Read this article in Hindi to learn about the administration of tribal area.

संविधान की पाँचवीं तथा छठी अनुसूचि में अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान है । राष्ट्रपति ही किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र या जनजातीय क्षेत्र राज्य घोषित कर सकता है । अपने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने कुछ क्षेत्रों का अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया है ।

छठी अनुसूची (Sixth Schedule):

इसमें असम, मेघालय, मिजोरम तथा त्रिपुरा जैसे मात्र 4 राज्यों के उन 9 अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान है, जिन्हें राष्ट्रपति ने अनुसूचित इत्र घोषित किया है ।

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छठी अनुसूचि के मुख्य प्रावधान इस प्रकार है:

1. ये अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र स्वायतवासी जिले के रूप में प्रशासित किए जाएंगे ।

2. इन क्षेत्रों में जिला परिषद तथा प्रादेशिक परिषद गठित की जाएंगी ।

3. प्रादेशिक परिषद तथा जिला परिषद का स्वतंत्र अस्तित्व होगा और उन्हें अपने क्षेत्रों में विधि बनाने का अधिकार होगा ।

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4. इन दोनों परिषदों को राज्यपाल द्वारा न्यायिक अधिकार भी सौंपे भी जा सकते है ।

5. इन परिषदों को भू राजस्व के निर्धारण एवं संग्रहण तथा कुछ विशेष करो के अधिरोपण का अधिकार होगा ।

पांचवीं अनुसूची (Fifth Schedule):

संविधान की 5वीं अनुसूची में उक्त चार राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान हैं ।

पांचवीं अनुसूची के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:

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1. इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में संघीय कार्यपालिका शक्ति का विस्तार केवल निर्देश देने तक सीमित है ।

2. इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राज्यपाल राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देने के लिए बाध्य है ।

3. इन क्षेत्रों के प्रशासन की व्यवस्था के लिए तथा जनजातियों के कल्याण के लिए राज्यपाल के परामर्श पर जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाएगा ।

4. इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राज्यपाल यह निर्देश दे सकेगा कि संसद या राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित कोई विधि उस क्षेत्र पर लागू नहीं होगी ।

5. इन क्षेत्रों में अनुसूचित जन जातियों की सम्पत्ति के अंतरण का प्रतिषेध राज्यपाल कर सकेगा ।

6. इन क्षेत्रों में भूमि के आवंटन और रोजगार के विनियम बनाने का अधिकार राज्यपाल का होगा ।

केन्द्र और राज्य शासन में आधारभूत अंतर (Baseline Gap between Central and State Governments):

भारतीय संघीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों को अनेक प्रशासनिक, विधायी, वित्तीय आदि अधिकार सौंपे गए हैं । इनमें समानताओं के साथ अनेक आधारभूत अन्तर भी विद्यमान है, जो इनकी अपनी विशेषताओं को रेखांकित करते हैं ।भारतीय संविधान में केन्द्र और राज्य दोनों इकाईयों का उल्लेख है ।

इनकी अपनी निर्वाचित सरकारे होती है जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है । केन्द्र और राज्य दोनों में संसदीय शासन प्रणाली अपनायी गयी हैं । इसके बावजूद संगठन, कार्य और शक्तियों को लेकर कतिपय आधारभूत अन्तर इनमें दिखायी देते हैं ।

जो इस प्रकार है:

i. संगठन के आधार पर (On the Basis of Organization):

केन्द्र सरकार में विदेशी, रक्षा जैसे मंत्रालय होते है, जिनका राज्यों में कोई स्थान और उपयोगिता नहीं है । इस प्रकार केन्द्र का संगठन काफी बड़ा और व्यापक प्रभाव वाला होता है । उसकी इकाईयां सभी राज्यों, संघ क्षेत्रों तक फैली होती है, जबकि राज्यों की मात्र अपने राज्यों में ।

केन्द्र में प्रधान सचिवालय, मंत्रिमण्डल सचिवालय और केन्द्रीय सचिवालय तीन पृथक स्टॉफ संस्थाएं होती हैं, जबकि राज्यों में इन सब कार्यों के लिए मात्र एक सचिवालय होता है । राज्य के मुख्य सचिव जैसी कोई संस्था केन्द्र में नहीं होती है ।

शक्तियों को लेकर शक्ति विभाजन में केन्द्र को राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियां प्राप्त है । केन्द्र सूची में 99 विषय है जबकि राज्यसूची में मात्र 61 फिर भी केन्द्रीय विषय अधिक महत्व के है । समवर्ती सूची पर केन्द्र का कानून राज्य निर्मित कानून पर प्रभावी होता है ।

कतिपय परिस्थितियों में केन्द्र राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकता है । लेकिन राज्यों के पास एवं केन्द्रीय विषयों पर ऐसी कोई शक्ति नहीं है । केन्द्र राज्यों को निर्देश दे सकता है, राज्य केन्द्र को नहीं । केन्द्र द्वारा भर्ती अखिल भारतीय सेवाएं राज्यों में काम करती है, लेकिन राज्य सेवाएं केन्द्र में नहीं ।

राज्यों की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है, जिसे केन्द्र नियुक्त करता है और वह राष्ट्रपति के प्रति ही उत्तरदायी होता है । राज्यों की निर्वाचन व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था भी केन्द्रीय आयोग और सुप्रीम कोर्ट के नियन्त्रणाधीन होती है ।

संविधान में संशोधन के विधेयक केन्द्र सरकार तैयारी करती है, राज्य सरकार नहीं । केन्द्र वित्तीय दृष्टि से भी शक्तिशाली है । आयकर जैसे महत्वपूर्ण स्रोत केन्द्राधीन है । राज्यों को आर्थिक दृष्टि से केन्द्रीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है । केन्द्र राज्यों की सीमा, नाम बदल सकता है लेकिन राज्य संघ से बाहर नहीं आ सकते ।

ii. कार्यों के आधार पर (On the Basis of Works):

केन्द्र और राज्य सरकारें अपनी सूचियों और समवर्ती सूची के विषयों पर नीतियां, कानून, योजनाएं बनाती और लागू करती है । अवशिष्ट विषयों पर मात्र केन्द्र कार्य कर सकता है । केन्द्र और प्रतिरक्षा से संबंधी महत्वपूर्ण कार्य दिये गये हैं, जो राज्य सरकारें नहीं करती ।

केन्द्र का कार्यक्षेत्र पूरा भारत राज्य है, जबकि राज्य का मात्र अपना स्थानीय क्षेत्र । नियोजन का महत्वपूर्ण कार्य यद्यपि दोनों करते है, तथापि राज्य नियोजन, संघीय नियोजन के अधीन उसका एक भाग होता है । भारत की आय में बंटवारा करने का कार्य केन्द्र अपने वित्त आयोग के द्वारा करता है ।

उपर्युक्त व्याख्या के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि केंद्र और राज्यों के मध्य ऐसे अनेक मूलभूत अंतर है, जिससे दोनों की संरचना और शक्तियां पृथक दिखायी देती है । लेकिन व्यापक दृष्टि से देखने पर ये अन्तर मात्रात्मक प्रतीत होते हैं ।

वस्तुत: दोनों में संसदीय शासन व्यवस्था है और सरकार के तीनों अंग मौजूद है । दोनों ही लोक कल्याणकारी आदर्शों को प्राप्त करने के लिए अनेक सामाजिक कार्यक्रमों को चला रहे हैं । दोनों का संवैधानिक परिप्रेक्ष्य है ।

निष्कर्षत:

भारतीय संघ में केन्द्र को राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा के कार्यों के कारण अधिक शक्तियां दी गयी है, तथा राज्यों को भी सामाजिक कल्याण हेतु पर्याप्त स्वायत्तता हासिल है । इन आवश्यकताओं के कारण ही कतिपय अन्तर व्यवहारिक अनिवार्यता के रूप में स्थापित है ।