लोक प्रशासन के मॉडल और सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about:- 1. संलयित-प्रिज़्मीय-विवर्तित मॉडल (Fused Prismatic-Diffracted Model) 2. प्रिज़्मीय-साला मॉडल (Prismatic-Sala Model) 3. संशोधन प्रिज़्मीय विचारधारा (Revised Prismatic Theory).

1. संलयित-प्रिज़्मीय-विवर्तित मॉडल (Fused Prismatic-Diffracted Model):

एफ. डब्ल्यू. रिग्स ने लोक प्रशासन के परिवेश की व्याख्या के लिए कई ‘आदर्श मॉडल’ (वैचारिक मॉडल) बनाए । 1956 में साम्राज्यकालीन चीन और समकालीन अमेरिका की मिसाल लेते हुए ‘कृषि उद्योग’ (Agraria-Industrial) वर्गीकरण विकसित किया ।

अगले साल, उन्होंने एक माध्यमिक मॉडल ‘संक्रमणीय’ (Transitia) का प्रतिपादन किया, जिसमें कृषक और औद्योगिक दोनों का ही चरित्र है जो संक्रमणकालीन समाज को दिखाता था लेकिन रिग्स ने इस ”कृषक-संक्रमणीय-औद्योगिक” वर्गीकरण का परित्याग कर एक नए ”संलयित-प्रिज़्मीय-विवर्तित (अपवर्तित) मॉडल को सूत्रबद्ध किया, जो अल्पविकसित, विकासशील और विकसित समाजों का प्रतिनिधित्व करता है ।

रिग्स के शब्दों में- पारंपरिक कृषि-आधारित व लोक समाज (कृषक) ‘संलयित समाज’ और आधुनिक औद्योगिक समाज (औद्योगीय) ‘विवर्तित समाज’ के ही निकट पड़ता है । पहला ‘कार्यात्मक रूप से विसरित’ और दूसरा ‘कार्यात्मक रूप से विशिष्ट’ है । इन दोनों ध्रुवीय बिंदुओं के मध्य एक माध्यमिक स्तर है- ‘प्रिज़्मीय मॉडल’ क्योंकि यह प्रिज्म ही होता है जिससे गुजरकर संलयित प्रकाश अपवर्तित हो जाता है ।

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रिग्स के अनुसार, इन प्रकारों के समाज की निम्न विशेषताएं होती हैं:

रिग्स कहते हैं- “अगर एक समाज अति वर्गीकृत और अच्छी तरह एकबद्ध है तो यह ‘विवर्तित’ है, लेकिन अगर यह वर्गीकृत, खराब और दयनीय तरीके से एकबद्ध है तो मैं इसे ‘प्रिज़्मीय’ कहता हूँ । अगर कोई समाज बिल्कुल वर्गीकृत नहीं है, वहाँ कोई विशेषज्ञ नहीं, हर कोई हर काम कर सकता है, तो मैं इसे ‘संलयित व्यवस्था’ कहता हूँ । तो एक ‘प्रिज़्मीय समाज’ की परिभाषा वह हुई, जहाँ भूमिकाओं के विशिष्टीकरण का, उस स्तर का वर्गीकरण हासिल कर लिया गया है कि आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा सके, मगर यह इन भूमिकाओं को एकबद्ध करने में असफल रहा है ।”

2. प्रिज़्मीय-साला मॉडल (Prismatic-Sala Model):

रिग्स की दिलचस्पी मुख्य रूप से प्रिज़्मीय समाजों में प्रशासनिक व्यवस्था और उसके परिवेश के बीच संबंधों का अध्ययन करने में थी । इस उद्देश्य के लिए उन्होंने ‘प्रिज़्मीय-साला’ मॉडल का निर्माण किया जिसमें ‘प्रिज़्मीय’ प्रिज़्मीय समाज (संक्रमणाधीन या विकासशील समाज) का प्रतिनिधि है और ‘साला’ उस प्रिज़्मीय समाज की प्रशासनिक उप-व्यवस्था का प्रतिनिधि ।

उन्होंने ‘प्रिज़्मीय-साला’ मॉडल की तीन निम्नलिखित विशेषताओं की पहचान की:

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i. विषम जातीयता:

एक प्रिज़्मीय समाज में विषम जातीयता का स्तर काफी ऊँचा होता है, यानी अलग-अलग किस्म की व्यवस्थाएँ, प्रथाएँ और उपागम एक ही समय पर साथ-साथ अस्तित्व में रहते हैं । ‘साला’ भी विषमजातीय है क्योंकि यह एक संलयित समाज के ‘चैंबर’ और विवर्तित समाज के ‘ब्यूरो’ के तत्वों को जोड़ता है ।

ii. औपचारिकता:

एक प्रिज़्मीय समाज में औपचारिकता का स्तर काफी ऊँचा होता है, यानी, औपचारिक तौर पर दिए गए सुझाव और प्रभाव में व्यवहार में उतारी गई चीज में, प्रथाओं और वास्तविकताओं में एक विसंगति या असमानान्तरता होती है । संक्षेप में, यह सिद्धांत और व्यवहार के बीच के अंतर को बताता है ।

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iii. परस्पर व्याप्ति:

एक प्रिज़्मीय समाज में परस्पर व्याप्ति की परिघटना होती है । अर्थात वह स्तर जहाँ तक एक वितर्तित समाज की औपचारिक रूप से वर्गीकृत संरचनाएँ; एक संलयित समाज की अवर्गीकृत संरचनाओं के साथ सह अस्तित्व में रहती हैं ।

साला में परस्पर व्याप्ति का अर्थ है- वह चीज जिसे हम प्रशासनिक व्यवहार कहते हैं और जो गैर-प्रशासनिक कसौटियों-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक या अन्य कारकों द्वारा निर्धारित होता है ।

इसके पाँच अलग-अलग पहलू हैं:

i. भाई-भतीजावाद:

रिग्स कहते हैं कि भर्ती में ‘साला’ का चरित्र भाई-भतीजावाद का होता है ।

ii. बहुमानकीयता:

इसका अर्थ है- आधुनिक और पारंपरिक ‘मानकों’ का सहअस्तित्व जो व्यवहार के मानकों पर आम सहमति के अभाव की ओर ले जाता है ।

iii. बहुसम्प्रदायिकता:

इसका अर्थ है- दूसरे के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध रखते हुए विभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों का एक साथ अस्तित्व में रहना । रिग्स इन्हें क्लेक्ट्स (Clects) कहते हैं; यानी ‘क्लब’ और ‘सेक्ट’ ।

iv. बाजार-कैंटीन मॉडल:

एक प्रिज़्मीय समाज की आर्थिक उपव्यवस्था को रिग्स ‘बाजार-कैंटीन मॉडल’ कहते हैं । यह विवर्तित समाज की बाजार अर्थव्यवस्था और संलयित समाज की पारंपरिक अर्थव्यवस्था के तत्वों का मेल करती है । ऐसी स्थिति एक प्रकार की ‘मूल्य अनिर्धारिकता’ को पैदा करती है । यह संकेत करता है कि सामानों और सेवाओं की कीमतें अस्थिर रखी जाती हैं ।

v. प्राधिकार बनाम नियंत्रण:

एक प्रिज़्मीय समाज की प्राधिकार संरचना बेहद केंद्रीकृत और संकेंद्रीकृत होती है जबकि नियंत्रण संरचना स्थानीयकृत और वितरित (Dispensed) होती है । इसलिए, प्रिज़्मीय समाज में एक ‘असंतुलित राजनीति’ होती है जिसमें प्रशासकों का राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रभुत्व होता है ।

3. संशोधन प्रिज़्मीय विचारधारा (Revised Prismatic Theory):

अपनी पुस्तक ‘प्रिज़्मीय समाज : पुनरावलोकन’ (प्रिज़्मैटिक सोसायटी रिविजिटेड) (1975) में रिग्स ने अपनी प्रिज़्मीय विचारधारा को संशोधित किया । अपने नए सूत्रीकरण में उन्होंने ‘एक आयामी उपागम’ (वर्गीकरण) का स्थान ‘द्विआयामी उपागम’ (वर्गीकरण और एकीकरण) को दिया ।

उन्होंने इसके अलावा अपने दो बुनियादी सामाजीय मॉडलों, विवर्तित और प्रिज़्मीय को एकीकरण की मंजिल के आधार पर और सूक्ष्म वर्गों में बाँट दिया । इस प्रकार उन्होंने विवर्तित समाजों को ‘इयो-विवर्तित’, ‘प्राच्य विवर्तित’ और ‘नव-विवर्तित’ के रूप में और प्रिज्यीय समाजों को ‘इयो-प्रिज़्मीय’, ‘प्राच्य-प्रिज़्मीय’ और ‘नव-प्रिज़्मीय’ समाजों के रूप में पुन: अवधारणाबद्ध किया ।