Read this article in Hindi to learn about:- 1. सत्ता के विचारधाराएं (Ideologies of Authority) 2. सत्ता के तीन तत्व (Three Elements of Authority) 3. सीमाएं (Limitations).

सत्ता के विचारधाराएं (Ideologies of Authority):

1. औपचारिक सत्ता विचारधारा:

यह संगठन में प्रबंधकीय सत्ता को ही स्वीकार करती है और मानती है कि प्रत्येक सत्ता का स्त्रोत देश की सर्वोच्च विधि और संगठन की औपचारिक संहिता होती है ।

बर्नाड़ – ”अनौपचारिक सत्ता सामाजिक संगठनों से वैयक्तिक प्रबंधकों को प्राप्त होती है ।”

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2. अनौपचारिक सत्ता विचारधारा:

यह विचारधारा सत्ता को पद से जुड़ी हुई नहीं मानती और न ही सत्ता का स्त्रोत उच्च सोपानों को मानती है अपितु यह सत्ता का स्त्रोत अधीनस्थों को मानती है । जब अधीनस्थ ऊपर के आदेशों और निर्णयों को मान लेते हैं, तभी वे आदेश या निर्णय सत्तावान बनते हैं । यह सस्ता की मानवीय विचारधारा है । बर्नाड, राबर्ट टहल, फॉलेट, साइमन इसके प्रबल समर्थक है । इसे स्वीकृति दृष्टिकोण भी कहते हैं ।

3. सक्षमता विचारधारा:

इसके अनुसार जो व्यक्ति सक्षम होंगे वही सत्ता का उपयोग करेंगे और यह सक्षमता विशिष्ट ज्ञान, योग्यता, गुण या तकनीकी कौशल से आती है जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक को प्राप्त सत्ता । इसके अनुसार संगठन में व्यक्ति को भले ही विशिष्ट पद न दिया जाये, वे अपनी योग्यता, गुण या व्यक्तित्व के आधार पर नेतृत्व की भूमिका में आ जाते हैं ।

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सत्ता और विचारक:

1. सत्ता और चेस्टर बर्नाड़:

बर्नाड़ ‘नीचे से सत्ता’ के सिद्धांत को मानता है । वही निर्णय और आदेश सत्ता रखते हैं जिन्हें अधीनस्थ स्वीकार कर लेते है अर्थात् उनकी अस्वीकृति सत्ता को अनुपस्थित कर देती है । वे आदेश तभी स्वीकारते है जब वे उनके हितों के अनुकूल हो ।

बर्नाड का उदासीनता का क्षेत्र:

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बर्नाड के अनुसार कार्मिक या तो निर्णयों को अस्वीकृत कर देते है या आशिक रूप से स्वीकार करते है या निर्विवाद रूप से निर्णयों को पूर्ण स्वीकृति दे देते हैं । निर्विवाद रुप से स्वीकृत निर्णय या आदेश इसलिए बिना आपत्ति के स्वीकार हो जाते हैं क्योंकि कार्मिकों को उनकी आशा सदैव बनी रहती है । ऐसे आदेशों या निर्णयों के प्रति वे प्रायः उदासीन (प्रतिक्रियाहीन) रहते हैं । इनसे ही उदासीनता का क्षेत्र निर्मित होता है ।

सत्ता के तीन तत्व (Three Elements of Authority):

बर्नाड ने सत्ता के तीन तत्व बताये हैं:

(i) उद्देश्य,

(ii) योगदान की तत्परता या निरंतरता,

(iii) संचार या सत्ता ।

बर्नाड़ ने संगठन में सत्ता को संचार के लिए आवश्यक माना ।

2. सत्ता और साइमन:

साइमन के अनुसार सत्ता का अर्थ है – निर्णय करने की शक्ति जो दूसरों के कार्यों को निर्देशित करें । इसने स्वीकृति का क्षेत्र दिया । साइमन के अनुसार उच्चाधिकारी यदि इस क्षेत्र के बाहर जाकर अपनी सत्ता का प्रयोग करेगा, तो अधीनस्थ उसे अस्वीकार कर देंगे । अर्थात् इस क्षेत्र के भीतर दिये गये आदेश ही स्वीकृत होंगे ।

3. फॉलेट और सत्ता:

फॉलेट ने ‘क्रिएंटिव्ह एक्सपीरियेंस’ में सत्ता की मनोवैज्ञानिक विचारधारा प्रस्तुत की और स्थिति का नियम तथा कार्य में सत्ता की सन्निहिता का नियम दिया ।

(i) स्थिति का नियम:

व्यक्ति ऊपर से आदेश प्राप्त करने में अपने को अप्रतिष्ठित महसूस करते हैं, इसके स्थान पर वे स्वयं ही निर्णय लेना अधिक पसंद करते हैं । वे किसी को आदेश देते हुए देखना पसंद नहीं करते अर्थात वे अपने ऊपर किसी को नहीं देखना चाहते अपितु सभी को अपने साथ काम करते हुये देखना चाहते हैं ।

अतः आदेशों का निर्वेयक्तिकरण कर देना चाहिए, अर्थात् व्यक्ति आदेश नहीं दे । इसके स्थान पर स्थिति के अनुसार कार्मिक को काम करना चाहिए । प्रत्येक परिस्थिति खुद निर्णय करने का रास्ता बताती है । इसलिये स्थिति से आदेश होना चाहिए, व्यक्ति से नहीं ।

(ii) कार्य में सत्ता की सन्निहिता का नियम:

(a) उच्च सत्ता, अंतिम सत्ता जैसे शब्द भ्रामक हैं ।

(b) सत्ता कार्य में ही निहित है ।

(c) कार्य अनुसार ही निर्णय लेना चाहिए अर्थात कार्य से आदेश लेना चाहिए ।

4. वेबर और सत्ता:

वेबर ने ‘प्रभुत्व के सिद्धांत’ के अंतर्गत औपचारिक सत्ता विचारधारा को प्रस्तुत किया । वेबर के अनुसार सत्ता अर्थात प्रभुत्व और प्रभुत्व का अर्थ है दूसरों पर नियंत्रण रखना । जब यह नियंत्रण वैधानिक होता है तो आसानी से स्वीकृत हो जाता है जैसे नौकरशाही ।

वेबर ने सत्ता के 3 प्रकार बताये हैं:

1. परंपरावादी सत्ता

2. करिश्माई सत्ता

3. वैधानिक सत्ता ।

वैधानिक सत्ता को वेबर ने श्रेष्ठतम माना, जो तर्क पूर्ण होती है और विवेक पर आधारित होती है ।

(i) उर्विक ने ”प्रिंसिपल्स आफ करसपान्डेन्स” दिया अर्थात सत्ता-उत्तरदायित्व समान होने चाहिए ।

(ii) न्यूमैन ने सत्ता-उत्तरदायित्व की समानता को बुरा सिद्धान्त कहा, फिर भी उसकी आवश्यकता को स्वीकारा ।

सत्ता की सीमाएं (Limitations of Authority):

सत्ता सदैव स्वीकृत हो जरूरी नहीं । कुछ सीमाएं है जो सत्ता की स्वीकृति पर रोक लगाती हैं ।

1. अधीनस्थों की सीमाएं:

जिस कार्य को करने का आदेश दिया गया है उसको करने की क्षमता का अभाव ।

2. जैविक सीमाएं:

ऐसे आदेश जिनकी पूर्ति से जीवन समाप्त होने का खतरा हो, जैसे, जहर चखने का आदेश, बिना उपकरण के बिजली का कार्य करने का आदेश आदि ।

3. कानूनी सीमा:

देश का कानून प्रबंधकों की अधिकार सत्ता को सीमित करता है । प्रबंधकों के उन आदेशों का पालन करने हेतु अधीनस्थ विवश नहीं किये जा सकते जिससे कानूनी व्यवस्थाओं का उल्लंघन होता हो ।

4. तकनीकी सीमाएं:

प्रत्येक व्यक्ति को वही काम सौंपा जाना चाहिए जिसमें वह दक्ष हो । यदि आवश्यक तकनीकी ज्ञान किसी व्यक्ति में न हो तो, वह अपने अधिकार सत्ता की प्रयुक्ति भली प्रकार नहीं कर सकेगा ।

5. मनोवैज्ञानिक सीमाएं:

प्रबंधकों की अधिकार सत्ता को अधीनस्थों की प्रतिक्रियाएं भी प्रभावित करती हैं । इसलिए अधिकार सस्ता का प्रयोग करते समय प्रबंधकों को संभावित प्रतिक्रियाएँ ध्यान में रखनी चाहिए ।

6. आर्थिक सीमाएं:

प्रबंधकों की सत्ताएं भले ही विस्तृत हों फिर भी संस्था के पास उपलब्ध आर्थिक साधन उनकी अधिकार सस्ता को सीमित कर सकते हैं ।

7. प्राकृतिक सीमाएं:

जलवायु, वातावरण, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संकट, आदि अधिकार सत्ता का सीमित करने की क्षमता रखते हैं ।

8. अन्य सीमाएं:

जनसाधारण, श्रम संघों की कार्यवाही, सामाजिक परंपराएं, सामाजिक सीमा एवं प्रथाएं, समूह व्यवहार, आदि भी अधिकार सस्ता को सीमित करने वाले घटक हैं ।