्रशासन में भागीदारी (Participation in Development Administration):
विकास प्रशासन में जनता की भागीदारी का अर्थ है- विकास के उन कार्यक्रमों के प्रशासन की प्रक्रिया में जनता की सीधी भागीदारी जिनका उद्देश्य समाज में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाना है ।
इसके निम्नलिखित आयाम हैं:
(i) निर्णय-निर्माण में भागीदारी ।
(ii) क्रियान्वयन में भागीदारी ।
(iii) निगरानी और मूल्यांकन में भागीदारी ।
(iv) लाभों के बंटवारे में भागीदारी ।
विकास प्रशासन में जनता की भागीदारी विभिन्न कार्यतंत्रों के द्वारा होती है, जैसेकि पंचायती राज संस्थाएं, सहकारी संस्थाएं, महिला मंडल, किसान सेवा समितियाँ, युवा केंद्र तथा अन्य स्वयंसेवी/गैर सरकारी संगठन ।
विकास प्रशासन में जनता की भागीदारी विभिन्न संदर्भों में उपयोगी है:
1. स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक, परिवेशीय और तकनीकी परिस्थितियों के बारे में यह प्रशासन को भारी जानकारी देती है । विकास कार्यक्रमों के नियोजन, कार्यक्रम निर्माण तथा क्रियान्वयन की प्रक्रिया में इस जानकारी का बहुत महत्व है ।
2. इससे उन परियोजनाओं के चयन में मदद मिलती है जो जनता के लिए सीधे तौर पर प्रासंगिक हैं ।
3. यह कार्यक्रम की सफलता के लिए अति आवश्यक धन, श्रम, सामग्री इत्यादि के रूप में स्थानीय संसाधनों को जुटाना आसान बनाती है ।
4. यह प्रशासनिक सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा का काम करती है और इस प्रकार कार्यक्रमों के संचालन में भ्रष्टाचार के अवसरों को कम करती है ।
5. कार्यक्रमों में समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को शामिल करके यह कार्यक्रमों से मिलने वाले लाभों को अमीर और प्रभावशाली वर्गों द्वारा हड़पे जाने से रोकती है ।
6. इससे स्थानीय लोग विकास से होने वाले परिवर्तनों को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं और वे गलतियों तथा विफलताओं के प्रति सहनशील हो जाते है ।
7. सरकारी सहायता बंद हो जाने के बाद भी कार्यक्रमों को चलाए रख कर यह सरकार के आर्थिक बोझ को कम करती है । इन कार्यक्रमों का प्रबंधन स्वयंसेवकों या समुदाय-आधारित कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा सकता है ।
8. यह उत्तरदायित्व लेने और अपनी समस्याओं का खुद समाधान करने की लोगों की क्षमता तथा सामर्थ्य को बढ़ाती है और उनमें आत्मनिर्भरता, पहल तथा नेतृत्व की भावना विकसित करती है ।
9. समाज में यह सजग प्रहरी की भावना को बढ़ावा देती है और इस प्रकार सबसे निचले स्तर पर जनतंत्र को मजबूत करती है ।
परंतु प्रशासन में और विशेषकर विकास प्रशासन में जनता की भागीदारी को सीमित करने तथा प्रभावशीलता को कम करने वाले विभिन्न कारण निम्नलिखित हैं:
(i) अभिजातवर्गीय और यंत्रवत नौकरशाही,
(ii) जातिवाद, संप्रदायवाद, निर्धनता, निरक्षरता इत्यादि जैसे प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक वातावरण,
(iii) नकारात्मक राजनीतिक हस्तक्षेप,
(iv) समय प्रतिबंध अर्थात कार्यक्रमों की समयबद्ध प्रकृति,
(v) प्रशासन में भ्रष्टाचार और आचार के निम्न स्तर,
(vi) त्रुटिपूर्ण प्रशासनिक कार्यप्रणाली,
(vii) भागीदारी मूलक संस्कृति की कमी ।