Read this article in Hindi to learn about the definitions and types of authority in an organisation.

वेबर ने शक्ति को इस रूप में परिभाषित किया- ”यह ऐसी संभावना है कि सामाजिक संबंध के भीतर एक व्यक्ति प्रतिरोध के बावजूद अपनी मर्जी चलाने की स्थिति में हो ।”

जबकि प्राधिकार को इस रूप में परिभाषित किया- ”यह संभावना कि दी गई विशिष्ट रूपरेखा वाले किसी निर्देश का व्यक्तियों के दिए गए समूह द्वारा पालन हो ।” इस प्रकार, शक्ति की तुलना में प्राधिकार की पहचान वैधता से होती है, यानी, निर्देश का अधीनस्थों द्वारा स्वैच्छिक पालन ।

दूसरे शब्दों में, वैधता शक्ति को प्राधिकार में बदल देती है । वेबर के अनुसार, प्राधिकार निर्देश की निरंकुश शक्ति का समानार्थी है, जिसे उन्होंने ‘प्रभुत्व’ कहा । उन्होंने कहा कि ”सभी प्रशासनों का अर्थ प्रभुत्व है” (अर्थात् प्रशासन का अर्थ प्राधिकार का उपयोग है) ।

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रीनहार्ड बेंडिक्स ने अपनी पुस्तक मैक्स वेबर-एंन इंटेलेक्चुयल पोट्रेट में मैक्स वेबर द्वारा पहचाने गए प्राधिकार के अंगों का समाहार करता है । वे हैं:

(i) एक व्यक्ति या व्यक्तियों का निकाय, जो शासन करता हो ।

(ii) एक व्यक्ति या व्यक्तियों का निकाय, जो शासित हो ।

(iii) शासित के आचार को प्रभावित करने की शासकों की इच्छा और उस इच्छा या निर्देश की अभिव्यक्ति ।

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(iv) निर्देश की वस्तुपरक मात्रा के अर्थों में शासकों के प्रभाव का प्रमाण ।

(v) उस आत्मपरक स्वीकार्यता के शब्दों में इस प्रभाव का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रमाण जिसके साथ शासित निर्देश का पालन करते हैं ।

जैसा कि रमेश के. अरोड़ा ने कहा है- ”वेबर ने वैधता के दावे के आधार पर प्राधिकार को वर्गीकृत किया, क्योंकि इसी पर आज्ञाकारिता के प्रकार, इसके लिए उपयुक्त प्रशासनिक स्टाफ का प्रकार और प्राधिकार लागू करने के तरीके निर्भर करते हैं ।

वैध प्राधिकार के उनके तीन शुद्ध प्रकार उनकी वैधता के तीन आधारों पर आधारित हैं ।” वे हैं:

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पारंपरिक प्राधिकार:

वेबर के अनुसार यह प्राधिकार ”प्राचीन परंपराओं की पवित्रता में स्थापित आस्था और उनके तहत प्राधिकार लागू करने वाले लोगों की स्थिति की वैधता” पर निर्भर है । इस व्यवस्था के तहत प्राधिकार की सीमा रेखा प्रथाओं और मिसालों से निर्धारित होती है ।

दूसरे शब्दों में, इस व्यवस्था में आज्ञाकारिता शासक प्रदत्त होती है जो पारंपरिक रूप से, दी गई प्राधिकार की स्थिति पर आरूढ़ होता है और जो अपने क्षेत्र में परंपरा से बंधा होता है । आज्ञाकारिता की बाध्यता परंपरागत बाध्यताओं के क्षेत्र में व्यक्तिगत निष्ठा का मामला है ।

पारंपरिक प्राधिकार व्यवस्था में प्रशासनिक वर्ग या तो पितृसत्तात्मक होता है या सामंती । पूर्ववर्ती व्यवस्था के मामले में, प्रशासनिक तंत्र में व्यक्तिगत सेवक, नौकर और शासक के संबंधी होते थे और वे उसके प्रति पारंपरिक निष्ठा रखते थे । जबकि उत्तरपूर्वी व्यवस्था के मामले में प्रशासनिक तंत्र में सामंती स्वामी होते थे जो जनता और शासक के बीच होते हैं और शासक के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा रखते थे ।

करिश्माई प्राधिकार:

‘करिश्मा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है- ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा । वेबर के अनुसार यह प्राधिकार ”किसी व्यक्ति की विलक्षण पवित्रता नायकवाद या उदाहरणात्मक चरित्र और उसके मानक प्रकार या उसके द्वारा बताए गए आदेशों के प्रति समर्पण पर” निर्भर करती है- इस प्रकार के तंत्र में शासक के पास मानवेतर और अतिप्राकृतिक शक्तियाँ होती हैं और उसके व्यक्तिगत गुणों या समझदारी के आधार पर उसकी आज्ञा का पालन होता है ।

करिश्माई प्राधिकार तंत्र के तहत प्रशासनिक वर्ग में अनुसरणकर्ता होते है जिन्हें उनके करिश्माई गुणों और नेतृत्व के प्रति समर्पण के आधार पर पद दिए जाते हैं । करिश्माई प्राधिकार व्यवस्था की एक मुख्य विशेषता यह है कि यह अस्थिर होता है अर्थात जब नेता मरता है या उसके करिश्माई गुणों का पतन होता है तो यह नष्ट हो जाती है । लेकिन वेबर ने निरंकुश या लोकतांत्रिक दिशा में करिश्माई प्राधिकार के नियमितकरण (संस्थाकरण) का सुझाव दिया ।

कानूनी-तार्किक प्राधिकार:

वेबर के अनुसार यह प्राधिकार ”मानक नियमों के प्रकार की विधिसंगतता और ऐसे नियमों के तहत निर्देश देने के प्राधिकार तक पदोन्नत लोगों के अधिकार पर निर्भर होती है । अत: इस तंत्र के तहत आज्ञाकारिता कानूनी तौर पर स्थापित अवैयक्तिक क्रम पर आधारित होती है जो चरित्र में तार्किक होता है ।”

अपने दफ्तर के प्राधिकार को लागू कर रहे लोगों तक यह सिर्फ उनके निर्देशों की औपचारिक विधिसंगतता के द्वारा और दफ्तर के प्राधिकार के दायरे के भीतर ही विस्तारित होता है । जैसा कि शमसुन निसा अली कहते हैं- ”यह तंत्र तार्किक कहलाता है क्योंकि इसमें साधन विशिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अभिव्यक्त तौर पर बनाए जाते हैं । यह ‘कानूनी’ है क्योंकि प्राधिकार नियमों और प्रक्रियाओं की व्यवस्था के जरिए लागू होता है ।” मैक्स वेबर के अनुसार कानूनी तार्किक प्राधिकार पाँच संबंधित आस्थाओं पर निर्भर हैं ।

मार्टिन एल्ब्रोव के अनुसार वे इस प्रकार हैं:

(i) एक ऐसी विधि संहिता स्थापित की जा सकती है जो संगठन के सदस्यों से आज्ञाकारिता का आह्वान कर सके ।

(ii) प्रशासन संगठन के हितों की देखरेख कानून के दायरों के भीतर रहकर करता है जो अमूर्त नियमों का एक तंत्र है और विशिष्ट मामलों पर लागू होता है ।

(iii) प्राधिकार का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी इस अवैयक्तिक आदेश का पालन करता है ।

(iv) सदस्य का एकमात्र काम कानून का पालन है ।

(v) अंतत: आज्ञाकारिता प्राधिकार स्वामी के प्रति नहीं बल्कि उस अवैयक्तिक व्यवस्था के प्रति है जिसने उसे प्राधिकार के पद पर बैठाया है ।

कानूनी तार्किक प्राधिकार के तहत प्रशासनिक वर्ग स्टाफ नौकरशाही होता है । दूसरे शब्दों में, कानूनी तार्किक प्राधिकार तंत्र में प्रशासनिक व्यवस्था का आधार नौकरशाही होती है । वेबर के अनुसार केवल नौकरशाही संगठन का प्रमुख अपना पद अपने व्यवहार, चुनाव या उत्तराधिकार के आधार पर पाता है । सर्वोच्च प्राधिकार (संगठन का प्रमुख) के तहत पूरे प्रशासनिक वर्ग में नियुक्त वैयक्तिक अफसर होते है ।