Read this article in Hindi to learn about:- 1. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति और कार्यकाल (Appointments and Term of Comptroller and Auditor General of India) 2. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता (Independence of Comptroller and Auditor General of India) 3. कर्तव्य और शक्तियाँ (Duties and Powers) 4. भूमिका (Role) 5. सी.ए.जी. और निगम (CAG and Corporation) 6. एप्पलबी की आलोचनात्मक टिप्पणी (Appleby’s Criticism).

Contents: 

  1. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति और कार्यकाल (Appointments and Term of Comptroller and Auditor General of India)
  2. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता (Independence of Comptroller and Auditor General of India)
  3. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की कर्तव्य और शक्तियाँ (Duties and Powers of Comptroller and Auditor General of India)
  4. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका (Role of CAG)
  5. सी.ए.जी. और निगम (CAG and Corporation)
  6. एप्पलबी की आलोचनात्मक टिप्पणी (Appleby’s Criticism)


1. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति और कार्यकाल (Appointments and Term of Comptroller and Auditor General of India):

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भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के स्वतंत्र कार्यालय का प्रावधान है । वह भारतीय लेखा और लेखा परीक्षा विभाग का प्रमुख होता है । वह सर्वसाधारण की आर्थिक स्थिति का संरक्षक है तथा उसका केद्रं और राज्य दोनों स्तर पर देश का पूरी वित्तीय प्रणाली पर नियंत्रण हाता है ।

इस प्रकार यह पद अखिल भारतीय महत्व से जुड़ा पद है । इस पद की जिम्मेदारी है- भारतीय संविधान और संसद को वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में मर्यादित बनाए रखना । इसी कारण डॉ.बी.आर. अंबेडकर ने कहा है कि नियंत्रक और महालेखापरीक्षक भारतीय संविधान के तहत अति महत्वपूर्ण अधिकारी होगा । वह भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली की सरकार के आधार स्तंभों में से एक है; अन्य आधार स्तंभ हैं: सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और संघ लोकसेवा आयोग ।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की राष्ट्रपति राष्ट्रपति द्वारा उसके हस्ताक्षर और मुहर से विधिवत की जाती है । वह अपने पद का कार्यभार संभालने से पहले राष्ट्रपति के समक्ष अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्ठापूर्वक करने तथा संविधान और कानून की मर्यादा बनाए रखने (तृतीय अनुसूची) की शपथ लेता है ।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अपने पद पर 6 वर्ष तक या 65 वर्ष की आयु पूरी होने जो भी पहले हो तक बना रह सकता है । वह अपना त्यागपत्र कभी भी राष्ट्रपति को सौंप सकता है । उसे राष्ट्रपति ठीक उसी ढंग से और उसी आधार पर पद से हटा सकता है जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है (अनुच्छेद 148) ।

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संक्षेप में कहें तो नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को राष्ट्रपति द्वारा तब ही हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदनों द्वारा उसके द्वारा दुर्व्यवहार या उसकी अक्षमता सिद्ध होने पर विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दिया जाए ।


2. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता (Independence of Comptroller and Auditor General of India):

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक पद की रक्षा और उसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

1. उसका कार्यकाल निश्चित है । उसे राष्ट्रपति ही संविधान में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पद से हटा सकता है । इस प्रकार नियंत्रक और महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति की सहमति से पद पर नहीं बना रहता भले ही उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा हुई हो ।

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2. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अपने पद के कार्यकाल की समाप्ति के बाद भारत सरकार में अथवा किसी राज्य में कोई पद धारण नहीं कर सकता है ।

3. उसका वेतन और सेवा-शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है ।

4. उसकी नियुक्ति के बाद उसके अवकाश, पेंशन या सेवानिवृत्ति की आयु के संदर्भ में न उसके वेतन में और न ही उसके अधिकारों में इस प्रकार कोई बदलाव किया जा सकता है जिससे उसे हानि होती हो ।

5. भारतीय लेखा और महालेखा परीक्षा विभाग में सेवारत व्यक्तियों की सेवा-शर्तों और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की प्रशासनिक शक्तियों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के परामर्श से किया जाएगा ।

6. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कार्यालय से संबंधित प्रशासनिक व्यय जिसमें उस कार्यालय में कार्यरत सभी व्यक्तियों के वेतन भत्ते और पेंशन शामिल हैं भारत की संचित निधि से प्रभारित होंगे । इस प्रकार इनके संदर्भ में संसद की मंजूरी आवश्यक नहीं है ।

इसके अतिरिक्त, कोई भी मंत्री संसद के किसी सदन में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का प्रतिनिधित्व नहीं करता है और न ही किसी मंत्री को उसके नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा की गई कार्यवाही की जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ।


3. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की कर्तव्य और शक्तियाँ (Duties and Powers of Comptroller and Auditor General of India):

संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत संसद को केंद्र के, राज्यों के और किसी अन्य प्राधिकरण या निकाय के लेखों के संबंध में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्य और शक्तियों के निर्धारण के लिए प्राधिकृत किया गया है ।

तद्‌नुरूप ही संसद द्वारा 1971 का अधिनियम नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य शक्तियाँ और सेवा शर्तें) अधिनियम लागू किया गया था । इस अधिनियम को वर्ष 1976 में केंद्र सरकार के लेखों को लेखापरीक्षा से अलग करने की दृष्टि से संशोधित किया गया ।

संविधान और संसद द्वारा निर्धारित नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कर्तव्य और कार्य इस प्रकार हैं:

1. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक भारत की संचित निधि से और प्रत्येक राज्य के संचित निधि से तथा विधानसभायुक्त प्रत्येक संघशासित क्षेत्र की संचित निधि से हुए सभी व्ययों से संबंधित लेखा की लेखापरीक्षा करता है ।

2. यह भारत की आकस्मिक निधि और लोकनिधि तथा प्रत्येक राज्य के आकस्मिक निधि और लोकनिधि से हुए सभी व्यय की लेखापरीक्षा करता है ।

3. वह केंद्र सरकार के किसी विभाग द्वारा और राज्य सरकारों द्वारा रखे गए सब्सिडरी लेखों और सभी तरह के व्यापार उत्पादन लाभ-हानि लेखों तथा तुलन पत्रों की भी लेखापरीक्षा करता है ।

4. वह निम्नलिखित से संबंधित आय और व्यय की लेखा परीक्षा भी करता है:

(क) केंद्र सरकार या राज्य के राजस्व से मूलतः वित्तपोषित सभी निकायों और प्राधिकरणों की;

(ख) सरकारी कंपनियों की; और

(ग) संबद्ध कानून द्वारा अपेक्षित होने पर अन्य निगमों और निकायों की ।

5. वह ऋण, व्यर्थ होती निधि, जमा, अग्रिम, सस्पेंस एकाउंट्‌स और रकम प्रेषण व्यवसाय से संबंधित केंद्र और राज्य सरकार के समस्त लेन-देन की लेखा परीक्षा भी करता है ।

6. वह राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के अनुरोध पर अन्य प्राधिकरण के लेखा की भी लेखापरीक्षा करता है । उदाहरणार्थ- स्थानीय निकायों के लेखा की लेखापरीक्षा ।

7. वह राष्ट्रपति को उस प्रपत्र के निर्धारण के बारे में सलाह दे सकता है जिसमें केंद्र और राज्यों के लेखों को दर्ज किया जाएगा (अनुच्छेद 150) ।

8. वह केंद्र के लेखों से संबंधित लेखापरीक्षा रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष रखता तथा उसे संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत करता है (अनुच्छेद 151) ।

9. वह राज्य के लेखा से संबंधित लेखापरीक्षा रिपोर्ट को राज्यपाल को प्रस्तुत करता है तथा राज्यपाल द्वारा उसे विधानमंडल में प्रस्तुत किया जाता है (अनुच्छेद 151) ।

10. वह किसी भी प्रकार के कर या शुल्क से हुई निबल प्राप्ति सुनिश्चित और उसे प्रमाणित करता है (अनुच्छेद 279) ।

11. वह, संसदीय सार्वजनिक लेखा समिति के लिए संरक्षक, मित्र और दार्शनिक के रूप में कार्य करता है ।

12. वह राज्य सरकारों के लेखा को संकलित और उनका रख-रखाव करता है । वर्ष 1976 में लेखा को लेखापरीक्षा से अलग कर दिए जाने अर्थात लेखों और रख-रखाव की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था ।


4. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका (Role of CAG):

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को प्राप्तियों, भंडारों और स्टॉफ की लेखापरीक्षा की तुलना में व्यय की लेखापरीक्षा कार्य में अधिक आजादी प्राप्त है । पी.के.वटट्‌ल के शब्दों में- ”व्यय के संबंध में वह लेखापरीक्षा के क्षेत्र का निर्धारण और लेखापरीक्षा संबंधी अपनी आचार संहिताएँ तैयार करता है वहीं दूसरी ओर अन्य लेखापरीक्षा के लिए उसे सरकार के नियमों के अनुसार चलना होता है ।”

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को ”यह सुनिश्चित करना होता है कि लेखों में दर्शाई गई संवितरित राशि क्या कानूनन उपलब्ध थी और क्या वह उस सेवा या प्रयोजन के लिए मान्य थी जिसके लिए उसकी माँग की गई थी और क्या व्यय उस प्राधिकार के अनुरूप था जिसका उस व्यय राशि पर नियंत्रण है ।”

इस कानूनी और विनियामक लेखापरीक्षा के अतिरिक्त नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक औचित्यपूर्ण लेखापरीक्षा भी कर सकता है अर्थात वह सरकार की व्यय की विश्वसनीयता उसमें समझदारी तथा मितव्ययता पर भी ध्यान दे सकता है तथा ऐसे व्यय के दुरुपयोग पर टिप्पणी कर सकता हैं । तथापि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के लिए अनिवार्य कानूनी और विनियामक लेखापरीक्षा से अलग औचित्यपूर्ण लेखापरीक्षा कार्य उसके विवेक पर निर्भर करता है ।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सी.ए.जी.) की लेखापरीक्षा संबंधी भूमिका गोपनीय सेवा के मद में हुए व्यय की लेखापरीक्षा के संदर्भ में सीमित है । इस मामले में सी.ए.जी. कार्यकारी एजेंसियों द्वारा किए गए व्यय के विवरण नहीं माँग सकता किंतु सक्षम प्रशासनिक प्राधिकारी से इस आशय का प्रमाणपत्र ले सकता है कि व्यय उसके प्राधिकार में हुआ है ।

सी.ए.जी. की वास्तविक भूमिका वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारतीय संविधान और संसद के विधानों की मर्यादा को बनाए रखने की है । कार्यपालिका मत्रिपरिषद की वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में संसद के प्रति जवाबदेही सी.ए.जी. की लेखापरीक्षा रिपोर्टो के द्वारा हासिल की जाती है । सी.ए.जी. संसद का एजेंट है तथा संसद की ओर से ही व्यय मदों का लेखापरीक्षा करता है ।

इसलिए वह केवल संसद के प्रति जिम्मेदार है । भारतीय संविधान में सी.ए.जी. को नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक दोनों माना गया है । किंतु व्यवहारत: सी.ए.जी. मात्र लेखापरीक्षक की भूमिका निभा रहा है न कि नियंत्रक की । डी. डी.बासु ने इस संदर्भ में ठीक ही कहा है कि ”संचित निधि से राशि निकालने की प्रक्रिया पर सी.ए.जी. का कोई नियंत्रण नहीं है तथा कई विभागों की सी.ए.जी. के विशेष अधिकार प्राप्त किए बिना ही चेक जारी करके राशि आहरित करने के लिए अधिकृत कर दिया गया है । सी.ए.जी. केवल लेखापरीक्षा के चरण से संबद्ध रह गया है अर्थात जब व्यय हो चुका होता है ।”

इस संदर्भ में भारत की सी.ए.जी. ब्रिटेन के सी.ए.जी. से बिल्कुल अलग है जिसे नियंत्रक और लेखापरीक्षक दोनों की शक्तियाँ प्राप्त हैं अर्थात कार्यकारी सरकारी खजाने से राशि का आहरण सी.ए.जी. की अनुमति से ही कर सकता है ।


5. सी.ए.जी. और निगम (CAG and Corporation):

सार्वजनिक निगमों के लेखपरीक्षा में सी.ए.जी. की भूमिका सीमित है ।

सी.ए.जी. के सार्वजनिक निगमों (सरकारी निगमों) के साथ संबंध को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बाँटा गया है:

1. कुछ निगमों की लेखापरीक्षा सी.ए.जी. द्वारा पूर्णतः और प्रत्यक्षतः की जाती है । उदाहरणार्थ- दामोदर घाटी निगम, तेल और प्राकृतिक गैस आयोग, एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस और अन्य ।

2. कुछ अन्य निगमों की लेखापरीक्षा निजी व्यवसाय में रत लेखापरीक्षकों द्वारा की जाती है, जिनकी नियुक्ति सी.ए.जी. के परामर्श के केंद्र सरकार करती है । जरूरत होने पर सी.ए.जी. भी पूरक लेखा परीक्षा कर सकता है । ऐसे निगम हैं: केंद्रीय भंडारण निगम औद्योगिक वित्त निगम और अन्य ।

3. कुछ अन्य निगमों की लेखापरीक्षा पूर्णतः निजी लेखापरीक्षकों द्वारा की जाती है । ऐसे में सी.ए.जी. की कुछ भी भूमिका नहीं होती । निजी लेखापरीक्षक अपने लेखे और वार्षिक रिपोर्ट सीधे संसद में प्रस्तुत करते हैं । ऐसे निगम हैं- भारतीय जीवन बीमा निगम भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय स्टेट बैंक भारतीय खाद्य निगम और अन्य ।

सरकारी कंपनियों की लेखापरीक्षा कार्य में भी सी.ए.जी. की भूमिका सीमित है । इन कंपनियों की लेखापरीक्षा सी.ए.जी. के परामर्श से सरकार द्वारा नियुक्त निजी लेखापरीक्षक करते हैं । सी.ए.जी. भी इन कंपनियों की पूरक लेखापरीक्षा या परीक्षण के तौर पर लेखापरीक्षा कर सकता है ।

वर्ष 1968 में इंजीनियरिंग लौह एवं इस्पात रसायन आदि विशेष उद्यमों की लेखापरीक्षा के तकनीकी पहलुओं से संबंधित कार्य से बाहरी विशेषज्ञों और विषय विशेष में निपुण लेखापरीक्षकों को जोड़ने के लिए सी.ए.जी. कार्यालय के एक भाग के रूप में लेखापरीक्षा बोर्ड की स्थापना हुई थी । इस बोर्ड की स्थापना प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसा पर की गई थी । इस बोर्ड में एक अध्यक्ष और सी.ए.जी. द्वारा नियुक्त दो सदस्य होते हैं ।


6. एप्पलबी की आलोचनात्मक टिप्पणी (Appleby’s Criticism):

पॉल एच. एप्पलबी ने भारतीय प्रशासन से संबंधित अपनी दो रिपोर्टों में सी.ए.जी. की भूमिका की आलोचना करते हुए उसके कार्यों की महत्ता पर करारा प्रहार किया है । एप्पलबी ने यह भी सुझाव दिया था कि सी.ए.जी. को लेखापरीक्षा की जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहिए अर्थात उन्होंने सी.ए.जी. कार्यालय को समाप्त कर देने की भारत में केंदीय सरकार और प्रशासन सिफारिश की थी ।

भारतीय लेखापरीक्षा की आलोचना उन्होंने इस आधार पर की:

1. भारत में सी.ए.जी. का कार्य काफी हद तक औपनिवेशिक शासन की उपज है ।

2. आज सी.ए.जी. की भूमिका यह रह गई है कि यह न तो निर्णय करने की स्थिति में है और न ही कार्य करने की स्थिति में । लेखापरीक्षा की धारणा का जनमानस पर नकारात्मक प्रभाव है ।

3. संसद की यह धारणा रही है कि संसदीय उत्तरदायित्व की दृष्टि से लेखापरीक्षा का महत्व कम नहीं है । ऐसा होते हुए भी संसद संविधान में वर्णित प्रावधानों के अनुसार सी.ए.जी. के कार्य को परिभाषित नहीं कर सकी है ।

4. सी.ए.जी. का कार्य महत्त्वपूर्ण नहीं है । लेखापरीक्षकों को प्रशासन का ज्ञान नहीं है और अच्छे प्रशासन की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती; फिर भी उसकी प्रतिष्ठा उनकी तुलना में कहीं अधिक है जो प्रशासन के बारे में अधिक जानते हैं ।

5. लेखापरीक्षक यह जानते हैं कि लेखापरीक्षा क्या है लेकिन लेखापरीक्षा प्रशासन नहीं है लेखापरीक्षा एक आवश्यक किंतु अति मामूली कार्य है जिसका परिदृश्य संकीर्ण और उपयोगिता बहुत सीमित है ।

6. विभाग के उपसचिव को अपने विभाग की समस्याओं के बारे में सी.ए.जी. और उसके पूरे स्टाफ से कहीं अधिक जानकारी होती है ।