Read this article in Hindi to learn about the budgetary system of Britain.

”ब्रिटिश कोषागार” ब्रिटेन की केंद्रीय वित्तीय एजेन्सी है । यह वहां का वित्त मंत्रालय है जो बजट और वित्त के साथ ”लोकसेवा” के भी कुछ मामले देखता है ।

एक नाममात्र का समूह जिन्हें लार्ड आयुक्त कहा जाता है और जो तीन स्तर के होते हैं:

1. प्रथम लार्ड जो स्वयं प्रधानमंत्री होता है ।

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2. द्वितीय लार्ड जो वित्तमंत्री (चांसलर ऑफ एक्सचेकर) होता है और वास्तविक प्रमुख होता है ।

3. तृतीय स्तर पर पाँच कनिष्ट लार्ड ।

वित्त मंत्री – वास्तविक मुखिया:

वस्तुतः उक्त समूह एक समूह के रूप में कभी नहीं मिलता और उसकी तरफ से वित्त मंत्री ही समस्त दायित्वों का निर्वाह करता है । यही कोषागार का वास्तविक प्रमुख दिखायी देता है ।

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कोषागार के भाग:

ब्रिटिश कोषागार को 1959 में नियुक्त ग्लोडेन कमेटी की रिपोर्ट (1961) के आधार पर दो भागों में विभक्त किया गया:

1. वित्त एवं आर्थिक भाग और

2. वेतन एवं प्रबंधन भाग

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ब्रिटिश बजट:

ब्रिटेन में सभी विभागों का एक ही बजट बनता है । यह वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक के लिये बनता है । कोषागार बजट निर्माण हेतु अक्टूबर के पहले सप्ताह से तैयारी शुरू कर देता है । फरवरी के मध्य में वित्तमंत्री बजट को जन प्रतिनिधि सदन में प्रस्तुत करता है । लेकिन वह इस समय भाषण नहीं देता अपितु बजट के वित्तीय भाग (आय भाग, राजस्व भाग) को प्रस्तुत करते समय देता है ।

(i) ब्रिटेन में बजट की समिति व्यवस्था 1967 के बाद समाप्त कर दी गयी ।

तदनुरूप 1968 से बजट पर सीधे जन प्रतिनिधि सदन चर्चा करता है ।

(ii) सदन बजट संबंधी अनुदान मांगों को स्वीकार, अस्वीकार या घटा सकता है लेकिन बढ़ा नहीं सकता (भारत के समान स्थिति) ।

(iii) जन प्रतिनिधि सदन में बजट अनुमानों पर बहस की अधिकतम समय सीमा 26 दिन है ।

(iv) इस सदन से पारित विनियोग और वित्त विधेयकों को लार्ड सभा में भेज दिया जाता है । इन विधेयकों पर लार्ड सभा को कोई संशोधन का अधिकार नहीं है ।

(v) उल्लेखनीय है कि संपूर्ण बजट एक साथ लार्ड सभा में प्रस्तुत नहीं होता और नहीं उस पर चर्चा होती है ।

(vi) यह भी नियम है कि जन प्रतिनिधि सदन में पारित होने के 30 दिन बाद बजट हस्ताक्षर हेतु ”ताज” को प्रस्तुत हो (भारत में 14 दिन की अवधि) ।

(vii) करों के अस्थायी संग्रह अधिनियम, 1913 के तहत सरकार वित्तीय विधेयक के पारित होने तक कर वसूली कर सकती है ।

व्यय समिति:

ब्रिटेन में अनुमान समिति 1912 में गठित हुई थी । 1917 में उसके स्थान पर ”व्यय समिति” गठित की गयी । इसके 40 से लेकर 50 तक सदस्य हो सकते हैं जो सभी जनप्रतिनिधि सदन से आते हैं ।

लोक लेखा समिति:

इसकी स्थापना ग्लेडस्टोन के काल में 1861 में की गई थी । इसके सभी 15 सदस्य भी हाउस ऑफ कामंस से ही आते हैं । इसका अध्यक्ष विपक्ष से होता है ।

नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक:

विश्व में लोक लेखों का परीक्षण सर्वप्रथम ब्रिटेन में शुरू हुआ । 1866 में ग्लेडस्टोन (प्रधानमंत्री) ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यालय की स्थापना की । नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का पूरा नाम है- कॉम्पट्रोलर जनरल ऑफ द रिसीट एंड इशू ऑफ हर मेजेस्ट्जि एक्सचेकर एंड ऑडीटर जनरल ऑफ पब्लिक एकाउंट्स । इसकी नियुक्ति मंत्रिमंडल की सलाह पर ताज द्वारा की जाती है । उसका कार्यकाल निश्चित नहीं होता और संसद की सिफारिश पर ताज द्वारा उसको हटाया जा सकता है ।

इस संसदीय एजेन्ट के दो मुख्य कार्य वहां हैं:

1. नियंत्रक के रूप में संचित निधि में धन के आगमन और उससे व्यय पर नियंत्रण रखना तथा

2. लेखा-परीक्षक के रूप में विभागीय लेखों का परीक्षण करना ।

वह परीक्षण-प्रतिवेदन पार्लियामेंट में प्रस्तुत करता है । वस्तुतः उसके कार्यों का निर्धारण 1866 के एक्सचेकर एंड ऑडिट डिपार्टमेंट एक्ट में किया गया जिसमें 1921 के इसी नाम से बनाये गये दूसरे एक्ट में पुननिर्धारण हुआ ।

राष्ट्रीय आर्थिक विकास परिषद (National Economic Development):

1961 में स्थापित इस परिषद का अध्यक्ष प्रधानमंत्री या वित्तमंत्री होता है । इसका प्रमुख उद्देश्य है देश की आर्थिक नीतियां और समस्याओं पर सामूहिक विचार मंच उपलब्ध कराना ।

संसदीय आयुक्त (Parliamentary Commissioner):

प्रशासन से संबंधित नागरिक शिकायतों को सुनने की ब्रिटिश ओम्बुडसमेन प्रणाली है, ‘संसदीय आयुक्त” । सर जान व्हेट कमेटी (1961) की अनुशंसा पर इस पद का निर्माण 1967 में किया गया ।

पद:

संसदीय आयुक्त मंत्रीमंडल के परामर्श पर ताज द्वारा नियुक्त किया जाता है । उसका पद महालेखा परीक्षक के समक्ष रखा गया है । वह अपने पद पर 65 वर्ष तक की आयु होने तक बना रहता है । लेकिन पार्लियामेंट उसे ”अक्षमता” के आधार पर एक प्रस्ताव द्वारा भी हटा सकती है ।

कार्य-अधिकार:

संसदीय आयुक्त को प्रशासन के विरूद्ध नागरिकों की शिकायतों की जांच-पड़ताल का अधिकार है । वह ”कुप्रशासन” शब्द की परिभाषा स्वयं निर्धारित करता है । लेकिन नागरिक उससे सीधे शिकायत नहीं कर सकते अपितु किसी सांसद के माध्यम से ही कर सकते हैं । इस व्यवस्था को ”MP Filter” कहा जाता है । आयुक्त शिकायत पर अपनी जांच से सांसद के साथ संसद को भी अवगत कराता है ।

निम्नलिखित मामले उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखे गये हैं:

1. उन मामलों में जहां शिकायतकर्ता के पास अपील का अवसर मौजूद हो ।

2. उन नीतिगत प्रश्नों की जांच नहीं कर सकता जो संसदाधीन है ।

3. विधि सम्मत और नियमानुसार लिये गये प्रशासनिक विवेकाधीन निर्णयों की उपयुक्तता की जांच नहीं कर सकता ।

4. वह खुले तौर पर जांच नहीं कर सकता अपितु उसकी जांच गोपनीय और प्राइवेट होनी ।

5. मंत्री कोई सरकारी सूचना उसे देने में जनहित की दृष्टि से रोक लगा सकता है ।

इस प्रकार स्वीडिश ओम्बुडसमेन की तुलना में ब्रिटिश ओम्बुडसमेन के अधिकार, क्षेत्र आदि अत्यंत सीमित हैं ।