तुलनात्मक लोक प्रशासन: उत्पत्ति और अस्वीकार | Read this article in Hindi to learn about:- 1. तुलनात्मक लोक प्रशासन का अर्थ (Meaning of Comparative Public Administration) 2.  CAG का गठन (Formation of CAG) 3. तुलनात्मक लोक प्रशासन का उद्देश्य (Purposes of Comparative Public Administration) 4. उदय स्रोत/कारण (Sources/Causes of Evolution) 5. प्रवृत्तियां (Trends) 6. अवधारणात्मक उपागम (Conceptual Approaches) 7. ह्रास (Decline) 8. महत्व (Significance) and Other Details.

Contents:

  1. तुलनात्मक लोक प्रशासन का अर्थ (Meaning of Comparative Public Administration)
  2. CAG का गठन (Formation of CAG)
  3. तुलनात्मक लोक प्रशासन का उद्देश्य (Purposes of Comparative Public Administration)
  4. तुलनात्मक लोक प्रशासन के उदय का स्रोत/कारण (Sources/Causes of Evolution of Comparative Public Administration)
  5. तुलनात्मक लोक प्रशासन का प्रवृत्तियां (Trends of Comparative Public Administration)
  6. तुलनात्मक लोक प्रशासन का अवधारणात्मक उपागम (Conceptual Approaches of Comparative Public Administration)
  7. तुलनात्मक लोक प्रशासन का ह्रास (Decline of Comparative Public Administration)
  8. तुलनात्मक लोक प्रशासन का महत्व (Significance of Comparative Public Administration)
  9. तुलनात्मक लोक प्रशासन का पुनरोत्थान आन्दोलन (Reviving Movement of Comparative Public Administration)
  10. सीपीए और आईपीए (CPA and IPA)
  11. रिग्स के तुलनात्मक मॉडल (Comparative Models of Rigs)
  12. तुलनात्मक लोक प्रशासन का भावी परिप्रेक्ष्य (Future Perspective of Comparative Public Administration)

1. तुलनात्मक लोक प्रशासन का अर्थ (Meaning of Comparative Public Administration):

लोक प्रशासन के युद्धोत्तर उद्भव का प्रथम मुख्य विकास तुलनात्मक लोक प्रशासन है । इसका लक्ष्य लोक प्रशासन में विचारधारा को मजबूत बनाते हुए एक अधिक वैज्ञानिक लोक प्रशासन का विकास करना है ।

लिंटन कॉडवेल के शब्दों में- ”इसका उद्देश्य प्रशासनिक व्यवहार के संबंध में एक सार्वभौमिक रूप से वैध ज्ञान के उद्भव को तेज करना- संक्षेप में, लोक प्रशासन के एक वास्तविक और व्यापक अनुशासन में योगदान करना रहा है ।” तुलनात्मक लोक प्रशासन संस्कृति-पारीय और राष्ट्र-पारीय लोक प्रशासन की हिमायत करता है ।

ADVERTISEMENTS:

इसके दो प्रेरक सरोकार हैं:

(i) विचारधारा-निर्माण और

(ii) विकासशील देशों की प्रशासनिक समस्याएँ । फेरेल हीडी 1960 के दशक को ‘तुलनात्मक प्रशासन आंदोलन का स्वर्णयुग’ कहते हैं ।

जैसा कि निकोलस हेनरी ने सही ही टिप्पणी की है, तुलनात्मक लोक प्रशासन पारंपरिक या अमेरिकी लोक प्रशासन से दो पहलुओं में भिन्न है:

ADVERTISEMENTS:

(i) लोक प्रशासन ‘संस्कृति-सीमित’ (जाति-केंद्रित) है जबकि तुलनात्मक लोक प्रशासन अपनी दिशा और जोर में ‘संस्कृति-पारीय’ है ।

(ii) लोक प्रशासन ‘प्रयोगकर्ता-निर्देशित’ होता है और ‘वास्तविक दुनिया’ को समेटता है जबकि तुलनात्मक लोक प्रशासन ‘विचारधारा-निर्माण’ का प्रयास करता है और ‘ज्ञान की खातिर ज्ञान की खोज’ करता है । संक्षेप में तुलनात्मक लोक प्रशासन का जोर पूरी तरह अकादमिक है न कि पेशेवर ।

तुलनात्मक लोक प्रशासन को 1962 में फोर्ड फाउंडेशन की वित्तीय सहायता के साथ वास्तविक कार्यतंत्र प्राप्त हुआ और सीएजी ने तीन उद्देश्यों के साथ एक कार्यक्रम विकसित किया:

1. तुलनात्मक लोक प्रशासन में शोधकार्य को बढ़ावा देना,

ADVERTISEMENTS:

2. तुलनात्मक लोकप्रशासन के शिक्षण को प्रोत्साहित करना,

3. विकास प्रशासन के क्षेत्र में अधिक प्रभावी लोकनीति निर्माण में योगदान करना ।

परिभाषा:

निमकॉर्ड राफेली- ”तुलनात्मक लोक प्रशासन एक तुलनात्मक आधार पर किया जाने वाला लोक प्रशासन का एक अध्ययन है । उन्होंने संकेत दिया कि तुलनात्मक लोक प्रशासन के उद्भव 1952 में संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रिंसटन यूनीवर्सिटी में प्रशासन विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में हुआ था । राफेली ने कहा कि तुलनात्मक लोक प्रशासन अकादमिक निर्देश एवं अनुसंधान के समुदाय में शामिल होने वाला एक नवआगंतुक है ।”

रॉबर्ट एच. जैक्सन- ”तुलनात्मक लोक प्रशासन, लोक प्रशासन के अध्ययन का वह पहलू है जो संरचनाओं को गठित पार-सांस्कृतिक तुलनाओं के निर्माण तथा सार्वजनिक मामलों को प्रशासित करने की गतिविधि में निहित प्रक्रियाओं से सम्बन्ध रखता है ।”

तुलनात्मक प्रशासन समूह (सीएजी)- “तुलनात्मक लोक प्रशासन विविध संस्कृतियों एवं राष्ट्रीय व्यवस्थाओं पर अनुप्रयुक्त किया जाने वाला प्रशासन का एक सिद्धांत है । इसका संबंध वास्तविक आँकड़ों के एक निकाय से होता है जिसके द्वारा इसे जांचा-परखा जा सकता है ।” जोंग एस. जुन- “तुलनात्मक लोक प्रशासन प्रमुखत: पार-सांस्कृतिक एवं पार-राष्ट्रीय अभिमुखीकरण को दर्शाता रहा है ।”


2. CAG का गठन (Formation of CAG):

तुलनात्मक लोक प्रशासन की वृद्धि में सबसे महत्त्वपूर्ण अकेला योगदान 1960 में ‘दि अमेरिकन सोसायटी फॉर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (ASPA,1939 में स्थापित) की एक कमेटी के रूप में स्थापित ‘कम्पेरेटिव एडमिनिस्ट्रेशन ग्रुप’ (CAG) (तुलनात्मक प्रशासन समूह) का रहा ।

सीएजी से जुड़े प्रतिष्ठित विद्वान थे- फ्रेड रिग्स, अल्फ्रेड डियामांट, फेरेल हीडी, ड्‌वाइट वाल्डो, वालसा सेयर, मार्टिन लैंडाऊ, विलियम साफिन, जॉन मॉण्टगोमरी, राल्फ ब्राइबाण्टी, बर्ट्म ग्रॉस व अन्य । फिर भी, फ्रेड रिग्स लोक प्रशासन के तुलनात्मक उपागम के सबसे बड़े प्रतिपादक हैं । उन्हें तुलनात्मक लोक प्रशासन का पिता माना जाता है । वह एक दशक (1960-1970) तक सीएजी के अध्यक्ष थे । उनके बाद रिचर्ड गैबल ने उनकी जगह ली ।

सीएजी के संघटन और बुनियादी जोर के बारे में फ्रेड रिग्स ने टिप्पणी की थी:

”सीएजी में मुख्य रूप से वे विद्वान हैं जिन्होंने ऐसी परिस्थितियों के अंतर्गत तीसरी दुनिया के कई हिस्सों में तकनीकी सहकार अभियानों पर सेवाएँ दी हैं, जिनमें अमेरिकी व्यवहार के स्वीकृत प्रशासकीय विचार अलग-अलग सांस्कृतिक स्थितियों में बुरी तरह सीमित होते हैं । परिणामत: यह स्वाभाविक ही था कि सीएजी के सदस्य इन देशों में प्रशासनिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों की बेहतर समझ के आधार पर इन सिद्धांतों को संशोधित करने में गहरी दिलचस्पी रखें ।”

सीएजी ने तुलनात्मक लोक प्रशासन को ”लोक प्रशासन की एक से सिद्धांत” के रूप में परिभाषित किया “जो भिन्न सांस्कृतिक और राष्ट्रीय स्थितियों और तथ्यात्मक सूचनाओं के उस समूह पर लागू होती है जिसके द्वारा इसकी जाँच और परीक्षण हो सकता है ।”


3. तुलनात्मक लोक प्रशासन का उद्देश्य (Purposes of Comparative Public Administration):

फेरेल हीडी के अनुसार- तुलनात्मक लोक प्रशासन एक बौद्धिक उद्यम के रूप में पाँच ‘प्रेरक सरोकारों’ पर ध्यान देता है । ये हैं:

(i) सिद्धांत की खोज,

(ii) व्यावहारिक प्रयोग की आवश्यकता,

(iii) तुलनात्मक राजनीति के व्यापकतर क्षेत्र का सांयोजिक योगदान,

(iv) प्रशासनिक कानून की परंपरा में प्रशिक्षित शोधकर्ताओं की दिलचस्पी,

(v) लोक प्रशासन की जारी समस्याओं का तुलनात्मक विश्लेषण ।

फ्रेड रिग्स ने कहा है कि तुलनात्मक लोक प्रशासन के उद्देश्यों में उन आनुभविक और आदर्श सरोकारों का मेल है जो तुलनात्मक प्रशासनिक विश्लेषण के साहित्य में प्रतिबिंबित होते हैं ।

उनके अनुसार, तुलनात्मक लोक प्रशासन के चार निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

(i) एक विशिष्ट व्यवस्था या व्यवस्थाओं के समूह के विशिष्ट चारित्रिक गुणों को समझना ।

(ii) नौकरशाही के व्यवहार में संस्कृति-पारीय और राष्ट्र-पारीय अंतरों के लिए उत्तरदायी कारकों की व्याख्या करना ।

(iii) किन्हीं विशिष्ट परिवेशीय स्थितियों में किसी विशिष्ट प्रशासन की सफलता या असफलता के कारणों की जाँच करना ।

(iv) प्रशासनिक सुधारों की रणनीतियों को समझाना ।

रॉबर्ट टी. गोलम्बीव्स्की के अनुसार- ”तुलनात्मक लोक प्रशासन बल देता है कि (क) संगठनों को विशिष्ट संस्कृतियों और राजनीतिक स्थितियों में जड़ित संगठनों के रूप में देखना चाहिए, (ख) लोक प्रशासन के सिद्धांत गंभीर रूप से अनुपयुक्त हैं, (ग) प्रशासन का अध्ययन और व्यवहार दोनों ही व्यापक रूप से मूल्यों से लदे हैं और (घ) किसी भी उचित अनुशासन के शुद्ध और व्यावहारिक पहलू होने चाहिए ।”


4. तुलनात्मक लोक प्रशासन के उदय का स्रोत/कारण (Sources/Causes of Evolution of Comparative Public Administration):

जिन कारकों ने तुलनात्मक लोक प्रशासन के उदय और वृद्धि में योगदान किया, वे हैं:

(i) पारंपरिक उपागमों के साथ असंतोष के कारण तुलनात्मक राजनीति में संशोधनवादी आंदोलन ।

(ii) पारंपरिक लोक प्रशासन के साथ असंतोष जो संस्कृति सीमित था ।

(iii) बौद्धिक रूप से निर्देशित उत्प्रेरक, अर्थात सार्वभौमिक रूप से प्रासंगिक वैचारिक मॉडलों को विकसित करना ।

(iv) दूसरे विश्व युद्ध के समय विकासशील देशों की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की नई विशेषताओं का अमेरिकी विद्वानों और प्रशासकों के सामने खुलासा ।

(v) तीसरी दुनिया के नव स्वाधीन देशों का उदय जो वैज्ञानिक जाँच के लिए अवसर पैदा करते हुए तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे ।

(vi) नीति निर्देशित उत्प्रेरक अर्थात नीति निर्धारण और नीति को लागू करने और उसे प्रभावी बनाने के लिए व्यावहारिक ज्ञान को विकसित करना ।

(vii) प्रशासनिक संरचनाओं को प्रभावित करने वाले वैज्ञानिक, तकनीकी और वैचारिक विकास ।

(viii) अमेरिकी विदेशी सहायता कार्यक्रमों (राजनीतिक और आर्थिक) को नए उभरते विकासशील देशों तक पहुँचाया जाना ।

(ix) क्लासिकीय संरचनात्मक उपागम की प्रतिक्रिया में लोक प्रशासन के अंतर्गत व्यवहार संबंधी उपागम का उदय ।


5. तुलनात्मक लोक प्रशासन का प्रवृत्तियां (Trends of Comapartive Public Administration):

एफ. डब्ल्यू. रिग्स ने लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन में तीन रुझानों पर गौर किया:

(i) मानक अध्ययनों (‘क्या होना चाहिए’ से संबंधित) से आनुभविक अध्ययनों (‘क्या है’ से संबंधित) की ओर बदलाव ।

(ii) भाव चित्र विषयक अध्ययनों (एक राष्ट्र अध्ययन/व्यक्तिवादी अध्ययनों) की ओर बदलाव ।

(iii) गैर-परिवेशीय अध्ययनों (जो प्रशासकीय परिघटनाओं की एक पृथक गतिविधि के तौर पर जाँच करते हैं) से परिवेशीय अध्ययनों (जो प्रशासकीय परिघटना का इसके बाह्य परिवेश से संबंध की जाँच करते हैं) की ओर बदलाव ।

इस प्रकार फ्रेड रिग्स के अनुसार तुलनात्मक लोक प्रशासन हैं:

(i) आनुभविक अर्थात तथ्यात्मक और वैज्ञानिक,

(ii) विधि संबंधी अर्थात अमूर्त और सामान्यीकरणीय,

(iii) परिवेशीय अर्थात व्यवस्थित और असंकीर्ण ।


6. तुलनात्मक लोक प्रशासन का अवधारणात्मक उपागम (Conceptual Approaches of Comparative Public Administration):

फेरेल हीडी ने तुलनात्मक लोक प्रशासन में चार अवधारणात्मक उपागमों की पहचान की है:

(i) संशोधित पारंपरिक,

(ii) विकास निर्देशित,

(iii) सामान्य व्यवस्था मॉडल निर्माण,

(iv) मध्यम श्रेणी सिद्धांत सूत्रीकरण ।

हीडी के चार वर्गीय सूत्रीकरण से थोड़ा हटते हुए, हेंडरसन ने तुलनात्मक लोक प्रशासन में अवधारणात्मक उपागमों को तीन वर्गों में निर्धारित किया:

(i) नौकरशाही व्यवस्था उपागम,

(ii) आगत-निर्गत व्यवस्था उपागम,

(iii) संघटक उपागम ।

तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययन में विभिन्न उपागम/मॉडल निम्न हैं:

(i) अल्फ्रेड डियामाण्ट, रॉबर्ट प्रेस्थस, फेरेल हीडी, माइक क्राजिए, मोरो बर्जर आदि द्वारा अपनाया गया नौकरशाही व्यवस्था उपागम ।

(ii) एफ. डब्ल्यू. रिग्स द्वारा उनके ”संलयित प्रिज़्मीय विवर्तित प्रारूप वर्गीकरण” में और जॉन टी. डॉर्सी द्वारा उनके ”सूचना ऊर्जा मॉडल” में अपनाया गया सामान्य व्यवस्था उपागम ।

(iii) सामाजिक-आर्थिक बदलाव पर जोर देने वाले रिग्स, वीडनर व अन्य द्वारा अपनाया गया विकास प्रशासन ।

(iv) तकनीक द्वारा ”अस्त-व्यस्त” होने से बचने के लिए विकासशील देशों की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की निर्णय-निर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए मार्टिन लैंडाऊ द्वारा समर्थित निर्णय-निर्माण उपागम ।

(v) नौकरशाहों की पांच भिन्न श्रेणियों-आरोही संरक्षक, जीलट, वकील और राजनीतिज्ञ-वाला एंथनी डाऊंस मॉडल ।

(vi) टाल्कॉट पार्संस द्वारा समर्थित संरचनात्मक कार्यसंबंधी मॉडल जिसमें एक प्रदत्त के रूप में ‘सामाजिक व्यवस्था’ की अवधारणा और अपनी संरचनाओं और कार्यों के अर्थ में समाज शामिल है ।

(vii) पाउल मीयर, एफ.एम. मार्क्स और ब्रायन चैपमैन द्वारा विकसित अन्य मॉडल, जो पश्चिमी विकसित देशों में प्रशासनिक संगठन और लोक सेवा व्यवस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन पर जोर देते हैं ।

तुलनात्मक लोक प्रशासन के उपरोक्त सभी उपागमों में से नौकरशाही व्यवस्था उपागम (मैक्स वेबर का नौकरशाही मॉडल) सबसे प्रभावशाली और सबसे उपयोगी है ।

रमेश के. अरोड़ा के शब्दों में- ”मैक्स वेबर का नौकरशाही की ‘आदर्श प्रकार की’ रचना तुलनात्मक प्रशासन के अध्ययन की एकमात्र सर्वाधिक प्रभावी अवधारणात्मक रूपरेखा रही है ।” दरअसल, 1964 में ही ड्‌वाइट वाल्डो ने नौकरशाही मॉडल को उपयोगी, प्रेरक और उत्तेजक पाया ।

उनके अनुसार- यह मॉडल ”एक विशाल ढांचे में अवस्थित है इतिहास और संस्कृतियों को समेटता है नौकरशाही को महत्त्वपूर्ण-सामाजिक परिवर्तनों से जोड़ता है, फिर भी यह अपना ध्यान नौकरशाही की मुख्य संरचनात्मक और कार्य-संबंधी चारित्रिक विशेषताओं पर केंद्रित करता है ।” उन्होंने इस मॉडल को लोक प्रशासन का एक ‘प्रतिमान’ माना ।


7. तुलनात्मक लोक प्रशासन का ह्रास (Decline of Comparative Public Administration):

1970 के दशक की शुरुआत ने तुलनात्मक लोक प्रशासन का ह्रास देखा । 1971 में, फोर्ड फाउंडेशन ने सीएजी को अपनी वित्तीय मदद बंद कर दी । 1975 में, स्वयं सीएजी ही विघटित हो गया और एक नया संगठन ‘सेक्सान ऑन इंटरनेशनल एंड कम्पेरिटिव एडमिनिस्ट्रेशन’ (SICA) का गठन करने के लिए वह अमेरिकी सोसायटी फॉर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की अंतर्राष्ट्रीय समिति में मिल गया ।

पाँच साल तक अस्तित्व में रहने के बाद इसका जर्नल दि जर्नल ऑफ कम्पेरिटिव एडमिनिस्ट्रेशन 1974 से निकलना बंद हो गया । इसकी विरासतें राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन के व्यापकतर क्षेत्र में समाहित हो गई ।

तुलनात्मक लोक प्रशासन की असफलता पर, रॉबर्ट टी. गोलम्बीव्स्की ने कहा- ”लोक प्रशासन को इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि तुलनात्मक प्रशासन की असफलता का उत्तरदायित्त्व सारभूत रूप से इसके आत्म-आरोपित असफलता के अनुभव का है । इसने एक अप्राप्य लक्ष्य रखा यानी, व्यापक विचारधारा या मॉडल की (जिसके अर्थों में इसे स्वयं को परिभाषित करना था) तलाश का उसका शुरुआती और हावी लक्ष्य ।”

समान रूप से पीटर सैवेज ने, जो दि जर्नल ऑफ कम्पेरिटिव एडमिनिस्ट्रेशन के संपादक रहे (जो 1969 से 1974 तक पाँच वर्षों तक छपा); टिप्पणी की, ”तुलनात्मक प्रशासन न तो अपने किसी उदाहरण के साथ शुरू हुआ न ही इसने कोई प्रतिमान पेश किया ।”


8. तुलनात्मक लोक प्रशासन का महत्व (Significance of Comparative Public Administration):

फिर भी सीएजी ने लोक प्रशासन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिए ।

रमेश के. अरोड़ा ने इसके योगदान के चार तत्त्वों की पहचान की:

(i) इसने लोक प्रशासन के क्षितिजों को और विस्तार दिया ।

(ii) इसने इस अनुशासन के दरवाजे हर प्रकार के सामाजिक विज्ञानों के लिए खोल दिए ।

(iii) इसने उनकी परिवेशीय स्थिति में विभिन्न प्रशासनिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करके इस क्षेत्र के उद्देश्यों को व्यवस्थित किया ।

(iv) इसने विकास प्रशासन में अपने सदस्यों की दिलचस्पी को बढ़ावा दिया है ।

टी.एन. चतुर्वेदी के अनुसार- लोक प्रशासन में तुलनात्मक अध्ययन के निम्न योगदान हैं:

(i) इसने ‘प्रतिवाद’ और ‘क्षेत्रवाद’ की संकीर्णताओं को समाप्त करने में मदद की है ।

(ii) इसने सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र को विस्तारित किया है, जो पहले सांस्कृतिक सीमाओं में बंधा था ।

(iii) इसने विचारधारा निर्माण में पहले से बेहतर वैज्ञानिक दृष्टि को जन्म दिया है ।

(iv) इसने सामाजिक विश्लेषण के क्षेत्र को विस्तारित करने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया है ।

(v) इसने लोक प्रशासन के विषय को, विस्तृत, गहनतर और उपयोगी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की ।

(vi) इसने राजनीति और लोक प्रशासन को एक-दूसरे के और करीब ला दिया ।

अंत में, एस.पी.वर्मा और एस.के.शर्मा के शब्दों में- ”पद्धति और लागू किए जाने, दोनों में तुलनात्मक लोक प्रशासन द्वारा झेला जा रहा संकट इतना गंभीर नहीं है कि इसे समाप्त ही कर दे । हाल के वर्षों में शायद इसने अपना संवेग खोया है, लेकिन अपनी पहचान के चलते, जो हालांकि आधुनिक सामाजिक विज्ञान की अवधारणात्मक पहुंच में धुंधली है, अभी भी इसमें जीवित बचे रहने की संभावना है ।”


9. तुलनात्मक लोक प्रशासन का पुनरोत्थान आन्दोलन (Reviving Movement of Comparative Public Administration):

1980 के दशक की शुरुआत में कुछ विद्वानों द्वारा तुलनात्मक लोक प्रशासन के पुनरोत्थान हेतु एक आंदोलन आरंभ किया गया । इन विद्वानों ने इस क्षेत्र की अधोमुखी प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास किया और इसे एक ताजा जीवन दिया । इन विद्वानों में फैरेल हेडी, चार्ल्स टी गुडशेल, जुंग एस. जुन, मिल्टन स्मैन, जी.ई. शीडेन, नाओमी शीडेन, ओ.पी. द्विवेदी और अन्य शामिल हैं ।

इन पुनरोत्थान प्रयासों के मार्गदर्शक फैरेल हेडी ने इस बात पर बल दिया कि इस संकटकाल में लोक प्रशासन को पिछले योगदानों के लम्बे शव-विच्छेदन की आवश्यकता नहीं है बल्कि आकर्षक नवीन अवसरों के व्यापक दोहन की आवश्यकता है ।

चार्ल्स टी. गुडशेल ने दि न्यू कम्परेटिव एडमिनिस्ट्रेशन के प्रपोजल (1981) शीर्षक वाले अपने अनुच्छेद में इस बात की सिफारिश की, कि तुलनात्मक लोक प्रशासन का विषय क्षेत्र विश्लेषण के अधि राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय स्तरों की तुलना तक व्याप्त होना चाहिए । उनके अनुसार इसमें प्रशासनिक परिघटना के उन सभी अध्ययनों को शामिल किया जाना चाहिए जहाँ तुलनात्मक पद्धति स्पष्ट रूप से प्रयुक्त की जाती है ।

जुंग एस. जुन के अनुसार तुलनात्मक लोक प्रशासन एक संकर सांस्कृतिक संदर्भ में संगठनात्मक परिवर्तन और संगठनात्मक विकास की रणनीतियों एवं पद्धतियों की तुलना के साथ सम्बन्ध नहीं रखता था । इसलिए उन्होंने तुलनात्मक अध्ययनों के पुनरोत्थान में इन पहलुओं को अनिवार्य रूप से शामिल करने का सुझाव दिया था ।


10. सीपीए और आईपीए (CPA and IPA):

1973 में एसआईसीए को एएसपीए के पहले अनुभाग के रूप में शामिल किया गया ताकि तुलनात्मक लोक प्रशासन (सीपीए) और अन्तर्राष्ट्रीय लोक प्रशासन (आईपीए) के अध्ययन और व्यवहार को प्रोत्साहित किया जा सके ।

सीपीए के विपरीत आईपीए का सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के प्रशासनिक चालन के अध्ययन से होता है । फिर भी सीपीए और आईपीए दोनों विश्लेषण के लिए एक उपयुक्त ढाँचे का विकास करने में विफल रहे थे ।

फैरेल हेडी ने लोक प्रशासन के दोनों उपक्षेत्रों को इनके पारस्परिक लाभ के लिए इनके अभिसरण का सुझाव दिया था । उनके अनुसार सीपीए और आईपीए दोनों समान हैं क्योंकि दोनों किसी एक राष्ट्र की प्रशासनिक प्रणाली पर संकेन्द्रण नहीं करते हैं और दोनों की सामान्य गुण विशेषताएं हैं ।

उन्होंने कहा कि इन दोनों क्षेत्रों के भविष्य के लिए एजेण्डा के अन्तर्गत प्रत्येक समूह के पहचाने गए भाग को दूसरे समूह के कार्य के साथ रखकर अधिक प्रभाविता के साथ उनकी शक्तियों को संयोजित करना चाहिए । ताकि एक क्रमिक अभिसरण की दिशा में आगे बढ़ा जा सके ।

उनके उपागम के अनुसार इस अभिसरण प्रक्रिया में एसआईसीए द्वारा उत्प्रेरक/भूमिका निभायी जाती है । उन्होंने सुझाव दिया कि एसआईसीए द्वारा इन दोनों क्षेत्रों को प्रमुख कार्यक्रम उद्देश्य के साथ जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए ।


11. रिग्स के तुलनात्मक मॉडल (Comparative Models of Rigs):

फ्रेड रिग्स को तुलनात्मक लोक प्रशासन में अधिकतम मॉडल निर्माता क रूप में जाना जाता है । फैरल हेडी का कहना है की रिग्स की पुस्तक ”एडमिनिस्ट्रेशन इन डेवलपिंग कंट्रीज : द थ्यरी ऑफ प्रिज्मैटिक सोसाइटी” (1964) तुलनात्मक लोक प्रशासन में संभवत: सर्वाधिक उल्लेखनीय एकल योगदान है ।

रिग्स ने अपने प्रशासनिक सिद्धान्तों का व्याख्या के लिए तीन विश्लेषणात्मक औजारों का प्रयोग किया है । वे हैं:

(i) पारिस्थितिक उपागम या परिप्रेक्ष्य,

(ii) संरचनात्मक-कार्यात्मक उपागम तथा

(iii) आदर्श मॉडल (मॉडल निर्माण) ।


12. तुलनात्मक लोक प्रशासन का भावी परिप्रेक्ष्य (Future Perspective of Comparative Public Administration):

तुलनात्मक लोक प्रशासन के भविष्य के सम्बन्ध में फैरेल हेडी ने कहा कि- ”तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य अधिक प्रभावी बन जाएगा और रुचि के क्षितिज को व्यापक कर के सामान्य लोक प्रशासन को इस प्रकार समृद्ध बनायेगा कि एक प्रशासन की एक राष्ट्रीय प्रणाली की समझ एक संकर सांस्कृतिक ढाँचे में इसे रखकर बढ़ायी जा सकेगी ।” भूमण्डलीकरण और उदारीकरण के वर्तमान युग में विश्व के राष्ट्रों के बीच अन्तर्क्रिया बढ़ी है ।

इस संदर्भ में तुलनात्मक लोक प्रशासन के एक विश्लेषण के लिए नये क्षेत्रों में निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है:

(i) मानव अधिकारों का क्रियान्वयन ।

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विनिवेश ।

(iii) नौकरशाही का अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर निर्भरता ।

(iv) नागरिक अधिकार पत्र का अध्ययन ।

(v) प्रशासनिक सुधार के संवर्द्धन में लोगों का भूमिका ।

(vi) नौकरशाही का क्रमिक पतन ।

(vii) निजी क्षेत्र की भूमिका ।

(viii) स्वैच्छिक अभिकरणों/गैर सरकारी संगठनों की भूमिका ।

(ix) स्वयंसहायता समूहों की भूमिका ।

(x) समुदाय आधारित संगठनों का भूमिका ।