Read this article in Hindi to learn about the political system of Britain.

प्रथम महायुद्ध (1914-1918) के दौरान परिस्थितियों ने औद्योगिक और सरकारी दोनों कार्मिकों को प्रभावित किया । नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों को सर्वप्रथम प्राथमिकता ब्रिटेन में ही दी गई और 1917 में वहां व्हीटले परिषदें स्थापित हुई, जो नियोक्ता और कर्मचारी के मध्य वार्ता का मंच है ।

औद्योगिक श्रर्मिकों और प्रबंध के मध्य के विवादों के निपटारे हेतु सुझाव देने के लिए सरकार ने हाउस आफ कामंस के अध्यक्ष श्री जे.एच. व्हीटले की अध्यक्षता में 1916 एक समिति गठित की । इसकी अनुशंसा पर व्हीटले परिषद 1917 गठित हुई थी । इसमें प्रबंध और श्रर्मिकों के बराबर संख्या में प्रतिनिधि होते थे । इनसे प्रभावित सरकारी सेवकों ने भी अपने और सरकार के मध्य “व्हीटले परिषदों” की मांग की ।

सर्वप्रथम यह मांग डाकसेवा कार्मियों ने की । सरकार ने अप्रैल 1919 में इस मांग पर विचार हेतु ”रामसे समिति” का गठन किया, जिसके अध्यक्ष सर मैलकाम रामसे और उपाध्यक्ष श्री बन्निंग थे । समिति नें व्हीटले परिषदों को सरकारी सेवा में भी लागू करने की अनुशंसा की, जो 1919 में ही लागू हो गयी ।

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यह त्रिस्तरीय है:

1. राष्ट्रीय परिषद (National Council):

उच्चतम स्तर पर 54 सदस्यी राष्ट्रीय परिषद है । इसमें 27 सरकारी और 27 कार्मिक संघों के प्रतिनिधि होते है । प्रत्येक प्रतिनिधि के स्थान पर प्रत्येक गुट का 1 वोट होता है । 1 अध्यक्ष, 1 उपाध्यक्ष और 4 सचिव इसके मुख्य पदाधिकारी होते हैं जो सरकारी और कार्मिक दोनों गुटों से समान रूप से लिए जाते है । ग्रह लोक सेवा का प्रमुख ही राष्ट्रीय व्हीटले परिषद का अध्यक्ष होता है । कार्मिक संघों द्वारा भेजे गये 27 प्रतिनिधियों में लोक सेवक और गैर लोक सेवक दोनों पदाधिकारी हो सकते हैं ।

2. विभागीय व्हीटलें परिषदें (Departmental Whitelines Councils):

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विभागों में विभागीय व्हीटलें परिषदें स्थापित की गयी हैं जिनकी संख्या विभागवार भिन्न-भिन्न और राष्ट्रीय परिषद की तुलना में काफी कम होती है । इसमें भी सरकारी और कार्मिक प्रतिनिधि बराबर अनुपात में होते है । विभागीय परिषदें भी इसी प्रकार से कार्य करती है जैसे राष्ट्रीय परिषद ।

लेकिन विभागीय परिषदें विभाग स्तरीय मामलों को ही देखती है और प्राय: ये पदोन्नति, वेतन, भले जैसे कार्यों को ही देखती है । यद्यपि इनका राष्ट्रीय परिषद से कोई संबंध नहीं है, तथापि किसी मामले को विचार हेतु राष्ट्रीय परिषद को भेज सकती है ।

3. क्षेत्रीय समितियां (Regional Committees):

क्षेत्रों में स्थित प्रशासनिक संस्थानों के स्तर पर उपर्युक्त कार्यों को करने के लिए जिला या क्षेत्रीय समितियों होती है । ये विभागीय परिषदों के पैटर्न पर ही बनायी जाती है लेकिन इनका कार्य क्षेत्र स्थानीय संस्थाओं तक सीमित है ।

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व्हीटलें परिषदों का मुख्य कार्य सेवा शर्तों (वेतन, भत्ते, पदोन्नति, सेवानिवृत्ति, काम के घण्टे, अनुशासन आदि) से संबंधित सिद्धांतों का निरूपण करना है । यह कार्यालय सुधार हेतु कार्मिक-सुझावों को एकत्रित करती है । कार्मिकों को शिक्षा स्तर में बढ़ोत्तरी हेतु प्रोत्साहित भी करती है ।

उल्लेखनीय है कि ये परिषदें 2 हजार पौन्ड तक के वार्षिक वेतन वाले मामले ही सुनती है तथा किसी व्यक्ति विशेष के स्थान पर कार्मिकों के सामूहिक मामले ही देखती है । इन तीनों परिषदों में कोई अन्तर संबंध नहीं है । ये परस्पर स्वतंत्र रूप से कार्य करती है ।

पंचाट या न्यायाधिकरण (Tribunal):

1936 में ब्रिटिश सरकार ने इसकी स्थापना सर्वोच्च स्तरीय सेवा परिषद के रूप में की । जब कीटमें परिषदों में किसी बात को लेकर विवाद हो तब कोई भी पक्ष मामले को पंचाट के समक्ष ले जाएगा । पंचाट का फैसला सरकार अस्वीकृत कर सकती है । पंचाट में एक अध्यक्ष तथा दो सदस्यों में से एक सदस्य कार्मिक संघ का होता है और एक सरकार का ।

अमेरिका में विवाद निपटारा तन्त्र (Dispute Settlement System in America):

यहां व्हीटलें परिषदों के समान कोई संगठन या संरचना नहीं है । अन्तर सरकारी संबंधों पर विचार हेतु गठित सलाहकार आयोग ने 1969 में ”वार्ता” दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया । अमेरिका में कांग्रेस ही कार्मिकों की सेवा शर्तों को निर्धारित करती है ।